मूलम्
मनुष्या मानुषा मर्त्या मनुजा मानवा नराः ॥2.6.1.1॥
शब्दाः
मनुष्यः. (6) - मनुष्य (पुं), मानुष (पुं), मर्त्य (पुं), मनुज (पुं), मानव (पुं), नर (पुं) ॥2.6.1.1॥
मूलम्
स्युः पुमांसः पञ्चजनाः पुरुषाः पूरुषा नरः ॥2.6.1.2॥
शब्दाः
पुरुषः. (5) - पुमाम्स (पुं), पञ्चजन (पुं), पुरुष (पुं), पूरुष (पुं), नर (पुं) ॥2.6.1.2॥
मूलम्
स्त्री योषिदबला योषा नारी सीमन्तिनी वधूः ॥2.6.2.1॥
शब्दाः
स्त्री. (7) - स्त्री (स्त्री), योषित् (स्त्री), अबला (स्त्री), योषा (स्त्री), नारी (स्त्री), सीमन्तिनी (स्त्री), वधू (स्त्री) ॥2.6.2.1॥
मूलम्
प्रतीपदर्शिनी वामा वनिता महिला तथा ॥2.6.2.2॥
शब्दाः
स्त्री. (4) - प्रतीपदर्शिनी (स्त्री), वामा (स्त्री), वनिता (स्त्री), महिला (स्त्री) ॥2.6.2.2॥
मूलम्
विशेषास्त्वङ्गना भीरुः कामिनी वामलोचना ॥2.6.3.1॥
शब्दाः
स्त्रीविशेषः. (4) - अङ्गना (स्त्री), भीरु (स्त्री), कामिनी (स्त्री), वामलोचना (स्त्री) ॥2.6.3.1॥
मूलम्
प्रमदा मानिनी कान्ता ललना च नितम्बिनी ॥2.6.3.2॥
शब्दाः
स्त्रीविशेषः. (5) - प्रमदा (स्त्री), मानिनी (स्त्री), कान्ता (स्त्री), ललना (स्त्री), नितम्बिनी (स्त्री) ॥2.6.3.2॥
मूलम्
सुन्दरी रमणी रामा कोपना सैव भामिनी ॥2.6.4.1॥
शब्दाः
स्त्रीविशेषः. (3) - सुन्दरी (स्त्री), रमणी (स्त्री), रामा (स्त्री)
कोपनस्त्री. (2) - कोपना (स्त्री), भामिनी (स्त्री) ॥2.6.4.1॥
मूलम्
वरारोहा मत्तकाशिन्युत्तमा वरवर्णिनी ॥2.6.4.2॥
शब्दाः
अत्यन्तोत्कृष्टस्त्री. (4) - वरारोहा (स्त्री), मत्तकाशिनी (स्त्री), उत्तमा (स्त्री), वरवर्णिनी (स्त्री) ॥2.6.4.2॥
मूलम्
कृताभिषेका महिषी भोगिन्योऽन्या नृपस्त्रियः ॥2.6.5.1॥
शब्दाः
पट्टमहिषी. (1) - महिषी (स्त्री)
राजभार्या. (1) - भोगिनी (स्त्री) ॥2.6.5.1॥
मूलम्
पत्नी पाणिगृहीती च द्वितीया सहधर्मिणी ॥2.6.5.2॥
शब्दाः
पत्नी. (4) - पत्नी (स्त्री), पाणिगृहीती (स्त्री), द्वितीया (स्त्री), सहधर्मिणी (स्त्री) ॥2.6.5.2॥
मूलम्
भार्या जायाथ पुंभूम्नि दाराः स्यात्तु कुटुम्बिनी ॥2.6.6.1॥
शब्दाः
पत्नी. (3) - भार्या (स्त्री), जाया (स्त्री), दार (पुं-बहु)
पतिपुत्रातिमती. (1) - कुटुम्बिनी (स्त्री) ॥2.6.6.1॥
मूलम्
पुरन्ध्री सुचरित्रा तु सती साध्वी पतिव्रता ॥2.6.6.2॥
शब्दाः
पतिपुत्रातिमती. (1) - पुरन्ध्री (स्त्री)
पतिव्रता. (4) - सुचरित्रा (स्त्री), सती (स्त्री), साध्वी (स्त्री), पतिव्रता (स्त्री) ॥2.6.6.2॥
मूलम्
कृतसापत्निकाध्यूढाधिविन्नाथ स्वयंवरा ॥2.6.7.1॥
शब्दाः
प्रथममूढा. (3) - कृतसपत्निका (स्त्री), अध्यूढा (स्त्री), अधिविन्ना (स्त्री)
स्वेच्छाकृतपतिवरणा. (1) - स्वयंवरा (स्त्री) ॥2.6.7.1॥
मूलम्
पतिंवरा च वर्याथ कुलस्त्री कुलपालिका ॥2.6.7.2॥
शब्दाः
स्वेच्छाकृतपतिवरणा. (2) - पतिंवरा (स्त्री), वर्या (स्त्री)
दोषवारणकृतकुलरक्षास्त्री. (2) - कुलस्त्री (स्त्री), कुलपालिका (स्त्री) ॥2.6.7.2॥
मूलम्
कन्या कुमारी गौरी तु नग्निकानागतार्तवा ॥2.6.8.1॥
शब्दाः
कन्या. (2) - कन्या (स्त्री), कुमारी (स्त्री)
अदृष्टरजस्का. (3) - गौरी (स्त्री), नग्निका (स्त्री), अनागतार्तवा (स्त्री) ॥2.6.8.1॥
मूलम्
स्यान्मध्यमा दृष्टरजास्तरुणी युवतिः समे ॥2.6.8.2॥
शब्दाः
प्रथमप्राप्तरजोयोगा. (2) - मध्यमा (स्त्री), दृष्टरजस् (स्त्री)
यौवनयुक्ता. (2) - तरुणी (स्त्री), युवति (स्त्री) ॥2.6.8.2॥
मूलम्
समाः स्नुषाजनीवध्वश्चिरिण्टी तु सुवासिनी ॥2.6.9.1॥
शब्दाः
पुत्रभार्या. (3) - स्नुषा (स्त्री), जनी (स्त्री), वधू (स्त्री)
प्राप्तयौवना पितृगेहस्था. (2) - चिरिण्टी (स्त्री), सुवासिनी (स्त्री) ॥2.6.9.1॥
मूलम्
इच्छावती कामुका स्याद्वृषस्यन्ती तु कामुकी ॥2.6.9.2॥
शब्दाः
धनादीच्छायुक्ता. (2) - इच्छावती (स्त्री), कामुका (स्त्री)
मैथुनेच्छावती. (2) - वृषस्यन्ती (स्त्री), कामुकी (स्त्री) ॥2.6.9.2॥
मूलम्
कान्तार्थिनी तु या याति संकेतं साभिसारिका ॥2.6.10.1॥
शब्दाः
या कान्तेच्छयारतिस्थानं गच्छती सा. (1) - अभिसारिका (स्त्री) ॥2.6.10.1॥
मूलम्
पुंश्चली धर्षिणी बन्धक्यसती कुलटेत्वरी ॥2.6.10.2॥
शब्दाः
स्वैरिणी. (6) - पुंश्चली (स्त्री), धर्षिणी (स्त्री), बन्धकी (स्त्री), असती (स्त्री), कुलटा (स्त्री), इत्वरी (स्त्री) ॥2.6.10.2॥
मूलम्
स्वैरिणी पांसुला च स्यादशिश्वी शिशुना विना ॥2.6.11.1॥
शब्दाः
स्वैरिणी. (2) - स्वैरिणी (स्त्री), पांसुला (स्त्री)
अपत्यरहिता. (1) - अशिश्वी (स्त्री) ॥2.6.11.1॥
मूलम्
अवीरा निष्पतिसुता विश्वस्ताविधवे समे ॥2.6.11.2॥
शब्दाः
पतिपुत्ररहिता. (1) - अवीरा (स्त्री)
विधवा. (2) - विश्वस्ता (स्त्री), विधवा (स्त्री) ॥2.6.11.2॥
मूलम्
आलिः सखी वयस्याथ पतिवत्नी सभर्तृका ॥2.6.12.1॥
शब्दाः
सखी. (3) - आलि (स्त्री), सखी (स्त्री), वयस्या (स्त्री)
सुमङ्गली. (2) - पतिवत्नी (स्त्री), सभर्तृका (स्त्री) ॥2.6.12.1॥
मूलम्
वृद्धा पलिक्नी प्राज्ञी तु प्रज्ञा प्राज्ञा तु धीमती ॥2.6.12.2॥
शब्दाः
पक्वकेशी. (2) - वृद्धा (स्त्री), पलिक्नी (स्त्री)
स्वयम्ज्ञात्री. (2) - प्राज्ञी (स्त्री), प्रज्ञा (स्त्री)
प्रशस्तबुद्धी. (2) - प्राज्ञा (स्त्री), धीमती (स्त्री) ॥2.6.12.2॥
मूलम्
शूद्री शूद्रस्य भार्या स्याच्छूद्रा तज्जातिरेव च ॥2.6.13.1॥
शब्दाः
शूद्रस्यभार्या. (1) - शूद्री (स्त्री)
शूद्रजातीया. (1) - शूद्रा (स्त्री) ॥2.6.13.1॥
मूलम्
आभीरी तु महाशूद्री जातिपुंयोगयोः समा ॥2.6.13.2॥
शब्दाः
आभीरी. (2) - आभीरी (स्त्री), महाशूद्री (स्त्री) ॥2.6.13.2॥
मूलम्
अर्याणी स्वयमर्या स्यात्क्षत्रिया क्षत्रियाण्यपि ॥2.6.14.1॥
शब्दाः
वैश्यजातीया. (2) - अर्याणी (स्त्री), अर्या (स्त्री)
क्षत्रियजातीया. (2) - क्षत्रिया (स्त्री), क्षत्रियाणी (स्त्री) ॥2.6.14.1॥
मूलम्
उपाध्यायाप्युपाध्यायी स्यादाचार्यापि च स्वतः ॥2.6.14.2॥
शब्दाः
स्वयम्विद्योपदेशीनी. (2) - उपाध्याया (स्त्री), उपाध्यायी (स्त्री)
स्वयम्मन्त्रव्याख्यात्री. (1) - आचार्या (स्त्री) ॥2.6.14.2॥
मूलम्
आचार्यानी तु पुंयोगे स्यादर्यी क्षत्रियी तथा ॥2.6.15.1॥
शब्दाः
आचार्यभार्या. (1) - आचार्यानी (स्त्री)
वैश्यपत्नी. (1) - अर्यी (स्त्री)
क्षत्रियपत्नी. (1) - क्षत्रियी (स्त्री) ॥2.6.15.1॥
मूलम्
उपाध्यायान्युपाध्यायी पोटा स्त्रीपुंसलक्षणा ॥2.6.15.2॥
शब्दाः
विद्योपदेष्टृभार्या. (2) - उपाध्यायानी (स्त्री), उपाध्यायी (स्त्री)
नपुंसकम्. (1) - पोटा (स्त्री) ॥2.6.15.2॥
मूलम्
वीरपत्नी वीरभार्या वीरमाता तु वीरसूः ॥2.6.16.1॥
शब्दाः
वीरस्य भार्या. (2) - वीरपत्नी (स्त्री), वीरभार्या (स्त्री)
वीरस्य माता. (2) - वीरमातृ (स्त्री), वीरसू (स्त्री) ॥2.6.16.1॥
मूलम्
जातापत्या प्रजाता च प्रसूता च प्रसूतिका ॥2.6.16.2॥
शब्दाः
प्रसूता. (4) - जातापत्या (स्त्री), प्रजाता (स्त्री), प्रसूता (स्त्री), प्रसूतिका (स्त्री) ॥2.6.16.2॥
मूलम्
स्त्री नग्निका कोटवी स्याद्दूतीसंचारिके समे ॥2.6.17.1॥
शब्दाः
नग्ना. (2) - नग्निका (स्त्री), कोटवी (स्त्री)
दूती. (2) - दूती (स्त्री), सञ्चारिका (स्त्री) ॥2.6.17.1॥
मूलम्
कात्यायन्यर्धवृद्धा या काषायवसनाधवा ॥2.6.17.2॥
शब्दाः
अर्धवृद्धा काषायवसना अधवा च स्त्री. (1) - कात्यायनी (स्त्री) ॥2.6.17.2॥
मूलम्
सैरन्ध्री परवेश्मस्था स्ववशा शिल्पकारिका ॥2.6.18.1॥
शब्दाः
परवेश्मस्था स्ववशा शिल्पकारिका च स्त्री. (1) - सैरन्ध्री (स्त्री) ॥2.6.18.1॥
मूलम्
असिक्नी स्यादवृद्धा या प्रेष्यान्तःपुरचारिणी ॥2.6.18.2॥
शब्दाः
कृष्णकेशी प्रेष्यान्तःपुरचारिणी च स्त्री. (1) - असिक्नी (स्त्री) ॥2.6.18.2॥
मूलम्
वारस्त्री गणिका वेश्या रूपाजीवाथ सा जनैः ॥2.6.19.1॥
शब्दाः
वेश्या. (4) - वारस्त्री (स्त्री), गणिका (स्त्री), वेश्या (स्त्री), रूपाजीवा (स्त्री) ॥2.6.19.1॥
मूलम्
सत्कृता वारमुख्या स्यात्कुट्टनी शम्भली समे ॥2.6.19.2॥
शब्दाः
जनैः सत्कृतवेश्या. (1) - वारमुख्या (स्त्री)
परनारीं पुंसा संयोजयित्री. (2) - कुट्टनी (स्त्री), शम्भली (स्त्री) ॥2.6.19.2॥
मूलम्
विप्रश्निका त्वीक्षणिका दैवज्ञाथ रजस्वला ॥2.6.20.1॥
शब्दाः
शुभाशुभनिरूपिणी. (3) - विप्रश्निका (स्त्री), ईक्षणिका (स्त्री), दैवज्ञा (स्त्री)
रजस्वला. (1) - रजस्वला (स्त्री) ॥2.6.20.1॥
मूलम्
स्त्रीधर्मिण्यविरात्रेयी मलिनी पुष्पवत्यपि ॥2.6.20.2॥
शब्दाः
रजस्वला. (5) - स्त्रीधर्मिणी (स्त्री), अवि (स्त्री), आत्रेयी (स्त्री), मलिनी (स्त्री), पुष्पवती (स्त्री) ॥2.6.20.2॥
मूलम्
ऋतुमत्यप्युदक्यापि स्याद्रजः पुष्पमार्तवम् ॥2.6.21.1॥
शब्दाः
रजस्वला. (2) - ऋतुमती (स्त्री), उदक्या (स्त्री)
आर्तवम्. (3) - रजस् (नपुं), पुष्प (नपुं), आर्तव (नपुं) ॥2.6.21.1॥
मूलम्
श्रद्धालुर्दोहदवती निष्कला विगतार्तवा ॥2.6.21.2॥
शब्दाः
गर्भवशादभिलाषविशेषवती. (2) - श्रद्धालु (स्त्री), दोहदवती (स्त्री)
रजोहीना. (2) - निष्कला (स्त्री), विगतार्तवा (स्त्री) ॥2.6.21.2॥
मूलम्
आपन्नसत्त्वा स्याद्गुर्विण्यन्तर्वत्नी च गर्भिणी ॥2.6.22.1॥
शब्दाः
गर्भिणी. (4) - आपन्नसत्त्वा (स्त्री), गुर्विणी (स्त्री), अन्तर्वत्नी (स्त्री), गर्भिणी (स्त्री) ॥2.6.22.1॥
मूलम्
गणिकादेस्तु गाणिक्यं गार्भिणं यौवतं गणे ॥2.6.22.2॥
शब्दाः
गणिकासमूहः. (1) - गाणिक्य (नपुं)
गर्भिणीसमूहः. (1) - गार्भिण (नपुं)
युवतीसमूहः. (1) - यौवत (नपुं) ॥2.6.22.2॥
मूलम्
पुनर्भूर्दिधिषूरूढा द्विस्तस्या दिधिषुः पतिः ॥2.6.23.1॥
शब्दाः
द्विवारमूढा. (2) - पुनर्भू (स्त्री), दिधिषु (स्त्री)
द्व्यूढापतिः. (1) - दिधिषू (स्त्री) ॥2.6.23.1॥
मूलम्
स तु द्विजोऽग्रे दिधिषूः सैव यस्य कुटुम्बिनी ॥2.6.23.2॥
शब्दाः
द्व्यूढाप्रधानभार्यः. (1) - अग्रेदिधिषू (पुं) ॥2.6.23.2॥
मूलम्
कानीनः कन्यकाजातः सुतोऽथ सुभगासुतः ॥2.6.24.1॥
शब्दाः
कन्यकासुतः. (2) - कानीन (पुं), कन्यकाजात (पुं)
सुभगापुत्रः. (1) - सुभगासुत (पुं) ॥2.6.24.1॥
मूलम्
सौभागिनेयः स्यात्पारस्त्रैणेयस्तु परस्त्रियाः ॥2.6.24.2॥
शब्दाः
सुभगापुत्रः. (1) - सौभागिनेय (पुं)
परभार्यापुत्रः. (1) - पारस्त्रैणेय (पुं) ॥2.6.24.2॥
मूलम्
पैतृष्वसेयः स्यात्पैतृष्वस्रीयश्च पितृष्वसुः ॥2.6.25.1॥
शब्दाः
पितृष्वसुः सुतः. (2) - पैतृष्वसेय (पुं), पैतृष्वस्रीय (पुं) ॥2.6.25.1॥
मूलम्
सुता मातृष्वसुश्चैवं वैमात्रेयो विमातृजः ॥2.6.25.2॥
शब्दाः
मातृष्वसुः सुतः. (1) - मातृष्वसृ (स्त्री)
अपरमातृसुतः. (2) - वैमात्रेय (पुं), विमातृज (पुं) ॥2.6.25.2॥
मूलम्
अथ बान्धकिनेयः स्याद्बन्धुलश्चासतीसुतः ॥2.6.26.1॥
शब्दाः
कुलटायाः पुत्रः. (3) - बान्धकिनेय (पुं), बन्धुल (पुं), असतीसुत (पुं) ॥2.6.26.1॥
मूलम्
कौलटेरः कौलटेयो भिक्षुकी तु सती यदि ॥2.6.26.2॥
शब्दाः
कुलटायाः पुत्रः. (2) - कौलटेर (पुं), कौलटेय (पुं) ॥2.6.26.2॥
मूलम्
तदा कौलटिनेयोऽस्याः कौलटेयोऽपि चात्मजः ॥2.6.27.1॥
शब्दाः
सत्या भिक्षार्थमटन्त्याः पुत्रः. (2) - कौलटिनेय (पुं), कौलटेय (पुं) ॥2.6.27.1॥
मूलम्
आत्मजस्तनयः सूनुः सुतः पुत्रः स्त्रियां त्वमी ॥2.6.27.2॥
शब्दाः
पुत्रः. (5) - आत्मज (पुं), तनय (पुं), सूनु (पुं), सुत (पुं), पुत्र (पुं) ॥2.6.27.2॥
मूलम्
आहुर्दुहितरं सर्वेऽपत्यं तोकं तयोः समे ॥2.6.28.1॥
शब्दाः
तनयदुहित्रोः नाम. (2) - अपत्य (नपुं), तोक (नपुं)
पुत्री. (5) - आत्मजा (स्त्री), तनया (स्त्री), सूनू (स्त्री), सुता (स्त्री), पुत्री (स्त्री) ॥2.6.28.1॥
मूलम्
स्वजाते त्वौरसोरस्यौ तातस्तु जनकः पिता ॥2.6.28.2॥
शब्दाः
स्वस्माज्जातपुत्रः. (2) - उरस्य (पुं), औरस (पुं)
पिता. (3) - तात (पुं), जनक (पुं), पितृ (पुं) ॥2.6.28.2॥
मूलम्
जनयित्री प्रसूर्माता जननी भगिनी स्वसा ॥2.6.29.1॥
शब्दाः
जननी. (4) - जनयित्री (स्त्री), प्रसू (स्त्री), मातृ (स्त्री), जननी (स्त्री)
भगिनी. (2) - भगिनी (स्त्री), स्वसृ (स्त्री) ॥2.6.29.1॥
मूलम्
ननान्दा तु स्वसा पत्युर्नप्त्री पौत्री सुतात्मजा ॥2.6.29.2॥
शब्दाः
भर्तृभगिनी. (1) - ननन्दृ (स्त्री)
सुतस्य सुतायाः वा अपत्यः. (3) - नप्त्री (स्त्री), पौत्री (स्त्री), सुतात्मजा (स्त्री) ॥2.6.29.2॥
मूलम्
भार्यास्तु भ्रातृवर्गस्य यातरः स्युः परस्परम् ॥2.6.30.1॥
शब्दाः
परस्परम् भ्रातृभार्या. (1) - यातर (स्त्री) ॥2.6.30.1॥
मूलम्
प्रजावती भ्रातृजाया मातुलानी तु मातुली ॥2.6.30.2॥
शब्दाः
भ्रातृपत्निः. (2) - प्रजावती (स्त्री), भ्रातृजाया (स्त्री)
मातुलभार्या. (2) - मातुलानी (स्त्री), मातुली (स्त्री) ॥2.6.30.2॥
मूलम्
पतिपत्न्योः प्रसूः श्वश्रूः श्वशुरस्तु पिता तयोः ॥2.6.31.1॥
शब्दाः
पत्युर्वा पत्न्याः वा माता. (1) - श्वश्रू (स्त्री)
पत्युर्वा पत्न्याः वा पिता. (1) - श्वशुर (पुं) ॥2.6.31.1॥
मूलम्
पितुर्भ्राता पितृव्यः स्यान्मातुर्भ्राता तु मातुलः ॥2.6.31.2॥
शब्दाः
पितुर्भ्राता. (1) - पितृव्य (पुं)
मातुर्भ्राता. (1) - मातुल (पुं) ॥2.6.31.2॥
मूलम्
श्यालाः स्युर्भ्रातरः पत्न्याः स्वामिनो देवृदेवरौ ॥2.6.32.1॥
शब्दाः
पत्नीभ्राता. (1) - श्याल (पुं)
पत्युः कनिष्ठभ्राता. (2) - देवृ (पुं), देवर (पुं) ॥2.6.32.1॥
मूलम्
स्वस्रीयो भागिनेयः स्याज्जामाता दुहितुः पतिः ॥2.6.32.2॥
शब्दाः
भगिनीसुताः. (2) - स्वस्रीय (पुं), भागिनेय (पुं)
पुत्र्याः पतिः. (1) - जामातृ (पुं) ॥2.6.32.2॥
मूलम्
पितामहः पितृपिता तत्पिता प्रपितामहः ॥2.6.33.1॥
शब्दाः
पितुः पिता. (2) - पितामह (पुं), पितृपितृ (पुं)
पितामहस्य पिता. (1) - प्रपितामह (पुं) ॥2.6.33.1॥
मूलम्
मातुर्मातामहाद्येवं सपिण्डास्तु सनाभयः ॥2.6.33.2॥
शब्दाः
मातुः पिता. (1) - मातामह (पुं)
मातामहस्य पिता. (1) - प्रमातामह (पुं)
सपिण्डाः. (2) - सपिण्ड (पुं), सनाभि (पुं) ॥2.6.33.2॥
मूलम्
समानोदर्यसोदर्यसगर्भ्यसहजाः समाः ॥2.6.34.1॥
शब्दाः
एकोदरभ्राता. (4) - समानोदर्य (पुं), सोदर्य (पुं), सगर्भ्य (पुं), सहज (पुं) ॥2.6.34.1॥
मूलम्
सगोत्रबान्धवज्ञातिबन्धुस्वस्वजनाः समाः ॥2.6.34.2॥
शब्दाः
सगोत्रः. (6) - सगोत्र (पुं), बान्धव (पुं), ज्ञाति (पुं), बन्धु (पुं), स्व (पुं), स्वजन (पुं) ॥2.6.34.2॥
मूलम्
ज्ञातेयं बन्धुता तेषां क्रमाद्भावसमूहयोः ॥2.6.35.1॥
शब्दाः
ज्ञातेर्भावः. (1) - ज्ञातेय (नपुं)
बन्धूनां समूहः. (1) - बन्धुता (स्त्री) ॥2.6.35.1॥
मूलम्
धवः प्रियः पतिर्भर्ता जारस्तूपपतिः समौ ॥2.6.35.2॥
शब्दाः
पतिः. (4) - धव (पुं), प्रिय (पुं), पति (पुं), भर्तृ (पुं)
मुख्यादन्यभर्ता. (2) - जार (पुं), उपपति (पुं) ॥2.6.35.2॥
मूलम्
अमृते जारजः कुण्डो मृते भर्तरि गोलकः ॥2.6.36.1॥
शब्दाः
जीवति पत्यौ जारजातः पुत्रः. (1) - कुण्ड (पुं)
विधवायाम् जारजातः पुत्रः. (1) - गोलक (पुं) ॥2.6.36.1॥
मूलम्
भ्रात्रीयो भ्रातृजो भ्रातृभगिन्यौ भ्रातरावुभौ ॥2.6.36.2॥
शब्दाः
भ्रातृपुत्रः. (2) - भ्रात्रीय (पुं), भ्रातृज (पुं)
भ्रातृभगिन्योः नाम. (2) - भ्रातृभगिनी (पुं), भ्रातर् (पुं-द्वि) ॥2.6.36.2॥
मूलम्
मातापितरौ पितरौ मातरपितरौ प्रसूजनयितारौ ॥2.6.37.1॥
शब्दाः
मातापितरौ. (4) - मातापितृ (पुं-द्वि), पितरौ (पुं-द्वि), मातरपितृ (पुं-द्वि), प्रसूजनयितृ (पुं-द्वि) ॥2.6.37.1॥
मूलम्
श्वश्रूश्वशुरौ श्वशुरौ पुत्रौ पुत्रश्च दुहिता च ॥2.6.37.2॥
शब्दाः
श्वश्रूश्वशुरौ. (2) - श्वश्रूश्वशुर (पुं-द्वि), श्वशुर (पुं-द्वि)
पुत्रश्च पुत्री च. (1) - पुत्रौ (पुं-द्वि) ॥2.6.37.2॥
मूलम्
दम्पती जम्पती जायापती भार्यापती च तौ ॥2.6.38.1॥
शब्दाः
दम्पती. (4) - दम्पती (पुं-द्वि), जम्पती (पुं-द्वि), जायापती (पुं-द्वि), भार्यापती (पुं-द्वि) ॥2.6.38.1॥
मूलम्
गर्भाशयो जरायुः स्यादुल्बं च कललोऽस्त्रियाम् ॥2.6.38.2॥
शब्दाः
गर्भवेष्टनचर्मः. (2) - गर्भाशय (पुं), जरायु (पुं)
शुक्लशोणितसम्पातः. (2) - उल्ब (पुं-नपुं), कलल (पुं-नपुं) ॥2.6.38.2॥
मूलम्
सूतिमासो वैजननो गर्भो भ्रूण इमौ समौ ॥2.6.39.1॥
शब्दाः
प्रसवमासः. (2) - सूतिमास (पुं), वैजनन (पुं)
कुक्षिस्थगर्भः. (2) - गर्भ (पुं), भ्रूण (पुं) ॥2.6.39.1॥
मूलम्
तृतीया प्रकृतिः शण्ढः क्लीबः पण्डो नपुंसके ॥2.6.39.2॥
शब्दाः
नपुंसकम्. (5) - तृतीयाप्रकृति (पुं), शण्ढ (पुं), क्लीब (पुं-नपुं), षण्ड (पुं), नपुंसक (पुं-नपुं) ॥2.6.39.2॥
मूलम्
शिशुत्वं शैशवं बाल्यं तारुण्यं यौवनं समे ॥2.6.40.1॥
शब्दाः
बाल्यत्वम्. (3) - शिशुत्व (नपुं), शैशव (नपुं), बाल्य (नपुं)
तारुण्यम्. (2) - तारुण्य (नपुं), यौवन (नपुं) ॥2.6.40.1॥
मूलम्
स्यात्स्थाविरं तु वृद्धत्वं वृद्धसंघेऽपि वार्धकम् ॥2.6.40.2॥
शब्दाः
वृद्धत्वम्. (2) - स्थाविर (नपुं), वृद्धत्व (नपुं)
वृद्धसमूहः. (2) - वृद्धसङ्घ (पुं), वार्धक (नपुं) ॥2.6.40.2॥
मूलम्
पलितं जरसा शौक्ल्यं केशादौ विस्रसा जरा ॥2.6.41.1॥
शब्दाः
जरया शुक्लः. (1) - पलित (नपुं)
जरा. (2) - विस्रसा (स्त्री), जरा (स्त्री) ॥2.6.41.1॥
मूलम्
स्यादुत्तानशया डिम्भा स्तनपा च स्तनन्धयी ॥2.6.41.2॥
शब्दाः
अतिबालिका. (4) - उत्तानशया (स्त्री), डिम्भा (स्त्री), स्तनपा (स्त्री), स्तनन्धयी (स्त्री) ॥2.6.41.2॥
मूलम्
बालस्तु स्यान्माणवको वयस्थस्तरुणो युवा ॥2.6.42.1॥
शब्दाः
बालः. (2) - बाल (पुं), माणवक (पुं)
युवा. (3) - वयस्थ (पुं), तरुण (पुं), युवन् (पुं) ॥2.6.42.1॥
मूलम्
प्रवयाः स्थविरो वृद्धो जीनो जीर्णो जरन्नपि ॥2.6.42.2॥
शब्दाः
वृद्धः. (6) - प्रवयस् (पुं), स्थविर (पुं), वृद्ध (पुं), जीन (पुं), जीर्ण (पुं), जरत् (पुं) ॥2.6.42.2॥
मूलम्
वर्षीयान्दशमी ज्यायान्पूर्वजस्त्वग्रियोऽग्रजः ॥2.6.43.1॥
शब्दाः
अतिवृद्धः. (3) - वर्षीयस् (पुं), दशमिन् (पुं), ज्यायस् (पुं)
ज्येष्ठभ्राता. (3) - पूर्वज (पुं), अग्रिय (पुं), अग्रज (पुं) ॥2.6.43.1॥
मूलम्
जघन्यजे स्युः कनिष्ठयवीयोऽवरजानुजाः ॥2.6.43.2॥
शब्दाः
कनिष्ठभ्राता. (5) - जघन्यज (पुं), कनिष्ठ (पुं), यवीय (पुं), अवरज (पुं), अनुज (पुं) ॥2.6.43.2॥
मूलम्
अमांसो दुर्बलश्छातो बलवान्मांसलोंऽसलः ॥2.6.44.1॥
शब्दाः
निर्बलः. (3) - अमांस (पुं), दुर्बल (पुं), छात (पुं)
बलवान्. (3) - बलवत् (पुं), मांसल (पुं), अंसल (पुं) ॥2.6.44.1॥
मूलम्
तुन्दिलस्तुन्दिभस्तुन्दी बृहत्कुक्षिः पिचण्डिलः ॥2.6.44.2॥
शब्दाः
स्थूलोदरः. (5) - तुन्दिल (पुं), तुन्दिक (पुं), तुन्दिन् (पुं), बृहत्कुक्षि (पुं), पिचण्डिल (पुं) ॥2.6.44.2॥
मूलम्
अवटीटोऽवनाटश्चावभ्रटो नतनासिके ॥2.6.45.1॥
शब्दाः
चिपिटनासः. (4) - अवटीट (पुं), अवनाट (पुं), अवभ्रट (पुं), नतनासिक (पुं) ॥2.6.45.1॥
मूलम्
केशवः केशिकः केशी वलिनो वलिभः समौ ॥2.6.45.2॥
शब्दाः
प्रशस्तकेशः. (3) - केशव (पुं), केशिक (पुं), केशिन् (पुं)
श्लथचर्मवान्. (2) - वलिन (पुं), वलिभ (पुं) ॥2.6.45.2॥
मूलम्
विकलाङ्गस्त्वपोगण्डः खर्वो ह्रस्वश्च वामनः ॥2.6.46.1॥
शब्दाः
स्वभावन्यूनाधिकाङ्गः. (2) - विकलाङ्ग (पुं), अपोगण्ड (पुं)
ह्रस्वः. (3) - खर्व (पुं), ह्रस्व (पुं), वामन (पुं) ॥2.6.46.1॥
मूलम्
खरणाः स्यात्खरणसो विग्रस्तु गतनासिकः ॥2.6.46.2॥
शब्दाः
तीक्ष्णनासिकः. (2) - खरणस् (पुं), खरणस (पुं)
गतनासिकः. (2) - विग्र (पुं), गतनासिक (पुं) ॥2.6.46.2॥
मूलम्
खुरणाः स्यात्खुरणसः प्रज्ञुः प्रगतजानुकः ॥2.6.47.1॥
शब्दाः
पशुखुरणसदृशनासिकः. (2) - खुरणस् (पुं), खुरणस (पुं)
विरलजानुकः. (2) - प्रज्ञु (पुं), प्रगतजानुक (पुं) ॥2.6.47.1॥
मूलम्
ऊर्ध्वज्ञुरूर्ध्वजानुः स्यात्संज्ञुः संहतजानुकः ॥2.6.47.2॥
शब्दाः
ऊर्ध्वजानुकः. (2) - ऊर्ध्वज्ञु (पुं), ऊर्ध्वजानु (पुं)
संलग्नजानुकः. (2) - संज्ञु (पुं), संहतजानुक (पुं) ॥2.6.47.2॥
मूलम्
स्यादेडे बधिरः कुब्जे गडुलः कुकरे कुणिः ॥2.6.48.1॥
शब्दाः
श्रवणशक्तिहीनः. (2) - एड (पुं), बधिर (पुं)
कुब्जः. (2) - कुब्ज (पुं), गडुल (पुं)
रोगादिना वक्रकरः. (2) - कुकर (पुं), कुणि (पुं) ॥2.6.48.1॥
मूलम्
पृश्निरल्पतनौ श्रोणः पङ्गौ मुण्डस्तु मुण्डिते ॥2.6.48.2॥
शब्दाः
अल्पशरीरः. (2) - पृश्नि (पुं), अल्पतनु (पुं)
जङ्घाहीनः. (2) - श्रोण (पुं), पङ्गु (पुं)
खण्डितकेशः. (2) - मुण्ड (पुं), मुण्डित (पुं) ॥2.6.48.2॥
मूलम्
वलिरः केकरे खोडे खञ्जस्त्रिषु जरावराः ॥2.6.49.1॥
शब्दाः
नेत्रवियुक्तः. (2) - वलिर (पुं), केकर (पुं)
गतिविकलः. (2) - खोड (पुं), खञ्ज (पुं) ॥2.6.49.1॥
मूलम्
जडुलः कालकः पिप्लुस्तिलकस्तिलकालकः ॥2.6.49.2॥
शब्दाः
कृष्णवर्णदेहगतचिह्नः. (3) - जडुल (पुं), कालक (पुं), पिप्लु (पुं)
देहस्थतिलचिह्नः. (2) - तिलक (पुं), तिलकालक (पुं) ॥2.6.49.2॥
मूलम्
अनामयं स्यादारोग्यं चिकित्सा रुक्प्रतिक्रिया ॥2.6.50.1॥
शब्दाः
रोगाभावः. (2) - अनामय (नपुं), आरोग्य (नपुं)
रोगनिवारणः. (2) - चिकित्सा (स्त्री), रुक्प्रतिक्रिया (स्त्री) ॥2.6.50.1॥
मूलम्
भेषजौषधभैषज्यान्यगदो जायुरित्यपि ॥2.6.50.2॥
शब्दाः
औषधम्. (5) - भेषज (नपुं), औषध (नपुं), भैषज्य (नपुं), अगद (पुं), जायु (पुं) ॥2.6.50.2॥
मूलम्
स्त्री रुग्रुजा चोपतापरोगव्याधिगदामयाः ॥2.6.51.1॥
शब्दाः
रोगः. (7) - रुज् (स्त्री), रुजा (स्त्री), उपताप (पुं), रोग (पुं), व्याधि (पुं), गद (पुं), आमय (पुं) ॥2.6.51.1॥
मूलम्
क्षयः शोषश्च यक्ष्मा च प्रतिश्यायस्तु पीनसः ॥2.6.51.2॥
शब्दाः
राजयक्ष्मा. (3) - क्षय (पुं), शोष (पुं), यक्ष्मन् (पुं)
नासारोगः. (2) - प्रतिश्याय (पुं), पीनस (पुं) ॥2.6.51.2॥
मूलम्
स्त्री क्षुत्क्षुतं क्षवः पुंसि कासस्तु क्षवथुः पुमान् ॥2.6.52.1॥
शब्दाः
छिक्का. (3) - क्षुत् (स्त्री), क्षुत (नपुं), क्षव (पुं)
कासरोगः. (2) - कास (पुं), क्षवथु (पुं) ॥2.6.52.1॥
मूलम्
शोफस्तु श्वयथुः शोथः पादस्फोटो विपादिका ॥2.6.52.2॥
शब्दाः
शोथः. (3) - शोफ (पुं), श्वयथु (पुं), शोथ (पुं)
पादस्फोटनरोगः. (2) - पादस्फोट (पुं), विपादिका (स्त्री) ॥2.6.52.2॥
मूलम्
किलाससिध्मे कच्छ्वां तु पाम पामा विचर्चिका ॥2.6.53.1॥
शब्दाः
सिध्मरोगः. (2) - किलास (नपुं), सिध्म (नपुं)
खसुरोगः. (4) - कच्छू (स्त्री), पामन् (पुं), पामा (स्त्री), विचर्चिका (स्त्री) ॥2.6.53.1॥
मूलम्
कण्डूः खर्जूश्च कण्डूया विस्फोटः पिटकः स्त्रियाम् ॥2.6.53.2॥
शब्दाः
गात्रविर्घणः. (3) - कण्डू (स्त्री), खर्जू (स्त्री), कण्डूया (स्त्री)
विस्फोटः. (2) - विस्फोट (पुं), पिटक (वि) ॥2.6.53.2॥
मूलम्
व्रणोऽस्त्रियामीर्ममरुः क्लीबे नाडीव्रणः पुमान् ॥2.6.54.1॥
शब्दाः
व्रणम्. (3) - व्रण (पुं-नपुं), ईर्म (नपुं), अरुस् (नपुं)
सदा गलतो व्रणम्. (1) - नाडीव्रण (पुं) ॥2.6.54.1॥
मूलम्
कोठो मण्डलकं कुष्ठश्वित्रे दुर्नामकार्शसी ॥2.6.54.2॥
शब्दाः
मण्डलाकारकुष्ठः. (2) - कोठ (पुं), मण्डलक (नपुं)
श्वेतकुष्ठः. (2) - कुष्ठ (नपुं), श्वित्र (नपुं)
गुदरोगः. (2) - दुर्नामक (नपुं), अर्शस् (नपुं) ॥2.6.54.2॥
मूलम्
आनाहस्तु निबन्धः स्याद्ग्रहणीरुक्प्रवाहिका ॥2.6.55.1॥
शब्दाः
मलमूत्रनिरोधः. (2) - आनाह (पुं), विबन्ध (पुं)
ग्रहणीरोगः. (2) - ग्रहणी (स्त्री), रुक्प्रवाहिका (स्त्री) ॥2.6.55.1॥
मूलम्
प्रच्छर्दिका वमिश्च स्त्री पुमांस्तु वमथुः समाः ॥2.6.55.2॥
शब्दाः
वमनम्. (3) - प्रच्छर्दिका (स्त्री), वमि (स्त्री), वमथु (पुं) ॥2.6.55.2॥
मूलम्
व्याधिभेदा विद्रधिः स्त्री ज्वरमेहभगन्दराः ॥2.6.56.1॥
शब्दाः
विद्रधिरोगः. (1) - विद्रधि (स्त्री)
ज्वरः. (1) - ज्वर (पुं)
प्रमेहरोगः. (1) - मेह (पुं)
भगन्दररोगः. (1) - भगन्दर (पुं) ॥2.6.56.1॥
मूलम्
श्लीपदं पादवल्मीकं केशघ्नस्त्विन्द्रलुप्तकः ॥2.6.56.2॥
शब्दाः
पादवल्मीकरोगः. (2) - श्लीपद (नपुं), पादवल्मीक (नपुं)
मस्तककेशरोगः. (2) - केशघ्न (नपुं), इन्द्रलुप्तक (नपुं) ॥2.6.56.2॥
मूलम्
अश्मरी मूत्रकृच्छ्रं स्यात्पूर्वे शुक्रावधेस्त्रिषु ॥2.6.56.3॥
शब्दाः
मूत्रकृच्छ्रम्. (2) - अश्मरी (स्त्री), मूत्रकृच्छ्र (नपुं) ॥2.6.56.3॥
मूलम्
रोगहार्यगदङ्कारो भिषग्वैद्यौ चिकित्सके ॥2.6.57.1॥
शब्दाः
वैद्यः. (5) - रोगहारिन् (पुं), अगदङ्कार (पुं), भिषज् (पुं), वैद्य (पुं), चिकित्सक (पुं) ॥2.6.57.1॥
मूलम्
वार्तो निरामयः कल्य उल्लाघो निर्गतो गदात् ॥2.6.57.2॥
शब्दाः
रोगनिर्मुक्तः. (4) - वार्त (नपुं), निरामय (वि), कल्य (वि), उल्लाघ (वि) ॥2.6.57.2॥
मूलम्
ग्लानग्लास्नू आमयावी विकृतो व्याधितोऽपटुः ॥2.6.58.1॥
शब्दाः
रोगेण क्षीणितः. (2) - ग्लान (वि), ग्लास्नु (वि)
रोगी. (4) - आमयाविन् (वि), विकृत (वि), व्याधित (वि), अपटु (वि) ॥2.6.58.1॥
मूलम्
आतुरोऽभ्यमितोऽभ्यान्तः समौ पामनकच्छुरौ ॥2.6.58.2॥
शब्दाः
रोगी. (3) - आतुर (वि), अभ्यमित (वि), अभ्यान्त (वि)
पामायुक्तः. (2) - पामन (वि), कच्छुर (वि) ॥2.6.58.2॥
मूलम्
दद्रुणो दद्रुरोगी स्यादर्शोरोगयुतोऽर्शसः ॥2.6.59.1॥
शब्दाः
दर्द्रुयुक्तः. (2) - दद्रुण (वि), दद्रुरोगिन् (वि)
मूलव्याधिः. (2) - अर्शोरोग (वि), अर्शस् (वि) ॥2.6.59.1॥
मूलम्
वातकी वातरोगी स्यात्सातिसारोऽतिसारकी ॥2.6.59.2॥
शब्दाः
वातरोगी. (2) - वातकिन् (वि), वातरोगिन् (वि)
अतिसारवान्. (2) - सातिसार (वि), अतिसारकिन् (वि) ॥2.6.59.2॥
मूलम्
स्युः क्लिन्नाक्षे चुल्लचिल्लपिल्लाः क्लिन्नेऽक्ष्णि चाप्यमी ॥2.6.60.1॥
शब्दाः
क्लिन्ननेत्रवान्. (3) - चुल्ल (वि), चिल्ल (वि), पिल्ल (वि) ॥2.6.60.1॥
मूलम्
उन्मत्त उन्मादवति श्लेष्मलः श्लेष्मणः कफी ॥2.6.60.2॥
शब्दाः
वातकृतचित्तविभ्रमः. (2) - उन्मत्त (वि), उन्मादवत् (वि)
कफवातः. (3) - श्लेष्मल (वि), श्लेष्मण (वि), कफिन् (वि) ॥2.6.60.2॥
मूलम्
न्युब्जो भुग्ने रुजा वृद्धनाभौ तुन्दिलतुन्दिभौ ॥2.6.61.1॥
शब्दाः
कुब्जः. (1) - न्युब्ज (वि)
उन्नतनाभियुक्तपुरुषः. (3) - वृद्धनाभि (वि), तुन्दिल (वि), तुन्दिभ (वि) ॥2.6.61.1॥
मूलम्
किलासी सिध्मलोऽन्धोऽदृङ्मूर्च्छाले मूर्तमूर्च्छितौ ॥2.6.61.2॥
शब्दाः
सिध्मयुक्तः. (2) - किलासिन् (वि), सिध्मल (वि)
अचक्षुष्कः. (2) - अन्ध (वि), अदृश् (वि)
मूर्च्छावान्. (3) - मूर्च्छाल (वि), मूर्त (वि), मूर्च्छित (वि) ॥2.6.61.2॥
मूलम्
शुक्रं तेजोरेतसी च बीजवीर्येन्द्रियाणि च ॥2.6.62.1॥
शब्दाः
रेतस्. (6) - शुक्र (नपुं), तेजस् (नपुं), रेतस् (नपुं), बीज (नपुं), वीर्य (नपुं), इन्द्रिय (नपुं) ॥2.6.62.1॥
मूलम्
मायुः पित्तं कफः श्लेष्मा स्त्रियां तु त्वगसृग्धरा ॥2.6.62.2॥
शब्दाः
पित्तम्. (2) - मायु (पुं), पित्त (नपुं)
कफः. (2) - कफ (पुं), श्लेष्मन् (पुं)
चर्मः. (2) - त्वच् (स्त्री), असृर्ग्धरा (स्त्री) ॥2.6.62.2॥
मूलम्
पिशितं तरसं मांसं पललं क्रव्यमामिषम् ॥2.6.63.1॥
शब्दाः
मांसम्. (6) - पिशित (नपुं), तरस (नपुं), मांस (नपुं), पलल (नपुं), क्रव्य (नपुं), आमिष (नपुं) ॥2.6.63.1॥
मूलम्
उत्ततप्तं शुष्कमांसं स्यात्तद्वल्लूरं त्रिलिङ्गकम् ॥2.6.63.2॥
शब्दाः
शुष्कमांसम्. (3) - उत्तप्त (नपुं), शुष्कमांस (नपुं), वल्लूर (वि) ॥2.6.63.2॥
मूलम्
रुधिरेऽसृग्लोहितास्ररक्तक्षतजशोणितम् ॥2.6.64.1॥
शब्दाः
रक्तम्. (7) - रुधिर (नपुं), असृज् (नपुं), लोहित (नपुं), अस्र (नपुं), रक्त (नपुं), क्षतज (नपुं), शोणित (नपुं) ॥2.6.64.1॥
मूलम्
बुक्काग्रमांसं हृदयं हृन्मेदस्तु वपा वसा ॥2.6.64.2॥
शब्दाः
हृदयान्तर्गतमांसम्. (2) - बुक्का (स्त्री), अग्रमांस (नपुं)
हृदयकमलम्. (2) - हृदय (नपुं), हृद् (नपुं)
शुद्धमांसस्नेहः. (3) - मेदस् (नपुं), वपा (स्त्री), वसा (स्त्री) ॥2.6.64.2॥
मूलम्
पश्चाद्ग्रीवाशिरा मन्या नाडी तु धमनिः शिरा ॥2.6.65.1॥
शब्दाः
ग्रीवा. (1) - मन्या (स्त्री)
धमनिः. (3) - नाडी (स्त्री), धमनि (स्त्री), सिरा (स्त्री) ॥2.6.65.1॥
मूलम्
तिलकं क्लोम मस्तिष्कं गोर्दं किट्टं मलोऽस्त्रियाम् ॥2.6.65.2॥
शब्दाः
उदर्यजलाशयः. (2) - तिलक (नपुं), क्लोमन् (नपुं)
मस्तकभवस्नेहः. (2) - मस्तिष्क (नपुं), गोर्द (नपुं)
मलम्. (2) - किट्ट (नपुं), मल (पुं-नपुं) ॥2.6.65.2॥
मूलम्
अन्त्रं पुरीतद्गुल्मस्तु प्लीहा पुंस्यथ वस्नसा ॥2.6.66.1॥
शब्दाः
अन्त्रम्. (2) - अन्त्र (नपुं), पुरीतत् (पुं-नपुं)
कुक्षिवामपार्श्वेमांसपिण्डः. (2) - गुल्म (पुं), प्लीहन् (पुं)
स्नायुः. (1) - वस्नसा (स्त्री) ॥2.6.66.1॥
मूलम्
स्नायुः स्त्रियां कालखण्डयकृती तु समे इमे ॥2.6.66.2॥
शब्दाः
स्नायुः. (1) - स्नायु (स्त्री)
कुक्षेर्दक्षिणभागस्थमांसखण्डः. (2) - कालखण्ड (नपुं), यकृत् (नपुं) ॥2.6.66.2॥
मूलम्
सृणिका स्यन्दिनी लाला दूषिका नेत्रयोर्मलम् ॥2.6.67.1॥
शब्दाः
लाला. (3) - सृणिका (स्त्री), स्यन्दिनी (स्त्री), लाला (स्त्री)
नेत्रमलम्. (1) - दूषिका (स्त्री) ॥2.6.67.1॥
मूलम्
नासामलं तु सिङ्घाणं पिञ्जूषं कर्णयोर्मलम् ॥2.6.67.2॥
शब्दाः
नासामलम्. (2) - नासामल (नपुं), सिङ्घाण (पुं)
कर्णमलम्. (1) - पिञ्जूष (पुं) ॥2.6.67.2॥
मूलम्
मूत्रं प्रस्राव उच्चारावस्करौ शमलं शकृत् ॥2.6.67.3॥
शब्दाः
मूत्रम्. (2) - मूत्र (नपुं), प्रस्राव (पुं)
पुरीषम्. (4) - उच्चार (पुं), अवस्कर (पुं), शमल (नपुं), शकृत् (नपुं) ॥2.6.67.3॥
मूलम्
पुरीषं गूथवर्चस्कमस्त्री विष्ठाविशौ स्त्रियौ ॥2.6.68.1॥
शब्दाः
पुरीषम्. (5) - पुरीष (नपुं), गूथ (नपुं), वर्चस्क (पुं-नपुं), विष्ठा (स्त्री), विश् (स्त्री) ॥2.6.68.1॥
मूलम्
स्यात्कर्परः कपालोऽस्त्री कीकसं कुल्यमस्थि च ॥2.6.68.2॥
शब्दाः
शिरोस्थिखण्डः. (2) - कर्पर (पुं), कपाल (पुं-नपुं)
अस्थिः. (2) - कीकस (नपुं), कुल्य (नपुं) ॥2.6.68.2॥
मूलम्
स्याच्छरीरास्थ्नि कङ्कालः पृष्ठास्थ्नि तु कशेरुका ॥2.6.69.1॥
शब्दाः
शरीरगतास्थिपञ्चरः. (1) - कङ्काल (पुं)
पृष्ठमध्यगतास्थिदण्डः. (1) - कशेरुका (स्त्री) ॥2.6.69.1॥
मूलम्
शिरोस्थनि करोटिः स्त्री पार्श्वास्थनि तु पर्शुका ॥2.6.69.2॥
शब्दाः
मस्तकास्थिः. (2) - शिरोस्थि (नपुं), करोटि (स्त्री)
पार्श्वास्थिः. (1) - पर्शुका (स्त्री) ॥2.6.69.2॥
मूलम्
अङ्गं प्रतीकोऽवयवोऽपघनोऽथ कलेवरम् ॥2.6.70.1॥
शब्दाः
देहावयवः. (4) - अङ्ग (नपुं), प्रतीक (पुं), अवयव (पुं), अपघन (पुं)
देहः. (1) - कलेवर (नपुं) ॥2.6.70.1॥
मूलम्
गात्रं वपुः संहननं शरीरं वर्ष्म विग्रहः ॥2.6.70.2॥
शब्दाः
देहः. (6) - गात्र (नपुं), वपुस् (नपुं), संहनन (नपुं), शरीर (नपुं), वर्ष्मन् (नपुं), विग्रह (पुं) ॥2.6.70.2॥
मूलम्
कायो देहः क्लीबपुंसोः स्त्रियां मूर्तिस्तनुस्तनूः ॥2.6.71.1॥
शब्दाः
देहः. (5) - काय (पुं), देह (पुं-नपुं), मूर्ति (स्त्री), तनु (स्त्री), तनू (स्त्री) ॥2.6.71.1॥
मूलम्
पादाग्रं प्रपदं पादः पदङ्घ्रिश्चरणोऽस्त्रियाम् ॥2.6.71.2॥
शब्दाः
पादाग्रम्. (2) - पादाग्र (नपुं), प्रपद (नपुं)
चरणः. (4) - पाद (पुं), पद् (पुं), अङ्घ्रि (पुं), चरण (पुं-नपुं) ॥2.6.71.2॥
मूलम्
तद्ग्रन्थी घुटिके गुल्फौ पुमान्पार्ष्णिस्तयोरधः ॥2.6.72.1॥
शब्दाः
पादग्रन्थी. (2) - घुटिका (स्त्री), गुल्फ (पुं)
पादपश्चाद्भागः. (1) - पार्ष्णि (पुं) ॥2.6.72.1॥
मूलम्
जङ्घा तु प्रसृता जानूरुपर्वाष्ठीवदस्त्रियाम् ॥2.6.72.2॥
शब्दाः
जङ्घा. (2) - जङ्घा (स्त्री), प्रसृता (स्त्री)
जानूरुसन्धिः. (3) - जानु (पुं-नपुं), ऊरुपर्वन् (पुं-नपुं), अष्टीवत् (पुं-नपुं) ॥2.6.72.2॥
मूलम्
सक्थि क्लीबे पुमानूरुस्तत्सन्धिः पुंसि वङ्क्षणः ॥2.6.73.1॥
शब्दाः
जानूपरिभागः. (2) - सक्थि (नपुं), ऊरु (पुं)
ऊरुसन्धिः. (1) - वङ्क्षण (पुं) ॥2.6.73.1॥
मूलम्
गुदं त्वपानं पायुर्ना वस्तिर्नाभेरधो द्वयोः ॥2.6.73.2॥
शब्दाः
पुरीषनिर्गममार्गः. (3) - गुद (नपुं), अपान (नपुं), पायु (पुं)
नाभ्यधोभागः. (1) - बस्ति (स्त्री-पुं) ॥2.6.73.2॥
मूलम्
कटो ना श्रोणिफलकं कटिः श्रोणिः ककुद्मती ॥2.6.74.1॥
शब्दाः
कटीफलकः. (2) - कट (पुं), श्रोणिफलक (नपुं)
कटिः. (3) - कटि (स्त्री), श्रोणि (स्त्री), ककुद्मती (स्त्री) ॥2.6.74.1॥
मूलम्
पश्चान्नितम्बः स्त्रीकट्याः क्लीबे तु जघनं पुरः ॥2.6.74.2॥
शब्दाः
स्त्रीकट्याः पश्चाद्भागः. (1) - नितम्ब (पुं)
स्त्रीकट्याः अग्रभागः. (1) - जघन (नपुं) ॥2.6.74.2॥
मूलम्
कूपकौ तु नितम्बस्थौ द्वयहीने ककुन्दरे ॥2.6.75.1॥
शब्दाः
पृष्ठवंशादधोगर्ताः. (2) - कूपक (पुं), कुकुन्दर (पुं) ॥2.6.75.1॥
मूलम्
स्त्रियाम्स्फिचौ कटिप्रोथावुपस्थो वक्ष्यमाणयोः ॥2.6.75.2॥
शब्दाः
कटिस्थमांसपिण्डाः. (2) - स्फिच् (स्त्री), कटिप्रोथ (पुं)
भगशिश्नः. (1) - उपस्थ (पुं) ॥2.6.75.2॥
मूलम्
भगं योनिर्द्वयोः शिश्नो मेढ्रो मेहनशेफसी ॥2.6.76.1॥
शब्दाः
स्त्रीयोनिः. (2) - भग (नपुं), योनि (स्त्री-पुं)
पुरुषलिङ्गः. (4) - शिश्न (पुं), मेढ्र (पुं), मेहन (नपुं), शेफस् (नपुं) ॥2.6.76.1॥
मूलम्
मुष्कोऽण्डकोशो वृषणः पृष्ठवंशाधरे त्रिकम् ॥2.6.76.2॥
शब्दाः
अण्डकोशः. (3) - मुष्क (पुं), अण्डकोश (पुं), वृषण (पुं)
पृष्ठवंशाधोभागः. (1) - त्रिक (नपुं) ॥2.6.76.2॥
मूलम्
पिचण्डकुक्षी जठरोदरं तुन्दं स्तनौ कुचौ ॥2.6.77.1॥
शब्दाः
जठरम्. (5) - पिचण्ड (पुं), कुक्षि (पुं), जठर (पुं-नपुं), उदर (नपुं), तुन्द (नपुं)
वक्षोजः. (2) - स्तन (पुं), कुच (पुं) ॥2.6.77.1॥
मूलम्
चूचुकं तु कुचाग्रं स्यान्न ना क्रोडं भुजान्तरम् ॥2.6.77.2॥
शब्दाः
स्तनाग्रः. (2) - चूचुक (पुं-नपुं), कुचाग्र (नपुं)
अङ्कः. (2) - क्रोड (स्त्री-नपुं), भुजान्तर (नपुं) ॥2.6.77.2॥
मूलम्
उरो वत्सं च वक्षश्च पृष्ठं तु चरमं तनोः ॥2.6.78.1॥
शब्दाः
उरस्. (3) - उरस् (नपुं), वत्स (पुं-नपुं), वक्षस् (नपुं)
देहपश्चाद्भागः. (1) - पृष्ठ (नपुं) ॥2.6.78.1॥
मूलम्
स्कन्धो भुजशिरोंऽसोऽस्त्री सन्धी तस्यैव जत्रुणी ॥2.6.78.2॥
शब्दाः
भुजशिरः. (3) - स्कन्ध (पुं), भुजशिरस् (नपुं), अंस (पुं-नपुं)
अंसकक्षसन्धिः. (1) - जत्रु (नपुं) ॥2.6.78.2॥
मूलम्
बाहुमूले उभे कक्षौ पार्श्वमस्त्री तयोरधः ॥2.6.79.1॥
शब्दाः
कक्षः. (2) - बाहुमूल (नपुं), कक्ष (पुं)
कक्षयोरधोभगः. (1) - पार्श्व (पुं-नपुं) ॥2.6.79.1॥
मूलम्
मध्यमं चावलग्नं च मध्योऽस्त्री द्वौ परौ द्वयोः ॥2.6.79.2॥
शब्दाः
देहमध्यः. (3) - मध्यम (पुं-नपुं), अवलग्न (पुं-नपुं), मध्य (पुं-नपुं) ॥2.6.79.2॥
मूलम्
भुजबाहू प्रवेष्टो दोः स्यात्कफोणिस्तु कूर्परः ॥2.6.80.1॥
शब्दाः
भुजः. (4) - भुज (स्त्री-पुं), बाहु (स्त्री-पुं), प्रवेष्ट (पुं), दोस् (पुं)
कूर्परः. (2) - कफोणि (स्त्री-पुं), कूर्पर (स्त्री-पुं) ॥2.6.80.1॥
मूलम्
अस्योपरि प्रगण्डः स्यात्प्रकोष्ठस्तस्य चाप्यधः ॥2.6.80.2॥
शब्दाः
कूर्परोपरिभागः. (1) - प्रगण्ड (पुं)
कूर्परयोरधः मणिबन्धपर्यन्तभागः. (1) - प्रकोष्ठ (पुं) ॥2.6.80.2॥
मूलम्
मणीबन्धादाकनिष्ठं करस्य करभो बहिः ॥2.6.81.1॥
शब्दाः
करबहिर्भागः. (1) - करभ (पुं) ॥2.6.81.1॥
मूलम्
पञ्चशाखः शयः पाणिस्तर्जनी स्यात्प्रदेशिनी ॥2.6.81.2॥
शब्दाः
हस्तः. (3) - पञ्चशाख (पुं), शय (पुं), पाणि (पुं)
अङ्गुष्ठसमीपाङ्गुली. (2) - तर्जनी (स्त्री), प्रदेशिनी (स्त्री) ॥2.6.81.2॥
मूलम्
अङ्गुल्यः करशाखाः स्युः पुंस्यङ्गुष्ठः प्रदेशिनी ॥2.6.82.1॥
शब्दाः
अङ्गुली. (2) - अङ्गुली (स्त्री), करशाखा (स्त्री)
प्रथमाङ्गुली. (1) - अङ्गुष्ठ (पुं)
तर्जनी. (1) - प्रदेशिनी (स्त्री) ॥2.6.82.1॥
मूलम्
मध्यमानामिका चापि कनिष्ठा चेति ताः क्रमात् ॥2.6.82.2॥
शब्दाः
मध्याङ्गुली. (1) - मध्यमा (स्त्री)
कनिष्ठिकासमीपवर्त्यङ्गुली. (1) - अनामिका (स्त्री)
कनिष्ठाङ्गुली. (1) - कनिष्ठा (स्त्री) ॥2.6.82.2॥
मूलम्
पुनर्भवः कररुहो नखोऽस्त्री नखरोऽस्त्रियाम् ॥2.6.83.1॥
शब्दाः
नखः. (4) - पुनर्भव (पुं), कररुह (पुं), नख (पुं-नपुं), नखर (पुं-नपुं) ॥2.6.83.1॥
मूलम्
प्रादेशतालगोकर्णास्तर्जन्यादियुते तते ॥2.6.83.2॥
शब्दाः
तर्जनीसहिताङ्गुष्ठविस्तृतहस्तः. (1) - प्रादेश (पुं)
मध्यमासहिताङ्गुष्ठविस्तृतहस्तः. (1) - ताल (पुं)
अनामिकासहिताङ्गुष्ठविस्तृतहस्तः. (1) - गोकर्ण (पुं) ॥2.6.83.2॥
मूलम्
अङ्गुष्ठे सकनिष्ठे स्याद्वितस्तिर्द्वादशाङ्गुलः ॥2.6.84.1॥
शब्दाः
कनिष्ठासहिताङ्गुष्टविस्तृतः. (2) - वितस्ति (स्त्री-पुं), द्वादशाङ्गुल (पुं) ॥2.6.84.1॥
मूलम्
पाणौ चपेटप्रतलप्रहस्ता विस्तृताङ्गुलौ ॥2.6.84.2॥
शब्दाः
विस्तृताङ्गुलपाणिः. (3) - चपेट (पुं), प्रतल (पुं), प्रहस्त (पुं) ॥2.6.84.2॥
मूलम्
द्वौ संहतौ संहतलप्रतलौ वामदक्षिणौ ॥2.6.85.1॥
शब्दाः
वामदक्षिणपाण्यौ मिलितविस्तृताङ्गुली. (2) - संहतल (पुं), प्रतल (पुं) ॥2.6.85.1॥
+++(अर्धाञ्जलिः. (1) - प्रसृति (स्त्री)
अञ्जलिः. (1) - अञ्जलि (पुं) ॥2.6.85.2॥)+++
पाणिर्निकुब्जः प्रसृतिस्तौ युतावञ्जलिः पुमान् ॥2.6.85.2॥
मूलम्
प्रकोष्ठे विस्तृतकरे हस्तो मुष्ट्या तु बद्धया ॥2.6.86.1॥
शब्दाः
विस्तृतकरः. (1) - हस्त (पुं) ॥2.6.86.1॥
+++(बद्धमुष्टिहस्तः. (1) - रत्नि (स्त्री-पुं)
कनिष्ठिकायुक्तबद्धमुष्टिहस्तः. (1) - अरत्नि (स्त्री-पुं) ॥2.6.86.2॥)+++
स रत्निः स्यादरत्निस्तु निष्कनिष्ठेन मुष्टिना ॥2.6.86.2॥
मूलम्
व्यामो बाह्वोः सकरयोस्ततयोस्तिर्यगन्तरम् ॥2.6.87.1॥
शब्दाः
स्वे स्वे पार्श्वे प्रसारितबाहुमध्यम्. (1) - व्याम (पुं) ॥2.6.87.1॥
मूलम्
ऊर्ध्वविस्तृतदोः पाणिनृमाने पौरुषं त्रिषु ॥2.6.87.2॥
शब्दाः
पुरुषप्रमाणम्. (1) - पौरुष (वि) ॥2.6.87.2॥
+++(ग्रीवाग्रभागः. (2) - कण्ठ (वि), गल (पुं)
ग्रीवा. (3) - ग्रीवा (स्त्री), शिरोधि (स्त्री), कन्धरा (स्त्री) ॥2.6.88.1॥)+++
कण्ठो गलोऽथ ग्रीवायां शिरोधिः कन्धरेत्यपि ॥2.6.88.1॥
+++(शङ्खाकारग्रीवा. (1) - कम्बुग्रीवा (स्त्री)
ग्रीवायामुन्नतभागः. (3) - अवटु (पुं), घटा (स्त्री), कृकाटिका (स्त्री) ॥2.6.88.2॥)+++
कम्बुग्रीवा त्रिरेखा सावटुर्घाटा कृकाटिका ॥2.6.88.2॥
मूलम्
वक्त्रास्ये वदनं तुण्डमाननं लपनं मुखम् ॥2.6.89.1॥
शब्दाः
वदनम्. (7) - वक्त्र (नपुं), आस्य (नपुं), वदन (नपुं), तुण्ड (नपुं), आनन (नपुं), लपन (नपुं), मुख (नपुं) ॥2.6.89.1॥
मूलम्
क्लीबे घ्राणं गन्धवहा घोणा नासा च नासिका ॥2.6.89.2॥
शब्दाः
नासिका. (5) - घ्राण (नपुं), गन्धवहा (स्त्री), घोणा (स्त्री), नासा (स्त्री), नासिका (स्त्री) ॥2.6.89.2॥
मूलम्
ओष्ठाधरौ तु रदनच्छदौ दशनवाससी ॥2.6.90.1॥
शब्दाः
अधरोष्ठमात्रम्. (4) - ओष्ठ (पुं), अधर (पुं), रदनच्छद (पुं), दशनवासस् (नपुं) ॥2.6.90.1॥
+++(ओष्ठाधोभागः. (1) - चिबुक (नपुं)
कपोलः. (2) - गण्ड (पुं), कपोल (पुं)
कपोलाधोभागः. (1) - हनु (पुं) ॥2.6.90.2॥)+++
अधस्ताच्चिबुकं गण्डौ कपोलौ तत्परा हनुः ॥2.6.90.2॥
+++(दन्तः. (4) - रदन (पुं), दशन (पुं), दन्त (पुं), रद (पुं)
तालुः. (2) - तालु (नपुं), काकुद (नपुं) ॥2.6.91.1॥)+++
रदना दशना दन्ता रदास्तालु तु काकुदम् ॥2.6.91.1॥
+++(जिह्वा. (3) - रसज्ञा (स्त्री), रसना (स्त्री), जिह्वा (स्त्री)
ओष्ठप्रान्तः. (1) - सक्कणी (नपुं) ॥2.6.91.2॥)+++
रसज्ञा रसना जिह्वा प्रान्तावोष्ठस्य सृक्किणी ॥2.6.91.2॥
+++(भालः. (3) - ललाट (नपुं), अलिक (नपुं), गोधि (पुं)
नेत्रोपरिभागस्थरोमराजिः. (1) - भ्रू (स्त्री) ॥2.6.92.1॥)+++
ललाटमलिकं गोधिरूर्ध्वे दृग्भ्यां भ्रुवौ स्त्रियौ ॥2.6.92.1॥
+++(भ्रूमध्यम्. (1) - कूर्च (पुं-नपुं)
नेत्रकनीनिका. (2) - तारकाक्षि (स्त्री), कनीनिका (स्त्री) ॥2.6.92.2॥)+++
कूर्चमस्त्री भ्रुवोर्मध्यं तारकाक्ष्णः कनीनिका ॥2.6.92.2॥
मूलम्
लोचनं नयनं नेत्रमीक्षणं चक्षुरक्षिणी ॥2.6.93.1॥
शब्दाः
नेत्रम्. (6) - लोचन (नपुं), नयन (नपुं), नेत्र (नपुं), ईक्षण (नपुं), चक्षुस् (नपुं), अक्षि (नपुं) ॥2.6.93.1॥
+++(नेत्रम्. (2) - दृश् (स्त्री), दृष्टि (स्त्री)
अश्रुः. (5) - अस्रु (नपुं), नेत्राम्बु (नपुं), रोदन (नपुं), अस्र (नपुं), अश्रु (नपुं) ॥2.6.93.2॥)+++
दृग्दृष्टी चास्रु नेत्राम्बु रोदनं चास्रमश्रु च ॥2.6.93.2॥
+++(नेत्रप्रान्तः. (1) - अपाङ्ग (पुं)
अपाङ्गदर्शनचेष्टा. (2) - कटाक्ष (पुं), अपाङ्गदर्शन (नपुं) ॥2.6.94.1॥)+++
अपाङ्गौ नेत्रयोरन्तौ कटाक्षोऽपाङ्गदर्शने ॥2.6.94.1॥
मूलम्
कर्णशब्दग्रहौ श्रोत्रं श्रुतिः स्त्री श्रवणं श्रवः ॥2.6.94.2॥
शब्दाः
कर्णः. (6) - कर्ण (पुं), शब्दग्रह (पुं), श्रोत्र (नपुं), श्रुति (स्त्री), श्रवण (पुं), श्रवस् (नपुं) ॥2.6.94.2॥
मूलम्
उत्तमाङ्गं शिरः शीर्षं मूर्धा ना मस्तकोऽस्त्रियाम् ॥2.6.95.1॥
शब्दाः
शिरः. (5) - उत्तमाङ्ग (नपुं), शिरस् (नपुं), शीर्ष (नपुं), मूर्धन् (पुं), मस्तक (पुं-नपुं) ॥2.6.95.1॥
मूलम्
चिकुरः कुन्तलो वालः कचः केशः शिरोरुहः ॥2.6.95.2॥
शब्दाः
केशः. (6) - चिकुर (पुं), कुन्तल (पुं), बाल (पुं), कच (पुं), केश (पुं), शिरोरुह (पुं) ॥2.6.95.2॥
+++(केशवृन्दम्. (2) - कैशिक (नपुं), कैश्य (नपुं)
कुटिलकेशाः. (2) - अलक (पुं), चूर्णकुन्तल (पुं) ॥2.6.96.1॥)+++
तद्वृन्दे कैशिकं कैश्यमलकाश्चूर्णकुन्तलाः ॥2.6.96.1॥
+++(ललाडगतकेशाः. (1) - भ्रमरक (पुं)
शिखा. (2) - काकपक्ष (पुं), शिखण्डक (पुं) ॥2.6.96.2॥)+++
ते ललाटे भ्रमरकाः काकपक्षः शिखण्डकः ॥2.6.96.2॥
+++(केशबन्धरचना. (2) - कबरी (स्त्री), केशवेश (पुं)
चूडासहितकेशः. (1) - धम्मिल्ल (पुं) ॥2.6.97.1॥)+++
कबरी केशवेशोऽथ धम्मिल्लः संयताः कचाः ॥2.6.97.1॥
+++(शिरोमध्यस्थचूडा. (3) - शिखा (स्त्री), चूडा (स्त्री), केशपाशी (स्त्री)
तपस्विजटा. (2) - सटा (स्त्री), जटा (स्त्री) ॥2.6.97.2॥)+++
शिखा चूडा केशपाशी व्रतिनस्तु सटा जटा ॥2.6.97.2॥
+++(रचितकेशः. (2) - वेणि (स्त्री), प्रवेणी (स्त्री)
निर्मलकेशः. (2) - शीर्षण्य (पुं), शिरस्य (पुं) ॥2.6.98.1॥)+++
वेणी प्रवेणी शीर्षण्यशिरस्यौ विशदे कचे ॥2.6.98.1॥
मूलम्
पाशः पक्षश्च हस्तश्च कलापार्थाः कचात्परे ॥2.6.98.2॥
शब्दाः
केशात्कलापार्थः. (3) - पाश (पुं), पक्ष (पुं), हस्त (पुं) ॥2.6.98.2॥
+++(रोमः. (3) - तनूरुह (नपुं), रोमन् (नपुं), लोमन् (नपुं)
दाढिका. (1) - श्मश्रु (नपुं) ॥2.6.99.1॥)+++
तनूरुहं रोम लोम तद्वृद्धौ श्मश्रु पुम्मुखे ॥2.6.99.1॥
मूलम्
आकल्पवेषौ नेपथ्यं प्रतिकर्म प्रसाधनम् ॥2.6.99.2॥
शब्दाः
अलङ्काररचनादिकृतशोभा. (5) - आकल्प (पुं), वेष (पुं), नेपथ्य (नपुं), प्रतिकर्मन् (नपुं), प्रसाधन (नपुं) ॥2.6.99.2॥
+++(अलङ्करणशीलः. (2) - अलङ्कर्तृ (वि), अलङ्करिष्णु (वि)
भूषितः. (1) - मण्डित (वि) ॥2.6.100.1॥)+++
दशैते त्रिष्वलङ्कर्तालङ्करिष्णुश्च मण्डितः ॥2.6.100.1॥
मूलम्
प्रसाधितोऽलङ्कृतश्च भूषितश्च परिष्कृतः ॥2.6.100.2॥
शब्दाः
भूषितः. (4) - प्रसाधित (वि), अलङ्कृत (वि), भूषित (वि), परिष्कृत (वि) ॥2.6.100.2॥
+++(अलङ्कारादिना शोभमानः. (3) - विभ्राज् (वि), भ्राजिष्णु (वि), रोचिष्णु (वि)
भूषणक्रिया. (2) - भूषा (स्त्री), अलङ्क्रिया (स्त्री) ॥2.6.101.1॥)+++
विभ्राड्भ्राजिष्णुरोचिष्णू भूषणं स्यादलङ्क्रिया ॥2.6.101.1॥
मूलम्
अलङ्कारस्त्वाभरणं परिष्कारो विभूषणम् ॥2.6.101.2॥
शब्दाः
भूषणम्. (4) - अलङ्कार (पुं), आभरण (नपुं), परिष्कार (पुं), विभूषण (नपुं) ॥2.6.101.2॥
+++(भूषणम्. (1) - मण्डन (नपुं)
किरीटम्. (2) - मुकुट (नपुं), किरीट (पुं-नपुं) ॥2.6.102.1॥)+++
मण्डनं चाथ मुकुटं किरीटं पुन्नपुंसकम् ॥2.6.102.1॥
+++(शिरोमणिः. (2) - चूडामणि (पुं), शिरोरत्न (नपुं)
हारमध्यगमणिः. (1) - तरल (पुं) ॥2.6.102.2॥)+++
चूडामणिः शिरोरत्नं तरलो हारमध्यमगः ॥2.6.102.2॥
+++(सीमन्तस्थितायाः स्वर्णादिपट्टिका. (2) - बालपाश्या (स्त्री), पारितथ्या (स्त्री)
ललाटाभरणम्. (2) - पत्रपाश्या (स्त्री), ललाटिका (स्त्री) ॥2.6.103.1॥)+++
वालपाश्या पारितथ्या पत्रपाश्या ललाटिका ॥2.6.103.1॥
मूलम्
कर्णिका तालपत्रं स्यात्कुण्डलं कर्णवेष्टनम् ॥2.6.103.2॥
शब्दाः
कर्णाभरणम्. (4) - कर्णिका (स्त्री), तालपत्र (नपुं), कुण्डल (नपुं), कर्णवेष्टन (नपुं) ॥2.6.103.2॥
+++(कण्ठाभरणम्. (2) - ग्रैवेयक (नपुं), कण्ठभूषा (स्त्री)
लम्बमानकण्ठभूषणम्. (2) - लम्बन (नपुं), ललन्तिका (स्त्री) ॥2.6.104.1॥)+++
ग्रैवेयकं कण्ठभूषा लम्बनं स्याल्ललन्तिका ॥2.6.104.1॥
+++(सुवर्णलम्बकण्ठिका. (1) - प्रालम्बिका (स्त्री)
मौक्तिकमाला. (1) - उरःसूत्रिका (स्त्री) ॥2.6.104.2॥)+++
स्वर्णैः प्रालम्बिकाथोरः सूत्रिका मौक्तिकैः कृता ॥2.6.104.2॥
+++(मौक्तिकमाला. (2) - हार (पुं), मुक्तावली (स्त्री)
शतलतिकाहारः. (1) - देवच्छन्द (पुं) ॥2.6.105.1॥)+++
हारो मुक्तावली देवच्छन्दोऽसौ शतयष्टिका ॥2.6.105.1॥
+++(द्वात्रिंश्ल्लतिकाहारः. (1) - गुत्स (पुं)
चतुर्विंशतिलतिकाहारः. (1) - गुत्सार्ध (पुं)
चतुर्लतिकाहारः. (1) - गोस्तन (पुं) ॥2.6.105.2॥)+++
हारभेदा यष्टिभेदाद्गुच्छगुच्छार्धगोस्तनाः ॥2.6.105.2॥
+++(द्वादशलतिकाहारः. (1) - अर्धहार (पुं)
दशलतिकाहारः. (1) - माणवक (पुं)
एकलतिकाहारः. (1) - एकावली (स्त्री) ॥2.6.106.1॥)+++
अर्धहारो माणवक एकावल्येकयष्टिका ॥2.6.106.1॥
मूलम्
सैव नक्षत्रमाला स्यात्सप्तविंशतिमौक्तिकैः ॥2.6.106.2॥
शब्दाः
सप्तविंशतिमुक्ताभिः कृता माला. (1) - नक्षत्रमाला (स्त्री) ॥2.6.106.2॥
मूलम्
आवापकः पारिहार्यः कटको वलयोऽस्त्रियाम् ॥2.6.107.1॥
शब्दाः
करवलयः. (4) - आवापक (पुं), पारिहार्य (पुं), कटक (पुं-नपुं), वलय (पुं-नपुं) ॥2.6.107.1॥
+++(प्रगण्डाभूषणम्. (2) - केयूर (पुं-नपुं), अङ्गद (पुं-नपुं)
अङ्गुलीभूषणम्. (2) - अङ्गुलीयक (पुं-नपुं), ऊर्मिका (स्त्री) ॥2.6.107.2॥)+++
केयूरमङ्गदं तुल्ये अङ्गुलीयकमूर्मिका ॥2.6.107.2॥
+++(मुद्रिताङ्गुली. (1) - अङ्गुलिमुद्रा (स्त्री)
मणिबन्धभूषणम्. (2) - कङ्कण (नपुं), करभूषण (नपुं) ॥2.6.108.1॥)+++
साक्षराङ्गुलिमुद्रा स्यात्कङ्कणं करभूषणम् ॥2.6.108.1॥
मूलम्
स्त्रीकट्यां मेखला काञ्ची सप्तमी रशना तथा ॥2.6.108.2॥
शब्दाः
स्त्रीकटीभूषणम्. (4) - मेखला (स्त्री), काञ्ची (स्त्री), सप्तकी (स्त्री), रशना (स्त्री) ॥2.6.108.2॥
+++(स्त्रीकटीभूषणम्. (1) - सारसन (नपुं)
पुंस्कटीभूषणम्. (1) - शृङ्खल (वि) ॥2.6.109.1॥)+++
क्लीबे सारसनं चाथ पुंस्कट्यां शृङ्खलं त्रिषु ॥2.6.109.1॥
मूलम्
पादाङ्गदं तुलाकोटिर्मञ्जीरो नूपुरोऽस्त्रियाम् ॥2.6.109.2॥
शब्दाः
नूपुरः. (4) - पादाङ्गद (नपुं), तुलाकोटि (पुं), मञ्जीर (पुं-नपुं), नूपुर (पुं-नपुं) ॥2.6.109.2॥
+++(मणियुक्तनूपुरः. (2) - हंसक (पुं), पादकटक (पुं)
किङ्किणी. (2) - किङ्किणी (स्त्री), क्षुद्रघण्टिका (स्त्री) ॥2.6.110.1॥)+++
हंसकः पादकटकः किङ्किणी क्षुद्रघण्टिका ॥2.6.110.1॥
मूलम्
त्वक्फलकृमिरोमाणि वस्त्रयोनिर्दश त्रिषु ॥2.6.110.2॥
शब्दाः
वस्त्रयोनिः. (4) - त्वच् (स्त्री), फल (नपुं), कृमि (पुं), रोमन् (नपुं) ॥2.6.110.2॥
+++(क्षौमवस्त्रम्. (1) - वाल्क (वि)
कार्पासवस्त्रम्. (3) - फाल (वि), कार्पास (वि), बादर (वि) ॥2.6.111.1॥)+++
वाल्कं क्षौमादि फालं तु कार्पासं बादरं च तत् ॥2.6.111.1॥
+++(कृमिकोशोत्थवस्त्रम्. (1) - कौशेय (वि)
मृगरोमजवस्त्रम्. (1) - राङ्कव (वि) ॥2.6.111.2॥)+++
कौशेयं कृमिकोशोत्थं राङ्कवं मृगरोमजम् ॥2.6.111.2॥
मूलम्
अनाहतं निष्प्रवाणि तन्त्रकं च नवाम्बरे ॥2.6.112.1॥
शब्दाः
छेदभोगक्षालनरहितवस्त्रम्. (4) - अनाहत (वि), निष्प्रवाणि (वि), तन्त्रक (वि), नवाम्बर (नपुं) ॥2.6.112.1॥
मूलम्
तत्स्यादुद्गमनीयं यद्धौतयोर्वस्त्रयोर्युगम् ॥2.6.112.2॥
शब्दाः
धौतवस्त्रयुगम्. (1) - उद्गमनीय (नपुं) ॥2.6.112.2॥
+++(धौतकौशेयम्. (2) - पत्रोर्ण (नपुं), धौतकौशेय (नपुं)
बहुमूल्यवस्त्रम्. (1) - बहुमूल्य (नपुं)
बहुमूल्यवस्तु. (1) - महाधन (नपुं) ॥2.6.113.1॥)+++
पत्रोर्णं धौतकौशेयं बहुमूल्यं महाधनम् ॥2.6.113.1॥
+++(पट्टवस्त्रम्. (2) - क्षौम (पुं-नपुं), दुकूल (नपुं)
आच्छादितवस्त्रम्. (2) - निवीत (वि), प्रावृत (वि) ॥2.6.113.2॥)+++
क्षौमं दुकूलं स्याद्द्वे तु निवीतं प्रावृतं त्रिषु ॥2.6.113.2॥
मूलम्
स्त्रियां बहुत्वे वस्त्रस्य दशाः स्युर्वस्तयोर्द्वयोः ॥2.6.114.1॥
शब्दाः
वस्त्रान्तावयवः. (2) - दशा (स्त्री-पुं), वस्ति (स्त्री-पुं) ॥2.6.114.1॥
+++(दैर्घ्यम्. (3) - दैर्घ्य (नपुं), आयाम (पुं), आनाह (पुं)
विस्तारः. (2) - परिणाह (पुं), विशालता (स्त्री) ॥2.6.114.2॥)+++
दैर्घ्यमायाम आरोहः परिणाहो विशालता ॥2.6.114.2॥
+++(जीर्णवस्त्रम्. (2) - पटच्चर (नपुं), जीर्णवस्त्र (नपुं)
जीर्णवस्त्रखण्डः. (2) - नक्तक (पुं), कर्पट (पुं) ॥2.6.115.1॥)+++
पटच्चरं जीर्णवस्त्रं समौ नक्तककर्पटौ ॥2.6.115.1॥
मूलम्
वस्त्रमाच्छादनं वासश्चैलं वसनमंशुकम् ॥2.6.115.2॥
शब्दाः
वस्त्रम्. (6) - वस्त्र (नपुं), आच्छादन (नपुं), वास (नपुं), चेल (नपुं), वसन (नपुं), अंशुक (नपुं) ॥2.6.115.2॥
+++(शोभनवस्त्रम्. (2) - सुचेलक (पुं), पट (पुं-नपुं)
स्थूलपटः. (2) - वराशि (पुं), स्थूलशाटक (पुं) ॥2.6.116.1॥)+++
सुचेलकः पटोऽस्त्री स्याद्वराशिः स्थूलशाटकः ॥2.6.116.1॥
+++(स्त्रीपिधानपटः. (2) - निचोल (वि), प्रच्छदपट (पुं)
कम्बलः. (2) - रल्लक (पुं), कम्बल (पुं) ॥2.6.116.2॥)+++
निचोलः प्रच्छदपटः समौ रल्लककम्बलौ ॥2.6.116.2॥
मूलम्
अन्तरीयोपसंव्यानपरिधानान्यधोंशुके ॥2.6.117.1॥
शब्दाः
परिधानम्. (4) - अन्तरीय (नपुं), उपसङ्ख्यान (नपुं), परिधान (नपुं), अधोम्शुक (नपुं) ॥2.6.117.1॥
मूलम्
द्वौ प्रावारोत्तरासङ्गौ समौ बृहतिका तथा ॥2.6.117.2॥
शब्दाः
उपरिवस्त्रम्. (3) - प्रावार (पुं), उत्तरासङ्ग (पुं), बृहतिका (स्त्री) ॥2.6.117.2॥
+++(उपरिवस्त्रम्. (2) - सङ्ख्यान (नपुं), उत्तरीय (नपुं)
स्त्रीणां कञ्चुलिशाख्यम्. (2) - चोल (पुं), कूर्पासक (पुं-नपुं) ॥2.6.118.1॥)+++
संव्यानमुत्तरीयं च चोलः कूर्पासकोऽस्त्रियाम् ॥2.6.118.1॥
मूलम्
नीशारः स्यात्प्रावरणे हिमानिलनिवारणे ॥2.6.118.2॥
शब्दाः
प्रावरणः. (1) - नीशार (पुं) ॥2.6.118.2॥
मूलम्
अर्धोरुकं वरस्त्रीणां स्याच्चण्डातकमस्त्रियाम् ॥2.6.119.1॥
शब्दाः
अर्धोरुपिधायकवस्त्रम्. (2) - अर्धोरुक (नपुं), चण्डातक (नपुं) ॥2.6.119.1॥
मूलम्
स्यात्त्रिष्वाप्रपदीनं तत्प्राप्नोत्याप्रपदं हि यत् ॥2.6.119.2॥
शब्दाः
पादाग्रपर्यन्तलम्बमानवस्त्रम्. (1) - आप्रपदीन (वि) ॥2.6.119.2॥
+++(वितानम्. (2) - वितान (पुं-नपुं), उल्लोच (पुं)
वस्त्रगेहम्. (2) - दूष्य (नपुं), वस्त्रवेश्मन् (नपुं) ॥2.6.120.1॥)+++
अस्त्री वितानमुल्लोचो दूष्याद्यं वस्त्रवेश्मनि ॥2.6.120.1॥
मूलम्
प्रतिसीरा जवनिका स्यात्तिरस्करिणी च सा ॥2.6.120.2॥
शब्दाः
जवनिका. (3) - प्रतिसीरा (स्त्री), जवनिका (स्त्री), तिरस्करिणी (स्त्री) ॥2.6.120.2॥
+++(शरीरशोभाककर्मः. (2) - परिकर्मन् (नपुं), अङ्गसंस्कार (पुं)
प्रोञ्चनादिनाङ्गनिर्मलीकरणम्. (3) - मार्ष्टि (स्त्री), मार्जना (स्त्री), मृजा (स्त्री) ॥2.6.121.1॥)+++
परिकर्माङ्गसंस्कारः स्यान्मार्ष्टिर्मार्जना मृजा ॥2.6.121.1॥
+++(उद्वर्तनद्रव्येणाङ्गनिर्मलीकरणम्. (2) - उद्वर्तन (नपुं), उत्सादन (नपुं)
स्नानम्. (2) - आप्लाव (पुं), आप्लव (पुं) ॥2.6.121.2॥)+++
उद्वर्तनोत्सादने द्वे समे आप्लाव आप्लवः ॥2.6.121.2॥
+++(स्नानम्. (1) - स्नान (नपुं)
चन्दनादिना देहविलेपनम्. (3) - चर्चा (स्त्री), चार्चिक्य (नपुं), स्थासक (पुं)
गतगन्धस्य प्रयत्नेनोद्बोधनम्. (1) - प्रबोधन (नपुं) ॥2.6.122.1॥)+++
स्नानं चर्चा तु चार्चिक्यं स्थासकोऽथ प्रबोधनम् ॥2.6.122.1॥
+++(गतगन्धस्य प्रयत्नेनोद्बोधनम्. (1) - अनुबोध (पुं)
कस्तूरिकादिना कपोलादौ रचिततिलकविशेषः. (2) - पत्रलेखा (स्त्री), पत्राङ्गुलि (स्त्री) ॥2.6.122.2॥)+++
अनुबोधः पत्रलेखा पत्राङ्गुलिरिमे समे ॥2.6.122.2॥
मूलम्
तमालपत्रतिलकचित्रकाणि विशेषकम् ॥2.6.123.1॥
शब्दाः
ललाटकृततिलकम्. (4) - तमालपत्र (नपुं), तिलक (पुं-नपुं), चित्रक (नपुं), विशेषक (पुं-नपुं) ॥2.6.123.1॥
मूलम्
द्वितीयं च तुरीयं च न स्त्रियामथ कुङ्कुमम् ॥2.6.123.2॥
शब्दाः
कुङ्कुमम्. (1) - कुङ्कुम (नपुं) ॥2.6.123.2॥
मूलम्
काश्मीरजन्माग्निशिखं वरं वाह्लीकपीतने ॥2.6.124.1॥
शब्दाः
कुङ्कुमम्. (5) - काश्मीरजन्मन् (नपुं), अग्निशिख (नपुं), वर (नपुं), बाह्लीक (नपुं), पीतन (नपुं) ॥2.6.124.1॥
मूलम्
रक्तसंकोचपिशुनं धीरं लोहितचन्दनम् ॥2.6.124.2॥
शब्दाः
कुङ्कुमम्. (5) - रक्त (नपुं), सङ्कोच (नपुं), पिशुन (नपुं), धीरन् (नपुं), लोहितचन्दन (नपुं) ॥2.6.124.2॥
मूलम्
लाक्षा राक्षा जतु क्लीबे यावोऽलक्तो द्रुमामयः ॥2.6.125.1॥
शब्दाः
लाक्षा. (6) - लाक्षा (स्त्री), राक्षा (स्त्री), जतु (नपुं), याव (पुं), अलक्त (पुं), द्रुमामय (पुं) ॥2.6.125.1॥
+++(लवङ्गम्. (3) - लवङ्ग (नपुं), देवकुसुम (नपुं), श्रीसंज्ञ (नपुं)
सुगन्धद्रव्यभेदः. (1) - जायक (नपुं) ॥2.6.125.2॥)+++
लवङ्गं देवकुसुमं श्रीसंज्ञमथ जायकम् ॥2.6.125.2॥
+++(सुगन्धद्रव्यभेदः. (2) - कालीयक (नपुं), कालानुसार्य (नपुं)
अगरु. (1) - समार्थक (वि) ॥2.6.126.1॥)+++
कालीयकं च कालानुसार्यं चाथ समार्थकम् ॥2.6.126.1॥
मूलम्
वंशिकागुरुराजार्हलोहकृमिजजोङ्गकम् ॥2.6.126.2॥
शब्दाः
अगरु. (6) - वंशका (नपुं), अगुरु (नपुं), राजार्ह (नपुं), लोह (नपुं), कृमिज (नपुं), जोङ्गक (नपुं) ॥2.6.126.2॥
+++(कालागुरु. (2) - कालागुरु (नपुं), अगुरु (नपुं)
मङ्गल्या. (2) - मङ्गल्या (नपुं), मल्लिगन्धि (नपुं) ॥2.6.127.1॥)+++
कालागुर्वगुरु स्यात्तु मङ्गल्या मल्लिगन्धि यत् ॥2.6.127.1॥
मूलम्
यक्षधूपः सर्जरसो रालसर्वरसावपि ॥2.6.127.2॥
शब्दाः
रालः. (4) - यक्षधूप (पुं), सर्जरस (पुं), राल (पुं), सर्वरस (पुं) ॥2.6.127.2॥
+++(रालः. (1) - बहुरूप (पुं)
दशाङ्गादिधूपः. (2) - वृकधूप (पुं), कृत्रिमधूपक (पुं) ॥2.6.128.1॥)+++
बहुरूपोऽप्यथ वृकधूपकृत्रिमधूपकौ ॥2.6.128.1॥
+++(सिल्हाख्यगन्धद्रव्यम्. (4) - तुरुष्क (पुं), पिण्डक (पुं), सिल्ह (पुं), यावन (पुं)
सरलद्रवः. (1) - पायस (पुं) ॥2.6.128.2॥)+++
तुरुष्कः पिण्डकः सिह्लो यावनोऽप्यथ पायसः ॥2.6.128.2॥
मूलम्
श्रीवासो वृकधूपोऽपि श्रीवेष्टसरलद्रवौ ॥2.6.129.1॥
शब्दाः
सरलद्रवः. (4) - श्रीवास (पुं), वृकधूप (पुं), श्रीवेष्ट (पुं), सरलद्रव (पुं) ॥2.6.129.1॥
+++(कस्तूरी. (3) - मृगनाभि (पुं), मृगमद (पुं), कस्तूरी (स्त्री)
फलकर्पूरः. (1) - कोलक (नपुं) ॥2.6.129.2॥)+++
मृगनाभिर्मृगमदः कस्तूरी चाथ कोलकम् ॥2.6.129.2॥
+++(फलकर्पूरः. (2) - कक्कोलक (नपुं), कोशफल (नपुं)
कर्पूरम्. (1) - कर्पूर (पुं-नपुं) ॥2.6.130.1॥)+++
कक्कोलकं कोशफलमथ कर्पूरमस्त्रियाम् ॥2.6.130.1॥
मूलम्
घनसारश्चन्द्रसंज्ञः सिताभ्रो हिमवालुका ॥2.6.130.2॥
शब्दाः
कर्पूरम्. (4) - घनसार (पुं), चन्द्रसंज्ञ (पुं), सिताभ्र (पुं), हिमवालुका (स्त्री) ॥2.6.130.2॥
मूलम्
गन्धसारो मलयजो भद्रश्रीश्चन्दनोऽस्त्रियाम् ॥2.6.131.1॥
शब्दाः
चन्दनः. (4) - गन्धसार (पुं), मलयज (पुं), भद्रश्री (स्त्री), चन्दन (पुं-नपुं) ॥2.6.131.1॥
मूलम्
तैलपर्णिकगोशीर्षे हरिचन्दनमस्त्रियाम् ॥2.6.131.2॥
शब्दाः
चन्दनविशेषः. (3) - तैलपर्णिक (नपुं), गोशीर्ष (नपुं), हरिचन्दन (पुं-नपुं) ॥2.6.131.2॥
मूलम्
तिलपर्णी तु पत्राङ्गं रञ्जनं रक्तचन्दनम् ॥2.6.132.1॥
शब्दाः
रक्तचन्दनः. (4) - तिलपर्णी (स्त्री), पत्राङ्ग (नपुं), रञ्जन (नपुं), रक्तचन्दन (नपुं) ॥2.6.132.1॥
+++(रक्तचन्दनः. (1) - कुचन्दन (नपुं)
जातीफलम्. (2) - जातीकोश (नपुं), जातीफल (नपुं) ॥2.6.132.2॥)+++
कुचन्दनं चाथ जातीकोशजातीफले समे ॥2.6.132.2॥
मूलम्
कर्पूरागुरुकस्तूरीकक्कोलैर्यक्षकर्दमः ॥2.6.133.1॥
शब्दाः
लेपविशेषः. (1) - यक्षकर्दम (पुं) ॥2.6.133.1॥
मूलम्
गात्रानुलेपनी वर्तिर्वर्णकं स्याद्विलेपनम् ॥2.6.133.2॥
शब्दाः
गात्रानुलेपयोग्यसुगन्धिद्रव्यम्. (4) - गात्रानुलेपनी (स्त्री), वर्ति (स्त्री), वर्णक (नपुं), विलेपन (नपुं) ॥2.6.133.2॥
+++(पटवासादिक्षोदचूर्णाः. (2) - चूर्ण (नपुं), वासयोग (पुं)
द्रव्यभावितवस्तु. (2) - भावित (वि), वासित (वि) ॥2.6.134.1॥)+++
चूर्णानि वासयोगाः स्युर्भावितं वासितं त्रिषु ॥2.6.134.1॥
मूलम्
संस्कारो गन्धमाल्याद्यैर्यः स्यात्तदधिवासनम् ॥2.6.134.2॥
शब्दाः
गन्धपुष्पोपचारः. (1) - अधिवासन (नपुं) ॥2.6.134.2॥
+++(मूर्ध्निधृतकुसुमावलिः. (3) - माल्य (नपुं), माला (स्त्री), स्रज् (स्त्री)
केशमध्यगर्भमाला. (1) - गर्भक (पुं) ॥2.6.135.1॥)+++
माल्यं मालास्रजौ मूर्ध्नि केशमध्ये तु गर्भकः ॥2.6.135.1॥
+++(शिखायां लम्बमानपुष्पमाला. (1) - प्रभ्रष्टक (नपुं)
ललाटधृतपुष्पमाला. (1) - ललामक (नपुं) ॥2.6.135.2॥)+++
प्रभ्रष्टकं शिखालम्बि पुरोन्यस्तं ललामकम् ॥2.6.135.2॥
+++(कण्ठे ऋजुलम्बमानपुष्पमाला. (1) - प्रालम्ब (नपुं)
यज्ञोपवीतवर्त्तियग्धृतपुष्पमाला. (1) - वैकक्षिक (नपुं) ॥2.6.136.1॥)+++
प्रालम्बमृजुलम्बि स्यात्कण्ठाद्वैकक्षिकं तु तत् ॥2.6.136.1॥
मूलम्
यत्तिर्यक्क्षिप्तमुरसि शिखास्वापीडशेखरौ ॥2.6.136.2॥
शब्दाः
शिखास्थमाल्यम्. (2) - आपीड (पुं), शेखर (पुं) ॥2.6.136.2॥
+++(माल्यादिरचना. (2) - रचना (स्त्री), परिस्पन्द (पुं)
सर्वोपचारपरिपूर्णता. (2) - आभोग (पुं), परिपूर्णता (स्त्री) ॥2.6.137.1॥)+++
रचना स्यात्परिस्यन्द आभोगः परिपूर्णता ॥2.6.137.1॥
+++(शिरोनिधानम्. (2) - उपधान (नपुं), उपबर्ह (पुं)
शय्या. (2) - शय्या (स्त्री), शयनीय (नपुं) ॥2.6.137.2॥)+++
उपधानं तूपबर्हः शय्यायां शयनीयवत् ॥2.6.137.2॥
+++(शय्या. (1) - शयन (नपुं)
पर्यङ्कः. (4) - मञ्च (पुं), पर्यङ्क (पुं), पल्यङ्क (पुं), खट्वा (स्त्री) ॥2.6.138.1॥)+++
शयनं मञ्चपर्यङ्कपल्यङ्काः खट्वया समाः ॥2.6.138.1॥
+++(कन्दुकः. (2) - गेन्दुक (पुं), कन्दुक (पुं)
दीपः. (2) - दीप (पुं), प्रदीप (पुं)
आसनम्. (2) - पीठ (नपुं), आसन (नपुं) ॥2.6.138.2॥)+++
गेन्दुकः कन्दुको दीपः प्रदीपः पीठमासनम् ॥2.6.138.2॥
+++(सम्पुटः. (2) - समुद्गक (पुं), सम्पुटक (पुं)
प्रतिग्राहः. (2) - प्रतिग्राह (पुं), पतद्ग्रह (पुं) ॥2.6.139.1॥)+++
समुद्गकः सम्पुटकः प्रतिग्राहः पतद्ग्रहः ॥2.6.139.1॥
+++(केशमार्जनी. (2) - प्रसाधनी (स्त्री), कङ्कतिका (स्त्री)
पटवासकचूर्णः. (2) - पिष्टात (पुं), पटवासक (पुं) ॥2.6.139.2॥)+++
प्रसाधनी कङ्कतिका पिष्टातः पटवासकः ॥2.6.139.2॥
+++(दर्पणः. (3) - दर्पण (पुं-नपुं), मुकुर (पुं), आदर्श (पुं)
व्यजनम्. (2) - व्यजन (नपुं), तालवृन्तक (नपुं) ॥2.6.140.1॥)+++
दर्पणे मुकुरादर्शौ व्यजनं तालवृन्तकम् ॥2.6.140.1॥