मूलम्
सिंहो मृगेन्द्रः पञ्चास्यो हर्यक्षः केसरी हरिः ॥2.5.1.1॥
शब्दाः
सिंहः. (6) - सिंह (पुं), मृगेन्द्र (पुं), पञ्चास्य (पुं), हर्यक्ष (पुं), केसरिन् (पुं), हरि (पुं) ॥2.5.1.1॥
मूलम्
कण्ठीरवो मृगारिपुर्मृगदृष्टिर्मृगाशनः ॥2.5.1.2॥
शब्दाः
सिंहः. (4) - कण्ठीरव (पुं), मृगारिपु (पुं), मृगदृष्टि (पुं), मृगाशन (पुं) ॥2.5.1.2॥
मूलम्
पुण्डरीकः पञ्चनखचित्रकायमृगद्विषः ॥2.5.1.3॥
शब्दाः
सिंहः. (4) - पुण्डरीक (पुं), पञ्चनख (पुं), चित्रकाय (पुं), मृगद्विष् (पुं) ॥2.5.1.3॥
मूलम्
शार्दूलद्वीपिनौ व्याघ्रे तरक्षुस्तु मृगादनः ॥2.5.1.4॥
शब्दाः
व्याघ्रः. (3) - शार्दूल (पुं), द्वीपिन् (पुं), व्याघ्र (पुं)
तरक्षुः. (2) - तरक्षु (पुं), मृगादन (पुं) ॥2.5.1.4॥
मूलम्
वराहः सूकरो घृष्टिः कोलः पोत्री किरिः किटिः ॥2.5.2.1॥
शब्दाः
वराहः. (7) - वराह (पुं), सूकर (पुं), घृष्टि (पुं), कोल (पुं), पोत्रिन् (पुं), किरि (पुं), किटि (पुं) ॥2.5.2.1॥
मूलम्
दंष्ट्री घोणी स्तब्धरोमा क्रोडो भूदार इत्यपि ॥2.5.2.2॥
शब्दाः
वराहः. (5) - दंष्ट्रिन् (पुं), घोणिन् (पुं), स्तब्धरोमन् (पुं), क्रोड (पुं), भूदार (पुं) ॥2.5.2.2॥
मूलम्
कपिप्लवङ्गप्लवगशाखामृगवलीमुखाः ॥2.5.3.1॥
शब्दाः
वानरः. (5) - कपि (पुं), प्लवङ्ग (पुं), प्लवग (पुं), शाखामृग (पुं), वलीमुख (पुं) ॥2.5.3.1॥
मूलम्
मर्कटो वानरः कीशो वनौका अथ भल्लुके ॥2.5.3.2॥
शब्दाः
वानरः. (4) - मर्कट (पुं), वानर (पुं), कीश (पुं), वनौकस् (पुं)
भल्लूकः. (1) - भल्लुक (पुं) ॥2.5.3.2॥
मूलम्
ऋक्षाच्छभल्लभल्लूका गण्डके खड्गखड्गिनौ ॥2.5.4.1॥
शब्दाः
भल्लूकः. (3) - ऋक्षाच्छ (पुं), भल्ल (पुं), भालूक (पुं)
गण्डकः. (3) - गण्डक (पुं), खड्ग (पुं), खड्गिन् (पुं) ॥2.5.4.1॥
मूलम्
लुलायो महिषो वाहद्विषत्कासरसैरिभाः ॥2.5.4.2॥
शब्दाः
महिषः. (5) - लुलाय (पुं), महिष (पुं), वाहद्विषत् (पुं), कासर (पुं), सैरिभ (पुं) ॥2.5.4.2॥
मूलम्
स्त्रियां शिवा भूरिमायगोमायुमृगधूर्तकाः ॥2.5.5.1॥
शब्दाः
जम्भूकः. (4) - शिवा (स्त्री), भूरिमाय (पुं), गोमायु (पुं), मृगधूर्तक (पुं) ॥2.5.5.1॥
मूलम्
शृगालवञ्चकक्रोष्टुफेरुफेरवजम्बुकाः ॥2.5.5.2॥
शब्दाः
जम्भूकः. (6) - शृगाल (पुं), वञ्चक (पुं), क्रोष्टु (पुं), फेरु (पुं), फेरव (पुं), जम्बुक (पुं) ॥2.5.5.2॥
मूलम्
ओतुर्बिडालो मार्जारो वृषदंशक आखुभुक् ॥2.5.6.1॥
शब्दाः
मार्जारः. (5) - ओतु (पुं), बिडाल (पुं), मार्जार (पुं), वृषदंशक (पुं), आखुभुज् (पुं) ॥2.5.6.1॥
मूलम्
त्रयो गौधारगौधेरगौधेया गोधिकात्मजे ॥2.5.6.2॥
शब्दाः
कृष्णसर्पात् गोधायाम् जातः. (4) - गौधार (पुं), गौधेर (पुं), गौधेय (पुं), गोधिकात्मज (पुं) ॥2.5.6.2॥
मूलम्
श्वावित्तु शल्यस्तल्लोम्नि शलली शललं शलम् ॥2.5.7.1॥
शब्दाः
शल्यः. (2) - श्वाविध् (पुं), शल्य (पुं)
शल्यरोमाणि. (3) - शलली (स्त्री), शलल (नपुं), शल (नपुं) ॥2.5.7.1॥
मूलम्
वातप्रमीर्वातमृगः कोकस्त्वीहामृगो वृकः ॥2.5.7.2॥
शब्दाः
समीरमृगः. (2) - वातप्रमी (पुं), वातमृग (पुं)
वृकः. (3) - कोक (पुं), ईहामृग (पुं), वृक (पुं) ॥2.5.7.2॥
मूलम्
मृगे कुरङ्गवातायुहरिणाजिनयोनयः ॥2.5.8.1॥
शब्दाः
हरिणः. (5) - मृग (पुं), कुरङ्ग (पुं), वातायु (पुं), हरिण (पुं), अजिनयोनि (पुं) ॥2.5.8.1॥
मूलम्
ऐणेयमेण्याश्चर्माद्यमेणस्यैणमुभे त्रिषु ॥2.5.8.2॥
शब्दाः
एण्याः अजिनादिः. (1) - ऐणेय (वि)
एणस्याजिनादिः. (1) - ऐण (वि) ॥2.5.8.2॥
मूलम्
कदली कन्दली चीनश्चमूरुप्रियकावपि ॥2.5.9.1॥
शब्दाः
अजिनजातीयमृगः. (5) - कदली (स्त्री), कन्दली (स्त्री), चीन (पुं), चमूरु (पुं), प्रियक (पुं) ॥2.5.9.1॥
मूलम्
समूरुश्चेति हरिणा अमी अजिनयोनयः ॥2.5.9.2॥
शब्दाः
अजिनजातीयमृगः. (3) - समूरु (पुं), हरिण (पुं), अमी (पुं) ॥2.5.9.2॥
मूलम्
कृष्णसाररुरुन्यङ्कुरङ्कुशम्बररौहिषाः ॥2.5.10.1॥
शब्दाः
मृगभेदः. (6) - कृष्णसार (पुं), रुरु (पुं), न्यङ्कु (पुं), रङ्कु (पुं), शम्बर (पुं), रौहिष (पुं) ॥2.5.10.1॥
मूलम्
गोकर्णपृषतैणर्श्यरोहिताश्चमरो मृगाः ॥2.5.10.2॥
शब्दाः
मृगभेदः. (7) - गोकर्ण (पुं), पृषत (पुं), एण (पुं), ऋश्य (पुं), रोहित (पुं), चमर (पुं), मृग (पुं) ॥2.5.10.2॥
मूलम्
गन्धर्वः शरभो रामः सृमरो गवयः शशः ॥2.5.11.1॥
शब्दाः
मृगभेदः. (5) - गन्धर्व (पुं), शरभ (पुं), राम (पुं), सृमर (पुं), गवय (पुं)
शशः. (1) - शश (पुं) ॥2.5.11.1॥
मूलम्
इत्यादयो मृगेन्द्राद्या गवाद्याः पशुजातयः ॥2.5.11.2॥
शब्दाः
पशुः. (1) - पशु (पुं) ॥2.5.11.2॥
मूलम्
उन्दुरुर्मूषकोऽप्याखुर्गिरिका बालमूषिका ॥2.5.12.1॥
शब्दाः
मूषकः. (5) - अधोगन्तृ (पुं), खनक (पुं), वृक (पुं), पुन्ध्वज (पुं), उन्दुर (पुं) ॥2.5.12.1॥
मूलम्
सरटः कृकलासः स्यान्मुसली गृहगोधिका ॥2.5.12.2॥
शब्दाः
मूषकः. (3) - उन्दुरु (पुं), मूषक (पुं), आखु (पुं)
स्वल्पमूषकजातिः. (2) - गिरिका (स्त्री), बालमूषिका (स्त्री) ॥2.5.12.2॥
मूलम्
लूता स्त्री तन्तुवायोर्णनाभमर्कटकाः समाः ॥2.5.13.1॥
शब्दाः
ऊर्णनाभः. (4) - लूता (स्त्री), तन्तुवाय (पुं), ऊर्णनाभ (पुं), मर्कटक (पुं) ॥2.5.13.1॥
मूलम्
नीलङ्गुस्तु कृमिः कर्णजलौकाः शतपद्युभे ॥2.5.13.2॥
शब्दाः
कृमिः. (2) - नीलङ्गु (पुं), कृमि (पुं)
कर्णजलौका. (2) - कर्णजलौका (स्त्री), शतपदी (स्त्री) ॥2.5.13.2॥
मूलम्
वृश्चिकः शूककीटः स्यादलिद्रुणौ तु वृश्चिके ॥2.5.14.1॥
शब्दाः
ऊर्णादिभक्षककृमिविशेषः. (2) - वृश्चिक (पुं), शूककीट (पुं)
वृश्चिकः. (3) - अलि (पुं), द्रुण (पुं), वृश्चिक (पुं) ॥2.5.14.1॥
मूलम्
पारावतः कलरवः कपोतोऽथ शशादनः ॥2.5.14.2॥
शब्दाः
कपोतः. (3) - पारावत (पुं), कलरव (पुं), कपोत (पुं)
श्येनः. (1) - शशादन (पुं) ॥2.5.14.2॥
मूलम्
पत्री श्येन उलूकस्तु वायसारातिपेचकौ ॥2.5.15.1॥
शब्दाः
श्येनः. (2) - पत्रिन् (पुं), श्येन (पुं)
उलूकः. (3) - उलूक (पुं), वायसाराति (पुं), पेचक (पुं) ॥2.5.15.1॥
मूलम्
दिवान्धः कौशिको घूको दिवाभीतो निशाटनः ॥2.5.15.2॥
शब्दाः
उलूकः. (5) - दिवान्ध (पुं), कौशिक (पुं), घूक (पुं), दिवाभीत (पुं), निशाटन (पुं) ॥2.5.15.2॥
मूलम्
व्याघ्राटः स्याद्भरद्वाजः खञ्जरीटस्तु खञ्जनः ॥2.5.15.3॥
शब्दाः
भरद्वाजपक्षी. (2) - व्याघ्राट (पुं), भरद्वाज (पुं)
खञ्जनः. (2) - खञ्जरीट (पुं), खञ्जन (पुं) ॥2.5.15.3॥
मूलम्
लोहपृष्ठस्तु कङ्कः स्यादथ चाषः किकीदिविः ॥2.5.16.1॥
शब्दाः
कङ्कः. (2) - लोहपृष्ठ (पुं), कङ्क (पुं)
चाषः. (2) - चाष (पुं), किकीदिवि (पुं) ॥2.5.16.1॥
मूलम्
कलिङ्गभृङ्गधूम्याटा अथ स्याच्छतपत्रकः ॥2.5.16.2॥
शब्दाः
भृङ्गः. (3) - कलिङ्ग (पुं), भृङ्ग (पुं), धूम्याट (पुं)
काष्ठकुट्टः. (1) - शतपत्रक (पुं) ॥2.5.16.2॥
मूलम्
दार्वाघाटोऽथ सारङ्गस्तोककश्चातकः समाः ॥2.5.17.1॥
शब्दाः
काष्ठकुट्टः. (1) - दार्वाघाट (पुं)
चातकपक्षी. (3) - शारङ्ग (पुं), स्तोकक (पुं), चातक (पुं) ॥2.5.17.1॥
मूलम्
कृकवाकुस्ताम्रचूडः कुक्कुटश्चरणायुधः ॥2.5.17.2॥
शब्दाः
कुक्कुटः. (4) - कृकवाकु (पुं), ताम्रचूड (पुं), कुक्कुट (पुं), चारणायुध (पुं) ॥2.5.17.2॥
मूलम्
चटकः कलविङ्कः स्यात्तस्य स्त्री चटका तयोः ॥2.5.18.1॥
शब्दाः
चटकः. (2) - चटक (पुं), कलविङ्क (पुं)
चटकस्त्री. (1) - चटका (स्त्री) ॥2.5.18.1॥
मूलम्
पुमपत्ये चाटकैरः स्त्र्यपत्ये चटकैव सा ॥2.5.18.2॥
शब्दाः
चटकपुमपत्यम्. (1) - चाटकैर (पुं)
चटकस्त्र्यपत्यम्. (1) - चटका (स्त्री) ॥2.5.18.2॥
मूलम्
कर्करेटुः करेटुः स्यात्कृकणक्रकरौ समौ ॥2.5.19.1॥
शब्दाः
अशुभवादिपक्षिविशेषः. (2) - कर्करेटु (पुं), करेटु (पुं)
अशुभपक्षिभेदः. (2) - कृकण (पुं), क्रकर (पुं) ॥2.5.19.1॥
मूलम्
वनप्रियः परभृतः कोकिलः पिक इत्यपि ॥2.5.19.2॥
शब्दाः
कोकिलः. (4) - वनप्रिय (पुं), परभृत (पुं), कोकिल (पुं), पिक (पुं) ॥2.5.19.2॥
मूलम्
काके तु करटारिष्टबलिपुष्टसकृत्प्रजाः ॥2.5.20.1॥
शब्दाः
काकः. (5) - काक (पुं), करट (पुं), अरिष्ट (पुं), बलिपुष्ट (पुं), सकृत्प्रज (पुं) ॥2.5.20.1॥
मूलम्
ध्वाङ्क्षात्मघोषपरभृद्बलिभुग्वायसा अपि ॥2.5.20.2॥
शब्दाः
काकः. (5) - ध्वाङ्क्ष (पुं), आत्मघोष (पुं), परभृत् (पुं), बलिभुज् (पुं), वायस (पुं) ॥2.5.20.2॥
मूलम्
स एव च चिरञ्जीवी चैकदृष्टिश्च मौकुलिः ॥2.5.20.3॥
शब्दाः
काकः. (3) - चिरञ्जीविन् (पुं), एकदृष्टि (पुं), मौकलि (पुं) ॥2.5.20.3॥
मूलम्
द्रोणकाकस्तु काकोलो दात्यूहः कालकण्ठकः ॥2.5.21.1॥
शब्दाः
काकभेदः. (2) - द्रोणकाक (पुं), काकोल (पुं)
कालकण्ठकः. (2) - दात्यूह (पुं), कालकण्ठक (पुं) ॥2.5.21.1॥
मूलम्
आतायिचिल्लौ दाक्षाय्यगृध्रौ कीरशुकौ समौ ॥2.5.21.2॥
शब्दाः
चिल्लः. (2) - आतायिन् (पुं), चिल्ल (पुं)
गृध्रः. (2) - दाक्षाय्य (पुं), गृध्र (पुं)
शुकः. (2) - कीर (पुं), शुक (पुं) ॥2.5.21.2॥
मूलम्
क्रुङ्क्रौञ्चोऽथ बकः कह्वः पुष्कराह्वस्तु सारसः ॥2.5.22.1॥
शब्दाः
क्रौञ्चः. (2) - क्रुञ्च् (पुं), क्रौञ्च (पुं)
बकः. (2) - बक (पुं), कह्व (पुं)
सारसः. (2) - पुष्कराह्व (पुं), सारस (पुं) ॥2.5.22.1॥
मूलम्
कोकश्चक्रश्चक्रवाको रथाङ्गाह्वयनामकः ॥2.5.22.2॥
शब्दाः
चक्रवाकः. (4) - कोक (पुं), चक्र (पुं), चक्रवाक (पुं), रथाङ्गाह्वय (पुं) ॥2.5.22.2॥
मूलम्
कादम्बः कलहंसः स्यादुत्क्रोशकुररौ समौ ॥2.5.23.1॥
शब्दाः
कलहंसः. (2) - कादम्ब (पुं), कलहंस (पुं)
कुररः. (2) - उत्क्रोश (पुं), कुरर (पुं) ॥2.5.23.1॥
मूलम्
हंसास्तु श्वेतगरुतश्चक्राङ्गा मानसौकसः ॥2.5.23.2॥
शब्दाः
हंसः. (4) - हंस (पुं), श्वेतगरुत् (पुं), चक्राङ्ग (पुं), मानसौकस् (पुं) ॥2.5.23.2॥
मूलम्
राजहंसास्तु ते चञ्चुचरणैर्लोहितैः सिताः ॥2.5.24.1॥
शब्दाः
राजहंसः. (1) - राजहंस (पुं) ॥2.5.24.1॥
मूलम्
मलिनैर्मल्लिकाक्षास्ते धार्तराष्ट्राः सितेतरैः ॥2.5.24.2॥
शब्दाः
हंसभेदः. (1) - मल्लिकाक्ष (पुं)
कृष्णचङ्चुचरणहंसः. (1) - धार्तराष्ट्र (पुं) ॥2.5.24.2॥
मूलम्
शरारिराटिराडिश्च बलाका बिसकण्ठिका ॥2.5.25.1॥
शब्दाः
आडिः. (3) - शरारि (स्त्री), आटि (स्त्री), आडि (स्त्री)
बकभेदः. (2) - बलाका (स्त्री), बिसकण्ठिका (स्त्री) ॥2.5.25.1॥
मूलम्
हंसस्य योषिद्वरटा सारसस्य तु लक्ष्मणा ॥2.5.25.2॥
शब्दाः
हंसस्त्री. (1) - वरटा (स्त्री)
सारसस्त्री. (1) - लक्ष्मणा (स्त्री) ॥2.5.25.2॥
मूलम्
जतुकाजिनपत्रा स्यात्परोष्णी तैलपायिका ॥2.5.26.1॥
शब्दाः
जतुका. (2) - जतुका (स्त्री), अजिनपत्रा (स्त्री)
तैलपायिका. (2) - परोष्णी (स्त्री), तैलपायिका (स्त्री) ॥2.5.26.1॥
मूलम्
वर्वणा मक्षिका नीला सरघा मधुमक्षिका ॥2.5.26.2॥
शब्दाः
मक्षिका. (3) - वर्वणा (स्त्री), मक्षिका (स्त्री), नीला (स्त्री)
मधुमक्षिका. (2) - सरघा (स्त्री), मधुमक्षिका (स्त्री) ॥2.5.26.2॥
मूलम्
पतङ्गिका पुत्तिका स्याद्दंशस्तु वनमक्षिका ॥2.5.27.1॥
शब्दाः
मधुमक्षिकाविशेषः. (2) - पतङ्गिका (स्त्री), पुत्तिका (स्त्री)
वनमक्षिका. (2) - दंश (पुं), वनमक्षिका (स्त्री) ॥2.5.27.1॥
मूलम्
दंशी तज्जातिरल्पा स्याद्गन्धोली वरटा द्वयोः ॥2.5.27.2॥
शब्दाः
मक्षिकाल्पजातिः. (1) - दंशी (स्त्री)
वरटा. (2) - गन्धोली (स्त्री), वरटा (स्त्री-पुं) ॥2.5.27.2॥
मूलम्
भृङ्गारी झीरुका चीरी झिल्लिका च समा इमाः ॥2.5.28.1॥
शब्दाः
झिल्लिका. (4) - भृङ्गारी (स्त्री), झीरुका (स्त्री), चीरी (स्त्री), झिल्लिका (स्त्री) ॥2.5.28.1॥
मूलम्
समौ पतङ्गशलभौ खद्योतो ज्योतिरिङ्गणः ॥2.5.28.2॥
शब्दाः
पतङ्गः. (2) - पतङ्ग (पुं), शलभ (पुं)
खद्योतः. (2) - खद्योत (पुं), ज्योतिरिङ्गण (पुं) ॥2.5.28.2॥
मूलम्
मधुव्रतो मधुकरो मधुलिण्मधुपालिनः ॥2.5.29.1॥
शब्दाः
भ्रमरः. (5) - मधुव्रत (पुं), मधुकर (पुं), मधुलिह (पुं), मधुप (पुं), अलिन् (पुं) ॥2.5.29.1॥
मूलम्
द्विरेफपुष्पलिड्भृङ्गषट्पदभ्रमरालयः ॥2.5.29.2॥
शब्दाः
भ्रमरः. (6) - द्विरेफ (पुं), पुष्पलिह् (पुं), भृङ्ग (पुं), षट्पद (पुं), भ्रमर (पुं), अलि (पुं) ॥2.5.29.2॥
मूलम्
मयूरो बर्हिणो बर्ही नीलकण्ठो भुजङ्गभुक् ॥2.5.30.1॥
शब्दाः
मयूरः. (5) - मयूर (पुं), बर्हिण (पुं), बर्हिन् (पुं), नीलकण्ठ (पुं), भुजङ्गभुज् (पुं) ॥2.5.30.1॥
मूलम्
शिखावलः शिखी केकी मेघनादानुलास्यपि ॥2.5.30.2॥
शब्दाः
मयूरः. (4) - शिखावल (पुं), शिखिन् (पुं), केकिन् (पुं), मेघनादानुलासिन् (पुं) ॥2.5.30.2॥
मूलम्
केका वाणी मयूरस्य समौ चन्द्रकमेचकौ ॥2.5.31.1॥
शब्दाः
मयूरवाणिः. (1) - केका (स्त्री)
पिच्छस्थचन्द्राकृतिः. (2) - चन्द्रक (पुं), मेचक (पुं) ॥2.5.31.1॥
मूलम्
शिखा चूडा शिखण्डस्तु पिच्छबर्हे नपुंसके ॥2.5.31.2॥
शब्दाः
मयूरशिखा. (2) - शिखा (स्त्री), चूडा (स्त्री)
मयूरपिच्छः. (2) - शिखण्ड (पुं), पिच्छबर्ह (नपुं) ॥2.5.31.2॥
मूलम्
खगे विहङ्गविहगविहङ्गमविहायसः ॥2.5.32.1॥
शब्दाः
पक्षी. (5) - खग (पुं), विहङ्ग (पुं), विहग (पुं), विहङ्गम (पुं), विहायस् (पुं) ॥2.5.32.1॥
मूलम्
शकुन्तिपक्षिशकुनिशकुन्तशकुनद्विजाः ॥2.5.32.2॥
शब्दाः
पक्षी. (6) - शकुन्ति (पुं), पक्षिन् (पुं), शकुनि (पुं), शकुन्त (पुं), शकुन (पुं), द्विज (पुं) ॥2.5.32.2॥
मूलम्
पतत्रिपत्रिपतगपतत्पत्ररथाण्डजाः ॥2.5.33.1॥
शब्दाः
पक्षी. (6) - पतत्रिन् (पुं), पत्रिन् (पुं), पतग (पुं), पतत् (पुं), पत्ररथ (पुं), अण्डज (पुं) ॥2.5.33.1॥
मूलम्
नगौकोवाजिविकिरविविष्किरपतत्रयः ॥2.5.33.2॥
शब्दाः
पक्षी. (6) - नगौकस् (पुं), वाजिन् (पुं), विकिर (पुं), वि (पुं), विष्किर (पुं), पतत्रि (पुं) ॥2.5.33.2॥
मूलम्
नीडोद्भवाः गरुत्मन्तः पित्सन्तो नभसङ्गमाः ॥2.5.34.1॥
शब्दाः
पक्षी. (4) - नीडोद्भव (पुं), गरुत्मत् (पुं), पित्सन्त् (पुं), नभसङ्गम (पुं) ॥2.5.34.1॥
मूलम्
तेषां विशेषा हारीतो मद्गुः कारण्डवः प्लवः ॥2.5.34.2॥
शब्दाः
पक्षिजातिविशेषः. (4) - हारीत (पुं), मद्गु (पुं), कारण्डव (पुं), प्लव (पुं) ॥2.5.34.2॥
मूलम्
तित्तिरिः कुक्कुभो लावो जीवञ्जीवश्च कोरकः ॥2.5.35.1॥
शब्दाः
पक्षिजातिविशेषः. (5) - तित्तिरि (पुं), कुक्कुभ (पुं), लाव (पुं), जीवञ्जीव (पुं), कोरक (पुं) ॥2.5.35.1॥
मूलम्
कोयष्टिकष्टिट्टिभको वर्तको वर्तिकादयः ॥2.5.35.2॥
शब्दाः
पक्षिजातिविशेषः. (4) - कोयष्टिक (पुं), टिट्टिभक (पुं), वर्तक (पुं), वर्तिक (पुं) ॥2.5.35.2॥
मूलम्
गरुत्पक्षच्छदाः पत्रं पतत्रं च तनूरुहम् ॥2.5.36.1॥
शब्दाः
पक्षिपक्षः. (6) - गरुत् (पुं), पक्ष (पुं), छद (पुं-नपुं), पत्र (नपुं), पतत्र (नपुं), तनूरुह (नपुं) ॥2.5.36.1॥
मूलम्
स्त्री पक्षतिः पक्षमूलं चञ्चुस्त्रोटिरुभे स्त्रियौ ॥2.5.36.2॥
शब्दाः
पक्षमूलम्. (2) - पक्षति (स्त्री), पक्षमूल (नपुं)
पक्षिणा तुण्डः. (2) - चञ्चु (स्त्री), त्रोटि (स्त्री) ॥2.5.36.2॥
मूलम्
प्रडीनोड्डीनसंडीनान्येताः खगगतिक्रियाः ॥2.5.37.1॥
शब्दाः
पक्षिगतिविशेषः. (3) - प्रडीन (नपुं), उड्डीन (नपुं), सण्डीन (नपुं) ॥2.5.37.1॥
मूलम्
पेशी कोशो द्विहीनेऽण्डं कुलायो नीडमस्त्रियाम् ॥2.5.37.2॥
शब्दाः
अण्डम्. (3) - पेशी (स्त्री), कोश (पुं-नपुं), अण्ड (नपुं)
पक्षिवासः. (2) - कुलाय (पुं), नीड (पुं-नपुं) ॥2.5.37.2॥
मूलम्
पोतः पाकोऽर्भको डिम्भः पृथुकः शावकः शिशुः ॥2.5.38.1॥
शब्दाः
शिशुः. (7) - पोत (पुं), पाक (पुं), अर्भक (पुं), डिम्भ (पुं), पृथुक (पुं), शावक (पुं), शिशु (पुं) ॥2.5.38.1॥
मूलम्
स्त्रीपुंसौ मिथुनं द्वन्द्वं युग्मं तु युगुलं युगम् ॥2.5.38.2॥
शब्दाः
स्त्रीपुरुषयुग्मम्. (3) - स्त्रीपुंस (पुं), मिथुन (नपुं), द्वन्द्व (नपुं)
युग्मम्. (3) - युग्म (नपुं), युगल (नपुं), युग (नपुं) ॥2.5.38.2॥
मूलम्
समूहे निवहव्यूहसंदोहविसरव्रजाः ॥2.5.39.1॥
शब्दाः
समूहः. (6) - समूह (पुं), निवह (पुं), व्यूह (पुं), सन्दोह (पुं), विसर (पुं), व्रज (पुं) ॥2.5.39.1॥
मूलम्
स्तोमौघनिकरव्रातवारसङ्घातसञ्चयाः ॥2.5.39.2॥
शब्दाः
समूहः. (7) - स्तोम (पुं), ओघ (पुं), निकर (पुं), व्रात (पुं), वार (पुं), सङ्घात (पुं), सञ्चय (पुं) ॥2.5.39.2॥
मूलम्
समुदायः समुदयः समवायश्चयो गणः ॥2.5.40.1॥
शब्दाः
समूहः. (5) - समुदाय (पुं), समुदय (पुं), समवाय (पुं), चय (पुं), गण (पुं) ॥2.5.40.1॥
मूलम्
स्त्रियां तु संहतिर्वृन्दं निकुरम्बं कदम्बकम् ॥2.5.40.2॥
शब्दाः
समूहः. (4) - संहति (स्त्री), वृन्द (नपुं), निकुरम्ब (नपुं), कदम्बक (नपुं) ॥2.5.40.2॥
मूलम्
वृन्दभेदाः समैर्वर्गः सङ्घसार्थौ तु जन्तुभिः ॥2.5.41.1॥
शब्दाः
सजातीयैः प्राणिभिरप्राणिभिर्वा समूहः. (1) - वर्ग (पुं)
जन्तुसमूहः. (2) - सङ्घ (पुं), सार्थ (पुं) ॥2.5.41.1॥
मूलम्
सजातीयैः कुलं यूथं तिरश्चां पुन्नपुंसकम् ॥2.5.41.2॥
शब्दाः
सजातीयसमूहः. (1) - कुल (नपुं)
सजातीयतिरश्चां समूहः. (1) - यूथ (पुं-नपुं) ॥2.5.41.2॥
मूलम्
पशूनां समजोऽन्येषां समाजोऽथ सधर्मिणाम् ॥2.5.42.1॥
शब्दाः
पशुसङ्घः. (1) - समज (पुं)
पशुभिन्नसङ्घः. (1) - समाज (पुं) ॥2.5.42.1॥
मूलम्
स्यान्निकायः पुञ्जराशी तूत्करः कूटमस्त्रियाम् ॥2.5.42.2॥
शब्दाः
एकधर्मवतां समूहः. (1) - निकाय (पुं)
धान्यादिराशिः. (4) - पुञ्ज (पुं), राशि (स्त्री-पुं), उत्कर (पुं), कूट (पुं-नपुं) ॥2.5.42.2॥
मूलम्
कापोतशौकमायूरतैत्तिरादीनि तद्गणे ॥2.5.43.1॥
शब्दाः
कपोतगणः. (1) - कापोत (नपुं)
शुकगणः. (1) - शौक (नपुं)
मयूरगणः. (1) - मायूर (नपुं)
तित्तिरिगणः. (1) - तैत्तिर (नपुं) ॥2.5.43.1॥
मूलम्
गृहासक्ताः पक्षिमृगाश्छेकास्ते गृह्यकाश्च ते ॥2.5.43.2॥
शब्दाः
गृहासक्तपक्षिमृगाः. (2) - छेक (पुं), गृह्यक (पुं) ॥2.5.43.2॥