1.10 वारिवर्गः

मूलम्

समुद्रोऽब्धिरकूपारः पारावारः सरित्पतिः ॥1.10.1.1॥

शब्दाः

समुद्रः. (5) - समुद्र (पुं), अब्धि (पुं), अकूपार (पुं), पारावार (पुं), सरित्पति (पुं) ॥1.10.1.1॥

मूलम्

उदन्वानुदधिः सिन्धुः सरस्वान्सागरोऽर्णवः ॥1.10.1.2॥

शब्दाः

समुद्रः. (6) - उदन्वत् (पुं), उदधि (पुं), सिन्धु (पुं), सरस्वत् (पुं), सागर (पुं), अर्णव (पुं) ॥1.10.1.2॥

मूलम्

रत्नाकरो जलनिधिर्यादःपतिरपाम्पतिः ॥1.10.2.1॥

शब्दाः

समुद्रः. (4) - रत्नाकर (पुं), जलनिधि (पुं), यादःपति (पुं), अपाम्पति (पुं) ॥1.10.2.1॥

मूलम्

तस्य प्रभेदाः क्षीरोदो लवणोदस्तथापरे ॥1.10.2.2॥

शब्दाः

समुद्रविशेषः. (2) - क्षीरोद (पुं), लवणोद (पुं) ॥1.10.2.2॥

मूलम्

आपः स्त्री भूम्नि वार्वारि सलिलं कमलं जलम् ॥1.10.3.1॥

शब्दाः

जलम्. (6) - अप् (स्त्री-बहु), वार् (नपुं), वारि (नपुं), सलिल (नपुं), कमल (नपुं), जल (नपुं) ॥1.10.3.1॥

मूलम्

पयः कीलालममृतं जीवनं भुवनं वनम् ॥1.10.3.2॥

शब्दाः

जलम्. (6) - पयस् (नपुं), कीलाल (नपुं), अमृत (नपुं), जीवन (नपुं), भुवन (नपुं), वन (नपुं) ॥1.10.3.2॥

मूलम्

कबन्धमुदकं पाथः पुष्करं सर्वतोमुखम् ॥1.10.4.1॥

शब्दाः

जलम्. (5) - कबन्ध (नपुं), उदक (नपुं), पाथ (नपुं), पुष्कर (नपुं), सर्वतोमुख (नपुं) ॥1.10.4.1॥

मूलम्

अम्भोऽर्णस्तोयपानीयनीरक्षीराम्बुशम्बरम् ॥1.10.4.2॥

शब्दाः

जलम्. (8) - अम्भस् (नपुं), अर्णस् (नपुं), तोय (नपुं), पानीय (नपुं), नीर (नपुं), क्षीर (नपुं), अम्बु (नपुं), शम्बर (नपुं) ॥1.10.4.2॥

मूलम्

मेघपुष्पं घनरसस्त्रिषु द्वे आप्यमम्मयम् ॥1.10.5.1॥

शब्दाः

जलम्. (2) - मेघपुष्प (नपुं), घनरस (पुं)
जलविकारः. (2) - आप्य (वि), अम्मय (वि) ॥1.10.5.1॥

मूलम्

भङ्गस्तरङ्ग ऊर्मिर्वा स्त्रियां वीचिरथोर्मिषु ॥1.10.5.2॥

शब्दाः

तरङ्गः. (4) - भङ्ग (पुं), तरङ्ग (पुं), ऊर्मि (स्त्री-पुं), वीचि (स्त्री-पुं) ॥1.10.5.2॥

मूलम्

महत्सूल्लोलकल्लोलौ स्यादावर्तोऽम्भसां भ्रमः ॥1.10.6.1॥

शब्दाः

महातरङ्गः. (2) - उल्लोल (पुं), कल्लोल (पुं)
जलभ्रमणम्. (1) - आवर्त (पुं) ॥1.10.6.1॥

मूलम्

पृषन्ति बिन्दुपृषताः पुमांसो विप्रुषः स्त्रियाम् ॥1.10.6.2॥

शब्दाः

जलकणः. (4) - पृषत् (पुं), बिन्दु (पुं), पृषत (पुं), विप्रुष् (स्त्री) ॥1.10.6.2॥

मूलम्

चक्राणि पुटभेदाः स्युर्भ्रमाश्च जलनिर्गमाः ॥1.10.7.1॥

शब्दाः

चक्राकारेण जलानामधोयानम्. (2) - वक्र (पुं-नपुं), पुटभेद (पुं)
जलनिस्सरणजालकम्. (2) - भ्रम (पुं), जलनिर्गम (पुं) ॥1.10.7.1॥

मूलम्

कूलं रोधश्च तीरं च प्रतीरं च तटं त्रिषु ॥1.10.7.2॥

शब्दाः

तीरम्. (5) - कूल (नपुं), रोध (पुं), तीर (नपुं), प्रतीर (नपुं), तट (वि) ॥1.10.7.2॥

मूलम्

पारावारे परार्वाची तीरे पात्रं तदन्तरम् ॥1.10.8.1॥

शब्दाः

परतीरम्. (2) - पार (नपुं), पर (नपुं)
अवरतीरम्. (2) - अवार (नपुं), अर्वाक् (नपुं)
तडमध्यवर्तिप्रवाहः. (1) - पात्र (नपुं) ॥1.10.8.1॥

मूलम्

द्वीपोऽस्त्रियामन्तरीपं यदन्तर्वारिणस्तटम् ॥1.10.8.2॥

शब्दाः

जलमध्यस्थस्थानम्. (2) - द्वीप (पुं-नपुं), अन्तरीप (पुं-नपुं) ॥1.10.8.2॥

मूलम्

तोयोत्थितं तत्पुलिनं सैकतं सिकतामयम् ॥1.10.9.1॥

शब्दाः

जलादचिरनिर्गततडम्. (1) - पुलिन (नपुं)
वालुकामयतडम्. (2) - सैकत (नपुं), सिकतामय (नपुं) ॥1.10.9.1॥

मूलम्

निषद्वरस्तु जम्बालः पङ्कोऽस्त्री शादकर्दमौ ॥1.10.9.2॥

शब्दाः

कर्दमः. (5) - निषद्वर (पुं), जम्बाल (पुं), पङ्क (पुं-नपुं), शाद (पुं), कर्दम (पुं) ॥1.10.9.2॥

मूलम्

जलोच्छ्वासाः परीवाहाः कूपकास्तु विदारकाः ॥1.10.10.1॥

शब्दाः

प्रवृद्धजलस्य निर्गममार्गः. (2) - जलोच्छ्वास (पुं), परीवाह (पुं)
शुष्कनद्यादौ कृतगर्तः. (2) - कूपक (पुं), विदारक (पुं) ॥1.10.10.1॥

मूलम्

नाव्यं त्रिलिङ्गं नौतार्ये स्त्रियां नौस्तरणिस्तरिः ॥1.10.10.2॥

शब्दाः

नौतरणयोग्यजलाशयः. (1) - नाव्य (वि)
नौका. (3) - नौ (स्त्री), तरणि (पुं), तरि (स्त्री) ॥1.10.10.2॥

मूलम्

उडुपं तु प्लवः कोलः स्रोतोऽम्बुसरणं स्वतः ॥1.10.11.1॥

शब्दाः

तृणादिनिर्मिततरणसाधनम्. (3) - उडुप (नपुं), प्लव (पुं), कोल (पुं)
अकृत्रिमजलवाहनम्. (3) - स्रोतस् (नपुं), अम्बुसरण (नपुं), स्वतस् (पुं) ॥1.10.11.1॥

मूलम्

आतरस्तरपण्यं स्याद्द्रोणी काष्ठाम्बुवाहिनी ॥1.10.11.2॥

शब्दाः

नद्यादितरणे देयमूल्यम्. (2) - आतर (पुं), तरपण्य (नपुं)
काष्ठजलवाहिनी. (1) - द्रोणी (स्त्री) ॥1.10.11.2॥

मूलम्

सांयात्रिकः पोतवणिक्कर्णधारस्तु नाविकः ॥1.10.12.1॥

शब्दाः

नौकया वाणिज्यकारी. (2) - सांयात्रिक (पुं), पोतवणिज् (पुं)
नाविकः. (2) - कर्णधार (पुं), नाविक (पुं) ॥1.10.12.1॥

मूलम्

नियामकाः पोतवाहाः कूपको गुणवृक्षकः ॥1.10.12.2॥

शब्दाः

वहित्रवाहकः. (2) - नियामक (पुं), पोतवाह (पुं)
नौमध्यस्थरज्जुबन्धनकाष्ठम्. (2) - कूपक (पुं), गुणवृक्षक (पुं) ॥1.10.12.2॥

मूलम्

नौकादण्डः क्षेपणी स्यादरित्रं केनिपातकः ॥1.10.13.1॥

शब्दाः

नौकापार्श्वद्वयबन्द्धचालनकाष्ठम्. (2) - नौकादण्ड (पुं), क्षेपणी (स्त्री)
नौपृष्ठस्थचालनकाष्ठम्. (2) - अरित्र (नपुं), केनिपातक (पुं) ॥1.10.13.1॥

मूलम्

अभ्रिः स्त्री काष्ठकुद्दालः सेकपात्रं तु सेचनम् ॥1.10.13.2॥

शब्दाः

नौकाबन्धनार्थः काष्ठकुद्दालः. (2) - अभ्रि (स्त्री), काष्ठकुद्दाल (पुं)
नौस्थजलनिःसारणपात्रम्. (2) - सेकपात्र (नपुं), सेचन (नपुं) ॥1.10.13.2॥

मूलम्

क्लीबेऽर्धनावं नावोऽर्धेऽतीतनौकेऽतिनु त्रिषु ॥1.10.14.1॥

शब्दाः

अर्धनौका. (1) - अर्धनाव (नपुं)
नौकामतिक्रान्तजलादिः. (2) - अतीतनौक (वि), अतिनु (वि) ॥1.10.14.1॥

मूलम्

त्रिष्वागाधात्प्रसन्नोऽच्छः कलुषोऽनच्छ आविलः ॥1.10.14.2॥

शब्दाः

निर्मलः. (2) - प्रसन्न (वि), आच्छ (वि)
मलिनजलम्. (3) - कलुष (वि), अनच्छ (वि), आविल (वि) ॥1.10.14.2॥

मूलम्

निम्नं गभीरं गम्भीरमुत्तानं तद्विपर्यये ॥1.10.15.1॥

शब्दाः

गम्भीरम्. (3) - निम्न (वि), गभीर (वि), गम्भीर (वि)
उत्तानम्. (1) - उत्तान (वि) ॥1.10.15.1॥

मूलम्

अगाधमतलस्पर्शे कैवर्ते दाशधीवरौ ॥1.10.15.2॥

शब्दाः

अतिनिम्नप्रदेशः. (2) - अगाध (वि), अतलस्पर्श (वि)
धीवरः. (3) - कैवर्त (पुं), दाश (पुं), धीवर (पुं) ॥1.10.15.2॥

मूलम्

आनायः पुंसि जालं स्याच्छणसूत्रं पवित्रकम् ॥1.10.16.1॥

शब्दाः

जालम्. (2) - आनाय (पुं), जाल (नपुं)
शणसूत्रजालम्. (2) - चणसूत्र (नपुं), पवित्रक (नपुं) ॥1.10.16.1॥

मूलम्

मत्स्याधानी कुवेणी स्याद्बडिशं मत्स्यवेधनम् ॥1.10.16.2॥

शब्दाः

मत्स्यस्थापनपात्रम्. (2) - मत्स्याधानी (स्त्री), कुवेणी (स्त्री)
मत्स्यवेधनम्. (2) - बडिश (नपुं), मत्स्यवेधन (नपुं) ॥1.10.16.2॥

मूलम्

पृथुरोमा झषो मत्स्यो मीनो वैसारिणोऽण्डजः ॥1.10.17.1॥

शब्दाः

मत्स्यः. (6) - पृथुरोमन् (पुं), झष (पुं), मत्स्य (पुं), मीन (पुं), वैसारिण (पुं), अण्डज (पुं) ॥1.10.17.1॥

मूलम्

विसारः शकुली चाथ गडकः शकुलार्भकः ॥1.10.17.2॥

शब्दाः

मत्स्यः. (2) - विसार (पुं), शकुली (पुं)
गडकमत्स्यः. (1) - गडक (पुं)
शकुलार्भकमत्स्यः. (1) - शकुलार्भक (पुं) ॥1.10.17.2॥

मूलम्

सहस्रदंष्ट्रः पाठीन उलूपी शिशुकः समौ ॥1.10.18.1॥

शब्दाः

बहुदंष्ट्रः मत्स्यः. (2) - सहस्रदंष्ट्र (पुं), पाठीन (पुं)
शिशुमार-आकारमत्स्यः. (2) - उलूपिन् (पुं), शिशुक (पुं) ॥1.10.18.1॥

मूलम्

नलमीनश्चिलिचिमः प्रोष्ठी तु शफरीद्वयोः ॥1.10.18.2॥

शब्दाः

नलवनचारिणो मत्स्यविशेषः. (2) - नलमीन (पुं), चिलिचिम (पुं)
प्रोष्ठीमत्स्यः. (1) - प्रोष्ठी (स्त्री-पुं)
शफरीमत्स्यः. (1) - शफरी (स्त्री-पुं) ॥1.10.18.2॥

मूलम्

क्षुद्राण्डमत्स्यसङ्घातः पोताधानमथो झषाः ॥1.10.19.1॥

शब्दाः

अण्डादचिरनिर्गतमत्स्यसङ्घम्. (2) - क्षुद्राण्डमत्स्यसङ्घात (पुं), पोताधान (नपुं)
मत्स्यविशेषः. (1) - झष (पुं) ॥1.10.19.1॥

मूलम्

रोहितो मद्गुरः शालो राजीवः शकुलस्तिमिः ॥1.10.19.2॥

शब्दाः

रोहितमत्स्यः. (1) - रोहित (पुं)
मद्गुरमत्स्यः. (1) - मद्गुर (पुं)
शालमत्स्यः. (1) - शाल (पुं)
राजीवमत्स्यः. (1) - राजीव (पुं)
शकुलमत्स्यः. (1) - शकुल (पुं)
तिमिमत्स्यः. (1) - तिमि (पुं) ॥1.10.19.2॥

मूलम्

तिमिङ्गलादयश्चाथ यादांसि जलजन्तवः ॥1.10.20.1॥

शब्दाः

तिमिङ्गलमत्स्यः. (1) - तिमिङ्गल (पुं)
जलचरः. (2) - यादस् (नपुं), जलजन्तु (पुं) ॥1.10.20.1॥

मूलम्

तद्भेदाः शिशुमारोद्रशङ्कवो मकरादयः ॥1.10.20.2॥

शब्दाः

जलजन्तुविशेषः. (4) - शिशुमार (पुं), उद्र (पुं), शङ्कु (पुं), मकर (पुं) ॥1.10.20.2॥

मूलम्

स्यात्कुलीरः कर्कटकः कूर्मे कमठकच्छपौ ॥1.10.21.1॥

शब्दाः

कुलीरः. (2) - कुलीर (पुं), कर्कटक (पुं)
कूर्मः. (3) - कूर्म (पुं), कमठ (पुं), कच्छप (पुं) ॥1.10.21.1॥

मूलम्

ग्राहोऽवहारो नक्रस्तु कुम्भीरोऽथ महीलता ॥1.10.21.2॥

शब्दाः

ग्राहः. (2) - ग्राह (पुं), अवहार (पुं)
नक्रः. (2) - नक्र (पुं), कुम्भीर (पुं)
केचुवा इति जन्तुविशेषः. (1) - महीलता (स्त्री) ॥1.10.21.2॥

मूलम्

गण्डूपदः किञ्चुलको निहाका गोधिका समे ॥1.10.22.1॥

शब्दाः

केचुवा इति जन्तुविशेषः. (2) - गण्डूपद (पुं), किञ्चुलक (पुं)
‘गोह’ ‘जलगोधिका’ इति विख्यातजन्तुविशेषः. (2) - निहाका (स्त्री), गोधिका (स्त्री) ॥1.10.22.1॥

मूलम्

रक्तपा तु जलौकायां स्त्रियां भूम्नि जलौकसः ॥1.10.22.2॥

शब्दाः

जलूका. (3) - रक्तपा (स्त्री), जलौका (स्त्री-बहु), जलौकस् (पुं) ॥1.10.22.2॥

मूलम्

मुक्तास्फोटः स्त्रियां शुक्तिः शङ्खः स्यात्कम्बुरस्त्रियौ ॥1.10.23.1॥

शब्दाः

शुक्तिका. (2) - मुक्तास्फोट (पुं), शुक्ति (स्त्री)
शङ्खः. (2) - शङ्ख (पुं-नपुं), कम्बु (पुं-नपुं) ॥1.10.23.1॥

मूलम्

क्षुद्रशङ्खाः शङ्खनखाः शम्बूका जलशुक्तयः ॥1.10.23.2॥

शब्दाः

सूक्ष्मशङ्खः. (2) - क्षुद्रशङ्ख (पुं), शङ्खनख (पुं)
सर्वजलशुक्तिकाः. (2) - शम्बूक (पुं), जलशुक्ति (स्त्री) ॥1.10.23.2॥

मूलम्

भेके मण्डूकवर्षाभूशालूरप्लवदर्दुराः ॥1.10.24.1॥

शब्दाः

मण्डूकः. (6) - भेक (पुं), मण्डूक (पुं), वर्षाभू (पुं), शालूर (पुं), प्लव (पुं), दर्दुर (पुं) ॥1.10.24.1॥

मूलम्

शिली गण्डूपदी भेकी वर्षाभ्वी कमठी डुलिः ॥1.10.24.2॥

शब्दाः

क्षुद्रकिञ्चुलकजातिः. (2) - शिली (स्त्री), गण्डूपदी (स्त्री)
मण्डूकी. (2) - भेकी (स्त्री), वर्षाभ्वी (स्त्री)
कच्छपी. (2) - कमठी (स्त्री), डुलि (स्त्री) ॥1.10.24.2॥

मूलम्

मद्गुरस्य प्रिया शृङ्गी दुर्नामा दीर्घकोशिका ॥1.10.25.1॥

शब्दाः

मद्गुरस्य स्त्री. (1) - शृङ्गी (स्त्री)
जलूकाकार जलचरः. (2) - दुर्नामन् (पुं), दीर्घकोशिका (स्त्री) ॥1.10.25.1॥

मूलम्

जलाशयो जलाधारस्तत्रागाधजलो ह्रदः ॥1.10.25.2॥

शब्दाः

तटाकादयः. (2) - जलाशय (पुं), जलाधार (पुं)
अगाधजलकूपः. (1) - ह्रद (पुं) ॥1.10.25.2॥

मूलम्

आहावस्तु निपानं स्यादुपकूपजलाशये ॥1.10.26.1॥

शब्दाः

कूपसमीपरचितजलाधारः. (2) - आहाव (पुं), निपान (नपुं) ॥1.10.26.1॥

मूलम्

पुंस्येवान्धुः प्रहिः कूप उदपानं तु पुंसि वा ॥1.10.26.2॥

शब्दाः

कूपः. (4) - अन्धु (पुं), प्रहि (पुं), कूप (पुं), उदपान (पुं-नपुं) ॥1.10.26.2॥

मूलम्

नेमिस्त्रिकास्य वीनाहो मुखबन्धनमस्य यत् ॥1.10.27.1॥

शब्दाः

कूपस्यान्तरे रज्ज्वादिधारणार्थदारुयन्त्रः. (2) - नेमि (स्त्री), त्रिका (स्त्री)
कूपमुखे इष्टकादिभिर्बद्धः. (1) - वीनाह (पुं) ॥1.10.27.1॥

मूलम्

पुष्करिण्यां तु खातं स्यादखातं देवखातकम् ॥1.10.27.2॥

शब्दाः

समचतुरस्रखातः. (2) - पुष्करिणी (स्त्री), खात (नपुं)
अकृत्रिमजलाशयः. (2) - अखात (पुं-नपुं), देवखातक (नपुं) ॥1.10.27.2॥

मूलम्

पद्माकरस्तडागोऽस्त्री कासारः सरसी सरः ॥1.10.28.1॥

शब्दाः

सपद्मागाधजलाशयः. (2) - पद्माकर (पुं), तडाग (पुं-नपुं)
कृत्रिमपद्माकरः. (3) - कासार (पुं), सरसी (स्त्री), सर (पुं) ॥1.10.28.1॥

मूलम्

वेशन्तः पल्वलं चाल्पसरो वापी तु दीर्घिका ॥1.10.28.2॥

शब्दाः

अल्पजलाशयः. (3) - वेशन्त (पुं), पल्वल (पुं-नपुं), अल्पसरस् (नपुं)
वापी. (2) - वापी (स्त्री), दीर्घिका (स्त्री) ॥1.10.28.2॥

मूलम्

खेयं तु परिखाधारस्त्वम्भसां यत्र धारणम् ॥1.10.29.1॥

शब्दाः

दुर्गादिपरितः खातम्. (2) - खेय (नपुं), परिखा (स्त्री)
बान्ध इति ख्यातम्. (1) - आधार (पुं) ॥1.10.29.1॥

मूलम्

स्यादालवालमावालमावापोऽथ नदी सरित् ॥1.10.29.2॥

शब्दाः

वृक्षमूलकृतजलधारः. (3) - आलवाल (नपुं), आवाल (नपुं), आवाप (पुं)
नदी. (2) - नदी (स्त्री), सरित् (स्त्री) ॥1.10.29.2॥

मूलम्

तरङ्गिणी शैवलिनी तटिनी ह्रादिनी धुनी ॥1.10.30.1॥

शब्दाः

नदी. (5) - तरङ्गिणी (स्त्री), शैवलिनी (स्त्री), तटिनी (स्त्री), ह्रादिनी (स्त्री), धुनी (स्त्री) ॥1.10.30.1॥

मूलम्

स्रोतस्वती द्वीपवती स्रवन्ती निम्नगापगा ॥1.10.30.2॥

शब्दाः

नदी. (5) - स्रोतस्विनी (स्त्री), द्वीपवती (स्त्री), स्रवन्ती (स्त्री), निम्नगा (स्त्री), आपगा (स्त्री) ॥1.10.30.2॥

मूलम्

कूलङ्कषा निर्झरिणी रोधोवक्रा सरस्वती ॥1.10.30.3॥

शब्दाः

नदी. (4) - कूलङ्कषा (स्त्री), निर्झरिणी (स्त्री), रोधोवक्रा (स्त्री), सरस्वती (स्त्री) ॥1.10.30.3॥

मूलम्

गङ्गा विष्णुपदी जह्नुतनया सुरनिम्नगा ॥1.10.31.1॥

शब्दाः

गङ्गा. (4) - गङ्गा (स्त्री), विष्णुपदी (स्त्री), जह्नुतनया (स्त्री), सुरनिम्नगा (स्त्री) ॥1.10.31.1॥

मूलम्

भागीरथी त्रिपथगा त्रिस्रोता भीष्मसूरपि ॥1.10.31.2॥

शब्दाः

गङ्गा. (4) - भागीरथी (स्त्री), त्रिपथगा (स्त्री), त्रिस्रोतस् (स्त्री), भीष्मसू (स्त्री) ॥1.10.31.2॥

मूलम्

कालिन्दी सूर्यतनया यमुना शमनस्वसा ॥1.10.32.1॥

शब्दाः

यमुना. (4) - कालिन्दी (स्त्री), सूर्यतनया (स्त्री), यमुना (स्त्री), शमनस्वसृ (स्त्री) ॥1.10.32.1॥

मूलम्

रेवा तु नर्मदा सोमोद्भवा मेकलकन्यका ॥1.10.32.2॥

शब्दाः

नर्मदा. (4) - रेवा (स्त्री), नर्मदा (स्त्री), सोमोद्भवा (स्त्री), मेखलकन्यका (स्त्री) ॥1.10.32.2॥

मूलम्

करतोया सदानीरा बाहुदा सैतवाहिनी ॥1.10.33.1॥

शब्दाः

गौरीविवाहे कन्यादानोदकाज्जातनदी. (2) - करतोया (स्त्री), सदानीरा (स्त्री)
कार्तवीर्यावतारित नदी. (2) - बाहुदा (स्त्री), सैतवाहिनी (स्त्री) ॥1.10.33.1॥

मूलम्

शतद्रुस्तु शुतुद्रिः स्याद्विपाशा तु विपाट्स्त्रियाम् ॥1.10.33.2॥

शब्दाः

शतद्रुः. (2) - शतद्रु (स्त्री), शुतुद्रि (स्त्री)
पापमोचिनी. (2) - विपाशा (स्त्री), विपाश् (स्त्री) ॥1.10.33.2॥

मूलम्

शोणो हिरण्यवाहः स्यात्कुल्याल्पा कृत्रिमा सरित् ॥1.10.34.1॥

शब्दाः

नदविशेषः. (2) - शोण (पुं), हिरण्यवाह (पुं)
कृत्रिमस्वल्पनदी. (1) - कुल्या (स्त्री) ॥1.10.34.1॥

मूलम्

शरावती वेत्रवती चन्द्रभागा सरस्वती ॥1.10.34.2॥

शब्दाः

शरावती नदी. (1) - शरावती (स्त्री)
वेत्रवती नदी. (1) - वेत्रवती (स्त्री)
चन्द्रभागा नदी. (1) - चन्द्रभागा (स्त्री)
सरस्वती नदी. (1) - सरस्वती (स्त्री) ॥1.10.34.2॥

मूलम्

कावेरी सरितोऽन्याश्च सम्भेदः सिन्धुसङ्गमः ॥1.10.35.1॥

शब्दाः

कावेरी नदी. (1) - कावेरी (स्त्री)
नदीसङ्गमः. (2) - सम्भेद (पुं), सिन्धुसङ्गम (पुं) ॥1.10.35.1॥

मूलम्

द्वयोः प्रणाली पयसः पदव्यां त्रिषु तूत्तरौ ॥1.10.35.2॥

शब्दाः

कृत्रिमजलनिःसरणमार्गः. (1) - प्रणाली (स्त्री-पुं) ॥1.10.35.2॥

मूलम्

देविकायां सरय्वां च भवे दाविकसारवौ ॥1.10.36.1॥

शब्दाः

देविका नद्यां भवः. (1) - दाविक (वि)
सरयू नद्यां भवः. (1) - सारव (वि) ॥1.10.36.1॥

मूलम्

सौगन्धिकं तु कल्हारं हल्लकं रक्तसंध्यकम् ॥1.10.36.2॥

शब्दाः

शुक्लकल्हारम्. (2) - सौगन्धिक (नपुं), कल्हार (नपुं)
रक्तकल्हारम्. (2) - हल्लक (नपुं), रक्तसन्ध्यक (नपुं) ॥1.10.36.2॥

मूलम्

स्यादुत्पलं कुवलयमथ नीलाम्बुजन्म च ॥1.10.37.1॥

शब्दाः

कुवलयम्. (2) - उत्पल (नपुं), कुवलय (नपुं)
नीलोत्पलम्. (1) - नीलाम्बुजन्मन् (नपुं) ॥1.10.37.1॥

मूलम्

इन्दीवरं च नीलेऽस्मिन्सिते कुमुदकैरवे ॥1.10.37.2॥

शब्दाः

नीलोत्पलम्. (1) - इन्दीवर (नपुं)
शुक्लोत्पलम्. (2) - कुमुद (पुं-नपुं), कैरव (नपुं) ॥1.10.37.2॥

मूलम्

शालूकमेषां कन्दः स्याद्वारिपर्णी तु कुम्भिका ॥1.10.38.1॥

शब्दाः

उत्पलकन्दः. (1) - शालूक (नपुं)
जलकुम्भिका. (2) - वारिपर्णी (स्त्री), कुम्भिका (स्त्री) ॥1.10.38.1॥

मूलम्

जलनीली तु शेवालं शैवलोऽथ कुमुद्वती ॥1.10.38.2॥

शब्दाः

शेवालः. (3) - जलनीली (स्त्री), शैवाल (नपुं), शैवल (पुं)
कुमुदयुक्तदेशः. (1) - कुमुद्वती (स्त्री) ॥1.10.38.2॥

मूलम्

कुमुदिन्यां नलिन्यां तु बिसिनीपद्मिनीमुखाः ॥1.10.39.1॥

शब्दाः

कुमुदयुक्तदेशः. (1) - कुमुदिनी (स्त्री)
पद्मसङ्घातः. (3) - नलिनी (स्त्री), बिसिनी (स्त्री), पद्मिनीमुखा (स्त्री) ॥1.10.39.1॥

मूलम्

वा पुंसि पद्मं नलिनमरविन्दं महोत्पलम् ॥1.10.39.2॥

शब्दाः

पद्मम्. (4) - पद्म (पुं-नपुं), नलिन (नपुं), अरविन्द (नपुं), महोत्पल (नपुं) ॥1.10.39.2॥

मूलम्

सहस्रपत्रं कमलं शतपत्रं कुशेशयम् ॥1.10.40.1॥

शब्दाः

पद्मम्. (4) - सहस्रपत्र (नपुं), कमल (नपुं), शतपत्र (नपुं), कुशेशय (नपुं) ॥1.10.40.1॥

मूलम्

पङ्केरुहं तामरसं सारसं सरसीरुहम् ॥1.10.40.2॥

शब्दाः

पद्मम्. (4) - पङ्केरुह (नपुं), तामरस (नपुं), सारस (नपुं), सरसीरुह (नपुं) ॥1.10.40.2॥

मूलम्

बिसप्रसूनराजीवपुष्कराम्भोरुहाणि च ॥1.10.41.1॥

शब्दाः

पद्मम्. (4) - बिसप्रसून (नपुं), राजीव (नपुं), पुष्कर (नपुं), अम्भोरुह (नपुं) ॥1.10.41.1॥

मूलम्

पुण्डरीकं सिताम्भोजमथ रक्तसरोरुहे ॥1.10.41.2॥

शब्दाः

शुभ्रकमलम्. (2) - पुण्डरीक (नपुं), सिताम्भोज (नपुं)
रक्तकमलम्. (1) - रक्तसरोरुह (नपुं) ॥1.10.41.2॥

मूलम्

रक्तोत्पलं कोकनदं नाला नालमथास्त्रियाम् ॥1.10.42.1॥

शब्दाः

रक्तकमलम्. (2) - रक्तोत्पल (नपुं), कोकनद (नपुं)
उत्पलादिदण्डः. (2) - नाल (पुं-नपुं), नाल (पुं-नपुं) ॥1.10.42.1॥

मूलम्

मृणालं बिसमब्जादिकदम्बे षण्डमस्त्रियाम् ॥1.10.42.2॥

शब्दाः

अब्जादीनाम् मूलम्. (2) - मृणाल (पुं-नपुं), बिस (नपुं)
अब्जादीनाम् समूहः. (1) - षण्ड (पुं-नपुं) ॥1.10.42.2॥

मूलम्

करहाटः शिफाकन्दः किञ्जल्कः केसरोऽस्त्रियाम् ॥1.10.43.1॥

शब्दाः

पद्मकन्दः. (2) - करहाट (पुं), शिफाकन्द (पुं-नपुं)
पद्मकेसरः. (2) - किञ्जल्क (पुं), केसर (पुं-नपुं) ॥1.10.43.1॥

मूलम्

संवर्तिका नवदलं बीजकोशो वराटकः ॥1.10.43.2॥

शब्दाः

पद्मादीनम् नवपत्रः. (2) - संवर्तिका (स्त्री), नवदल (नपुं)
पद्मबीजः. (2) - बीजकोश (पुं), वराटक (पुं) ॥1.10.43.2॥