मूलम्
अधोभुनपातालं बलिसद्म रसातलम् ॥1.8.1.1॥
शब्दाः
पातालम्. (4) - अधोभुवन (नपुं), पाताल (नपुं), बलिसद्मन् (नपुं), रसातल (नपुं) ॥1.8.1.1॥
मूलम्
नागलोकोऽथ कुहरं शुषिरं विवरं बिलम् ॥1.8.1.2॥
शब्दाः
पातालम्. (1) - नागलोक (पुं)
बिलम्. (4) - कुहर (नपुं), सुषिर (नपुं), विवर (नपुं), बिल (नपुं) ॥1.8.1.2॥
मूलम्
छिद्रं निर्व्यथनं रोकं रन्ध्रं श्वभ्रं वपा शुषिः ॥1.8.2.1॥
शब्दाः
बिलम्. (7) - छिद्र (नपुं), निर्व्यथन (नपुं), रोक (नपुं), रन्ध्र (नपुं), श्वभ्र (नपुं), वपा (स्त्री), शुषि (स्त्री) ॥1.8.2.1॥
मूलम्
गर्तावटौ भुवि श्वभ्रे सरन्ध्रे सुषिरं त्रिषु ॥1.8.2.2॥
शब्दाः
भूमौ वर्तमानं रन्ध्रम्. (2) - गर्त (स्त्री-पुं), अवट (पुं)
भूरन्ध्रम्. (1) - सुषिर (वि) ॥1.8.2.2॥
मूलम्
अन्धकारोऽस्त्रियां ध्वान्तं तमिस्रं तिमिरं तमः ॥1.8.3.1॥
शब्दाः
अन्धकारः. (5) - अन्धकार (पुं-नपुं), ध्वान्त (नपुं), तमिस्र (नपुं), तिमिर (नपुं), तमस् (नपुं) ॥1.8.3.1॥
मूलम्
ध्वान्ते गाढेऽन्धतमसं क्षीणोऽन्धतमसं तमः ॥1.8.3.2॥
शब्दाः
घनान्धकारः. (1) - अन्धतमस (नपुं)
क्षीणतमस्. (1) - अवतमस (नपुं) ॥1.8.3.2॥
मूलम्
विष्वक्संतमसं नागाः काद्रवेयास्तदीश्वराः ॥1.8.4.1॥
शब्दाः
व्यापकतमस्. (1) - सन्तमस (नपुं)
नागाः. (2) - नाग (पुं), काद्रवेय (पुं) ॥1.8.4.1॥
मूलम्
शेषोऽनन्तो वासुकिस्तु सर्पराजोऽथ गोनसे ॥1.8.4.2॥
शब्दाः
नागानाम् स्वामिः. (2) - शेष (पुं), अनन्त (पुं)
नागराजः. (2) - वासुकि (पुं), सर्पराज (पुं)
सर्पविशेषः. (1) - गोनस (पुं) ॥1.8.4.2॥
मूलम्
तिलित्सः स्यादजगरे शयुर्वाहस इत्युभौ ॥1.8.5.1॥
शब्दाः
सर्पविशेषः. (1) - तिलित्स (पुं)
अजगरसर्पविशेषः. (3) - अजगर (पुं), शयु (पुं), वाहस (पुं) ॥1.8.5.1॥
मूलम्
अलगर्दो जलव्यालः समौ राजिलडुण्डुभौ ॥1.8.5.2॥
शब्दाः
जलव्यालसर्पविशेषः. (2) - अलगर्द (पुं), जलव्याल (पुं)
निर्विषः द्विमुखसर्पः. (2) - राजिल (पुं), डुण्डुभ (पुं) ॥1.8.5.2॥
मूलम्
मालुधानो मातुलाहिर्निर्मुक्तो मुक्तकञ्चुकः ॥1.8.6.1॥
शब्दाः
चित्रसर्पः. (2) - मालुधान (पुं), मातुलाहि (पुं)
मुक्तत्वचः सर्पः. (2) - निर्मुक्त (पुं), मुक्तकञ्चुक (पुं) ॥1.8.6.1॥
मूलम्
सर्पः पृदाकुर्भुजगो भुजङ्गोऽहिर्भुजङ्गमः ॥1.8.6.2॥
शब्दाः
सर्पः. (6) - सर्प (पुं), पृदाकु (पुं), भुजग (पुं), भुजङ्ग (पुं), अहि (पुं), भुजङ्गम (पुं) ॥1.8.6.2॥
मूलम्
आशीविषो विषधरश्चक्री व्यालः सरीसृपः ॥1.8.7.1॥
शब्दाः
सर्पः. (5) - आशीविष (पुं), विषधर (पुं), चक्रिन् (पुं), व्याल (पुं), सरीसृप (पुं) ॥1.8.7.1॥
मूलम्
कुण्डली गूढपाच्चक्षुःश्रवाः काकोदरः फणी ॥1.8.7.2॥
शब्दाः
सर्पः. (5) - कुण्डलिन् (पुं), गूढपाद् (पुं), चक्षुःश्रवस् (पुं), काकोदर (पुं), फणिन् (पुं) ॥1.8.7.2॥
मूलम्
दर्वीकरो दीर्घपृष्ठो दन्दशूको बिलेशयः ॥1.8.8.1॥
शब्दाः
सर्पः. (4) - दर्वीकर (पुं), दीर्घपृष्ठ (पुं), दन्दशूक (पुं), बिलेशय (पुं) ॥1.8.8.1॥
मूलम्
उरगः पन्नगो भोगी जिह्मगः पवनाशनः ॥1.8.8.2॥
शब्दाः
सर्पः. (5) - उरग (पुं), पन्नग (पुं), भोगी (पुं), जिह्मग (पुं), पवनाशन (पुं) ॥1.8.8.2॥
मूलम्
लेलिहानो द्विरसनो गोकर्णः कञ्चुकी तथा ॥1.8.8.3॥
शब्दाः
सर्पः. (4) - लेलिहान (पुं), द्विरसन (पुं), गोकर्ण (पुं), कञ्चुकिन् (पुं) ॥1.8.8.3॥
मूलम्
कुम्भीनसः फणधरो हरिर्भोगधरस्तथा ॥1.8.8.4॥
शब्दाः
सर्पः. (4) - कुम्भीनस (पुं), फणधर (पुं), हरि (पुं), भोगधर (पुं) ॥1.8.8.4॥
मूलम्
अहेः शरीरं भोगः स्यादाशीरप्यहिदंष्ट्रिका ॥1.8.9.1॥
शब्दाः
सर्पशरीरम्. (1) - भोग (पुं)
विषपूर्णाहिदंष्ट्रा. (1) - आशिस् (स्त्री) ॥1.8.9.1॥
मूलम्
त्रिष्वाहेयं विषास्थ्यादि स्फटायां तु फणा द्वयोः ॥1.8.9.2॥
शब्दाः
सर्पविष-अस्थ्यादिः. (1) - आहेय (वि)
फणः. (2) - स्फटा (स्त्री-पुं), फणा (स्त्री-पुं) ॥1.8.9.2॥
मूलम्
समौ कञ्चुकनिर्मोकौ क्ष्वेडस्तु गरलं विषम् ॥1.8.9.3॥
शब्दाः
सर्पत्वक्. (2) - कञ्चुक (पुं), निर्मोक (पुं)
विषम्. (3) - क्ष्वेड (पुं), गरल (नपुं), विष (पुं-नपुं) ॥1.8.9.3॥
मूलम्
पुंसि क्लीबे च काकोलकालकूटहलाहलाः ॥1.8.10.1॥
शब्दाः
स्थावरविषभेदाः. (3) - काकोल (पुं-नपुं), कालकूट (पुं-नपुं), हलाहल (पुं-नपुं) ॥1.8.10.1॥
मूलम्
सौराष्ट्रिकः शौक्लिकेयो ब्रह्मपुत्रः प्रदीपनः ॥1.8.10.2॥
शब्दाः
स्थावरविषभेदाः. (4) - सौराष्ट्रिक (पुं), शौक्लिकेय (पुं), ब्रह्मपुत्र (पुं), प्रदीपन (पुं) ॥1.8.10.2॥
मूलम्
दारदो वत्सनाभश्च विषभेदा अमी नव ॥1.8.11.1॥
शब्दाः
स्थावरविषभेदाः. (2) - दारद (पुं), वत्सनाभ (पुं) ॥1.8.11.1॥
मूलम्
विषवैद्यो जाङ्गुलिको व्यालग्राह्यहितुण्डिकः ॥1.8.11.2॥
शब्दाः
विषहारिवैद्यः. (2) - विषवैद्य (पुं), जाङ्गुलिक (पुं)
सर्पग्राहिः. (2) - व्यालग्राहिन् (पुं), अहितुण्डिक (पुं) ॥1.8.11.2॥