मूलम्
ब्राह्मी तु भारती भाषा गीर्वाग्वाणी सरस्वती ॥1.6.1.1॥
शब्दाः
सरस्वती. (10) - ब्राह्मी (स्त्री), +[गौ (स्त्री)], भारती (स्त्री), भाषा (स्त्री), गिर् (स्त्री), +[गिरा (स्त्री)], वाच् (स्त्री), वाणी (स्त्री), +[वाणि (स्त्री)], सरस्वती (स्त्री) ॥1.6.1.1॥
मूलम्
व्याहार उक्तिर्लपितं भाषितं वचनं वचः ॥1.6.1.2॥
शब्दाः
वचनम्. (6) - व्याहार (पुं), उक्ति (स्त्री), लपित (नपुं), भाषित (नपुं), वचन (नपुं), वचस् (नपुं) ॥1.6.1.2॥
मूलम्
अपभ्रंशोऽपशब्दः स्याच्छास्त्रे शब्दस्तु वाचकः ॥1.6.2.1॥
शब्दाः
अपशब्दः. (2) - अपभ्रंश (पुं), अपशब्द (पुं)
व्याकरणादिशास्त्रवाचकः. (1) - शब्द (पुं) ॥1.6.2.1॥
मूलम्
तिङ्सुबन्तचयो वाक्यं क्रिया वा कारकान्विता ॥1.6.2.2॥
शब्दाः
तिङ्सुबन्तचयः कारकान्विता क्रिया. (1) - वाक्य (नपुं) ॥1.6.2.2॥
मूलम्
श्रुतिः स्त्री वेद आम्नायस्त्रयी धर्मस्तु तद्विधिः ॥1.6.3.1॥
शब्दाः
वेदः. (4) - श्रुति (स्त्री), वेद (पुं), आम्नाय (पुं), त्रयी (स्त्री)
वेदविहितकर्माः. (2) - धर्म (पुं), +[त्रयीधर्म (पुं)] ॥1.6.3.1॥
मूलम्
स्त्रियामृक्सामयजुषी इति वेदास्त्रयस्त्रयी ॥1.6.3.2॥
शब्दाः
ऋग्वेदः. (1) - ऋच् (स्त्री)
सामवेदः. (1) - सामन् (नपुं)
यजुर्वेदः. (1) - यजुस् (नपुं)
ऋग्यजुस्साम-वेदाः. (1) - त्रयी (स्त्री) ॥1.6.3.2॥
मूलम्
शिक्षेत्यादि श्रुतेरङ्गमोङ्कार प्रणवौ समौ ॥1.6.4.1॥
शब्दाः
वेदाङ्गम्. (1) - शिक्षा (स्त्री)
ओंकारः. (2) - ओङ्कार (पुं), प्रणव (पुं) ॥1.6.4.1॥
मूलम्
इतिहासः पुरावृत्तमुदात्ताद्यास्त्रयः स्वराः ॥1.6.4.2॥
शब्दाः
पूर्वचरितप्रतिपादकग्रन्थः. (2) - इतिहास (पुं), पुरावृत्त (नपुं)
उदात्तस्वरः. (1) - उदात्त (पुं) ॥1.6.4.2॥
मूलम्
आन्वीक्षिकी दण्डनीतिस्तर्कविद्यार्थशास्त्रयोः ॥1.6.5.1॥
शब्दाः
तर्कशास्त्रम्. (2) - आन्वीक्षिकी (स्त्री), तर्कविद्या (स्त्री)
अर्थशास्त्रम्. (1) - दण्डनीति (स्त्री) ॥1.6.5.1॥
मूलम्
आख्यायिकोपलब्धार्था पुराणं पञ्चलक्षणम् ॥1.6.5.2॥
शब्दाः
सत्यार्थविषयिणी कथा. (1) - आख्यायिका (स्त्री) ॥1.6.5.2॥
मूलम्
प्रबन्धकल्पना कथा प्रवह्लिका प्रहेलिका ॥1.6.6.1॥
शब्दाः
वाक्यविस्तरकल्पना. (2) - प्रबन्धकल्पना (स्त्री), कथा (स्त्री)
दुर्विज्ञानार्थः प्रश्नः. (6) - प्रवह्लिका (स्त्री), +[प्रवल्हिका (स्त्री)], +[प्रवल्ही (स्त्री)], +[प्रश्नदूती (स्त्री)], +[विपादिका (स्त्री)], प्रहेलिका (स्त्री) ॥1.6.6.1॥
मूलम्
स्मृतिस्तु धर्मसंहिता समाहृतिस्तु संग्रहः ॥1.6.6.2॥
शब्दाः
धर्मशास्त्रम्. (2) - स्मृति (स्त्री), धर्मसंहिता (स्त्री)
सङ्ग्रहः. (2) - समाहृति (स्त्री), सङ्ग्रह (पुं) ॥1.6.6.2॥
मूलम्
समस्या तु समासार्था किंवदन्ती जनश्रुतिः ॥1.6.7.1॥
शब्दाः
समस्या. (2) - समस्या (स्त्री), समासार्था (स्त्री)
लोकप्रवादः. (2) - किंवदन्ती (स्त्री), जनश्रुति (स्त्री) ॥1.6.7.1॥
मूलम्
वार्ता प्रवृत्तिर्वृत्तान्त उदन्तः स्यादथाह्वयः ॥1.6.7.2॥
शब्दाः
वार्ता. (4) - वार्ता (स्त्री), प्रवृत्ति (स्त्री), वृत्तान्त (पुं), उदन्त (पुं)
नाम. (1) - आह्वय (पुं) ॥1.6.7.2॥
मूलम्
आख्याह्वे अभिधानं च नामधेयं च नाम च ॥1.6.8.1॥
शब्दाः
नाम. (6) - आख्या (स्त्री), आह्वा (स्त्री), अभिधान (नपुं), नामधेय (नपुं), नामन् (नपुं), +[संज्ञा (स्त्री)] ॥1.6.8.1॥
मूलम्
हूतिराकाणाह्वानं संहूतिर्बहुभिः कृता ॥1.6.8.2॥
शब्दाः
आह्वानम्. (3) - हूति (स्त्री), आकारणा (स्त्री), आह्वान (नपुं)
हुकर्तृकाह्वानम्. (1) - संहूति (स्त्री) ॥1.6.8.2॥
मूलम्
विवादो व्यवहारः स्यादुपन्यासस्तु वाङ्मुखम् ॥1.6.9.1॥
शब्दाः
ऋणादिन्यायः. (2) - विवाद (पुं), व्यवहार (पुं)
वचनोपक्रमः. (2) - उपन्यास (पुं), वाङ्मुख (नपुं) ॥1.6.9.1॥
मूलम्
उपोद्धात उदाहारः शपनं शपथः पुमान् ॥1.6.9.2॥
शब्दाः
वक्ष्यमाणौपयोग्यर्थवर्णनम्. (2) - उपोद्धात (पुं), उदाहार (पुं)
शपथः. (2) - शपन (नपुं), शपथ (पुं) ॥1.6.9.2॥
मूलम्
प्रश्नोऽनुयोगः पृच्छा च प्रतिवाक्योत्तरे समे ॥1.6.10.1॥
शब्दाः
प्रश्नः. (3) - प्रश्न (पुं), अनुयोग (पुं), पृच्छा (स्त्री)
उत्तरम्. (2) - प्रतिवाक्य (नपुं), उत्तर (नपुं) ॥1.6.10.1॥
मूलम्
मिथ्याभियोगोऽभ्याख्यानमथ मिथ्याभिशंसनम् ॥1.6.10.2॥
शब्दाः
मिथ्याविवादः. (2) - मिथ्याभियोग (पुं), अभ्याख्यान (नपुं)
सुरपानादि मिथ्या पापोद्भवनम्. (1) - मिथ्याभिशंसन (नपुं) ॥1.6.10.2॥
मूलम्
अभिशापः प्रणादस्तु शब्दः स्यादनुरागजः ॥1.6.11.1॥
शब्दाः
सुरपानादि मिथ्या पापोद्भवनम्. (2) - अभिशाप (पुं), +[शाप (पुं)]
प्रीतिविशेषजनितमुखकण्ठादिशब्दः. (1) - प्रणाद (पुं) ॥1.6.11.1॥
मूलम्
यशः कीर्तिः समज्ञा च स्तवः स्तोत्रं स्तुतिर्नुतिः ॥1.6.11.2॥
शब्दाः
कीर्तिः. (5) - यशस् (नपुं), कीर्ति (स्त्री), समज्ञा (स्त्री), +[समाज्ञा (स्त्री)], +[समज्या (स्त्री)]
स्तुतिः. (5) - स्तव (पुं), स्तोत्र (नपुं), स्तुति (स्त्री), नुति (स्त्री), +[प्रशंसा (स्त्री)] ॥1.6.11.2॥
मूलम्
आम्रेडितं द्विस्त्रिरुक्तमुच्चैर्घुष्टं तु घोषणा ॥1.6.12.1॥
शब्दाः
द्विरुक्तिः. (1) - आम्रेडित (नपुं)
उच्चैः शब्दनम्. (2) - उच्चैर्घुष्ट (नपुं), घोषणा (स्त्री) ॥1.6.12.1॥
मूलम्
काकुः स्त्रियां विकारो यः शोकभीत्यादिभिर्ध्वनेः ॥1.6.12.2॥
शब्दाः
शोकादिना विकृतध्वनिः. (1) - काकु (स्त्री) ॥1.6.12.2॥
मूलम्
अवर्णाक्षेपनिर्वादपरीवादापवादवत् ॥1.6.13.1॥
शब्दाः
जुगुप्सा. (7) - अवर्ण (पुं), आक्षेप (पुं), निर्वाद (पुं), परीवाद (पुं), +[परिवाद (पुं)], अपवाद (पुं), +[अववाद (पुं)] ॥1.6.13.1॥
मूलम्
उपक्रोशो जुगुप्सा च कुत्सा निन्दा च गर्हणे ॥1.6.13.2॥
शब्दाः
जुगुप्सा. (5) - उपक्रोश (पुं), जुगुप्सा (स्त्री), कुत्सा (स्त्री), निन्दा (स्त्री), गर्हण (नपुं) ॥1.6.13.2॥
मूलम्
पारुष्यमतिवादः स्याद्भर्त्सनं त्वपकारगीः ॥1.6.14.1॥
शब्दाः
अप्रियवचः. (2) - पारुष्य (नपुं), अतिवाद (पुं)
भयदर्शकवाक्यम्. (2) - भर्त्सन (नपुं), अपकारगिर् (स्त्री) ॥1.6.14.1॥
मूलम्
यः सनिन्द उपालम्भस्तत्र स्यात्परिभाषणम् ॥1.6.14.2॥
शब्दाः
सनिन्दाभाषणम्. (1) - परिभाषण (नपुं) ॥1.6.14.2॥
मूलम्
तत्र त्वाक्षारणा यः स्यादाक्रोशो मैथुनं प्रति ॥1.6.15.1॥
शब्दाः
परस्त्रीनिमित्तं पुंसः परपुरुषनिमित्तं स्त्रियाश्च आक्रोशनम्. (1) - आक्षारण (स्त्री-नपुं) ॥1.6.15.1॥
मूलम्
स्यादाभाषणमालापः प्रलापोऽनर्थकं वचः ॥1.6.15.2॥
शब्दाः
सम्भाषणम्. (2) - आभाषण (नपुं), आलाप (पुं)
प्रयोजनशून्योन्मत्तादिवचनम्. (1) - प्रलाप (पुं) ॥1.6.15.2॥
मूलम्
अनुलापो मुहुर्भाषा विलापः परिदेवनम् ॥1.6.16.1॥
शब्दाः
बहुभाषणम्. (2) - अनुलाप (पुं), मुहुर्भाषा (स्त्री)
अनुशोचनोक्तिः. (3) - विलाप (पुं), +[विलपन (नपुं)], परिदेवन (नपुं-स्त्री) ॥1.6.16.1॥
मूलम्
विप्रलापो विरोधोक्तिः संलापो भाषणं मिथः ॥1.6.16.2॥
शब्दाः
अन्योन्यविरुद्धवचनम्. (2) - विप्रलाप (पुं), विरोधोक्ति (स्त्री)
परस्परभाषणम्. (1) - संलाप (पुं) ॥1.6.16.2॥
मूलम्
सुप्रलापः सुवचनमपलापस्तु निह्नवः ॥1.6.17.1॥
शब्दाः
शोभनवचनम्. (2) - सुप्रलाप (पुं), सुवचन (नपुं)
गोपनकारिवचनम्. (2) - अपलाप (पुं), निह्नव (पुं) ॥1.6.17.1॥
मूलम्
चोद्यमाक्षेपाभियोगौ शापाक्रोशौ दुरेषणा ॥1.6.17.2॥
शब्दाः
अद्भुतप्रश्नः. (3) - चोद्य (नपुं), आक्षेप (पुं), अभियोग (पुं)
शापवचनम्. (3) - शाप (पुं), आक्रोश (पुं), दुरेषणा (स्त्री) ॥1.6.17.2॥
मूलम्
अस्त्री चाटु चटु श्लाघा प्रेम्णा मिथ्या विकत्थनम् ॥1.6.17.3॥
शब्दाः
प्रेम्णा मिथ्याभाषणम्. (3) - चाटु (पुं), चटु (पुं), श्लाघा (स्त्री) ॥1.6.17.3॥
मूलम्
सन्देशवाग्वाचिकं स्याद्वाग्भेदास्तु त्रिषूत्तरे ॥1.6.17.4॥
शब्दाः
सन्देशवचनम्. (2) - सन्देशवाच् (स्त्री), वाचिक (नपुं) ॥1.6.17.4॥
मूलम्
रुशती वागकल्याणी स्यात्कल्या तु शुभात्मिका ॥1.6.18.1॥
शब्दाः
अकल्याणवचनम्. (3) - रुशती (स्त्री), +[रुषती (स्त्री)], +[उषती (स्त्री)]
शुभवचनम्. (2) - कल्या (स्त्री), +[काल्या (स्त्री)] ॥1.6.18.1॥
मूलम्
अत्यर्थमधुरं सान्त्वं सङ्गतं हृदयङ्गमम् ॥1.6.18.2॥
शब्दाः
सान्त्वनवचनम्. (1) - अत्यर्थमधुर (पुं)
युक्त्यामिलितवचनम्. (2) - सङ्गत (नपुं), हृदयङ्गम (नपुं) ॥1.6.18.2॥
मूलम्
निष्ठुरं परुषं ग्राम्यमश्लीलं सूनृतं प्रिये ॥1.6.19.1॥
शब्दाः
कर्कशवचनम्. (2) - निष्ठुर (नपुं), परुष (नपुं)
अश्लीलवचनम्. (2) - ग्राम्य (नपुं), अश्लील (नपुं)
प्रियसत्यवचनम्. (1) - सूनृत (नपुं) ॥1.6.19.1॥
मूलम्
सत्येऽथ सङ्कुलक्लिष्टे परस्परपराहतम् ॥1.6.19.2॥
शब्दाः
विरुद्धार्थवचनम्. (3) - सङ्कुल (नपुं), क्लिष्ट (नपुं), परस्परपराहत (नपुं) ॥1.6.19.2॥
मूलम्
लुप्तवर्णपदं ग्रस्तं निरस्तं त्वरितोदितम् ॥1.6.20.1॥
शब्दाः
अशक्त्यादिना सम्पूर्णोच्चारितम्. (2) - लुप्तवर्णपद (नपुं), ग्रस्त (नपुं)
शीघ्रोच्चारितवचः. (2) - निरस्त (नपुं), त्वरितोदित (नपुं) ॥1.6.20.1॥
मूलम्
अम्बूकृतं सनिष्टीवमबद्धं स्यादनर्थकम् ॥1.6.20.2॥
शब्दाः
श्लेष्मनिर्गमसहितवचनम्. (1) - सनिष्ठीव (नपुं)
अन्योन्यविरुद्धवचनम्. (3) - अबद्ध (नपुं), +[अवध्य (नपुं)], अनर्थक (नपुं) ॥1.6.20.2॥
मूलम्
अनक्षरमवाच्यं स्यादाहतं तु मृषार्थकम् ॥1.6.21.1॥
शब्दाः
निन्दावचनम्. (2) - अनक्षर (नपुं), अवाच्य (नपुं)
मिथ्यावचनम्. (1) - आहत (नपुं) ॥1.6.21.1॥
मूलम्
सोल्लुण्ठनं तु सोत्प्रासं मणितं रतिकूजितम् ॥1.6.21.2॥
शब्दाः
सोपहासम्. (2) - सोल्लुण्ठन (नपुं), सोत्प्रास (पुं)
रतिसमयकूजितम्. (2) - मणित (नपुं), +[भणित (नपुं)] ॥1.6.21.2॥
मूलम्
श्राव्यं हृद्यं मनोहारि विस्पष्टं प्रकटोदितम् ॥1.6.21.3॥
शब्दाः
स्पष्टवचनम्. (5) - श्राव्य (नपुं), हृद्य (वि), मनोहारिन् (वि), विस्पष्ट (वि), प्रकटोदित (वि) ॥1.6.21.3॥
मूलम्
अथ म्लिष्टमविस्पष्टं वितथं त्वनृतं वचः ॥1.6.21.4॥
शब्दाः
अप्रकटवचनम्. (2) - म्लिष्ट (वि), अविस्पष्ट (वि)
असत्यवचनम्. (2) - वितथ (नपुं), अनृत (नपुं) ॥1.6.21.4॥
मूलम्
सत्यं तथ्यमृतं सम्यगमूनि त्रिषु तद्वति ॥1.6.22.1॥
शब्दाः
सत्यवचनम्. (4) - सत्य (वि), तथ्य (वि), ऋत (वि), सम्यञ्च् (वि) ॥1.6.22.1॥
मूलम्
शब्दे निनादनिनदध्वनिध्वानरवस्वनाः ॥1.6.22.2॥
शब्दाः
शब्दः. (7) - शब्द (पुं), निनाद (पुं), निनद (पुं), ध्वनि (पुं), ध्वान (पुं), रव (पुं), स्वन (पुं) ॥1.6.22.2॥
मूलम्
स्वाननिर्घोषनिर्ह्रादनादनिस्वाननिस्वनाः ॥1.6.23.1॥
शब्दाः
शब्दः. (6) - स्वान (पुं), निर्घोष (पुं), निर्ह्राद (पुं), नाद (पुं), निस्वान (पुं), निस्वन (पुं) ॥1.6.23.1॥
मूलम्
आरवारावसंरावविरावा अथ मर्मरः ॥1.6.23.2॥
शब्दाः
शब्दः. (4) - आरव (पुं), आराव (पुं), संराव (पुं), विराव (पुं)
वस्त्रपर्णध्वनिः. (1) - मर्मर (पुं) ॥1.6.23.2॥
मूलम्
स्वनिते वस्त्रपर्णानां भूषणानां तु शिञ्जितम् ॥1.6.24.1॥
शब्दाः
भूषणध्वनिः. (2) - शिञ्जित (नपुं), +[शिञ्जा (स्त्री)] ॥1.6.24.1॥
मूलम्
निक्वाणो निक्वणः क्वाणः क्वणः क्वणनमित्यपि ॥1.6.24.2॥
शब्दाः
भूषणध्वनिः. (5) - निक्वाण (पुं), निक्वण (पुं), क्वाण (पुं), क्वण (पुं), क्वणन (नपुं) ॥1.6.24.2॥
मूलम्
वीणायाः क्वणिते प्रादेः प्रक्वाणप्रक्वणादयः ॥1.6.25.1॥
शब्दाः
वीणादिध्वनिः. (3) - प्रादि (पुं), प्रक्वाण (पुं), प्रक्वण (पुं) ॥1.6.25.1॥
मूलम्
कोलाहलः कलकलस्तिरश्चां वाशितं रुतम् ॥1.6.25.2॥
शब्दाः
बहुभिः कृतः महाध्वनिः. (2) - कोलाहल (पुं), कलकल (पुं)
पक्षिशब्दः. (2) - वाशित (नपुं), +[वासित (नपुं)] ॥1.6.25.2॥
मूलम्
स्त्री प्रतिश्रुत्प्रतिध्वाने गीतं गानमिमे समे ॥1.6.25.3॥
शब्दाः
प्रतिध्वनिः. (3) - प्रतिश्रुत् (स्त्री), प्रतिध्वान (पुं), +[प्रतिध्वनि (पुं)]
गानम्. (2) - गीत (नपुं), गान (नपुं) ॥1.6.25.3॥