[[स्वयं-संस्कृतम् Source: EB]]
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स्वयं संस्कृतं की आवश्यकता
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आज स्कूलों और कालेजों में संस्कृतभाषा पढायी जाती है। परन्तु वहां संस्कृत पढने के इच्छुक छात्र भी संस्कृतभाषा में प्रविष्ट नहीं हो पाते हैं। कारण कि उनको संस्कृत की वर्णमाला भी नहीं सिखाई जाती है। व्याकरण के नाम से तो वहां के अध्यापक भी भयभीत हैं। इस भय को दूर करने के लिए ही हमने ‘स्वयं संस्कृतम्’ की रचना की है। व्याकरण में प्रवेश के लिए संस्कृतवर्णमाला का अपना रूप १४ माहेश्वरसूत्रों के रूप में दिया गया है। सम्पूर्ण पाणिनीयव्याकरण जिसमें ३९५५ सूत्र हैं। वे इन माहेश्वरसूत्रों से अनुस्यूत हैं। संस्कृत पढने वाले छात्रों को व्याकरण का परिचय परमावश्यक है, क्योंकि संस्कृत के छोटे छोटे वाक्यों में भी सन्धि हो जाने का नियम है, सन्धि से वाक्यावली के सौन्दय में वृद्धि होती है।
संस्कृत में ‘अहम् अस्मि’ यह छोटा सा वाक्य भी ‘अहमस्मि’, अथवा ‘अस्म्यहम्’, इस प्रकार सन्धियुक्त लिखा जाता है। व्याकरण के नियमों को बिना जाने सन्धिज्ञान सम्भव नहीं, सन्धिज्ञान ही इस भाषा का प्रवेशद्वार है।
संस्कृत की वर्णमाला को जानने से व्याकरण में प्रवेश होने लगता है। संस्कृतशब्दों के ७ विभक्तियों और १० लकारों में रूप होते हैं। वे रूप रटने से याद नहीं रहते, उनका व्याकरण समझ लेना परमावश्यक है। संस्कृतवर्णमाला के ज्ञान से प्रत्याहार पद्धति समझ में आ जाती है जिससे सुप् और तिङ् का ज्ञान भी हो जाता है। स्वयं संस्कृतम्, में संस्कृतवर्णमाला का दिग्दर्शन है। सभी पाठों में व्याकरण अनुस्यूत है। विना व्याकरण ज्ञान के संस्कृत जानना संभव नहीं है। एतदर्थ ‘स्वयं संस्कृतम्’ संस्कृत पढने वाले छात्रों के लिए परम उपयोगी है।
स्वयं संस्कृतं की विषेशता
________________________
स्वयं संस्कृतम्, की सरलता छात्र को स्वयं संस्कृत पढने की प्रेरणा देती है। वह प्रथम पाठ को समझ लेता है और आगे को बढता है। सहायता के लिए उसे हिन्दी माध्यम भी मिल जाता है। यद्यपि प्रथम पाठ से ही व्याकरण अनुस्यूत है पुनरपि छात्र उसे सरलता से स्वयं समझ लेता है।
पहिले पाठ में कर्ता और क्रिया दोनों का एकवचन दिया है। शब्दकोष से पाठ में प्रयुक्त शब्दों का अर्थ समझने में छात्र को सहायता मिलती है। दूसरे पाठ में शब्दों का द्विवचन दिया गया है। तीसरे पाठ में बहुवचन है। वाक्यों के अर्थ को सरलता से समझकर छात्र को और आगे बढने का उत्साह प्राप्त होता है।
इस पुस्तक में संभाषा पद्धति को स्थान दिया गया है। पाठ में जो वाक्य छात्र ने पढे हैं उन्हीं को प्रश्नार्थ बनाकर उत्तर देने के लिए विद्यार्थी को प्रेरणा दी गई है। पाठ में पढे हुए शब्दों स रचना करने का भी निर्देश है। छात्र उत्साह से सरलता पूर्वक रचना कर सकता है क्यों कि सरलता का माधुर्य उसकी रुचि को बढा देता है। शब्दरूपों और क्रियारूपों को छात्र कौतुक से पुनः पढ जाता है क्यों कि वे संक्षिप्त हैं। पाठ के अन्त में एक सुभाषित वाचन के लिए दिया गया है। इसलिए कि छात्र को वाचन की प्रवृत्ति से अर्थ समझने में सरलता प्राप्त होती है।
पुस्तक में प्रथमा आदि विभक्तियां और कर्त्ता आदि कारक पाठों में क्रमशः अनुस्यूत हैं। भूत भविष्यत् वर्तमान काल भी दिये हैं। ध्यान पूर्वक पढने से व्याकरण का ज्ञान बढता जाता है जो कि वाक्यार्थ को समझने में सहायक हो जाता है। साहित्य का ज्ञान और व्याकरण की सरलता इस पुस्तक की विशेषतायें हैं।
सम्पादकीयम्
——♦——
सर्वशक्तिमान् परमेश्वर ने इस जगत् की रचना की। अनेक प्रकार के जीव जन्तुओं को उत्पन्न किया पुनः सबसे श्रेष्ठ प्राणी मनुष्य का निर्माण किया। मनुष्य लोक में ज्ञान की आवश्यकता हुई। विधाता ने वेद के रूप में ज्ञान की रचना की। वेदों का प्रचार किया, ज्ञान बढा। जीवों में गति उत्पन्न हुई। वे प्रगति करने लगे। चारों ही वेद संस्कृतभाषा में लिखे गये थे। संस्कृत का पूर्णप्रचार हुआ। भारतीय ऋषि मुनियों और विद्वानों नें सभी ज्ञानशाखाओं का पूर्ण अध्ययन अध्यापन किया और अनेक शास्त्रों का निर्माण किया बल्मीकि ने रामायण लिखा। सम्पूर्ण स्वाध्याय संस्कृत के माध्यम से होता था। और लोकभाषा तथा राजभाषा के स्थान को भी संस्कृतभाषा ही विभूषित करती थी। कवियों ने काव्य, देवज्ञों ने ज्योतिर्विज्ञान, वैद्यों ने आयुर्विज्ञान, विधिज्ञों ने विधिशास्त्र, और धर्मवेत्ताओं ने धर्मशास्त्र भी संस्कृत में ही लिखे। वेदव्यास ने वेदों का विस्तार किया। महाभारत और पुराणों की रचना की। वेदान्त शास्त्र का सूत्रपात किया।
समय ने कई बार करवट बदले पुनरपि संस्कृत और संस्कृति दोनों ही ने देश की रक्षा की। आज भी संस्कृत सभी भाषाओं की जननी तथा जीवनी है। भारतीय संस्कृति विश्व में एक परमोदार संस्कृति है। अतः इसका सर्वत्र आदर है। आज अपना देश स्वतन्त्र है। संस्कृत को अग्रसर करने का समय है।
हम लोग संस्कृति की रक्षा के लिए, भारतीयज्ञानविज्ञान कलाकौशल की पुनः प्रतीक्षा में पठन-पाठन-लेखन-व्याख्यान और प्रकाशनों द्वारा ‘बालसंस्कृतम्’, के माध्यम से संस्कृत का प्रचार
कर रहे हैं। हम पाणिनीयव्याकरण पहिले पढाते हैं। कारण कि बिना व्याकरण के संस्कृत का ज्ञान संभव नहीं है। पाणिनीयकृत अष्टाध्यायी के ३९५५ सूत्रों में से हम १००० ही पढाते हैं। हमारे छात्र ६ मास में ही वाराणसेय प्रथम परीक्षा उत्तीर्ण कर लेते है। आज लोगों को पूरा व्याकरण पढने के लिए समय नहीं है, अतः सरलसंक्षेप और संभाषण पद्धति को ‘स्वयं संस्कृतम्’, में स्थान दिया गया है।
स्वयं संस्कृतम् पढने वालों के लिए हम हिन्दी माध्यम से ‘स्वयं संस्कृतम्’, इस पुस्तक का प्रकाशन कर रहे हैं। इस पुस्तक में व्याकरण के सभी प्रकरणों को अनुस्यूत रक्खा गया है। संस्कृतव्याकरण एक अद्भुत भाषाविज्ञान है।
देश की स्वतन्त्रता मे पहिले वाराणसी, प्रयाग, पूना, पटना, इन्दौर, लाहौर, काश्मीर, प्रयाग और मिथिलाप्रदेश ये संस्कृत शिक्षा के केन्द्र थे। यहां अगणित पाठशालायें थी, और अभी भी बहुत हैं। बहुत से विद्वान् अपने घर पर भी छात्रों को निःशुल्क पढाते थे। छात्रों का अध्ययन सर्वत्र संस्कृतव्याकरण से ही आरम्भ होता था। उन दिनों पाठशालाओं में छात्रों की भीड और अध्यापकों की कमी के कारण प्रारम्भिक छात्रों को अध्यापक लोग पाठ रटके सुनाने को दिया करते थे। बिना अर्थ समझे रटना छात्रों को व्यर्थ लगने लगा। इसी घोषणपद्धति से पाठशालाओं की पाठन शैली में दोष प्रविष्ट हुए। गुरुकुलों की कमी थी। संस्कृतपाठशालायें ग्रामों से नगरों तक फैली हुई थीं। सभी पाठशालायें गुरुकुल और विद्यालय देश के धनाढ्य व्यापारी शेठ लोगों के व्यय से चलतीं थी। छात्रों को भोजन वस्त्र पुस्तक आदि का व्यय पाठशालायें ही देतीं थीं। छात्र अपना घर छोडकर छात्रालय में ही रहते थे। पृथक्
पृथक राज्यों के राजाओं के भी विद्यालय थे। जिनमें ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्यों और सभी लोगों के बालक पढते थे। व्याकरण की प्रथमा परीक्षा उत्तीर्ण होने पर उन्हें ज्ञान की अन्य शाखाओं के अध्ययन के लिए हिन्दूविश्वविद्यालय काशी अथवा अन्य महाविद्यालयों में प्रवेश मिलता था।
अंग्रेजों का शासन था। शासकीयशिक्षाविभाग भी चालू था। ग्रामो में मदर्से थे जिनमें हिन्दी उर्दू पढाई जाती थीं। नगरों में स्कूल थे जिनके पाठ्यक्रम में हिन्दी अंग्रेजी संस्कृत गणित इतिहास आदि पाठ्य विषय रहते थे।
अंग्रेजों के शासन की समृद्ध आगे बढी। उन्हें क्लकों की आवश्यकता हुई। थोडी अंग्रेजी जानने वालों को भी अच्छा वेतन दिया जाने लगा। वेतनार्थी लोग शासकीय नौकरी के लिए अंग्रेजी पढने लगे। अंग्रेजी का प्रचार बढा। पाठ्यक्रम में संस्कृत सव्याकरण पढाई जाती थी। अतः शिक्षित भारतीयों को संस्कृत और संस्कृति का संपर्क रहता था। विद्यासागर, तिलक, मालवी, गोखले; भाण्डारकर, काले, राजेन्द्रप्रसाद, अनन्तशयनम्, राधाकृष्णन, लालबहादुरशास्त्री, आदि विद्वान स्कूल में ही संस्कृत प्रारम्भ किये थे।
स्वतन्त्रभारत के शिक्षाविभाग में ५-५ वर्षो के लिए नये नये शिक्षासचिव पहुँचे जो कि संस्कृत नहीं जानते थे। उन्हों ने संस्कृत को अंग्रेजी की तरह केवल शब्दार्थ बताकर छात्रों को पढाना आरम्भ किया। व्याकरण को छोड दिया। संस्कृत कठिन हो गई। गणित जैसे विषय संस्कृतज्ञान के अभाव में कठिन हो गये, छात्र उनसे घबडाने लगे।
कुछ वर्ष पहिले तो महाराष्ट्र राज्य ने संस्कृत और गणित दोनों ही विषयों को पाठ्यक्रम से निकाल दिया था। फिर शीघ्र
ही उन्हें पाठ्यक्रम में लाना पडा। आज भी पाठ्य में परिवर्तन शिक्षाधिकारियों के सामने वर्तमान समस्या है।
विज्ञान की महिमा से आजका विश्व एकनीड हो चुका है। गतानुगतिक बन जाओ। फिर भी स्वयं को न भूलो। विदेशी भाषाओं का ज्ञान अच्छा गुण है, परन्तु वैदेशिक संस्कृति का अनुकरण हानि है। पुराने समय में भी भारत के पोत दूरदेशों तक व्यापार करते थे सोचो उनके व्यवहार की भाषा क्या होगी। लङ्कापति रावण विज्ञान का विद्वान था। वह वायुयान से ही अपने मित्र कुबेर को मिलने जाता था। श्रीरामचन्द्रजी लङ्का से अयोध्या विमान द्वारा ही गये थे। प्राचीन भारत के ऋषि मुनि सभी वैज्ञानिक शाखाओं के ज्ञाता थे। महाभारत के युद्ध में भी वैज्ञानिक शस्त्रास्त्रों का वर्णन है। आज भारतीय आयुर्वेदविज्ञान और ज्योतिष विज्ञान विश्व में पूजित हैं। प्रत्यक्षं ज्योतिषं शाखं चन्द्रार्कौ यत्र साक्षिणौ।
संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है। आज भी निरन्तर इसका प्रचार है। प्राचीन ज्ञान विज्ञान कला कौशल यन्त्र तन्त्र सभी विषयों के ग्रन्थ संस्कृत में लिखे हुए रक्खे हैं। उन्हें पढने के लिए और आविष्कारों के नवीनीकरण के लिए हमें संस्कृत के ज्ञान की आवश्ययता है।
संस्कृतभाषा सभी भाषाओं की जननी जननी और संबर्धिनी है। इसका प्रवेशद्वार व्याकरण है। यह बहुत सरल है। व्याकरण की वर्णमाला वैज्ञानिक है। स्वयं संस्कृत में वर्णमाला को समझ लेने के लिए एक पृष्ठ दिया है।
भारतीय शिक्षाविभाग यदि प्रारम्भ से ही अपने देश के बालकों को संस्कृतवर्णमाला सिखादे तो सभी भाषा विज्ञेय सरल हो सकेगा। किमधिकं विद्वत्सु।
वैद्यः— रा. स्व. शास्त्री
विदुषां सम्मतयः
———०———
श्रेष्ठिश्रीगोकुलदातेजपालमहाविद्यालयः, बम्बई ३६
अभिनवपद्धत्या संस्कृतमध्यापयन्तः सर्वस्य संस्कृतजगतः सुपरिचिताः पण्डितेषु वैद्येषु कविषु च सम्प्राप्तसम्मानाः बालसंस्कृतस्य सम्पादकाः भवन्तो वैद्यश्रीरामस्वरूपशास्त्रिणः ‘स्वयंसंस्कृतम्’ नाम पुस्तकं सम्पादयन्तः सन्तीति प्रशंसमानाः स्मः।
विना व्याकरणं संस्कृतज्ञानमसंभवम्, शुष्कं व्याकरणं चापि प्रारम्भिकाणां छात्राणां कृते कठिनम्, इति कृत्वा वैद्यवर्य्यैः हिन्दीमाध्यमेन व्याकरणानुस्यूतम्, संभाषासम्बलितं च सरलया सरसया विषयसंक्षिप्तया च रीत्या ‘स्वयं संस्कृतम्’, कृतम्। पुस्तकमिदं पाठशालासु, स्कूलेषु वा संस्कृतमधीयानानां विद्यार्थिनां बहूपकरिव्यतीति मन्येऽहम्। प्रधानाध्यापकः– विहारीलालशर्म्मा
भारतीयविद्याभवनम्, मुम्बापुर्याम् ७
पठन-पाठन-लेखन-व्याख्यान-प्रकाशनमाध्यमैः संस्कृतप्रचारे सफलाः विदुषां सुपरिचिताः बालसंस्कृतस्य सम्पादकाः वैद्यरामस्वरूपशास्त्रिणोऽधुना स्वयमेव संस्कृतपिठिपषूनां सव्याकरणं संस्कृतसाहित्यमधीयानानां छात्राणां च हिताय हिन्दीमाध्यमम्, पाणिनीयव्याकरणानुस्यूतम्, संभाषासम्बलितं च ‘स्वयं संस्कृतम्’, नाम पुस्तकं प्रकाशयमानाः सन्तीति हर्षस्य विषयः संस्कृतमधीतीनाम्। सरलया सरसया विषयसंक्षिप्तया च पद्धतया लिखितं पुस्तकमिदं संस्कृतं पठतां सर्वेषामेवोपकाराय भविष्यतीमन्यते— प्रधानाध्यापकः– आचार्यः भाईशङ्करपुरोहितः भारतीयविद्याभवनम्, बम्बई ७
[TABLE]
संस्कृतवर्णमाला प्रत्याहारप्रकारश्च
स्वराः
अ इ उ ण् । ऋ ऌ क् । ए ओ ङ् । ऐ औ च्
व्यञ्जनानि
ह य व र ट् । ल ण् । ञ म ङ ण न म् । झ भ ञ् ।
घ ढ ध ष् । ज ब ग ड द श् । ख फ छ ठ थ च ट
त व् । क प य् । श ष स र् । ह ल्।
इमानि माहेश्वराणि १४ सूत्राणि अणादिसंज्ञार्थानि।
ये महादेव जी से प्राप्त १४ सूत्र अण् आदि संज्ञाओं के लिए हैं।
येषामन्त्या इतः। हकारादिषु अकारः उच्चारणार्थः।
इनके अन्त्यवर्ण इत्संज्ञक होते हैं। हकारादि वर्णों में अकार उच्चारणार्थ है।
हलन्त्यम् १।३।३ अन्त्यं हल् इत् संज्ञकः भवति।
अन्त्य हल् इत् संज्ञक होता है। इसका लोप होता है।
तस्य लोपः १।३।९ यस्येत्संज्ञा तस्य लोपः।
जिसकी इत् संज्ञा है उसका लोप होता है।
णादयोऽणाद्यथाः।
सूत्रों में ण् आदि वर्ण अण् आदि संज्ञाओं के लिए हैं।
आदिरन्त्येन सहेता १।१।७१ अन्ये इता सह आदिवर्णः मध्यगानां स्वस्य च संज्ञकः भवति।
अन्त्य इत् के साथ उच्चार्यमाण आदि वर्ण मध्यगामी वर्णों का और अपना भी संज्ञक होता है।
यथा— अण्, अ इ उ वर्णानां संज्ञा।
जैसे अण्, अ इ उ इन वर्णों का संज्ञक होता है।
एवम्— अच् अल् हल् आदि प्रत्याहार होते हैं।
इसी प्रकार अच् अल् हल् आदि प्रत्याहार होते हैं।
—०—
मामकीनं वाञ्छितम्
——♦——
संस्कृतभाषा हि जननी सर्वसां भाषाणां जीवनी, ज्ञाननिधीनां निगमागमानां माध्यमा चेति संस्कृतज्ञानवान् जनः वेदान् सर्वाणि शास्त्राणि च सम्यगध्येतुं शक्नोति। यो जानाति आदृणाति च ज्ञानं स आनन्दमनुभवति, अनुभावयति च लोकान्।
ज्ञानं विना गतिर्न भवति, इति सर्वोऽपि प्राणवान् ज्ञानार्जनाय प्रयते प्रथमम्। सन्ति लोकेऽसंख्याता विद्यालयाः पाठशालाः, गुरुकुलानि च तत्र छात्रा विविधं ज्ञानं लब्ध्वा सफलयन्ति जीवनम्, जीवयन्ति चान्यान्।
शिक्षिताः सफला अपि लोकाः भूयोऽपि संस्कृतज्ञानं वाञ्छन्ति। इदानीं हाईस्कूलेषु कालजेषु चाऽप्यधीयानाश्छात्राः, यतमाना अपि ते तत्र वाञ्छितं संस्कृतज्ञानं लब्धुं न शक्नुवन्ति। संस्कृतभाषायास्तु ज्ञानशाखासु पदे पदे वर्तते प्रयोजनम्। सर्वोऽपि शिक्षितो जनः स्वधर्मग्रन्थान् गीताम्, अन्यच्चापि संस्कृतसाहित्यं पठितुं वाञ्छति, प्रारभते चाऽध्येतुम्, परन्तु संस्कृतस्य नाम्ना उद्वेजितः स प्रथममेव सन्धिज्ञानाभावात् ग्लायति, पलायते मुञ्चति स्वाध्यायम्। अथवा भाषान्तरं शरणं प्रयाति भीतो व्याकरण व्याघ्रात्।
‘स्वयं संस्कृतम्’ हि संस्कृतं पठतां छात्राणां कृते साहाय्यकरं भवति, यतोऽत्र सरलया सम्भाषणपद्धत्या सर्वत्राऽनुस्यूतमपि व्याकरणं काठिन्यकरं न जायते।
कतिपयभागात्मके लघुपुस्तकेऽस्मिन् सर्वाण्यापि व्याकरणप्रकरणानि वर्तन्तेऽनुस्यूतानि सावधानतयाऽधीतानि च तानि साहित्येन सार्धं शब्दशास्त्रीयं ज्ञानमपि फलिष्यन्ति। पुस्तकस्याऽस्य साहाय्येन छात्रा सरलं गद्यं पद्यं पठितुं लिखितुं भाषितुं चापि शक्ताः भवन्तु इति मेऽस्ति वाञ्छितम्।
शब्दशास्त्रस्य सारल्यं साहित्यस्य विशेषताम्।
ज्ञात्वा ज्ञात्वाऽनुमोदेरन् स्वयं संस्कृतपाठिनः॥
वैद्यः–रामस्वरूपशास्त्री
—०—
स्वयं संस्कृतम्
____
प्रथमो भागः
—≍≍—
प्रथमः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| देवः = देव | सः = वह |
| शुकः = तोता | अयम् = यह |
| अश्वः = घोडा | कः = कौन |
| गच्छति = जाता है | जानाति = जानता है |
| रक्षति = रक्षा करता है | अस्ति = है |
| खेलति = खेलता है | धावति = दौडता है |
| कर्तरि वाक्यानि— | |
| देवः रक्षति | |
| मानुषः गच्छति | |
| छात्रः पठति | |
| बालः लिखति | |
| अश्वः धावति | |
| वृक्षः फलति | |
| सूर्यः उदेति | |
| अयं शुकः अस्ति | |
| सः मृगः चरति | |
| अयं वानरः कूर्दति |
प्रश्नों के उत्तर लिखो—
कः रक्षति? कः गच्छति? कः हसति? कः उदेति? कः खादति? कः पिबति? कः लिखति? कः पठति? कः खेलति? कः धावति? कः तिष्ठति? कः फलति? कः चरति? कः कूर्दति? कः अस्ति? कः नास्ति?
अधस्तनशद्बों से वाक्यरचना करो—
सः, अयम्, देवः, मानुषः छात्रः, शुकः, बालः, अश्वः, अस्ति, पठति, लिखति, धावति, रक्षति।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| देवः | देवौ | देवाः | सः | तौ |
| क्रियारूपाणि— | ||||||
| पठति | पठतः | पठन्ति | लिखति | लिखतः |
पठत—
मूकं करोति वाचालं पङ्गु लङ्घयते गिरिम्।
यत् कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम्॥
—♦—
द्वितीयः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| अश्वौ = दो घोडे | स्त = दो हैं |
| खगौ = दो पक्षी | तौ = वे दो |
| मृगौ = दो हिरन | क्व = कहां |
| शुकौ = दो तोते | अत्र = यहां |
| मूकौ = दो गूंगे | द्वौ = दो |
| रक्षतः = दो रक्षा करते हैं | कौ = कौन दो |
| द्विवचने वाक्यानि— | |
| अश्वौ धावतः | |
| खगौ खादतः | |
| मानुषौ गच्छतः | |
| बालौ खेलतः | |
| छात्रौ पठतः | |
| देवौ रक्षतः | |
| कौ वदतः | |
| तौ द्वौ वदतः | |
| मूकौ न वदतः | |
| नरौ लिखतः | |
| सः क्व अस्ति? | वह कहाँ है? |
| तौ अत्र न स्तः |
प्रश्नों के उत्तर लिखो—
कौ धावतः? कौ गच्छतः? को खादतः? कौ पिबतः? कौ पठतः? कौ रक्षतः? कौ वदतः? कौ न वदतः? तौ क्व स्तः? अत्र कौ स्तः। किम् अस्ति तत्र? किं जानासि त्वम्? कौ लिखतः?
रचना करो—
रक्षतः, खादतः, पिबतः, लिखतः, कौ, न, अत्र, क्व, तौ, स्तः, शुकौ, मूकौ, अश्वौ, खगौ।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| बालः | बालौ | बालाः | कः | कौ | के |
| क्रियारूपाणि— | ||||||
| लिखति | लिखतः | लिखन्ति | पिबति | पिबत | पिबन्ति |
पठत—
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः।
येषां हृदिस्थो मनवान् मङ्गलायतनो हरिः॥
—०—
तृतीयः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| बालाः = बालक | वर्षन्ति = बरसते हैं |
| मेघाः = बादल | चरन्ति = चरते हैं |
| गजाः = हाथी | कोकिलः = कोयल |
| भृत्यः = नौकर | पौण्ड्रः = गन्ना |
| के = कौन | सन्ति = हैं |
| ते = वे सब | भवन्ति = होते हैं |
| बहुवचने वाक्यानि— | |
| बालाः खेलन्ति | |
| छात्राः पठन्ति | |
| अश्वाः धावन्ति | |
| मृगाः चरन्ति | |
| मानुषा गच्छन्ति | |
| शुकाः वदन्ति | |
| नृपाला रक्षन्ति | |
| वृक्षाः फलन्ति | |
| ते बालाः सन्ति | |
| ते हरिणाः सन्ति | |
| वानराः अपि चतुराः सन्ति |
प्रश्नों के उत्तर लिखो—
के खेलन्ति? के पठन्ति? के धावन्ति? के गच्छन्ति? के वदन्ति? के रक्षन्ति? के फलन्ति? के चरन्ति? के पौण्ड्रं खादन्ति? के मधुरं वदन्ति? के उच्चैः कूर्दन्ति? के नम्राः सन्ति?
रचना करो—
देवाः, नराः, शुकाः, बालाः, अश्वाः, सन्ति, भवन्ति, पठन्ति, लिखन्ति, धावन्ति, के, ते, इमे।
| शब्दरूपाणि— | अयम् | इमौ | इमे | शुकः | शुकौ | शुकाः |
| क्रियारूपाणि— | अस्ति | स्तः | सन्ति | भवति | भवतः | भवन्ति |
पठत—
देशमुत्सृज्य गच्छन्ति सिंहाः कृतविद्याः गजाः।
तत्रैव निधनं यान्ति काकाः कापुरुषाः मृगाः॥
—०—
चतुर्थः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| जलदाः = बादल | कर्षन्ति = जोतते हैं |
| कृषकाः = किसान | अर्जन्ति = अर्जन करते हैं |
| भाराः = भार | वहन्ति = ढोते हैं |
| क्षेत्रम् = खेत | हरन्ति = चुराते हैं |
| शिष्याः = छात्र | चरन्ति = चरते हैं |
| वैश्याः = वैश्य | विन्दन्ति = प्राप्त करते हैं |
| पुनः बहुवचने वाक्यानि— | |
| पठन्ति संस्कृतं शिष्याः | |
| छात्राः व्याकरणं पठन्ति | |
| भक्ताः ईश्वरं भजन्ति |
| भृत्या भारान् वहन्ति | |
| मेघाः जलं वर्षन्ति | |
| ते जलं भरन्ति | |
| हरिणाः घासं चरन्ति | |
| मानुषा देवान् नमन्ति | |
| रक्षन्ति देशं नृपाः | |
| कृषकाः क्षेत्रं कर्षन्ति | |
| वानराः फलानि खादन्ति | |
| अर्जन्ति वैश्या धनम् | |
| सज्जनाः असत्यं न वदन्ति | |
| विन्दन्ति विनयं बालाः |
प्रश्नानामुत्तराणि लिखत—
किं पठन्ति छात्राः? कं भजन्ति भक्ताः? कान् वहन्ति भृत्याः? किं वर्षन्ति मेघाः? कान् चरन्ति हरिणाः? किं वदन्ति लोकाः? किं हरन्ति चौराः? कं रक्षन्ति नृपालाः? किं कर्षन्ति कृषाणाः? के जलं वर्षन्तिः? कं विन्दन्ति बालाः? के सत्यं वदन्ति? के देवान् नमन्ति? के संस्कृतं पठन्ति? के असत्यं न वदन्ति? के अर्जन्ति धनम्?
रचयत वाक्यानि—
मेघाः, कृषकाः, भारान्, क्षेत्रम्, शठाः, वैश्याः, अर्जन्ति, वहन्ति, हरन्ति, चरन्ति, विन्दन्ति, कर्षन्ति।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| लोकः | लोकौ | लोकाः | फलम् | फले | फलानि |
| क्रियारूपाणि— | ||||||||||
| पठति | पठतः | पठन्ति | पठसि | पठथः | पठथ | पठामि | पठावः | पठामः |
वाचयत—
गुणाः सर्वत्र पूज्यन्ते पितृवंशो निरर्थकः।
वसुदेवं परित्यज्य वासुदेवमुपासते॥
—०—
पञ्चमः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| प्रातः = सबेरे | नीडः = घोंसला |
| सायम् = सन्ध्या | कपोतः = कबूतर |
| दिवा = दिन | मत्स्यः = मछली |
| नक्तम् = रात्रि | यान्ति = जाते हैं |
| विडालः = विलाव | वहन्ति = ढोते हैं |
| व्यालः = सर्प | गिलति = निगलता है |
| छागः = बकरा | वसति = रहता है |
| कर्मणि वाक्यानि— | |
| सः पुस्तकं पठति | |
| तौ मन्दिरं गच्छतः | |
| ते विद्यालयं यान्ति | |
| पठन्ति छात्राः पाठान् | |
| ते प्रातः उत्तिष्ठन्ति | |
| बालाः सायं खेलन्ति | |
| गजाः शनैः चलन्ति | |
| वर्दा हलं वहन्ति |
| उष्ट्रा भारान् वहन्ति | |
| कपोताः नीडं निर्मान्ति | |
| उलूकाः दिवा न पश्यन्ति | |
| जनाः नक्तं न पश्यन्ति | |
| विडाला मूषकान् धरन्ति | |
| सिंहा मृगान् धरन्ति | |
| मत्स्या मत्स्यान् खादन्ति | |
| सज्जनाः सज्जनान् नमन्ति |
प्रश्नानामुत्तराणि लिखत—
कः पुस्तकं पठति? कौ मन्दिरं गच्छतः? के विद्यालयं यान्ति? के प्रातः पठन्ति? के सायं खेलन्ति? के हलं वहन्ति? के भारान् नयन्ति? के नीडं निर्मान्ति? के वेदान् पठन्ति? के देवान् अर्चन्ति? कौ धरति विडालः? कान् हन्ति सिंहः? के छागान् निगिलन्ति? के मत्स्यान् खादन्ति? के सज्जनान् नमन्ति?
रचना करो—
प्रातः, सायम्, नीडात्, मत्स्याः, यान्ति, वसन्ति, निगिलन्ति, उलूकाः, कपोताः, गजाः, सिंहाः, वर्दाः, मानुषाः।
| शद्बरूपाणि— | ||||||
| देवम् | देवौ | देवान् | गजम् | गजौ | गजान् |
| क्रियारूपाणि— | ||||||||||
| गच्छति | गच्छतः | गच्छन्ति | याति | यातः | यान्ति | चलति | चलतः | चलन्ति |
वाचनम्—
शनैः पन्याः शनैः कन्था शनैः पर्वतलंघनम्।
शनैर्विद्या शनैः वित्तं पञ्चैतानि शनैः शनैः॥
षष्ठः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| मुखेन = मुखसे | केन = किससे |
| घ्राणेन = नाकसे | शृणोति = सुनता है |
| कर्णाभ्याम् = कानसे | प्रयाति = जाता है |
| सर्वः = सव | अस्ति = है |
| उद्यानम् = बगीचा | पुष्यति = पुष्ट होता है |
| वृत्तम् = वृत्तान्त | काभ्याम् = किनसे |
| करणे वाक्यानि— | |
| मानुषः मुखेन वदति | |
| सः घ्राणेन जिघ्रति | |
| बालः कन्दुकेन खेलति | |
| सर्वे जनाः पादैः प्रयान्ति | |
| त्वं हस्तेन लिखसि | |
| गजः शुण्डेन पिबति | |
| कृषाणः हलेन क्षेत्रं कर्षति | |
| मानुषः कर्णाभ्यामाकर्णयति | |
| अन्धो जनः स्पर्शेन जानाति | |
| सर्पः नेत्राभ्यां श्रृणोति | |
| उद्योगेन कार्याणि सिद्ध्यन्ति | |
| सुपुत्रेण लसति कुलम् | |
| मौनेन कलह शाम्यति | |
| वृत्तं यत्नेन रक्षन्ति प्राज्ञाः | |
| धनैः निष्कुलीनाकुलीना भवन्ति | |
| चारैः पश्यन्ति भूपालाः | |
| गायकः मधुरेण खरेण गायति | |
| अहं मित्रैः सार्धं गच्छामि क्षेत्रम् |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कः मुखेन वदति? कः घ्राणेन जिघ्रति? के कन्दुकेन खेलन्ति? के पादैः चलन्ति? काभ्यां धावति मानुषः? के हस्तैः लिखन्ति? कः शुण्डेन पिबति? केन क्षेत्रं कर्षति कृषाणः? कः पादाम्यां प्रयाति? कः कर्णाभ्यां शृणोति? कः नेत्राभ्यां पश्यति? कः नेत्राभ्यां शृणोति? केन कार्याणि सिद्ध्यन्ति? कैः लसति उद्यानम्? किं पुष्यति ज्ञानेन? केन कलहः शाम्यति? कैः निष्कुलीनाः कुलीना भवन्ति? कैः सार्धं खेलन्ति बालाः? कैः पश्यन्ति भूपालाः? कैः सार्धं चरन्ति मृगाः? केन प्रहरति गज? कैः सह अहं गच्छामि क्षेत्रम्?
रचयत् वाक्यानि—
मुखेन, घ्राणेन, पक्षाभ्याम्, दन्ताभ्याम्, नेत्राभ्याम्, पादाभ्याम्, श्रोत्राभ्याम्, चारैः, उद्योगेन, पादैः, धनैः, शुण्डेन, हलेन, मौनेन, गजः, भुजङ्गः।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| देवेन | देवाभ्याम् | देवैः | केन | काभ्याम् | कैः | |
| तेन | ताभ्याम् | तैः | येन | याभ्याम् | यैः |
| क्रियारूपाणि— | ||||||
| याति | यातः | यान्ति | चर्वति | चर्वतः | चर्वन्ति |
सुभाषितम्—
उद्योगेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः॥
—०—
सप्तमः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| पठनाय = पढने के लिए | कस्मै = किस के लिए |
| छात्रेभ्यः = छात्रों के लिए | यच्छति = ददाति |
| प्रयोजनाय = उपयोग के लिए | स्वस्ति = कल्याण |
| रोचते = रुचिकर होता है | रुग्णः = रोगी |
| कृते = लिए | उपनयति = लाता है |
| आवासः = घर | असूयति = निन्दा करता है |
| सम्प्रदाने वाक्यानि— | |
| देवाय नमः | |
| लोकेभ्यः स्वस्ति | |
| पावकाय स्वाहा | |
| पठनाय पुस्तकम् | |
| पठनं ज्ञानाय | |
| पूजनाय पुष्पाणि | |
| बालकेभ्यः फलानि रोचन्ते | |
| पुत्राय स्निह्यति जनकः | |
| दुर्जनः सज्जनेभ्यः असूयति | |
| फलेभ्यः उद्यानं गच्छामि | |
| छात्रेभ्यः फलानि प्रयच्छामः | |
| फलेभ्यः स्पृह्यति रुग्णः | |
| नृपाय रोचते सङ्गीतम् | |
| रुग्णाय भोजनं न रोचते | |
| परोपकारः पुण्याय |
| पापाय परपीडनम् | |
| भक्तिः ज्ञानाय कल्पते | |
| खलस्य विद्या विवादाय | |
| नृपः कुप्यति भृत्येभ्यः | |
| अध्यापकः शिष्याय कुप्यति | |
| छात्राणां कृते आवासः | |
| सर्वेभ्यः सज्जनेभ्यः नमांसि |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कस्मै नमः? केभ्यः स्वस्ति? केभ्यः स्वाहा? कस्मै प्रयोजनाय पुस्तकम्? कस्मै प्रयोजनाय पठनम्? केषां कृते वस्त्राणि? केभ्यः फलानि रोचन्ते? कस्मै स्निह्यति जनकः? केभ्यः असूयति दुर्जनः? केभ्यः उद्यानं गच्छसि त्वम्? केभ्यः फलानि यच्छामः? केभ्यः स्पृहयति रुग्णः? कस्मै रोचते सङ्गीतम्? कानि रोचन्ते छात्रेभ्यः? कस्मै न रोचते भोजनम्? कस्मै प्रयोजनाय खलस्य विद्या? केभ्यः कुप्यति नृपः? केभ्यः सर्वेभ्यः नमः?
रचयत वाक्यानि—
पठनाय, छात्रेभ्यः, कस्मै, प्रयोजनाय, रोचते, कृते, रुग्णाय, उपनयति, यच्छति, स्वस्ति, तस्मै, नमः।
| शब्दरूपाणि— | ||||||||||
| देवाय | देवाभ्याम् | देवेभ्यः | तस्मै | ताभ्याम् | तेभ्यः | कस्मै | काभ्याम् | केभ्यः |
| क्रियारूपाणि— | रोचते | रोचेते | रोचन्ते |
| आनयति | आनयतः | आनयन्ति |
सुभाषितम्—
विद्या विवादाय धनं मदाय शक्तिः परेषां परिपीडनाय।
खलस्य साधोर्विपरीतमेतत् ज्ञानाय दानाय च रझणाय॥
—♦—
अष्टमः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| पङ्क = कीचड | संजायते = उत्पन्न होते हैं |
| शवरः = मील | अवतरति = उतरता है |
| भुजङ्गः = सर्प | पर्जन्यः = मेघ |
| अवज्ञा = अनादर | अनृतम् = झूठ |
| कामः = इच्छा | इन्धनम् = इन्धन |
| पातकम् = पाप | कस्मात् = कहां से |
| परिचयः = पहिचान |
| अपादाने वाक्यानि— | |
| अध्ययनात् ज्ञानं भवति | |
| लोभात् पापानि संभवन्ति | |
| धनात् धर्मः संजायते | |
| धर्मात् सुखं भवति | |
| कामात् क्रोधः प्रजायते | |
| अहं कूपात् जलं आनयामि | |
| त्वं वनात् इन्धनम् आनयसि | |
| ते मन्दिरात् आगच्छन्ति | |
| दानात् पुण्यं प्रजायते | |
| व्यायामात् बलं भवति | |
| अजीर्णात् रोगाः संभवन्ति | |
| अतिपरिचयात् अवज्ञा | |
| भुजङ्गमात् भयं भवति | |
| शबरः पर्वतात् अवतरति | |
| वृक्षात् फलानि पतन्ति |
| लालनात् बहवः दोषाः संजायते | |
| नाऽनृतात् पातकं महत् | |
| न सन्तोषात् परमं सुखम् | |
| चन्द्रः सूर्यात् प्रकाशं प्राप्नोति | |
| समुद्रेभ्यः रत्नानि जायन्ते | |
| दुग्धात् दधि संजायते | |
| पर्जन्यात् अन्नानि उद्भवन्ति | |
| दानात् जना गौरवं लभन्ते | |
| धर्मात् धारणं भवति |
प्रश्नानामुत्तराणि लिखत—
कस्मात् ज्ञानं भवति? कस्मात् पापानि संभवन्ति? कस्मात् धर्मः संजायते? कस्मात् क्रोधः संप्रजायते? कस्मात् सुखमनुभवसि त्वम्? कस्मात् जलम् आनयामि? कस्मादिन्धनमानयसि त्वम्? कस्मादागच्छसि त्वम्? कस्मात् पुण्यं प्रजायते? कस्मात् बलं भवति? कस्मात् रोगाः भवन्ति? कस्मात् अवज्ञा भवति? केभ्यः भयं भवति? कस्मादवतरति शवरः? कस्मात् फलानि पतन्ति? कस्माद् बहवः दोषाः? कस्मात्परमं सुखम्? कुतः प्रकाशं प्राप्नोति चन्द्रः? कस्माद् रत्नानि जायन्ते? कस्माद् दधि जायते? कस्माद् अन्नानि जायन्ते? कस्मात् जना गौरवं लभन्ते? कस्माद् धारणं भवति? कस्मात् रक्षा भवति? कस्य हि प्रक्षालनाद् दूरादेव स्पर्शनं वरम्?
रचयत वाक्यानि—
पङ्कात्, अध्ययनात्, सूर्यात्, व्याघ्रात्, दुग्धात्, समुद्रात्, भवन्ति, जायन्ते, लोभात्, धर्मात्, पर्जन्यात्, भुजङ्गमात्, पतन्ति, प्राप्नोति, आगच्छति, अवतरति।
| शद्बरूपाणि— | ||||||
| देवाय | देवाभ्याम् | देवेभ्यः | ज्ञानात् | ज्ञानाभ्याम् | ज्ञानेभ्यः |
| क्रियारूपाणि— | ||||||
| तरति | तरतः | तरन्ति | जायते | जायेते | जायन्ते |
सुभाषितम्—
पादपानां भयं वातात् पद्मानां शिशिरात् भयम्।
पर्वतानां भयं वज्रात् साधूनां दुर्जनात् भयम्॥
—*—
नवमः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| जयः = विजय | स्नेहः = प्रेम |
| गन्धः = सुगन्ध | वैशिष्ट्यम् = विशेषता |
| शैलः = पर्वत | मम = मेरा |
| वर्णः = रङ्ग | तव = तेरा |
| मुख्यः = प्रधान | प्रासादः = राजमहल |
| नाशः = विनाश | सङ्घः = समूह |
| सम्बन्धे वाक्यानि— | |
| धर्मस्य जयः | |
| अधर्मस्य नाशः | |
| विश्वस्य कल्याणम् | |
| पुरुषस्य भाग्यम् | |
| उद्योगस्य फलम् | |
| रोगस्य औषधम् | |
| श्रीनाथस्य मन्दिरम् | |
| तडागस्य जलम् |
| सूर्यस्य आतपः | |
| चन्द्रस्य प्रकाश | |
| फलानां रसः | |
| मित्रयोः स्नेहः | |
| पुष्पाणां गन्धः | |
| वस्त्राणां वर्णाः | |
| श्रोत्रस्य भूषणं शास्त्रम् | |
| ज्ञानं रूपं कुरूपस्य | |
| बालानां रोदनं बलम् | |
| शीलं सर्वस्य भूषणम् | |
| समुद्रस्य जलं क्षारम् | |
| लोभः पापस्य कारणम् | |
| संस्कृतस्य सारल्यम् | |
| व्याकरणस्य विशेषता | |
| भारतस्य महत्वम् | |
| यस्य गुणाः तस्य आदरः |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कस्य जयः? कस्य नाशः? कस्य कल्याणम्? कस्य भाग्यम्? कस्य जलम्? कस्य औषधम्? केषां फलानि? कस्य मन्दिरम्? कस्य आतपः? कस्य प्रकाशः? केषां रसः? केषां गन्धः? कयोः स्नेहः? केषां वर्णाः? कस्य भूषणं शास्त्रम्? कुरूपस्य किं भूषणम्? किं बलं बालानाम्? सर्वस्य भूषणं किम्? कस्य जलं क्षारम्? पापस्य किं कारणम्? कस्य सारल्यम्? कस्य विशेषता? कस्य महत्वम्? कस्य आदरः?
रचयत वाक्यानि—
गन्धः, शैलः, वर्णः, मुख्यः, स्नेहः, प्रासाद, चयः, सङ्घः, महत्वम्, भूषणम्, क्षारम्, आदरः, मन्दिरम्।
| शब्दरूपाणि— | तस्य | तयोः | तेषाम् | कस्य | कयोः | केषाम् | |
| देवस्य | देवयोः | देवानाम् | यस्य | ययोः | येषाम् |
| क्रियारूपाणि— | जयति | जयतः | जयन्ति | तपति | तपतः | तपन्ति |
वाचनम्—
संस्कृतस्य च सारल्यं व्याकरणस्य विशेषताम्।
महत्वं भारतस्यापि यो जानाति स बुद्धिमान्॥
—०—
दशमः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| कूपे = कुए में | कटः = चटाई |
| पटः = वस्त्र | हाटकम् = सोना |
| वृक्षेषु = पेडों पर | साक्षरः = पठित |
| विनयः = नम्रता | अस्मिन् = इस में |
| छिद्रम् = दोष | तस्मिन् = उस में |
| ऊषरम् = ऊषर | प्रासादः = राजभवन |
| अधिकरणे वाक्यानि— | |
| कूपे जलम् अस्ति | |
| पात्रे घृतम् अस्ति | |
| देहे प्राणाः सन्ति | |
| तिलेषु तैलं भवति |
| वृक्षेषु फलानि जायन्ते | |
| छात्रेषु विनयो वर्तते | |
| सिंहा वनेषु निवसन्ति | |
| ऊषरे बीजं न प्ररोहति | |
| छिद्रेषु अनर्था भवन्ति | |
| नरेषु साक्षराः श्रेष्ठाः | |
| गोविन्दः कटे तिष्ठति | |
| शिष्येषु माधवः श्रेष्ठः | |
| तडागे भेकाः सन्ति | |
| धनेषु हाटकं श्रेष्ठम् | |
| अहमासने तिष्ठामि | |
| नृपः प्रासादे निवसति | |
| पर्वतेषु हिमं पतति | |
| विद्यालये छात्राः सन्ति | |
| उद्याने खगाः कूजन्ति | |
| मित्रेषु मम विश्वासः | |
| विद्या मित्रं प्रवासेषु | |
| शैले रौले न रत्नानि | |
| पदे पदे च रत्नानि मार्गे मार्गे च हाटकं मुम्बापुर्य्याम् |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कूपे किमस्ति? पात्रे किमस्ति? क्व सन्ति प्राणाः? केषु तैलं भवति? क्व फलानि जायन्ते? केषु विनयः भवति? क्व निवसन्ति सिंहाः? क्व बीजं न प्ररोहति? के उद्याने कूजन्ति? केषु हाटकं श्रेष्ठम्? केषु अनर्थाः भवन्ति? नरेषु कः श्रेष्ठः? क्व भेकाः सन्ति?
धनेषु किं श्रेष्ठम्? अहं क्व तिष्ठामि? क्व निवसति नृपः? क्व पतति हिमम्? क्व छात्राः सन्ति? गोविन्दः क्व तिष्ठति? क्व खगाः कूजन्ति? प्रवासेषु किं मित्रम्?
रचयत वाक्यानि—
कूपे, पात्रे, देहे, समुद्रे, घटे, ईश्वरः, वृक्षेषु, छिद्रेषु, वनेषु, ऊषरेषु, नरेषु, उद्यानेषु, विदेशेषु, मन्दिरेषु।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| देवे | देवयोः | देवेषु | तैलम् | तैले | तैलानि | |
| हे देव | हे देवौ | हे देवाः | मित्रम् | मित्रे | मित्राणि |
| क्रियारूपाणि— | ||||||
| तिष्ठति | तिष्ठतः | तिष्ठन्ति | रोहति | रोहतः | रोहन्ति |
वाचनम्—
शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे।
साधवो नहि सर्वत्र चन्दनं न वने वने॥
==०==
एकादश पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| तनयः = पुत्र | सत्यम् = सत्य |
| कीरः = तोता | मानुषः = मानव |
| कन्दुकः = गेंद | आदित्यः = सूर्य |
| ग्राहः = मगर | नगरम् = नगर |
| खरः = गधा | गगनम् = आकाश |
| पवनः = वायु | वहति = ढोता है |
| वर्तमाने वाक्यानि— | |
| शुकः संस्कृतं पठति | |
| खरः भारं वहति |
| हयः शीघ्रं धावति | |
| मकरौ जले तरतः | |
| छात्रौ पाठं लिखितः | |
| वानरौ वृक्षेषु कूर्दतः | |
| हरिणाः घासं चरन्ति | |
| बालौ कन्दुकेन खेलतः | |
| गजाः शनैःशनैः चलन्ति | |
| तनयौ संस्कृतं पठतः | |
| पादपौ फलानि ददतः | |
| जलदा जलानि वर्षन्ति | |
| नृपालाः लोकान् रक्षन्ति | |
| मानुषाः ग्रामं गच्छन्ति | |
| लोकाः सत्यं वदन्ति | |
| भक्ताः देवान् नमन्ति | |
| त्वं दुग्धं पिबसि प्रातः | |
| युवां पाठं पठथः | |
| यूयं नगरे वसथ | |
| अहं सत्यं कथयामि | |
| आवां गजान् पश्यावः | |
| आदित्यः गगने विभाति | |
| पवनः गन्धं वहति | |
| तडागे मण्डूकाः रटन्ति |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कः संस्कृतं पठति? कः शीघ्रं धावति? कः भारं वहति? कौ जले तरतः? कौ पाठं लिखतः? कौ वृक्षेषु कूर्दतः? के घासं चरन्ति? कौ कन्दुकेन खेलतः? कौ पादैः चलतः? पादपौ किं फलतः? के जलं वर्षन्ति? के देशं रक्षन्ति? के गामं गच्छन्ति? के सत्यं वदन्ति? के देवान् नमन्ति? किं पिबसि त्वम्? क्व वसथ यूयम्? किं पश्यथः युवाम्? क्व रटन्ति मण्डूकाः? कं वहात पवनः?
रचयत वाक्यानि—
कीराः, ह्याः, पवनः, तडागे, आदित्यः, गगने, भक्तः, युवाम्, तनयौ, ग्राहौ, अश्वाः, खराः, मण्डूकाः।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| सः | तौ | ते | त्वं | युवाम् | यूयम् | |
| यः | यौ | ये | अहम् | आवाम् | वयम् |
.
| धातुरूपाणि— | ||
| सः पठति | तौ पठतः | ते पठन्ति |
| त्वं पठसि | युवां पठथः | यूयं पठथ |
| अहं पठामि | आवां पठावः | वयं पठामः |
वाचनम्—
पवनः स्पृशति पुष्पाणि जलं वर्षति वारिदः।
क्षीणं प्रकाशते चन्द्रः चण्ड तपति भास्करः॥
==०==
द्वादशः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| मधुपः = भौंरा | नन्दति = प्रसन्न होता है |
| पादपः = पेड | चूषति = चूषता है |
| अनुजः = भाई | जपति = जप करता है |
| दरिद्रः = दीन | जेमति = जीमता है |
| मीनः = मछली | व्याहरति = बोलता है |
| कदा = कब | क्रुध्यति = क्रुद्ध होता है |
| कुत्र = कहां | परः = शत्रु |
| पुनः वर्तमाने वाक्यानि— | |
| मधुपः पुष्पस्य रसं चूषति | |
| शुकः रामस्य नामानि रटति | |
| अत्र बालकाः क्रीडनकैः खेलन्ति | |
| वानरा नित्यं पादपेषु कूर्दन्ति | |
| ग्राम्याः हलेन क्षेत्रं कर्षन्ति |
| छात्राः नवानि पुस्तकानि पठन्ति | |
| तुरङ्गाः प्रचारेषु वेगेन धावन्ति | |
| गोविन्दः अनुजाय क्रुध्यति | |
| महीपः दरिद्राय धनं ददाति | |
| आपणे भृत्या भारान् वहन्ति | |
| ऋतुषु वृक्षेषु फलानि जायन्ते | |
| सज्जनाः सदैव सत्यं वदन्ति | |
| भक्ताः कृष्णस्य मन्दिरं यान्ति | |
| युद्धेषु शूराः पराञ्जयन्ति | |
| भेकाः तडागेषु नन्दन्ति | |
| अहं नित्यं संस्कृतं भाषे |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कः पुष्पाणां रसं चूषति? कः रामस्य नामानि रटति? कैः खेलन्ति बालाः? क्व कूर्दन्ति वानराः? कानि ग्राम्याः हलेन कर्षन्ति? कानि पुस्तकानि पठन्ति छात्राः? क्व धावन्ति वेगेन तुरङ्गमाः? कः कस्मै क्रुध्यति? कस्मै महीपः ददाति धनम्? कान् वहन्ति आपणेषु भृत्याः? केभ्यः ऋतुषु फलानि जायन्ते? के सदैव सत्यं वदन्ति? के कृष्णस्य मन्दिरं गच्छन्ति? के जलाशयेषु नन्दन्ति?
रचयत वाक्यानि—
मधुपः, क्रीडनकैः, हलेन, प्रातः, अनुजाय, ऋतुषु कदा, कुत्र, चूषामि, व्याहरति, सायम्, सदैव, नित्यम्, संस्कृतम्।
| शब्दरूपाणि— | ||
| फलम् | फले | फलानि |
| मन्दिरम् | मन्दिरे | मन्दिराणि |
| धातुरूपाणि— | ||||||
| हरति | हरतः | हरन्ति | फलति | फलतः | फलन्ति | |
| भाषते | भाषेते | भाषन्ते | वन्दते | वन्देते | वन्दन्ते |
वाचनम्—
भाषते सज्जनः सत्यं भक्तो गच्छति मन्दिरम्।
भेकाः नन्दन्ति कूपेषु सन्ति वृक्षेषु वानराः॥
—०—
त्रयोदशः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| वदिष्यति = बोलेगा | इदानीम् = अभी |
| तरिष्यति = तैरेगा | अखिलम् = सम्पूर्ण |
| पास्यति = पियेगा | प्राचारः = गोचर भूमि |
| स्थास्यति = ठहरेगा | सांयात्रिकः = मल्लाह |
| पठिष्यति = पढेगा | वासरः = दिन |
| करिष्यति = करेगा | सलिलम् = पानी |
| अर्जिष्यति = अर्जन करेगा | हाटकम् = स्वर्ण |
| भविष्यत्काले वाक्यानि— | |
| अहं पत्रं लिखिष्यामि | |
| चौराः सत्यं न वदिष्यन्ति | |
| अश्वाः क्षेत्रेषु चरिष्यन्ति | |
| दुग्धं पास्यति गोपालः | |
| नृपालाः अखिलं देशं रक्षिष्यन्ति | |
| नाविकाः पोतैः समुद्रं तरिष्यन्ति | |
| आर्या स्वेषां शास्त्राणि पठिष्यन्ति | |
| रविवारं विद्यालयं न यास्यामि |
| ते नगरस्यातिथिगृहे स्थास्यन्ति | |
| छात्राः अत्र व्यायामं करिष्यन्ति | |
| चौराः राष्ट्रकोषात्स्वर्णं हरिष्यन्ति | |
| वैश्याः व्यापारेण धनान्यर्जिष्यन्ति | |
| अहं अद्य मुम्बापुरीं गमिष्यामि | |
| सो अद्यात्र गीतां पठिष्यति |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कः पत्रं लिखिष्यति? के सत्यं न वदिष्यन्ति? के क्षेत्रे चरिष्यन्ति? कः जलं न पास्यति? नृपालाः किं करिष्यन्ति? आर्याः किं करिष्यन्ति? कदा त्वं विद्यालयं न गमिष्यसि? तत्र क्व स्थास्यसि त्वम्? किं हरिष्यन्ति चौराः? छात्राः किं करिष्यन्ति? केः धनमर्जिष्यन्ति? के शत्रून् जेष्यन्ति? कः सुखेन जीविष्यति? क्व गमिष्यति इदानीं सः?
रचयत वाक्यानि—
सलिले, हाटकम्, वासराः, करिष्यन्ति, गमिष्यन्ति, स्थास्यति, अद्य, कोषात्, पास्यति, आर्याः, नृपाः, द्विजाः, इदानीम्।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| धनम् | धने | धनानि | धनम् | धने | धनानि |
| क्रियारूपाणि— | ||
| पठिष्यति | पठिष्यतः | पठिष्यन्ति |
| पठिष्यसि | पठिष्यथः | पठिष्यथ |
| पठिष्यामि | पठिष्यावः | पठिष्यामः |
सुभाषितम्—
करिष्यामि करिष्यामि करिष्यामीति नित्यशः।
अजरामरवत् प्राज्ञः विद्यामर्थं च चिन्तयेत्॥
—०—
चतुर्दशः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| कोषः = निधि | हिरण्यम् = स्वर्ण |
| नक्रः = मगर | झसः = मछली |
| विश्वम् = संसार | महीरुहः = वृक्ष |
| भद्रम् = कल्याण | निषादः = भिल्लः |
| दर्दुरः = मेंढक | मृगः = हिरण |
| आनेष्यति = लायेगा | कृषीवलः = किसान |
| पतिष्यति = पडेगा | गगनम् = आकाश |
| पुनः भविष्ये वाक्यानि— | |
| नक्राः समुद्रे तरिष्यन्ति | |
| आकाशात् जलं पतिष्यति | |
| दर्दुरा तडागेषु संभविष्यन्ति | |
| झषाः सलिले विहरिष्यन्ति | |
| कुमाराः कन्दुकेन खेलिष्यन्ति | |
| महीरुहाः फलानि धरिष्यन्ति | |
| ममाऽनुजः पुस्तकमानेष्यति | |
| श्वः निषादाः मृगान् मारयिष्यन्ति | |
| तत्र बालाः क्रीडनकैः खेलिष्यन्ति | |
| अहं पक्वानि आम्राणि चूषिष्यामि | |
| ते सुन्दरान् लेखान् लिखिष्यन्ति | |
| ग्रामेषु कृषीवलाः सुखेन जीविष्यन्ति | |
| अहमद्य विद्यालये स्थास्यामि | |
| जलाशये तरिष्यति कूर्मः | |
| नदीषु समुद्रेषु च जायन्ते नक्राः | |
| सदाफलो भवति नारिकेलवृक्षः |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
क्व तरिष्यन्ति नक्राः? कस्मात् पतिष्यति जलम्? के तडागे संभविष्यन्ति? क्व विहरिष्यन्ति झषाः? क्व कूर्माः नन्दिष्यन्ति? के नित्यं फलानि फलिष्यन्ति? कः नवीनं पुस्तकमानेष्यति? निषादाः किं करिष्यन्ति? कैः क्रीडिष्यामः वयम्? कः आम्राणि चूषिष्यति? के लेखान् लिखिष्यन्ति? के हिरण्यं हरिष्यन्ति? क्व जीविष्यन्ति कृषाणाः? नक्राः क्व जायन्ते? के वृक्षाः नित्यं फलन्ति?
रचयत वाक्यानि—
मृगाः, नक्राः, आकाशात्, अश्वाः, खेलिष्यन्ति, हरिष्यन्ति, स्थाष्यन्ति, नेष्यसि, आनेष्यति, धरिष्यति।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| मकरः | मकरौ | मकराः | केन | काभ्याम् | कैः |
| क्रियारूपाणि— | ||
| भविष्यति | भविष्यतः | भविष्यन्ति |
| भविष्यसि | भविष्यथः | भविष्यथ |
| भविष्यामि | भविष्यावः | भविष्यामः |
सुभाषितम्—
नास्ति विद्यासमं चक्षुः नास्ति सत्यसमं तपः।
नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम्॥
—०—
पञ्चदशः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| तस्करः = चोर | कनकम् = काञ्चन |
| लोकः = प्रजा के लोग | तापसः = तपस्वी |
| शरैः = वाणों से | मम = मेरा |
| पत्रम् = चिट्ठी | स्म = था |
| कौतुकम् = तमासा | उदभवत् = उत्पन्न हुआ |
| उटजः = झोपडी | अहन् = मारा |
| पुरा = पहिले | आसीत् = था |
| भूते वाक्यानि— | |
| पुरा ब्राह्मणा वेदान् अपठन् | |
| ततः ते शास्त्राणि अलिखन् | |
| समुद्रात् बहूनि रत्नानि उदभवन् | |
| पाणिनिः व्याकरणम् असृजत् | |
| कालिदासः नवानि काव्यान्यलिखत् | |
| रामः तीब्रै शरैः राक्षसानहन् | |
| कृष्णः गोपानामङ्गणेष्वखेलत् | |
| नृपाः सर्वान् लोकानरक्षत् | |
| कीशा मम फलानि अखादन् | |
| नासीत्तदानीं तव ग्रामे विद्यालयः | |
| बालाः ऋक्षस्य कौतुकमपश्यन् | |
| अहं कृष्णस्य मन्दिरमगच्छम् | |
| त्वं तातस्य वृत्तान्तम् अपठः | |
| राजकुमारः तुरङ्गमात् अपतत् | |
| बालकः हठम् न अमुञ्चत् |
| तापसाः वनेषु वसन्ति स्म | |
| तस्कराः गृहात् कनकम् अहरन् |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
के वेदान् अपठन्? के शास्त्राणि अलिखन्? कस्मात् रत्नानि उदभवन्? कः व्याकरणम् असृजत्? कः रुचिराणि काव्यानि अकरोत्? के लोकान् अरक्षन्? कः राक्षसान् अहन्? के वनेषु न्यवसन्? कः तुरङ्गमात् अपतत्? के गृहात् कनकम् अहरन्? के के भल्लूकस्य कौतुकम् अपश्यन्? कः अखिलं विश्वमसृजत्?
रचयत वाक्यानि—
कनकम्, कौतुकम्, भल्लूकः, कीशः, तव, पुरा, मम, तस्य, वृत्तान्तम्, उटजः, अशोकः, पाणिनिः, कालिदासः, स्म।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| तम् | तौ | तान् | तेन | ताभ्याम् | तैः | |
| तस्मै | ताभ्याम् | तेभ्यः | तस्मात् | ताभ्याम् | तेभ्यः |
| क्रियारूपाणि— | ||
| अवसत् | अवसताम् | अवसन् |
| अवसः | अवसतम् | अवसत |
| अवसम् | अवसाव | अवसाम |
शुभाषितम्—
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥
—०—
षोडशः पाठः
—०—
| शब्दकोष— | |
| पठ = पढो | दीनः = दरिद्र |
| गच्छ = जाओ | विघ्नः = विघ्न |
| रक्ष = रक्षा करो | धनपालः = धनिकः |
| आयान्तु = आओ | प्रयत्नः = प्रयत्न |
| अस्तु = हो | आदेशः = आज्ञा |
| उपादिशन्तु = उपदेश करो | मनोरथः = इच्छा |
| आज्ञादिषु वाक्यानि— | |
| पाठं पठ | |
| पत्रं लिख | |
| गृहं गच्छ | |
| धनं रक्ष | |
| कुशलमस्तु तव | |
| चिरायुः भव त्वम् | |
| छात्राः विद्यालयं गच्छन्तु | |
| लोकनायकाः देशं रक्षन्तु | |
| जनाः सामाजिकाः भवन्तु | |
| ते उन्नता भवन्तु | |
| लोकपालाः प्रजां न पीडयन्तु | |
| बालकाः सदैव सत्यं प्रियं च वदन्तु | |
| आचार्याः धर्मान् उपदिशन्तु | |
| धनपालाः दीनेभ्यः धनानि यच्छन्तु | |
| विघ्ना विनाशमायान्तु तेषाम् | |
| लोका भद्राणि पश्यन्तु |
| जनानां प्रयत्नाः सफलाः सन्तु | |
| तेषां मनोरथाः पूर्णा सन्तु | |
| ते सर्वे संस्कृतं पठन्तु |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
किं करोतु सः? किं लिखतु सः? क्व गच्छतु सः? किं कुर्वन्तु सर्वे? कथं भूता भवन्तु मानुषाः? के जनकस्य आदेशं पालयन्तु? लोकपालाः किं कुर्वन्तु? के सदैव सत्यं वदन्तु? के धर्मान् उपदिशन्तु? धनपालाः किं कुर्वन्तु? के विनाशमायान्तु? के भद्राणि पश्यन्तु? केषां मनोरथाः पूर्णाः सन्तु? के पठन्तु संस्कृतम्?
रचयत वाक्यानि—
पठ, लिख, गच्छ, रक्ष, खाद, पिब, आगच्छ, विघ्नाः, भद्राणि, पूर्णाः, वदन्तु, पठन्तु, भवन्तु, सन्तु, अस्तु।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| भद्रम् | भद्रे | भद्राणि | गृहात् | गृहाभ्याम् | गृहेभ्यः |
| क्रियारूपाणि— | ||
| पठतु | पठताम् | पठन्तु |
| पठ | पठतम् | पठत |
| पठानि | पठाव | पठाम |
सुभाषितम्—
धनानि जीवितं चैव परार्थे प्राज्ञः उत्सृजेत्।
सन्निमित्तं वरं त्यागो विनाशे नियते सति॥
—०—
सप्तदशः पाठः
—०—
| शब्दकोषः— | |
| शरणम् = रक्षण | ब्रूयात् = बोले |
| प्रियम् = मधुर | कुर्यात् = करे |
| गतम् = व्यतीत | परित्यजेत् = छोड दे |
| अपमानः = अनादर | स्मरेत् = स्मरण करे |
| श्वः = कल | व्रजेत् = जाये |
| समीक्ष्य = देखकर | आवर्षयेत् = आकर्षित करें |
| विधौ वाक्यानि— | |
| सदा सत्यं ब्रूयात् | |
| न वदेत् सत्यमप्रियम् | |
| नित्यं स्वाध्यायमाचरेत् | |
| गुरुभ्यः ज्ञानमादद्यात् | |
| धर्मं परिपालयेत् स्वीयम् | |
| गतं न जातु शोचेयुः | |
| छात्राः नित्यं संस्कृतं पठेयुः | |
| भक्तौ मन्दिरं गच्छेताम् | |
| तौ कृष्णस्य स्तुतिं पठेताम् | |
| नरः कर्म समाचरेत् | |
| पुत्रं विद्यासु योजयेत् | |
| सज्जनैः सङ्गतिं कुर्यात् | |
| आत्मानं पात्रतां नयेत् | |
| दिवा शयनं परित्यजेत् | |
| अपमानं न प्रकाशयेत् |
| स्वेषां साहाय्यं कुर्यात् | |
| मधुरं व्याहरेत् वचः | |
| अक्लेशं धनमर्जयेत् | |
| लोकमावर्जयेद् गुणैः | |
| चिन्तयेत् लोककल्याणम् | |
| धनं प्राणहरं त्यजेत् | |
| कुर्याद् अद्यैव श्वः कार्यम् | |
| ईश्वरं स्मरेत् नित्यम् | |
| श्रीकृष्णं शरणं व्रजेत् | |
| दिवसं सार्थकं कुर्यात् दानाध्ययनं कर्मभिः |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
किं ब्रूयात्? किं भूतं सत्यं न ब्रूयात्? कं नित्यमाचरेत्? किम् आदद्यात् गुरुभ्यः? कं न त्यजेत्? बुधाः किं न शोचेयुः? छात्रौ किं पठेताम्? भक्तौ क्व गच्छेताम्? कां पठेतां तौ? किं सम्यक् आचरेन्नरः? कं हि संशोधयेत् सुधीः? कं विद्यासु नियोजयेत्? कैः कैः सङ्गतिं कुर्यात्? आत्मानं क्व नयेन्नरः? दिवा किं सः परित्यजेत्? किं न प्रकाशयेत् प्राज्ञः? प्रयतेत कस्मै नित्यम्? केषां साहाय्यमाचरेत्? किं भूतं व्याहरेद् वचः? कथंकारं धनमर्जयेत्? कैः लोकमावर्जयेत? चिन्तयेत् कस्य कल्याणम्? कथं भूतं धनं त्यजेत्? श्वः कार्यं कदा कुर्यात्? केन केन दिवसं सार्थकं कुर्यात्? कं नित्यं संस्मरेज्जनः? कं चेह शरणं व्रजेत्?
रचयत वाक्यानि— प्रियम्, नित्यम्, गतम्, श्वः, समीक्ष्य, कुर्यात्, ब्रूयात्, परित्यजेत्, स्मरेत्, ब्रजेत्, आवर्जयेत्, शरणम्, सत्यम्।
| शब्दरूपाणि— | ज्ञानम् | ज्ञाने | ज्ञानानि | वचः | वचसी | वचांसि |
| धातुरूपाणि— | पठेत् | पठेताम् | पठेयुः |
| पठेः | पठेतम् | पठेत | |
| पठेयम् | पठेव | पठेम |
सुभाषितम्—
न हीनो यो धनैः हीनः धनिकः स मतो गुणी।
विद्यारत्नेन यो हीनः स हीनः सर्ववस्तुषु॥
—०—
अष्टादशः पाठः
—♦—
उपसर्गाः— प्रादयः क्रियायोगे उपसर्गसंज्ञकाः भवन्ति। उपसर्गेण धात्वर्थः परिवर्तनं लभते। ते हि— प्र परा अप् सम् अनु अव निस् निर् दुस् दुर् वि आङ् नि अधि अपि अति सु उत् अभि प्रति परि उप इति द्वाविंशतिः।
| सोपसर्गाः क्रियाः— | |
| आगच्छति = आता है | विवदति = विवाद करता है |
| उद्भवति = उत्पन्न होता है | प्रवहति = वहता है |
| अवतरति = उतरता है | आवर्जयति = झुकाता है |
| परित्यजति = छोडता है | प्ररोहति = उगता है |
| व्याहरति = बोलता है | अनुभवति = अनुभव करता है |
| प्रहरति = प्रहार करता है | कथंभूतः = कैसा |
| तत्र वाक्यानि— | |
| पुरा लोकाः संस्कृतं व्याहरन्ति स्म | |
| तदा तापसाः वनेषु न्यवसन् | |
| छात्रः विद्यालयात् आगच्छति |
| अहं मन्दिरात् गृहं प्रयास्यामि | |
| शवरः पर्वतात् अवतरिष्यति | |
| मानुषः अश्वम् आरोहति | |
| रत्नानि समुद्रात् उदभवन् | |
| गजः दन्ताभ्यां प्रहरिष्यति | |
| छात्राः दिवाशयनं परित्यजयेयुः | |
| ऊषरे बीजानि न प्ररोहन्ति | |
| गुणैरेवावर्जयन्तिलोकान्प्राज्ञाः | |
| सज्जनाः सदैव सत्यं वदन्ति | |
| विदेशेषु क्लेशमायान्ति प्राज्ञामपि | |
| अकारणमेवमिथो विवदन्ति मूर्खाः | |
| सज्जना दोषान्त्यक्त्वा गुणान्गृह्णन्ति | |
| धीमतां कालः काव्यशास्त्रविनोदेन गच्छति |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
के संस्कृतं व्याहरन्ति स्म? क्व न्यवसन् तापसाः? कस्मात् आगच्छन्ति छात्राः? कस्मात् गृहं प्रयास्यामि अहम्? कस्मात् अवतरिष्यति शबरः? कम् आरोहति मानुषः? कस्मात् रत्नानि उदभवन्? काभ्यां प्रहरिष्यति गजः? किं परित्यजेयुः छात्राः? क्व बीजानि न प्ररोहन्ति? कैः आवर्जयन्ति लोकान् प्राज्ञाः? के सदैव सत्यं व्याहरन्ति?
रचयत वाक्यानि—
आगच्छति, प्रयाति, प्रणमति, निवसन्ति, प्रयच्छति, उपानयन्, आनयत्, उदभवन्, अनुभवन्ति, अवतरिष्यति, प्रभवि-
ष्यामि, विवदतः, सञ्जायन्ते, प्रतपति, विजयते, प्ररोहति, व्याहरन्ति स्म, प्रहरिष्यति, आहरिष्यति, अनुहरन्ति, परित्यजन्ति, आहरन्ति।
| शब्दरूपाणि— | पुत्रः | पुत्रौ | पुत्राः | रत्नम् | रत्ने | रत्नानि |
| क्रियारूपाणि— | अवसत् | अवसताम् | अवसन् |
| अवसः | अवसतम् | अवसत | |
| अवसम् | अवसाव | अवसाम |
व्याकरणसुभाषितम्—
उपसर्गेण धात्वर्थो बलादन्यत्र नीयते।
प्रहाराहारसंहारविहारपरिहारवत्॥
—०—
एकोनविंशः पाठः
—०—
विशेषणानि—
शब्दसमूहो वाक्यम्। वाक्ये शब्दानां विशेषणानि भवन्ति। यः शब्दोऽन्यशब्दस्य विशेषतामभिव्यञ्जयति स तस्य विशेषणम्।
| पर्यायाः— | चञ्चलः = चपलः | मुदितः = प्रसन्नः |
| कातरः = भीरूः | मन्दः = अलसः | |
| श्यामः = असितः | वन्यः = जाङ्गलः | |
| अहंयुः = अहंकारवान् | स्वादूनि = मधुराणि | |
| तुङ्गः = उच्चः | पुष्पितः = संजातपुष्पः | |
| विशालः = महान् | निपुणः = प्रवीणः |
| सविशेषणानि वाक्यानि— | |
| कृपालुः देवः विश्वं रक्षति | |
| ग्रीष्मे सूर्यः प्रचण्डो भवति |
| आषाढे श्यामाः मेघा वर्षन्ति | |
| सज्जनाः पुरुषाः परानुपकुर्वन्ति | |
| वराः बालाः धूलौ न खेलन्ति | |
| योग्याः छात्राः परीक्षासूत्तीर्णा भवन्ति | |
| कातरो नरः कार्यात् पलायते | |
| कृष्णोऽपि पिकः मधुरं वदति | |
| श्वेतोऽपि वकः हंसो न भवति | |
| भयङ्कराः सर्पा विलेषु वसन्ति | |
| पूर्णः चन्द्रः आकाश भाति | |
| वर्षाषु मुदिता भेका नदन्ति | |
| वृक्षेषु स्वादूनि फलानि जायन्ते | |
| बालः मेलासु नवानि वस्त्राणि धरन्ति | |
| तुङ्गास्ताला वरं न फलन्ति | |
| रक्तानि भवन्ति पलाशस्य पुष्पाणि | |
| सदाफलो भवति नारिकेलः | |
| नवानि पल्लवानि धरन्ति वृक्षा वसन्ते | |
| वर्षारम्भे आम्रस्य फलानि परिपाकं लभन्ते |
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कथंभूतो देवः विश्वं रक्षति? कदा सूर्यः प्रचण्डं तपति? कदा चन्द्रः नवीनो भवति? कदा श्यामाः मेघा गर्जन्ति वर्षन्ति च? के सदैव परोपकारं कुर्वन्ति? कथंभूता बालाः धूलौ न खेलन्ति? कथंभूताः छात्राः परीक्षासु उत्तीर्णा भवन्ति? कथंभूतो नरः कार्यक्षेत्रात् पलायते? कः कृष्णोऽपि कोकिलेषु न मिलति? कथंभूतो वकः हंसेषु प्रविसति? क्व निवसन्ति भयंकराः सर्पाः? कथंभूतः
चन्द्रः पूर्णिमायामाकाशे विभाति? कथंभूता भेकाः जलाशयेषु तरन्ति? कथंभूता वृक्षाः स्वादूनि फलानि न फलन्ति? केषां पुत्रा उत्सवेषु नवानि वस्त्राणि धरन्ति गच्छन्ति च देवमन्दिरम्? क्व सदाफलो नारिकेलः संजायते? क्व पुष्पिताः पलाशाः वनस्य शोभां वर्धयन्ति? कदा वृक्षा नवानि पल्लवानि पुष्पाणि फलानि च धरन्ति? कदा वयं पक्कानि आम्रफलानि चूषामः?
रचयत वाक्यानि— तुङ्गः, अहंयुः, श्यामः, कातरः, चञ्चलः, मन्दः, मुदितः, वन्यः, स्वादूनि, पुष्पितः, निपुणः।
| शब्दरूपाणि— | |||||||
| कः | कौ | के | कस्मात् | काभ्यां | केभ्यः | ||
| कम् | कौ | कान् | कस्य | कयोः | केषाम् | ||
| केन | काभ्याम् | कैः | कस्मिन् | कयोः | केषु | ||
| कस्मै | काभ्याम् | केभ्यः |
| अस्धातो पञ्चलकारेषु रूपाणि— | |||||||
| लट्— | अस्ति | स्तः | सन्ति | लोट्— | अस्तु | स्ताम् | सन्तु |
| असि | स्थः | स्थ | एधि | स्तम् | स्त | ||
| अस्मि | स्वः | स्मः | असानि | असाव | असाम | ||
| लृट— | भविष्यति | भविष्यतः | भविष्यन्ति | लिङ्— | स्यात् | स्याताम् | स्युः |
| भविष्यसि | भविष्यथः | भविष्यथ | स्याः | स्यातम् | स्यात | ||
| भविष्यामि | भविष्यावः | भविष्याम | स्याम् | स्याव | स्याम | ||
| लङ्— | आसीत् | आस्ताम् | आसन् | ||||
| आसीः | आस्तम् | आस्त | |||||
| आसम् | आस्व | आस्म |
सुभाषितम्—
संस्कृतं यस्तु जानामि स देवो न तु मानुषः।
संस्कृतं यो न जानाति न देवो न तु मानुषः॥
—०—
विंशः पाठः
–≍♦≍–
गृहम्
| शब्दकोषः— | इदम् | एतत् | शैलखण्डैः | शिलाभिः | |
| मम | मामकम् | दुग्धम् | क्षीरम् | ||
| द्रव्यैः | वस्तुभिः | कारितम् | निर्मापितम् | ||
| निर्मितम् | कृतम् | महानसम् | भोजनगृहम् | ||
| सुधा | चूर्णम् | सूदः | पाचकः |
इदम् गृहम्। कस्य गृहमिदम्? इदं मम गृहम्। कैः कैः द्रव्यैः निर्मितमिदम्? इष्टिकाभिः सुधया शैलखण्डैश्च निर्मितमेतत्। केन कारितमिदम्? एतन्मम पितामहेन कारितमासीत्। कति भूमिकाः सन्त्यत्र? अस्मिन् तिस्रो भूमिकाः सन्ति। तासु बहवः कोष्ठाः सन्ति। तेषु कोष्ठेषु बहूनि शयनभवनानि स्नानागारं महानसं चास्ति। तत्र महानसे पाचकः भोजनं पचति। स ओदनं रोटिकाः शाकानि लड्डुकानि वाटिका दधि दुग्धमन्यानि च खाद्यवस्तूनि भोक्तुं सज्जीकरोति। गेहे बहूनि वस्तूनि भवन्ति। तत्र पीठानि फलकाः पर्यङ्काः लेखनाधाराः पुस्तकाधाराश्च सन्ति। ननु कैः कैः द्रव्यैः आच्छादितमिदं गृहम्? इदं तावत् मृत्खर्परैराच्छादितमस्ति। अस्य प्राङ्गणे एका वापी वर्तते। तस्यां शीतलानि मधुराणि च सन्ति जलानि। अपि युष्माकं निवासस्योपकण्ठे गृहोपवनम्? आम्, वर्तते तत्र गृहोपवनम्। अहो! इदमत्र रुचिरं गृहोपवनम्। एतस्मिन् बहुविधानि पुष्पाणि विकसितानि सन्ति। वयमत्र खेलामः, निवसामश्च सुखेन गृहपरिकरेऽस्मिन्।
गृहे चास्मिन्—
अन्नमस्ति जलं चास्ति धनमस्ति च गोधनम्।
जननीजनकौ च स्तः बान्धवाश्च गृहेऽत्र नः॥
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
किमिदम्? कैः द्रव्यैः कृतमिदम्? केन कारितमिदम्? अत्र कति भूमिकाः सन्ति? तत्र कति कोष्ठाः सन्ति? कुत्र भोजनं पचति सूदः? स कानि कानि खाद्यानि करोति? कानि कानि उपकरणानि महानसे सन्ति? कीदृक् गृहमिदम्? कैः छादितं वर्तते गृहम्? क्व वर्तते वापी? तत्र कीदृक् किमस्ति? क्व निवसामो वयम्?
रचयत वाक्यानि— कति, अत्र, वापी, जलानि, तिस्रः, कीदृक्, तासु, इदम्, सन्ति, उपवने, सूदः, मधुरम्।
सुभाषितम् —
आद्यमावश्यकं भोक्तुं द्वितीयं वसनं नृणाम्।
तृतीयं वाञ्छितं गेहमावश्यकमिदं त्रयम्॥
–≍⇔≍–
एकविंशः पाठः
—०—
विद्यालयः
–≍≍–
| शब्दकोषः— | भव्यम् = सुन्दरम् | कक्षा = वर्गः |
| पुरः = अग्रे | प्राज्ञाः = विज्ञाः | |
| संवेशिनी = काष्ठपीठम् | अध्यापकः = पाठकः | |
| आसन्दी = पीठासनम् | पूर्वजाः = पुरातनाः | |
| उपविशन्ति = तिष्ठन्ति | विपुलम् = प्रचुरम् |
अयमस्माकं विद्यालयः। विशालं भव्यं च भवनमिदम्। नगरात् बहिः वर्तते विद्यालयोऽयम्। अस्याः पुरो भागे उद्यानमस्ति। भवनेऽस्मिन् तिस्रः भूमिकाः सन्ति। भूमिकासु कोष्ठाः सन्ति। कोष्ठेषु कक्षाः सन्ति। कक्षायां छात्राः संवेषिनीषु उपविशन्ति। अध्यापकाश्च तत्र आसन्दीषु तिष्ठन्ति। अध्यापकस्य पुरस्तात् फलकं भवति, यत्र स पुस्तकानि, लेखनी, मसीपात्रं च रक्षति।
विद्यालयेऽस्माकं प्रथमा मध्यमा शास्त्रीया आचार्या चेति कक्षाः सन्ति। अहं प्रथमायां कक्षायां पठामि। मम कक्षायां चत्वारिंशत् छात्राः सन्ति। सर्वासु कक्षासुत्रीणि शतानि सन्ति छात्राणाम्। शालायां पञ्चदश अध्यापकाः सन्ति। वयमत्र संस्कृतस्य माध्यमेन पठामः शास्त्राणि। अस्माकमध्यापकाः प्राज्ञाः सन्ति।
वयमत्र वेदान्, व्याकरणम्, न्यायशास्त्रम्, ज्योतिषम्, आयुर्वेदम्, पदार्थविज्ञानम्, गणितम्, काव्यानि अन्यानपि च शास्त्राणि पठामः। पूर्वजैः मुनिभिः कृतेभ्यः शास्त्रेभ्यः विपुलं ज्ञानं लभामहे वयम्। शास्त्रज्ञानं हि नेत्राणि उन्मीलयत्यस्माकम्। यथोच्यते—
अनेकसंशयोच्छेदि परोक्षार्थस्य दर्शकम्।
सर्वस्य लोचनं शास्त्रं यस्य नास्त्यन्ध एव सः॥
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
अपि विशालं भवनं विद्यालयस्य अस्माकम्? क्व वर्तते विद्यालयो नः? किं वर्तते विद्यालयस्य पुरो भागे? क्वास्ति विद्यालयः? विद्यालयस्य कति भूमिकाः सन्ति? भूमिकासु कति कोष्ठाः सन्ति? एकस्मिन् वर्गे सर्वे कति संवेशिन्यः सन्ति? के आसन्दीषु तिष्ठन्नि? क्व अध्यापकः? पुस्तकानि लेखनी मसीपात्रं च रक्षति। कत्यध्यापकाः सन्ति विद्यालये? किं करोति शास्त्रमस्माकम्?
रचयत वाक्यानि—
पुरः, पुरस्तात्, उद्याने, भूमिकाः; कोष्ठाः; कक्षायाम्; प्रथमायाम्; मुनिभिः, प्राज्ञा, आसन्दीषु, भव्यम्।
विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्म्मं ततः सुखम्॥
—०—
द्वाविंशः पाठः
—♦—
परमेश्वरः
| शब्दकोषः— | ईश्वरः = परमेश्वरः | कर्त्तुम् = करने के लिए |
| गोप्ता = रक्षकः | अकर्त्तुम् = उल्टा करन के लिए | |
| अखिलम् = सम्पूर्णम् | समर्थः = शक्तः | |
| जगत् = संसारः | निग्रहः = दण्डः | |
| वाति = चलति | अनुग्रहः = कृपा | |
| विभुः = व्यापकः | ग्लानिः = हानिः | |
| पितामहः = पितुः पिता | एषः = अयम् |
ईश्वरो विश्वस्य कर्त्ता भुवनस्य गोप्तेति वेदा वदन्ति। ततः एवाखिलं जगत् प्रभवति, तत्रैव प्रकाशते तस्मिन्नेव च लीयते, तज्जलानि इति उपनिषदः प्रमाणम्। तस्यैवाज्ञया सूर्यस्तपति, चन्द्रः प्रकशते वायुश्च वाति। स एव जगतः पिता, गुरुभ्यो गरीयान्, महतो महीयान् आदिबीजम्, स्वयंभूः, देवदेवः, परात्परः, अजन्मा, विभुः अकर्मा अनन्तशक्तिः, आश्चर्यकर्मा, परमात्मा, स्वयं प्रकाशः, पुरुषोत्तमः, देवदेवः महेश्वरः, पितामहः च अस्माकम्, स तु कर्त्तुमकर्त्तुमन्यथाकर्त्तुं समर्थः, स एव सर्वतन्त्रस्वतन्त्रः, स एव निग्रहानुग्रहे प्रभवति, स भक्तानां प्रियः, धर्मगोप्ता, स एष रमणः, स एष शरणं नः, स एष धर्मग्लानौ पापानां वृद्धौ च सत्यां तन्नाशाय रक्षणाय च लोकानां शरीरधर्मा च जायते। स लोकरक्षायै अवतारं गृह्णाति।
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कः विश्वस्य कर्ता? कस्मात् अखिलं जगत् जायते? कस्मिन् लीयते संसारः? कस्याऽऽज्ञया सूर्यः तपति? कः अस्माकं पितामहः? किं वदन्ति वेदाः? क्व उपनिषदः प्रमाणम्? कः कर्त्तुम् अकर्त्तुम् अन्यथाकर्त्तुं च समर्थः? कः भक्तानां प्रियः? क धर्मं
गोपायति? कदा स आत्मानं सृजति?
रचयत वाक्यानि—
विश्वस्य, गोप्ता, ततः, प्रभवति, आज्ञया, वाति, गरीयान्, महीयान्, निग्रहः, अनुग्रहः, यदा, अभ्युत्त्थानम्, सृजामि।
| शब्दरूपाणि— | कर्त्ता | कर्त्तारौ | कर्त्तारः | गोप्ता | गोप्तारौ | गोप्तारः | |
| धातुरूपाणि— | जायते | जायेते | जायन्ते | लीयते | लीयेते | लीयन्ते |
वाचनम्—
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
—०—
त्रयोविंशः पाठः
—♦—
गौः माता
| शब्दकोषः— | |
| मङ्गलदर्शना = शुभदर्शना | वर्णाः = रङ्गाः |
| प्रकृत्या = स्वभावेन | धृतम् = आज्यम् |
| साध्वी = सुस्वभावा | पथ्यम् = स्वास्थ्यकरम् |
| शृङ्गम् = विषाणम् | धान्यम् = अन्नम् |
| परिणाहि = विशालम् | मुख्यम् = प्रधानम् |
| सास्ना = गलकम्बलम् | भुक्ता = खादित्वा |
| धात्री = रक्षिका | तोयम् = जलम् |
गौः मङ्गलदर्शना। सा प्रकृत्या आकारेण च परमा साध्वी भवति। तस्याः सखुराः चत्वारः पादाः भवन्ति। तस्याः पुच्छं लम्बम्, सरलं शृङ्गयुगलम्, शोभने विशाले च नेत्रे, शिथिलं कर्णद्वयं च परिचाययन्ति साधुताम्। गोः सास्ना भवति। तस्याः परिणाहि ऊधः, चत्वारः पयोधराः स्तस्याश्च भवन्ति।
गवाम् अनेके वर्णा भवन्ति। ताः श्यामाः गौर्यः धवला घूसराश्च भवन्ति। ताः भारताद् बहिः जापानेऽमेरिकायामपि च जायन्ते।
गौः घासं बुसं धान्यं च खादति। साऽल्पचर्वितं निगिलति खाद्यम्, पुनः रोमन्थं च करोति। सा धात्री अस्माकम्। सा दुग्धं ददाति अस्मभ्यम्। तस्या दुग्धेन बालाः वृद्धाः युवानश्च जीवन्ति। तस्या दुग्धाद् दधि भवति, दध्नतक्रम्, नवनीतम्, घृतं च जायते। गोः दुग्धमारोग्यकरं पथ्यं भवति। शिशुभ्यः रुग्णेभ्यश्च वैद्याः तद् पथ्यं दातुम् आदिशन्ति। गौः बलीवर्दान् जनयति, ये च हलेन क्षेत्राणि कृष्ट्वा धान्यम् उत्पादयन्ति येन वयं जीवामः। पुरा गोधनं जनानां मुख्यं धनमासीत्। तदा लोकाः स्वस्थाः बलवन्तः वीराश्चाऽभवन्।
गौः अस्माभिः माता इव पूजनीया, देवता इव दर्शनीया, दीना इव दयनीया, निधिरिव रक्षणीया चाऽस्ति।
पुरा भगवान् श्रीकृष्णः गोव्रजं रक्षित्वा क्लोकानां कृते उदाहरणम् उपस्थापयति स्म। परमोपकारिण्यः सन्ति खलु गावोऽस्माकम्। गोरक्षणमस्माकं कर्तव्यम्।
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
कास्ति मङ्गलदर्शना? कस्याः पुच्छं लम्बम्? कस्या नेत्रे शोभने विशाले च? क्व भारताद् बहिः जायन्ते गावः? का रोमन्थं करोति? काऽस्माकं धात्री? किं किं ददाति गौः? गोः वत्साः किमुपकुर्वन्ति? के क्षेत्रेषु हलं वहन्ति? के धान्यमुत्पादयन्ति? किं पुरा जनानां मुख्यं धनमासीत्? केव गौः दर्शनीया? केव सा रक्षणीया? कः गोरक्षणं कृत्वा उदाहरणमुपस्थापयति स्म? केन हेतुना गावः लोकस्य मातरः?
रचयत वाक्यानि—
प्रकृत्या, साध्वी, पुच्छम्, नेत्रे, सास्ना, ऊधः, वर्णाः, रोमन्थम्, बुसम्, धात्री, पथ्यम्, धान्यम्, मुख्यम्, देवता इव,
उदाहरणम्, तृणानि, मातरः।
| शब्दरूपाणि— | गौः | गावौ | गावः | गाम् | गावौ | ||
| गवा | गोभ्याम् | गोभिः | गवे | गोभ्याम् | |||
| धातुरूपाणि— | गिलति | गिलतः | गिलन्ति, | दिशति | दिशतः | दिशन्ति |
वाचनम्—
भुक्त्वा तृणानि शुष्काणि पीत्वा तोयं जलाशयात्।
दुग्धं ददति लोकेभ्यो गावो लोकस्य मातरः॥
—०—
चतुर्विंशः पाठः
—♦—
रामायणी कथा
| शब्दकोषः— | |
| सुतौ = पुत्रौ | विधातकान् = नाशकान् |
| आत्मजायाः = सुनायाः | मुनिभिः = तापसैः |
| साकम् = सार्धम् | अनुजः = लघुभ्राता |
| आस्थाय = उपविश्य | पितुः = जनकस्य |
| कृतविद्या = लब्धविद्या | पिनाकम् = धनुः |
| यागस्य = यज्ञस्य | चिरम् = बहुकालम् |
आसीत् पुरा अयोध्यायां महाराजो दशरथः। तस्य कौशल्या कैकेयी सुमित्रा चेति तिस्रो भार्या आसन्। ताभ्यः तस्य चत्वारः पुत्राः अभवन्। कौशल्यायाः रामः, कैकेय्याः भरतः, लक्ष्मणशत्रुघ्नौ च सुमित्रायाः सुतौ आस्ताम्।
ते राजकुमाराः गुरोः वशिष्ठात् सर्वाणि शास्त्राणि अपठन्, विश्वामित्रात् च शस्त्रविद्याम्। कृतविद्यास्ते सुशीलाः विनीताः लोकप्रिया-
श्चासन्। ते मातापित्रोः भक्ताः गुरूणामाज्ञाकराः प्रजायाः स्नेहभाजनाश्च अभवन्। तेषु रामः परमः पितुः भक्तः आसीत्।
एकदा रामलक्ष्मणौ विश्वामित्रेण सह तस्याश्रममगच्छताम्। विश्वामित्रः मुनिभिः साकं यज्ञमकरोत्। तत्र राजकुमारौ तौ यागस्य विधातकान् राक्षसान् अहताम्, अरक्षतां च ऋषीन्। ततस्तौ मुनिना सार्धं जनकपुरमगच्छताम्। तत्र जनकस्य आत्मजायाः स्वयंवरोऽभवत्। रामस्तत्र शिवस्य पिनाकं भङ्त्त्वा सीतां पर्यणयत्। अन्येषामपि तस्य भातृृणां तत्रैव जनकगृहे विवाहा अभवन्। ततोऽयोध्यायां महाराजः दशरथो रामाय राज्यं दातुमैच्छत्। सर्वेऽपि तदाराज्याभिषेकस्य संभाराः कल्पिता आसन्। एतस्मिन्नन्तरे मन्थरा नाम दासी कैकेयीम्— ‘रामे भूपतौ तव सुतो दासो भविष्यति, न तदा त्वां कोऽपि राजमातरं कथयिष्यति’ इत्युपाजपत्। कैकेयी च नृपालमुपजप्य भरताय राज्यं रामाय वनवासं च दातुं हठमकरोत्।
ततो राजा रामाय वनवासमददात्। पितुः आदेशेन रामः सीता च वनमगच्छताम्। लक्ष्मणोऽपि तौ अन्वगच्छत्। वने च तत्र राक्षसानां राजा रावणः सीतामहरत्। रामोऽपि बालिनं हत्वा सुग्रीवेण सह मैत्रीमकरोत्। स मित्रस्य साहाय्येन महत्या वानराणां सेनया रावणस्य राजधानीं लङ्कां समाक्रमत्। ततो रामरावणौ घोरम् अयुध्यताम्। जनाः ‘रामरावणयोर्युद्धं रामरावणयोः समम्, इत्यकथयन्। रामः सर्वं राक्षसकुलमहन्। रावणस्यानुजो विभीषणस्तु युद्धात् प्रागेव रामं शरमणगच्छत्। रामः तं लङ्कापतिं कृत्वा सीतामादाय सपरिकरोऽयोध्यां प्रत्यागच्छत्। तत्र राजासने आस्थाय चिरं प्रजामशिषत्। स लोकाराधनतत्परः आसीत्। तस्य राज्ये लोकाः समृद्धाः सुरक्षिताः सुखिनश्चासन्। रामचन्द्रो लोकमर्यादामरक्षत्। तं जना मर्यादापुरुषोत्तममाहुः।
लिखतः प्रश्नानामुत्तराणि—
का आसीत् दशरथस्य राजधानी? दशरथस्य कति भार्याः आसन्? कानि तासां नामानि? दशरथस्य कति पुत्रा आसन्? कस्मात् राजकुमाराः शास्त्राणि अपठन्? केन साकं ते आश्रममगच्छन्? कस्य ते रक्षाम् अकुर्वन? क्व रामस्य परिणयः अभवत्? मन्थरा किम् अकरोत्? दशरथः रामं किम् आदिशत्? रावणः किमकरोत्? रामः किमकरोत्? केन जनाः रामं मर्यादापुरुषोत्तमं कथयन्ति?
रचयत वाक्यानि—
अयोध्यायाम्, भार्याः, ऋषिभिः, सीतायाः, वनवासम्, यागस्य, राक्षसानाम्, पितुः, मातुः, भ्रातृषु, वन्दामहे, भजामहे।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| सर्वः | सर्वौ | सर्वे | सर्वम् | सर्वे | सर्वाणि | |
| भ्राता | भ्रातरौ | भ्रातरः | सीता | सीते | सीताः |
| धातुरूपाणि— | ||||||
| हन्ति | हतः | घ्नन्ति | अहन् | अहताम् | अघ्नन् | |
| वन्दते | वन्देते | वन्दन्ते | वन्दसे | वन्देथे | वन्दध्वे | |
| वन्दे | वन्दावहे | वन्दामहे |
वाचनम्—
वन्दामहे महेशानचण्डकोदण्डखण्डनम्।
जानकीहृदयानन्दचन्दनं रघुनन्दनम्॥
—०—
पञ्चविंशः पाठः
—♦—
भारतीकथा
| शब्दकोषः— | |
| वंशे = कुले | भागिनेयः = भगिनीपुत्रः |
| भार्या = पत्नी | पाणिभ्याम् = इस्ताभ्याम् |
| कुशलाः = दक्षाः | अनर्घाणि = बहुमूल्यानि |
| द्वेषम् = वैरम् | विचित्रा = अद्भुता |
| दूतम् = सन्देशहरम् | स्वर्गम् = देवलोकम् |
| अनेके = बहवः | विश्वस्य = सर्वस्य |
| रणे = संग्रामे | विजित्य = जित्ता |
पुरा भरतस्य वंशे धृतराष्ट्रः पाण्डुश्च युवराजौ आस्ताम्। धृतराष्ट्रः ज्येष्ठः अन्धश्च, पाण्डुः कनिष्ठः रुग्णश्च अभवत्। गान्धारी धृतराष्ट्रस्य भार्या आसीत्। पाण्डोश्च कुन्ती माद्री च भार्ये अभवताम्। कुन्तीं बान्धवाः पृथाम् आहुः। धृतराष्ट्रस्य ते दुर्योधनः दुःशासनः दुःशल्यः, सर्वे च शतं पुत्राः आसन्। पाण्डोश्च पञ्च पुत्राः। तेषु युधिष्ठिरः भीमः अर्जुनश्च पृथायाः पुत्राः अभवन्। नकुलः सहदेवश्च माद्रीसुतौ अभवताम्। जनाः पाण्डोः सुतान्, पाण्डवान्, धृतराष्ट्रपुत्रान् च कौरवान् आहुः। पाण्डवेषु कौरवेषु चापि युधिष्ठिरः गुणैः श्रेष्ठः ज्येष्ठश्च आसीत्। इति उपरते पाण्डौ धृतराष्ट्रः तं युवराजं विधाय भीष्मपितामहस्य विदुरस्याऽपि च मन्त्रित्वे राज्यमशिसत्। कालेन कुमाराः सर्वासु विद्यासु कुशलाः अभवन्। विशेषेण युधिष्ठिर राजनीतौ, भीमः मल्लयुद्धेषु, अर्जुनः धनुर्विद्यायाम् नकुलः अश्वसंचालनेषु, सहदेवः ज्योतिषे, दुर्योधनः विविधयुद्धकलासु दुःशासनश्च कूटनीतिषु निपुणः आसीत्।
अन्धे पितरि राजकार्यं प्रायः दुर्योधन-दुःशासनौ एव अकुर्वाताम्। कौरवाः पाण्डवेभ्यः भयम्, पदे पदे पराजयं च लब्ध्वा तेभ्यः द्वेषं कर्त्तुम् आरभन्त। मायाविनस्ते द्यूते पाण्डवान् जित्वा तेषां सर्वस्वम् अपाहरन्। सभार्यास्ते द्वादश वर्षाणि वनेऽवसन्, वत्सरम् अज्ञातवासं च। वनात् प्रत्यागत्य कुलस्य कल्याणामिच्छुः युधिष्ठिरः दुर्योधनेन सन्धिं कर्त्तुम् ऐच्छत्। स श्रीकृष्णं दूतं व्यसृजत्। वासुदेवः पाण्डवानां कृते दुर्योधनाद् अर्धं राज्यम् अचायत, अन्ते च ‘पञ्चभिरेव ग्रामैः अपि प्रदत्तैः सन्तुष्टाः भविष्यन्ति त, इति कौरवसभायां व्याहरत् सः। दुर्योधनस्तु, सूच्यग्रं नैव दास्यामि विना युद्धेन केशवः, इत्यघोषयत्।
प्रारब्धः संग्रामः। वीराः रणे प्राणान् व्यमुञ्चन्। तत्र गुरून् शिष्याः, पितॄन् पुत्राः, भ्रातृृन् भ्रातरः, पौत्रान् पितामहाः, पितामहान् पौत्राः, पितृव्यान् पितृव्यपुत्राः, भागिनेयाः मातुलान्, मित्राणि मित्राणि च अघ्नन्। अन्ते भीमः दुःशासनं हत्वा तस्य रुधिरोक्षिताभ्यां गणिभ्यां द्रौपद्याः केशपाशान् अवध्नात्।
ऋषयः धर्मराजं युधिष्ठिरं राज्येऽभ्यषिञ्चन्। पाण्डवाः देशान् विजित्य हस्तिनापुरम् (दिक्लीम्) राजधानीम् अकुर्वन्। धर्मराजः राजसूयं नाम यज्ञम् अकरोत्। तं नृपालाः अनर्घाणि रत्नानि उपाहरन्। चिरं समृद्धं राज्यं भुक्ता पाण्डवाः हैमालीयेन मार्गेण स्वर्गम् आवाप्नुवन्।
छात्राः? व्यासस्य महाभारतं विशालं विशिष्टं च काव्यम्। तत्र विविधाः विचित्राः च कथाः सन्ति। संस्कृतं ज्ञात्वा ताः पठिष्यथ यूयम्। वयं तं मुनिवरं व्यासं नमामः।
लिखत प्रश्नानामुत्तराणि—
धृतराष्ट्रस्य कति पुत्राः आसन्? के कौरवाः अभवन? के
पाण्डवाः अभवन्? पाण्डौ उपरते कः राजा अभवत्? केन हेतुना कौरवाः पाण्डवेभ्यः द्वेषमकुर्वन्? केन हेतुना पाण्डवाः वनमगच्छन्? कस्मात् युधिष्ठिरः दुर्योधनेन सन्धिमैच्छत्? किमर्थं श्रीकृष्णः दूतोऽभवत्? संग्रामे के के कान् कान् अघ्नन्? केषां विजयोऽभवत्? क्व पाण्डवाः राजधानीमकुर्वन्?
रचयत वाक्यानि—
युवराजौ, बान्धवा, निपुणः, कल्याणम्, पौत्रान्, मित्राणि, हत्वा चिरम्, देशान्, स्वर्गम्, वत्सरम्, कुशलाः।
| शब्दरूपाणि— | ||||||
| भानुः | भानू | भानवः | भानुम् | भानू | भानून् | |
| भार्या | भार्ये | भार्याः | नदी | नद्यौ | नद्यः |
| धातुरूपाणि— | ||||||
| आसीत् | आस्ताम् | आसन् | अभवत् | अभवताम् | अभवन् | |
| करोति | कुरुतः | कुर्वन्ति | अकरोत् | अकुर्वताम् | अकुर्वन् |
वाचनम्—
सर्वज्ञाय नमस्तस्मै व्यासाय प्रभविष्णवे।
योऽकरोदद्भुतं काव्यं सारं विश्वस्य भारतम्॥
—०—
साधुसुभाषितानि
—≍≍—
[१]
ईश्वरः सर्वलोकस्य पिता पालयते जगत्।
स तिलं कुरुते तालं तालं च कुरुते तिलम्॥
[२]
मूर्खाः कुलेषु प्राज्ञानां सज्जना न च दुर्जनाः।
प्रसूते कज्जलं दीपः पङ्कः सूते च पङ्कजम्॥
[३]
प्रायो महाप्रतापाना निष्प्रतापाः प्रसूतयः।
सूर्यात् संजायते छाया कृशानो भस्मनां चयः॥
[४]
शोभते दातुराम्रस्य धनच्छायस्य ह्रस्वता।
अनुदात्तस्य तालस्य तुङ्गतापि न शोभते॥
[५]
क्रोधं हरति क्रुद्धस्य शीतलं मधुरं वचः।
तापं हरति तप्तस्य शीतलं मधुरं जलम्॥
[६]
विनष्टः प्रत्ययो नृृणां न पुनः सम्प्रजायते।
न भूयः कल्पते दध्ने कदाचित् विकृतं पयः॥
[७]
महत्वमुपकारेण जायते न बृहत्तया।
खर्जूरीणां प्रजातानां जगत्या तुङ्गतां वृथा॥
[८]
दुर्गतेष्वपि प्रीयन्तं महन्तः साधवो जनाः।
प्रीतिः रामस्य सुग्रीवे सुदाम्नि केशवस्य च॥
—०—
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—०—
[[१]]1
चतुष्पदा न गौरस्मि गृहस्था नास्मि गेहिनी।
भूपण्डितसभ्यानां काऽहं कान्तेति प्रोच्यताम्॥
[[२]]2
शोभते सन्ध्ययोः सम्यग् जायते जलदागमे।
गगने द्योतते स्वैरं कोऽसौ सूर्यो न चन्द्रमाः॥
[[३]]3
सदारिमध्यो विश्वस्य मित्रं वर्षासु जातो झरणो न भेकाः।
शिरःसु गर्जन् खचरो न यानं वदन्तु कोऽहं शुभकृत् प्रजानाम्॥
[[४]]4
करौ मम स्तः प्रदशामि वेलां धावामि गोले चरणौ न मे स्तः।
पश्यामि नित्यं नयने न च स्तः विना मुखं कोस्मि वदामि नित्यम्॥
[[५]]5
आयामि सायं सायं च नित्यं प्रायामि प्रातः प्रातः सदैव।
निद्रान्ति लोका मय्यागतायां निद्रा न भङ्गा माया च काहम्॥
[[६]]6
दण्डः पताकापरिमण्डितोऽस्मि पत्रावृताङ्गः सरलः सुतुङ्गः।
सुग्रन्थिवानस्मि रसप्रदोस्मि वदन्तु कोहं मधुरोत्तमानाम्॥
[[७]]7
पक्षौ न मे स्तः चरणौ च न स्तः भ्रमामि नित्यं गगने प्रगल्भः।
बद्धोऽस्मि सूत्रेण सदा प्रियेण कोऽहं विचित्रोऽभिमतः शिशूनाम्॥
संस्कृतस्य महाकवयः
______
वाल्मीकिः—
सदूषणापि निर्दोषा सखरापि सुकोमला।
नमस्तस्यै कृता येन रम्या रामायणी कथा॥
व्यासः—
नमः सर्वविद तस्मै व्यासाय कविवेधसे।
चक्र पुण्यं सरस्वत्या यो वर्षमिव भारतम्॥
कालिदासः—
निर्गतामलवाक्यस्य कालिदासस्य सूक्तिषु।
प्रीतिर्मधुरसान्द्रासु मञ्जरीष्विव जायते॥
बाणः—
हृदि लग्नेन वाणेन यन्मन्दोऽपि पदक्रमः।
भवेत् कविकुरङ्गाणां चापलं तत्र कारणम्॥
दण्डी—
त्रयोऽग्नयः त्रयो वेदाः त्रयो देवास्त्रयो गुणाः।
यो दण्डिप्रबन्धाश्च त्रिषु लोकेषु विश्रुताः॥
भवभूतिः—
भवभूतेः सम्बन्धात् भूधरभूरेव भारती भाति।
एतत्कृतकारुण्ये किमन्यथा रोदिति ग्रावा॥
भासः—
सूत्रधारकृतारम्भै नाटकैः बहुभूमिकैः।
सपताकैः यशो लेभे भासो देवकुलैरिवः॥
मुरारिः—
मुरारिपः भक्तिश्चेद् तदा माघे मतिं कुरु।
मुरारिपदभक्तिश्चेत् तदा माऽघे मतिं कुरु॥
माघः—
उपमा कालिदासस्य भारवेरर्थगौरवम्।
दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति त्रयो गुणाः॥
सुबन्धुः—
कवीनामगलद्दर्पो नूनं वासवदत्तया।
शत्तयेव पाण्डुपुत्राणां गतया कर्णगोचरम्॥
मयूरः—
तावत् कवि विहङ्गानां ध्वनिर्लोकेषु शस्यते।
यावन्नानामविशति श्रोते मयूरमधुरध्वनिः॥
—०—
]