मैट्रिक्-संस्कृत-व्याकरणः

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मैट्रिक संस्कृत—व्याकरण

लेखक

पं० गुरुदत्त शास्त्री ओ., टी.,

(व्याकरण मध्यम) वेद वाचस्पति

मुख्य संस्कृताध्यापक

डी. ए. वी. हाई स्कूल वटाला

पञ्जाब यूनीवर्सिटी की मैट्रिक परीक्षा के नवीन
(सिलेबस) के अनुसार

प्रकाशक

अतरचन्द कपूर एण्ड सन्ज़,

अनारकली लाहौर।

१६३३

** पं० गुरुदत्त जी प्रणीत व्याकरण नवम, दशम श्रेणी के विद्यार्थियों के लिए लिखा गया है। पं० जी ने अपने वर्षों के पढ़ाने के अनुभव का इस में बहुत योग किया है। पुस्तक सरल और बहुत उपयोगी है। अनुवाद के लिए जो वाक्य दिए गए हैं, वे परिश्रम से वनाए गए हैं और अभ्यास के लिए बहुत लाभकारी होङ्गे। विद्यार्थियों को इससे पूरा लाभ उठाना चाहिए।**

भगवद्दत्त बी. ए.।

अध्यक्षरिसर्च विभाग

दयानन्द एंग्लो वैदिक कालिज

लाहौर

२६–४–३३

** सत्स्वप्यन्य व्याकरण निबन्धेषु गुरुदत्त शास्त्रिणा विरचितोयं व्याकरणनिबन्धो वालव्युत्पत्ति हेतवे साधूपकार कारक इति समस्त विषय समालोचन पुरस्सर मनुमनुते विशेषतश्चानुवाद परिभाषा ज्ञान्तयश्लाघ्यत्मः परिश्रमः परीक्षार्थिना मर्थसाधक इति।**

** पाठक पाठ्यश्रमाल्पता साधकस्याम प्रचार माद्रियते।**

मुल्कराज शास्त्री

१६६० वै० प्र० ८

** गुरुदत्त शास्त्र कृत व्याकरण मैंने आद्योपान्त पढ़ा। पुस्तक पञ्जाब यूनिवर्सिटी के नियत किये नवीन सिलेबस के अनुसार मैट्रिक परीक्षा के विद्यार्थियों के लिये अतीव उत्तम ढंग से लिखी गई है। दूसरे व्याकरण निबन्धों की तरह इस में क्लिष्ट नियमों की भरमार नहीं। सन्धियों के नियम अत्यन्त सरल तथा सुगम किये गए हैं। सभी विषय विद्यार्थियों की व्युत्पत्ति के लिए अत्यन्त उपयोगी तथा लाभकारी हैं। प्रत्येक पाठ के अनन्तर हिन्दीवाक्यों का अभ्यास तथा द्वितीय भाग में अनुवाद की परिभाषा के ज्ञान के लिये लिखे गए साधारण नियम अत्यन्त उपयोगी हैं।**

** पुस्तक छात्रों के लिए संस्कृत स्वयं शिक्षक का काम देगी और इस से विद्यार्थियों का महान उपकार होगा पं० जी का परिश्रम प्रशंसनीय है।**

गो० अमरनाथ

मुख्य संस्कृताध्यापक

मिशन हाईस्कूल

वटाला

** २१–४–३३**

** गुरुदासपुर मण्डलान्तर्गत बटालानगर वास्तव्य डी० ए० वी० हाईस्कूल संस्कृत मुख्याध्यापकेन विद्वदवरेण पं० गुरुदत्त शास्त्रिणा विरचितैयं व्याकरण पद्धतिः यूनिवर्सिटी पाठ्यक्रमानुसारिणी मैट्रिक परीक्षादित्सूनाम छात्राणामुपकृतये भविष्यतीति सन्तुष्य मयाप्यस्मै प्रशंसावादो वितीर्ण इत्याशमेऽहं विदुषाम् नितरां सन्तुष्टि मुत्पाद्येयं धीमतोऽस्य परिश्रमसाफल्यं जनयिष्यति।**

पं० हंसराज

मुख्य संस्कृताध्यापकः

ऐम० बी० हाईस्कूल

बटाला

** 21st,April 1983**

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व्याकरण

जिस विद्या के द्वारा शुद्ध और अशुद्ध शब्दों का ज्ञान हो उसे व्याकरण कहते हैं।

२—व्याकरण के तीन भाग हैं—

वर्ण विचार पदविचार वाक्यविचार

१—वर्णजिह्वाऔर कण्ठतालु आदि के संयोग मे पैदा हुई ध्वनि को वर्णकहते हैं।

२—पद+वर्ण वा वर्णो के सार्थक समुदाय को पद कहते हैं। वाक्य—पदों के समूह को वाक्य कहते हैं—

वर्णों के दो प्रकार हैं

स्वर और व्यञ्जन

१—स्वर—जिन वर्णों का उच्चारण किसी दूसरे वर्ण की सहायता के बिना होसके उन्हें स्वर कहते हैं।

** जैसे—अ आइ ई उ ऊ ऋृ ऋृृ ऌऌॢ ए ऐ ओ औ अं अः**

** स्वर तीन प्रकार के हैं—ह्रस्व, दीर्घ और प्लुत।**

** जो एक मात्रा समय में बोला जाए वह ह्रस्व कहलाता है।**

** जिन के बोलने में दो मात्रा समय लगे उन्हें दीर्घ कहते हैं।**

** जिन के बोलने में निगुणा समय लगे उन्हें प्लुत कहते हैं—**

** यथा—ऊ इ उ ऋ लृ ह्रस्व स्वर हैं अन्य सब दीर्घ स्वर हैं। प्लुत के आगे ३ अंक लगाया जाता है। और ऊँची ध्वनि से बोला जाता है।**

** यथा—अ आ आ ३ इ ई ई ३ उ ऊ ऊ ३ ऋ ॠ ऋृ ३ ऌ ऌॢऌॢ ३ ए ऐ ऐ ३ ओ औ औ ३।**

व्यञ्जन

** क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह अनुस्वार विसर्गः ये ३५ हैं**

व्यञ्जन

** इन का स्वरूप स्वरों से पृथक् होता है किन्तु उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है।**

** कवर्ग—क ख ग घ ङ**

** चवर्ग—च छ ज झ ञ**

** टवर्ग—ट ठ ड ढ ण**

** तवर्ग—त थ द ध न**

** पवर्ग—प फ ब भ म—क से म तक २५ वर्ण स्पर्श कहलाते हैं—**

** अन्तस्थ—य र ल व**

** ऊष्म—श षस ह**

वर्णों के उच्चारण स्थान

** कण्ट्य—अ आ कवर्ग ह विसर्ग ये कण्ठ से बोले जाते हैं।**

** तालव्य—इ ई चवर्गय और श ये तालु से बोले जाते हैं।**

** मूर्धन्य—ऋ ॠ टवर्ग र और ष ये मूर्धा से बोले जाते हैं।**

** दन्त्य—लृ तवर्ग ल और स ये दान्तों के समीप भाग ले बोले जाते हैं।**

** ओष्ठ्य—उ ऊ पवर्ग और उपध्मानीय ये ओठों से बोले जाते हैं।**

** अनुनासिक—ङ ञ या न म अनुस्वार ये नासिका की सहायता से बोले जाते हैं।**

** कण्ठतालव्य—ए ऐ ये कंठ और तालु से बोले जाते हैं।**

** कण्ठौष्ठ्य—ओऔ ये कंठ और ओठों से बोले जाते हैं। **

अ इ उ (ण्) ॠ ऌ (क्) ए ओ (ङ्) ऐ औ (च्) हय वर (ट्) ल (ण्) ञ म ङ ण न (म्) झ भ (ञ्) घ ढ ध (श्) जब गड द (श्) खफ छठ (थ) चट त (व् ) क प (य्) श ष स (र्) ह (ल्)

प्रत्याहार बनाने की विधि

** यथा —अक् प्रत्याहार अ इ उ (ण्) ऋऌ (क्ः) अ से लेकर क् तक नोट् ( ) में दिया×हल, अक्षर प्रत्याहार में नहीं गिना जाता॥**

** यथा—अच्—अ से लेकर च् तक अ इ उ ऋ ऌ ए ओ ऐ औतक अच् प्रत्याहार कहलाता है।**

** प्रत्याहार वनाते समय आदि के अक्षर से अन्तिम अक्षर तक् योजना करनी चाहिये॥**

** यथा—झल्—झ स ल् तक झ म (ञ्) घ ढ ध (श) जब गढ़ दै(रा) खफ छठ (थ) चट न (व्) क प (य्) श षस (र) ह (ल)**

सन्धि प्रकरण

** वर्णों के मिलाप को सन्धि वा संहिता कहते हैं जिन के बीच में दूसरे वर्ग का व्यवधान न हो—**

सन्धि तीन तरह की होती है

** १—स्वर सन्धि—स्वर से परे स्वर हो।**

** २—व्यञ्जन सन्धि—हल् से पर हल् वा स्वर हो।**

** ३—विसर्ग सन्धि—विसर्ग से परे स्वर वा हल् हो।**

यण् सन्धि

** इ उ ऋ लृ को क्रम से य व र ल हो जाता है यदि परे असवर्ण स्वर हो—**

यथा—

** नदी+अभ्वु= नद्यभ्वु। भि+आगतः= अभ्यागतः। मधु+अरिः= मध्वरिः। साधु+आदेशः= साध्वादेशः। मातृ+उपदेशः= मात्रुपदेशः। लु+प्राकृतिः= लाकृति।**

दीर्घ सन्धि

** अ इ उ ऋ लृ से परे यदि सवर्ण स्वर हो तो दोनों की जगह एक दीर्घ स्वर हो जाता है।
यथा—**

** माता+अत्र= मातात्र। नदी+इरावती= नदीरावतीः। गौरी+ईशः= गौरीशः। मधु+उदकं= मधूदकं। साधु+उक्तम्=साधूक्तम्। पितृ+ऋणम्= पितॄणम्।**

गुण सन्धि

** अ वा आ से परे यदि इ वा ई हो तो ए=उ वा ऊ हो तो ओ ॠ वा ॠृ हो तो अर् ऌ वा ऌॢ हो तो अल् हो जाता है।**

यथा—

** सुर+ईशः= सुरेशः। देव+इन्द्रः= देवेन्द्रः। महा+उत्सवः= महोत्सवः। तव+उपदेशः= तवोपदेशः। राजा+ऋषिः= राजर्षिः। ग्रीष्म+ऋतुः= ग्रीष्मर्तुः। तव+ऌकारः= तवऌ्कारः।**

वृद्धिः

** अ वा आ से परे यदि ए वा ऐ ओ वा औहो तो दोनों के स्थान में क्रम से ऐ वा औ हो जाता है।**

यथा—

** तव+एषः= तवैषः। मम+एकः= ममैकः। नव+ओदनः= नवौदनः। उत्तम+ओजः= उत्तमौजः। देव+ऐश्वर्यं= देवैश्वर्यम्। मत+ऐक्यं= मतैक्यम्। मधुर+औषधं= मधुरौषधम्।**

अयादि चतुष्टय

** ए ऐ ओ औ से परे यदि (स्वर) अच् हो तो ए ऐ ओ औ (एच्) को क्रम से अय् आय् अव् आव् हो जाते हैं।**

यथा—

ने+अनम्= नयनम्। ने+अकः नायकः। भो+अति= भवति। भौ+उकः= भावुकः। पौ+अकः= पावकः।

य व लोप

पदान्त अय् अव् आय् आव् का य व उड़ जाता है विकल्प से यदि परे अश् हो—फिर सन्धि नहीं होती।

यथा—

कवये×एषः= कवय एषः—कवययेषः। गुरो×एतत्= गुर एतत्—गुरवेतत्। श्रियै+उत्सुकः= श्रिया उत्सुकः। श्रियायुत्सुकः। साधौ+अपि= साधा अपि— साधावपि।

अलोप

पदान्त ए वा ओ से परे यदि अ हो तो उसका लोप हो जाता है और परिचय के लिये ऽ अर्धाकार चिन्ह लग जाता है।

यथा—

हरे+अव= हरेऽव। विभो+अधुना= विभोऽधुना।

प्रकृतिभाव

द्विवचन के ई ऊ ए की प्रगृह्यसंज्ञा होती है फिर सन्धि नहीं होती।

कपी+इमौ= कपी इमौ। साधू+आस्तिकौ= साधू आस्तिकौ।

गंगे+अमू= गंगे अमू।

अदस्के म के साथ होने वाले ई वा ऊ की भी प्रगृह्यसंज्ञा हो जाती है

यथा—अभी+अश्वाः= अभी अश्वाः अमु+आसाते= अमू आसाते।

व्यञ्जन सन्धि

स वा वर्ग के पहिले वा पीछे यदि श वा चवर्ग हो तो स को श वा तवर्ग को यथा क्रम चवर्ग हो जाता है।

यथा—तत्+चित्रम्+तच्चित्रम्। भवद्+जयः= भवज्जयः। प्राज्+न= प्राज्ञः। कपयस् शेरते= कपयश्शेरते। दुस्+शीलः= दुश्शीलः।

(तवर्ग को टवर्ग और स को ष) तवर्ग वा स के पहिले वा पीछे यदि टवर्ग वा ष हो तो तवर्ग को क्रम से टवर्ग
और स को ष हो जाता है।

यथा—तत्+टीकते= तट्टीकते तत्+ठक्कुरः=तट्ठक्कुरः तद्+डिंडिमः= तड्डिणिडमःउत्+टङ्कणम् उट्टङ्कणम् शिष्—तः शिष्टः इष्+तम्= इष्टम् षष्+थःषष्ठः।

तवर्ग को ल

तवर्ग के आगे यदि ल हो तो तवर्ग को ल परन्तु न को अनुनासिक ल ही होता है।

यथा—भवत्+लेखः—भवल्लेखः तत्+लयः—तल्लयः विद्वान्+लिखति। विद्वाल्ँलिखति

(झल् को जश्) झ ल्को जश् हो जाता है यदि परे झ श् हो अर्थात् (जिस वर्ग का चौथा अक्षर हो उस को उसी का तीसरा हो जाता है।

यथा—लभ+धम्= लब्धम्। क्रुध्+धः क्रुद्धः।

झ ल्को ज श्

अन्तिम झ ल् को ज श् हो जाता है अर्थात् उसी वर्ग का तीसरा अक्षर हो जाता है।
यथा—दिक्+अम्वरः= दिगम्बरः। सम्राट्+गच्छति= सम्राड् गच्छति ग्रामात्+आगतः= ग्रामादागतः। दिक्+गजः= दिग्गजः—

झ ल् कोचर

झ ल् को चर् हो जाता है यदि परे खर् हो तो (जिस वर्ग का अक्षर हो उस को उसी का पहिला हो जाता है)।

यथा— स पद्+सु= संपत्सु विपद्+प्रतिकाराय= विपत्प्रति—काराय।

हराद्+कपाटः= हरात्कपाटः। संपद्+करी= संपत्करी।

ह को झय्का चौथा वर्ग

झय् से परे ह को पहिले के वर्ग का स वर्णी चौथा अक्षर विकल्प से हो जाता है।

यथा—वाक्+हरिः वाग्धरिः वाग्हरिः ककुभ्+हस्ती ककुभस्ती—ककुहस्ती जगत्+हिताय= जगद्धिताय जगद्हिताय। तत् हितम्—तद्धितम्

म् को अनुस्वार

पद के अन्त में म् को अनुस्वार हो जाता है यदि परे हल् हो तो।

गुरुम्+वन्दते= गुरुं वन्दते।

सर्वम्+सहः= सर्वं सहः।

अपदान्त न् म् कोअनुस्वार

अपदान्त न वाम को अनुस्वार हो जाता है यदि परे झल हो तो।

दन्xदशूकः= दहशूकः रम्+स्यते= रंस्यते॥

अपदान्त अनुस्वार को उसी यय् के वर्ग का पांच वां अक्षर हो जाता है यदि परे यय् हो।

यथा—कलंम्+कः= कलङ्कः। रम्+ता= रन्ता सशन्+कम्= सशङ्कम्। सम्+कल्पः सङ्कल्पः

पदान्त अनुस्वार को उसी यय् के वर्ग का पांच वां

अक्षर विकल्प से हो जाता है यदि परे यय् हो।

यथा—

धनम्+जयः= धनञ्जयः धनंजयः। वस्त्रं+तनोति वस्त्रन्तनोति वस्त्रंतनोति। किम्+क्रियते किङ्कियते किंकियते।

पदान्त यर् को उसी वर्ग का अनुनासिक विकल्प से हो जाता है यदि परे अनुनासिक हो।

यथा—

षट् णम् पराणाम् षड्णाम्।

प्राक् मुखः प्राङ्मुखः प्राग्मुखः।

सम्राट् मम सम्राण्मम सम्राड्मम।

जगत् नाथः जगन्नाथः जगदूनाथः।

यर को अनुनासिक नित्य हो जाता है यदि परे मय और मात्र प्रत्यय हो तो।

यथा—

किंचित् मात्रं किंचिन्मात्रम्

चित् मयं चिन्मयं

श को छ विकल्प से हो जाता है झय से परे यदि श हो और श से परे अम् हो।

यथा—

एतत्+श्रुत्वा= एतच्छ्रुत्वा। तत्+शुभम्—तच्छुभम्॥

छ से पहिले च् लगाया जाता है यदि ह्रस्व वा दीर्घ स्वर से परे छ हो तो।

यया—इ×छति इच्छति=तरु+छाया तरुज्छाया।

परन्तु पदान्त दीर्घ से परे यदि छ हो तो च विकल्प से लगता है।

यथा—श्री+छाया=श्रीच्छाया।

यदि ङा ण न ह्रस्व स्वर से परे हो, और उस ङ म् से परे ह्रस्व वा दोर्घ स्वर हो तो उस आगे के स्वर से पूर्व एक पहिलेजैसा ङम लगा दिया जाता है

यथा—आस्मिन्+इद्द=अस्तिन्निह सुगण्+ईशः= सुगण्णीः प्रत्यङ्+आत्मा प्रत्यङात्मा। तरन्+एव तरन्नेव। न को स हो जाता है और उसके पहिले अच् को अनुनासिक किया जाता है अथवा उस से आगे अनुस्वार लगाया जाता है यदि पदान्त न से परे छ व् हो।

किन्तु यह कार्य प्रशान् के न में नहीं होते।

यथा—

एतस्मिन् + तीरे = एतस्मिंस्तीरे।
चलन् + चलन् = चलंश्चलन्।
कस्मिन् + चित् = कस्मिंश्चित्।
सर्वान् + टिट्टिमान् = सर्वाष्टिट्टिमान्।

विसर्ग सन्धि

विसर्ग के आगे च छ हो तो श त थ हो तो स ट ठ हो तो ष् हो जाता है।

विसर्ग को स

रामः + तं वदति — रामस्तं वदति

राम उसको कहता है

कृष्णः + तरति कृष्णास्तरति

कृष्ण तैरता है।

एकः + स एव एकस्स एव

एक वह ही है।

विसर्ग को श्

मृगः + चलति मृगश्च–लति

हरिण चलता है—

शोभनः + छात्रः शोभनश्छत्रः

अच्छा विद्यार्थी—

विसर्ग कोष्

देवः + टीकतेदेवष्टीकते

देव चलता है

क + षष्टः कष्षष्ठः

कौन झूठा हैं—

एकः + ठक्कुरः एकष्ठक्कुरः

एक ठक्कुर है।

विसर्ग को उ

विसर्ग से पहले और पीछे अ हो वा वर्ग का ३ या ४ थे ५ म अक्षर हो वा य र ल व ह हो तो विसर्ग को उ हो जाता है।

कः + अत्र = कोऽत्र यहां कौन है

कः + अर्थः = क्रोऽर्थः क्या लाभ।

सिंहः + धावति = सिंहो धावति शेर भागता है—

गजः + गर्जति =गजो गर्जति हाथी गर्जता है।

मनः + रथः = मनोरथः मनोरथः

ईशः + जानाति = ईशो जानाति प्रभु जानता है।

विसर्ग को र

इकारि स्वर के परे विसर्ग हो उस से परे स्वर ह य व ल न म वर्ग का ३ रा ४ था अक्षर हो तो विसर्ग कोर हो जाता है

यथा—

कविः + याति = कविर्याति कविजाता हैं।

शत्रुः + इतः = शत्रुदंतः शत्रु मर गया

इन्दुः + स्तगतः = इन्दुरस्तगतः चांद अस्त हो गया।

रविः + उदात = रविरुदैति सूर्य उदय होता है।

पतिः + ओषधीनां = पतिरोषधीनाम् ओषधियों का स्वामी

विसर्ग का लोप

के विना अन्य स्वर परे हो तो अ के आगे होने वाली विसर्ग का लोप हो जाता है।

नरः + आयाति = नर आयाति आदमी आता है।

देवः + आगतः = देव आगतः देव आया।

आ के आगे का विसर्ग लुप्त हो जाता है यदि परे स्वर वर्ग का ३ या४ था ५ वां अक्षर वा य र ल व ह परे हों तो तथा सः और एषः का विसर्ग ३ उड़ जाता है यदि परे व्यंजन हो।

यथा—

देवाः + यान्ति = देवा यान्ति देव जाते हैं।

मनुष्याः + गच्छन्ति = मनुष्य जाते हैं

अश्वाः + धावन्ति = अश्वा धावन्ति घोड़े भागते हैं।

सः + देवः = स देवः वह देव।

एषः + रामः = एष रामः यह राम।

र लोप और दीर्घ

अ ई उ से परे र उड़ जाता है यदि परे र् हो और पूर्व स्वर दार्घ हो जाता है।

यथा—

पुनर् + रमते पुना रमते फिर खेलता है

हरिर् + रम्यः = हरीरम्यः हरि सुन्दर है।

णत्व विधिः

न को ण

न को ण हो जाता है यदि वह ऋ र बाष से परे एक पद में हो।

यथा—

पितृ + नाम = पितृणाम् पितरों का।

नृ + नाम = नृणाम् मनुष्यों का।

चतुर्णां मुष्णाति।

ऋ ऋ र् ष् और न के बीच यदि अट् कवर्ग पवर्ग आङ् नुम् का व्यवधान भी हो पद एक हो तो न कोण हो जाता है।

कृपणः रामाणां वृंहणम्

पदान्त न को ण नहीं होता

नरान् + दातृृन् = मनुष्यान्

षत्व विधि स को ष

इण् वा कवर्ग से परे स् को ष् हो जाता है यदि वह प्रत्यय या आदेश रूप हो।

यथा—

देवेषु — त्रिषु — पठिष्यति —चतुर्षु

यदि इण्वा कवर्ग और स के बीच में नुम का अनुस्वार विसर्ग शर् इन में से कोई वर्णहो तो भी स को ष हो जाता है हवींषि—धनुष्षु

अजन्त पुल्लिङ्ग (Masculine Gender)

अकारान्त शब्दों की विभक्तियों के विकृत रूप नीचे दिये जाते हैं ।

एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा आः
द्वितीया म् आन्
तृतीया इन् भ्याम् ऐः
चतुर्थी भ्याम् भ्यः
पंचमी आत् भ्याम् भ्यः
षष्ठी स्य ओः आनाम्
सप्तमी ओः षु
सम्बोधन आः

विभक्ति आगे लगाने पर देव शब्द के रूप निम्नलिखित होंगे।

देव (नाम) (A good)

एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा देवः देवौ देवाः
द्वितीया देवम् देवौ देवान्
तृतीया देवेन देवाभ्यां देवैः
चतुर्थी देवाय देवाभ्यां देवेभ्यः
पचमी देवात् (द्) देवाभ्यां देवेभ्यः
षष्ठी देवस्य देवयोः देवानाम्
सप्तमी देवे देवयोः देवेषु
सम्बोधन देव देवौ देवाः

निम्नलिखित अकारान्त पुंल्लिंग वाची शब्दों के रूप भी देव की तरह होंगें ।

बाल लड़का भृत्य नौकर
शृगाल गीदड़ घट घड़ा
वात हवा चौर चौर
सर्प सांप नाक स्वर्ग
भूप राजा मेघ बादल
सचिव वजीर चातक पपीहा
पाद पांओ प्रभंजन आंधी
कर हाथ अश्व घोड़ा
सुजन सज्जन मार्जार विल्ला
दुर्जन दुष्ट तट किनारा
सिंह शेर नद दर्या
मयूर मोर कूप कुंआ
चटक चिड़ा संसार संसार
वानर बंदर मृग हरिया
वृक्ष दरखत आश्रम आश्रम
नर आदमी काक कव्वा
सेवक सेवक मूढ मूर्ख
आकाश आस्मान् चतुर चालाक
छात्र शागिर्द पंडित पंडित
अध्यापक उस्ताद चकोरः चकोर

इकारान्त शब्दों की विभक्तियों के रूप नीचे दिये जाते हैं ।

एकवचन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा : अः
द्वितीया म् ईन्
तृतीया ना भ्यां भिः
चतुर्थी भ्यां भ्यः
पंचमी : भ्यां भ्यः
षष्ठी : ओः नाम्
सप्तमी ओः षु
संबोधन अंः

इकारान्त हरि (विष्णु) (God)

प्रथमा हरिः हरी हरयः
द्वितीया हरिम् हरी हरीन्
तृतीया हरिणा हरिभ्यां हरिभिः
चतुर्थी हरये हरिभ्यां हरिभ्यः
पंचमी हरेः हरिभ्यां हरिभ्यः
षष्ठी हरेः हर्योः हरीणाम्
सप्तमी हरौ हर्योः हरिषु
संबोधन हरे हरी हरयः

इकारान्त अन्य शब्द जिन का उच्चारण हरि की तरह होगा।

कवि कवि अरि दुश्मन
वन्हि आग मुनि ऋषि
नरपति राजा गिरि पर्वत
मणि रत्न राशि ढेर
रवि सूर्य विधि भाग्य
प्रजापति ब्रह्मा अतिथि पाहुना
कपि वानर

**उकारान्त = साधु **(Sage)

उकारान्त साधु शब्द का उच्चारण भी हरि की तरह ही होगा

प्रथमा साधुः साधु साधवः
द्वितीया साधुम् साधु साधून्
तृतीया साधुना साधुभ्यां साधुभिः
चतुर्थी साधवे साधुभ्यां साधुभ्यः
पंचमी साधोः साधुभ्यां साधुभ्यः
षष्ठी साधोः साध्वोः साधूनाम्
सप्तमी साधौ साध्वोः साधुषु
संबोधन साधो साधु साधवः

उकारन्त अन्य शब्द

विभु ईश्वर बिन्दु बूंद
गुरु उस्ताद पशु पशु
तरु वृक्ष परशु कुल्हाड़ा

इकारान्त = सखि — मित्र (Friend)

प्रथमा सखा सखायौ सखायः
द्वितीया सखायम् सखायौ सखीन्
तृतीया सख्या सखिभ्यां सखिभिः
चतुर्थी सख्ये सखिभ्यां सखिभ्यः
पंचमी सख्युः सखिभ्यां सखिभ्यः
षष्ठी सख्युः सख्योः सखीनाम्
सप्तमी सख्यौ सख्योः सखिषु
संबोधन सख्ये सखायौ सखायः

**इकारान्त = पति — स्वामी **(Husband)

प्रथमा पतिः पती पतयः
द्वितीया पतिम् पती पतीन्
तृतीया पत्या पतिभ्यां पतिभिः
चतुर्थी पत्ये पतिभ्यां पतिभ्यः
पंचमी पत्युः पतिभ्यां पतिभ्यः
षष्ठी पत्युः पत्योः पतीनाम्
सप्तमी पत्यौ पत्योः पतिषु
संबोधन पते पती पतयः

यदि पति शब्द से पहिले कोई शब्द लगा हो तो उसके रूप हरि की तरह होंगे—यथा—प्रजापतिः

(The creator of the world)

प्रथमा प्रजापतिः प्रजापती प्रजापतयः
द्वितीया प्रजापतिम् प्रजापती प्रजापतीन्
तृतीया प्रजापतिना—इत्यादि

**ईकारान्त = सुधी — बुद्धिमान् **A (wise man)

प्रथमा सुधीः सुधियौ सुधियः
द्वितीया सुधियम् सुधियौ सुधियः
तृतीया सुधिया सुधीभ्यां सुधीभिः
चतुर्थी सुधिये सुधीभ्यां सुधीभ्याः
पंचमी सुधियः सुधीभ्यां सुधीभ्याः
षष्ठी सुधियः सुधियोः सुधियाम्
सप्तमी सुधीभि सुधियोः सुधीषु
सम्बोधन सुधी सुधियौ सुधियः

**ऋकारान्त = पितृ — पिता **(Father)

प्रथमा पिता पितरौ पितरः
द्वितीया पितरम् पितरौ पितॄन्
तृतीया पित्रा पितृभ्यां पितृभिः
चतुर्थी पित्रे पितृभ्यां पितृभ्यः
पंचमी पितुः पितृभ्यां पितृभ्यः
षष्ठी पितुः पित्रोः पितॄणाम्
सप्तमी पितरि पित्रोः पितॄषु
संबोधन पितः पितरौ पितरः

ऋकारान्त = कर्तृ — करने वाला (Doer)

प्रथमा कर्ता कर्तारौ कर्तारः
द्वितीया कर्तारम् कर्तारौ कर्तृृन

शेष पितृ वत्

निम्नलिखित ऋकारान्त शब्दों के रूप पितृ पूर्व की तरह होंगे—

दातृ — देने वाला भोक्तृ—खाने वाला

नप्तृ—पोता वा दोता हन्तृ—मरने वाला

गन्तृ — जाने वाला

ओकारान्त गो = बैल(Bullock)

प्रथमा गौः गावौ गावः
द्वितीया गाम् गावौ गाः
तृतीया गवा गोभ्यां गोभिः
चतुर्थी गवे गोभ्यां गोभ्यः
पंचमी गोः गोभ्यां गोभ्यः
षष्ठी गोः गवोः गवाम्
सप्तमी गवि गवोः गोषु
सं० गौः गावौ गावः

अभ्यासः

पिता पुत्रों को पालता है।

चोर घर में दाखिल होते हैं।

मोहन परिश्रम से पाठ नहीं पढ़ता।

बन्दर वृक्ष की चोटी पर कूदते हैं।

संसार के कर्ता को नमस्कार हो।

कर्ण ने अपने बाहुबल से घटोत्कच को जीता।

राम मित्र को धन देता है।

साधु लोगों का धन परोपकार के लिये होता है।

प्रजापति संसार को बनाता है।

घोड़े घास खाते हैं।

कवि कालिदास रघुवंश का कर्ता है।

भाई का भाई के साथ अपूर्व स्नेह हैं।

बुद्धिमानों के संग से दुर्गुण दूर हो जाते हैं।

सज्जन पुरुष आपस में कलह नहीं करते।

ग्वाला पशुओं को गांव को ले जाता है।

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स्त्रीलिंग

स्त्रीलिंग में आकारा शब्दों के आगे विभक्तियों के रूप नीच लिखे गये हैं—

एक ववन द्विवचन बहुवचन
प्रथमा :
द्वितीया म् :
तृतीया भ्यां भिः
चतुर्थी यै भ्यां भ्यः
पञ्चमी याः भ्यां भ्यः
षष्टी याः औः नाम्
सप्तमी याम् औः सु
सं :

आकारान्त लता = वेल (creeper)

प्रथमा लता लते लताः
द्वितीया लताम् लते लताः
तृतीया लतया लताभ्यां लताभिः
चतुर्थी लतायै लताभ्यां लताभ्यः
पञ्चमी लतायाः लताभ्यां लताभ्यः
षष्ठी लतायाः लतयोः लतानाम्
सप्तमी लतायां लतयोः लतासु
संबोधन लते लते लताः

नीचे लिखे शब्दों के रूप लता की तरह होंगे—

शाला स्थान प्रजा रिआया
रथ्या बाज़ार विद्या इल्म
माला हार भार्या स्त्री
सुधा अमृत प्रमदा स्त्री
कन्या पुत्री ललना स्त्री
बाला लड़की पीड़ा दर्द
देवता देवी शिला चट्टान
छाया साया तृषा प्यास
जनता पब्लिक क्षमा क्षमा

ईकारान्त स्त्रीलिंग वाची शब्दों की विभक्तियों के रूप नीचे दिये जाते हैं—

प्रथमा अः
द्वितीया म् अः
तृतीया भ्यां भिः
चतुर्थी भ्यां भ्यः
पञ्चमी आः भ्यां भ्यः
षष्ठी आः औः नाम्
सप्तमी आम् औः षु

ईकारान्त नदी—नहर (Stream)

प्रथमा नदी नद्यौ नद्यः
द्वितीया नदीम् नद्यौ नदीः
तृतीया नद्या नदीभ्यां नदीभिः
चतुर्थी नद्यै नदीभ्यां नदीभ्यः
पञ्चमी नद्याः नदीभ्यां नदीभ्यः
षष्ठी नद्याः नद्योः नदीनाम्
सप्तमी नद्याम् नद्योः नदीषु
संबोधन नदि नद्यौ नद्यः

ईकारान्त अन्य शब्द जिन के रूप नदी की तरह होंगे।

शब्द — अर्थ

मही — पृथ्वी

महिषी — रानी

वापी — बावली

सखी — सहेली

राजकुमारी — राजपुत्री

नगरी — शहर

ऊकारान्त वधू — नौजवान स्त्री (Maidan)

प्रथमा वधूः वध्वौ वध्वः
द्वितीया वधूम् वध्वौ वधूः
तृतीया वध्वा वधूभ्यां वधूभिः
चतुर्थी वध्वै वधूभ्यां वधूभ्यः
पंचमी वध्वाः वधूभ्यां वधूभ्यः
षष्ठी वध्वाः वध्वोः वधूनाम्
सप्तमी वध्वां वध्वोः वधूषु
संबोधन वधु वध्वौ वध्वः

**ईकारान्त स्त्री — एक स्त्री **(A woman)

प्रथमा स्त्री स्त्रियौ स्त्रियः
द्वितीया स्त्रियं (स्त्री) स्त्रियौ स्त्रियः, स्त्रीः
तृतीया स्त्रिया स्त्रीभ्यां स्त्रीभिः
चतुर्थी स्त्रियै स्त्रीभ्यां स्त्रीभ्यः
पंचमी स्त्रियाः स्त्रीभ्यां स्त्रीभ्यः
षष्ठी स्त्रियाः स्त्रियोः स्त्रीणाम्
सप्तमी स्त्रियां स्त्रियोः स्त्रीषु
सम्वोधन स्त्रि स्त्रियौ स्त्रियः

इकारान्त श्री—लक्ष्मी (Goddess of wealth)—

प्रथमा श्रीः श्रियौ श्रियः
द्वितीया श्रियं श्रियौ श्रियः
तृतीया श्रिया श्रीभ्यां श्रीभिः
चतुर्थी श्रियै (ये) : श्रीभ्यां श्रीभ्यः
पंचमी श्रियाः (यः) श्रीभ्यां श्रीभ्यः
पष्ठी श्रियाः (यः) श्रियोः श्रीणां (श्रियां)
सप्तभी श्रियां (यि) श्रियोः श्रीषु
सम्बोधन श्रीः श्रियौ श्रियाः

इकारान्त = मति — बुद्धि (Intelligence)

प्रथमा मतिः मती मतयः
द्वितीया मति मती मतीः
तृतीया मत्या मतिभ्यां मतिभिः
चतुर्थी मत्यैः (तये) मतिभ्यां मतिभ्यः
पंचमी मत्याः (ते) मतिभ्यां मतिभ्यः
षष्टी मत्याः (ते) मत्योः मतीनां
सप्तमी मत्यां (तौ) मत्योः मतिषु
सम्बोधन मते मती मतयः

उकारान्त रज्जु शब्द — रस्सी (Rope)

प्रथमा रज्जूः रज्जू रज्जवः
द्वितीया रज्जुम् रज्जू रज्जुः
तृतीया रजवा रज्जुभ्यां रज्जुभिः
चतुर्थी रजवै (ज्जवे) रज्जुभ्यां रज्जुभ्यः
पंचमी रज्जवाः (ज्जोः) रज्जुभ्यां रज्जुभ्यः
षष्ठी रज्जवाः(ज्जोः) रज्जवोः रज्जुनां
सप्तमी रज्ज्वां (ज्जौ) रज्ज्वोः रज्जूषु
सम्बोधन रज्जो रज्जू रज्जवः

धेनु के रूप भी इसी प्रकार होंगें।

**ऋकारान्त मातृ — माता **(Mother)

प्रथमा माता मातरौ मातरः
द्वितीया मातरं मातरौ मातृः
तृतीया मात्रा मातृभ्यां मातृभिः
चतुर्थी मात्रे मातृभ्यां मातृभ्यः
पंचमी मातुः मातृभ्यां मातृभ्यः
षष्टी मातुः मात्रोः मातृणां
सप्तमी मातरि मात्रोः मातृषु
सम्बोधन मातः मातरौ मातरः

**ऋकारान्त स्वसृ — बहिन **(Sister)

प्रथमा स्वसा स्वसारौ स्वसारः
द्वितीया स्वसारं स्वसारौ स्वसृः

शेष मातृ वत्—
ओकारान्त गो - गौ (Courd)

प्रथमा गौः गावौ गावः
द्वितीया गाम् गावौ गावः
तृतीया गवा गोभ्यां गोभिः
चतुर्थी गवे गोभ्यां गोभ्यः
पंचमी गोः गोभ्यां गोभ्यः
षष्ठी गोः गवोः गवाम्
सप्तमी गवि गवोः गोषु

औकारान्त नौ — किश्ती (A Boat)

प्रथमा नौः नावौ नावः
द्वितीया नावं नावौ नावः
तृतीया नावा नौभ्यां नौभिः
चतुर्थी नावे नौभ्यां नौभ्यः
पंचमी नावः नौभ्यां नौभ्यः
षष्ठी नावः नावोः नावां
सप्तमी नावि नावोः नौषु

अभ्यासः

तृष्णा से मनुष्यों की बुद्धि नष्ट हो जाती है।

विद्या से मनुष्य की पूजा सब जगह होती है।

विष्णु की स्त्री का नाम श्री है।

काशी गंगा के तट पर स्थित है।

द्रौपदी के स्वयम्वर में पांडव ब्राह्मणों के वेष में उपस्थित थे।

सुभद्रा के पति का नाम अर्जुन और भाई का कृष्ण था।

पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमा का बिम्ब पूर्ण होता है।

रमा की सास उसके लिये एक घोड़ा लायेगी।

रस्सी को सांप न समझो।

गौ का दूध अमृत समान होता है।

वेदों को श्रति और धर्म शास्त्रों को स्मृति कहते हैं।

नारियें नदी पर स्नान के लिये जाती है।

लड़कियां बावली से जल के घड़े लाती हैं।

प्राचीन काल में माता पिता अपनी लड़कियों का विवाह स्वयम्बर में करते थे।

वर्षा ऋतु में नदियों का जल बढ़ जाता है और गंदला हो जाता है।

मनुष्य अपनी शक्ति से हिंस्र जीवों को भी वश में कर लेते हैं।

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नपुंसक लिंग

अकारान्त पत्र—पत्ता (A leaf)

प्रथमा पत्रम् पत्रे पत्राणि
द्वितीया पत्रम् पत्रे पत्राणि

शेष देव की तरह

अकारान्त नपुंसक लिंग के आगे विभक्तियां निम्नलिखित हैं

ए० द्वि० ब०
प्रथमा म्
द्वितीया म्
संबोधन

नपुंसक में दीघन्ति शब्द नहीं होते—

इकारान्त उकारान्त ऋकारान्त शब्दों की विभक्तियां नीचे दी गई हैं।

ए० द्वि ब०
प्रथमा
द्वितीया
तृतीया भ्यां भिः
चतुर्थी भ्यां भ्यः
पंचमी अस् भ्यां भ्यः
षष्ठी अस् औः आम्
सप्तमी औः षु

इकारान्त वारि जल (Water)

प्रथमा वारि वारीणी वारीणि
द्वितीया वारि वारीणी वारीणि
तृतीया वारिणा वारिभ्यां वारिभिः
चतुर्थी वारिणे वारिभ्यां वारिभ्यः
पंचमी वारिणः वारिभ्यां वारिभ्यः
पष्ठी वारिणः वारिणोः वारिणाम्
सप्तमी वारीणि वारिणोः वारिषु
संबोधन वारे वारिणी वारीणि

**दधि—दही **(Curd)

प्रथमा दधि दधिनी दधीनि
द्वितीया दधि दधिनी दधीनि
तृतीया दध्ना दधिभ्यां दधिभिः
चतुर्थी दध्ने दधिभ्यां दधिभ्यः
पंचमी दध्नः दधिभ्यां दधिभ्यः
षष्टी दध्नः दध्नोः दध्नाम्
सप्तमी दध्नि (धनि) दध्नोः दधिषु
संबोधन दधे (धि) दधीनी दधीनि

अस्थि—हड्डी (Boee)

प्रथमा अस्थि अस्थिनी अस्थीनी
द्वितीया अस्थि अस्थिनी अस्थीनी
तृतीया अस्थ्ना—शेष दधिवत्—

अक्षि - आंख

संक्थि अक्षिवत्

**उकारान्त मधु—शहद **(Honey)

प्रथमा मधु मधुनी मधूनि
द्वितीया मधु मधुनी मधूनि
तृतीया मधुना

—शेष वारिवत्।

ऋकारान्त कर्तृ— करने वाला

प्रथमा कर्तृ कर्तृणी कर्तृृणि
द्वितीया कर्तृ कर्तृणी कर्तृृणि
तृतीया कर्तृणा कर्तृभ्यां

—शेष वारिवत्।

अभ्यासः

कमल के पत्र बड़े कोमल हैं।

ज्ञान के बिना मुक्ति नहीं होती।

गंगा का जल शीतल और मीठा है।

दधीचि ने अपनी हड्डियां इन्द्र को दीं।

भैंस का दही स्वादु होता है।

मेरी वाणी शहद की तरह मीठी हो।

शहद की मिठास जिह्वा को आनन्द देती है।

ब्रह्मासंसार का कर्ता है।

तालाब के जल में सुन्दर कमल खिले हैं।

दही और शहद से मधुपर्क बनता है।

नदियों के जल से प्यास शान्त होती है।

रघु का जन्म सूर्य कुल में हुआ था।

मित्र विपत्ति में मित्र का साथ नहीं छोड़ते।

वृक्ष के पत्तों में रात्रि का अन्धकार लीन होता है।

लड़की फूलों की माला बनाती हैं।

गुलाब के फूल कैसे सुन्दर और सुगन्धित हैं।

मनुष्य जल के बिना नहीं जी सकता।

शुद्ध भोजन से मनुष्य की बुद्धि शुद्ध होती है और शरीर बलवान् होता है।

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सर्वनाम (Pronoun)

संज्ञा की पुनरुक्ति दूर करने के लिये जो उस शब्द की जगह प्रयुक्त किया जाता है उसे सर्वनाम कहते हैं।

संज्ञा शब्द के लिंग और वचन के अनुसार ही सर्वनाम के लिंग वचन और विभक्ति होती है अकारान्त सर्वनामों की पुल्लिंग में विभक्तियों के रूप नीचे दिये जाते हैं।

एक वचन द्विवत बहुत्रवन
प्रथमा :
द्वितीया म् आन्
तृतीया इन भ्यां ऐः
चतुर्थी स्मै भ्यां भ्यः
पञ्चमी स्मात् भ्यां भ्यः
षष्ठी स्य ओः षाम्
सप्तमी स्मिन् ओः षु

किम्—कौन who

प्रथमा कः कौ के
द्वितीया कम् कौ कान्
तृतीया केन काभ्यां कैः
चतुर्थी कस्मै काभ्यां केभ्यः
पञ्चमी कस्मात् काभ्यां केभ्यः
षष्ठी कस्य कयोः केषाम्
सतमो कस्मिन् कयोः केषु

स्त्रीलिंग में अकारान्त सर्वनामों की विभक्तियों के रूप।

प्रथमा
द्वितीया म्
तृतीया भ्यां भिः
चतुर्थी स्यै भ्यां भ्यः
पञ्चमी स्याः भ्यां भ्यः
षष्टी स्याः ओः साम्
सप्तमी स्याम् ओः

किम्—स्त्रीलिंग

प्रथमा का के काः
द्वितीया काम् के काः
तृतीया कया काभ्यां काभिः
चतुर्थी कस्यै काभ्यां काभ्यः
पञ्चमी कस्याः काभ्यां काभ्यः
षष्ठी कस्याः कयोः कासाम्
सप्तमी कस्यां कयोः कासु

नपुंसक

प्रथमा किम् के कानि
द्वितीया किम् के कानि
तृतीया केत—शेष रामवत्

**सर्व—(सब) पुल्लिंग **(All)

प्रथमा सर्वः सर्वौ सर्वे
द्वितीया सर्वम् सर्वौ सर्वान्
तृतीया सर्वेण सर्वाभ्यां सर्वैः
चतुर्थी सर्वस्मै सर्वाभ्यां सर्वेभ्यः
पञ्चमी सर्वस्मात् सर्वाभ्यां सर्वेभ्यः
षष्ठी सर्वस्य सर्वयोः सर्वेषाम्
सप्तमी सर्वस्मिन् सर्वयोः सर्वेषु

नपुंसक

प्रथमा सर्वम् सर्वे सर्वाणि
द्वितीया सर्वम् सर्वे

शेष पुल्लिंग की तरह।

स्त्रीलिंग

प्रथमा सर्वा सर्वे सर्वाः
द्वितीया सर्वाम् सर्वे सर्वाः
तृतीया सर्वया सर्वाभ्यं सर्वाभिः
चतुर्थी सर्वस्यै सर्वाभ्यं सर्वाभ्यः
पञ्चमी सर्वस्याः सर्वाभ्यं सर्वाभ्यः
षष्ठी सर्वस्याः सर्वयोः सर्वासाम्
सप्तमी सर्वस्याम् सर्वयोः सर्वासु

**पूर्व—पूर्वदिशा—पुल्लिंग **(east)

प्रथमा पूर्वः पूर्वौ (पूर्वे) पूर्वाः
द्वितीया पूर्वम् पूर्वौ पूर्वान्
तृतीया पूर्वेण पूर्वाभ्यां पूर्वै
चतुर्थी पूर्वस्मै (पूर्वाय) पूर्वाभ्यां पूर्वेभ्यः
पञ्चमी पूर्वस्मात् (पूर्वात्) पूर्वाभ्यां पूर्वेभ्यः
षष्ठी पूर्वस्य पूर्वयोः पूर्वेषाम्
सप्तमी पूर्वास्मिन्(पूर्वे) पूर्वयोः पूर्वेषु

स्त्रीलिंग पूर्व

प्रथमा पूर्वा पूर्वे पूर्वाः
द्वितीया पूर्वाम् पूर्वे पूर्वाः
तृतीया पूर्वया पूर्वाभ्यां पूर्वाभिः
चतुर्थी पूर्वस्यै (र्वायाः) पूर्वाभ्यां पूर्वाभ्यः
पञ्चमी पूर्वस्यः (याः) पूर्वाभ्यां पूर्वाभ्यः
षष्ठी पूर्वस्यः (याः) पूर्वयोः पूर्वासां
सप्तमी पूर्वस्यां (यां) पूर्वयोः पूर्वासु

नपुंसक

प्रथमा पूर्वम पूर्वे पूर्वाणि
द्वितीया पूर्वम पूर्वे पूर्वाणि

शेष पुल्लिङ्गवत्

तत् वह—पुल्लिंग (that)

प्रथमा सः तौ ते
द्वितीया तम् तौ तान्
तृतीया तेन ताभ्यां तैः
चतुर्थी तस्मै ताभ्यां तेभ्यः
पञ्चमी तस्मात् ताभ्यां तेभ्यः
षष्ठी तस्य तयोः तेषाम्
सप्तमी तस्मिन् तयोः तेषु

नपुंसक

प्रथमा तत् ते तानि
द्वितीया तत् ते तानि

शेष पुलिंग की तरह—

एतत्—(यह) प्रथमा में एषः

यत्—(जो) प्रथमा में यः

शेष किम की तरह—

**युष्मद् तुम **(you)

प्रथमा त्वं युवाम् यूयं
द्वितीया त्वां युवाम् युष्मान्
तृतीया त्वया युवाभ्यां युष्माभिः
चतुर्थी तुभ्यं युवाभ्यां युष्मभ्यम्
पञ्चमी त्वत् युवाभ्यां युष्मत्
षष्ठी तव युवयोः युष्माकम्
सप्तमी त्वयि युवयोः युष्मासु

अस्मद्हम (we)

प्रथना अहं आवां वयं
द्वितीय माम् आवां अस्मान्
तृतीया मया आवाभ्यां अस्माभिः
चतुर्थी मह्यं आवाभ्यां अस्मभ्यं
पञ्चमी मत् आवाभ्यां अस्मत्
षष्ठी मम आवयोः अस्माकं
सप्तमी मयि आवयोः अस्मासु

इदम् (यह) पुल्लिंग (this)

प्रथमा अयं इमौ इमे
द्वितीया इमम् इमौ इमान्
तृतीया अनेन आभ्यां एभिः
चतुर्थी अस्मै आभ्यां एभ्यः
पंचमी अस्मात् आभ्यां एभ्यः
षष्ठी अस्य अनयोः एषाम्
सप्तमी अस्मिन् अनयोः एषु

नपुंसक

प्रथमा इदम् इमे इमानि
द्वितीया इदम् इमे इमानि

स्त्रीलिंग

प्रथमा इयं इमे इमाः
द्वितीया इमां इमे इमाः
तृतीया अनया आभ्यां आभिः
चतुर्थी अस्यै आभ्यां आभ्यः
पंचमी अस्याः आभ्यां आभ्यः
षष्ठी अस्याः अनयोः आसाम्
सप्तमी अस्यां अनयोः आसु

अदस् वह—पुलिंग (that)

प्रथमा असौ अमू अमी
द्वितीया अमूम् अमू अमून्
तृतीया अमूया अमूभ्यां अमीभिः
चतुर्थी अमुष्मै अमूभ्यां अमीभ्यः
पंचमी अमुष्मात् अमूभ्यां अमीभ्यः
षष्ठी अमुष्य अमुयोः अमीव
सप्तमी अमुष्मिन् अमुयोः अमीषु

नपुंसक

प्रथमा अदः अमू अमूनि
द्वितीया अदः अमू अमूनि

शेष पुंल्लिंग की तरह

स्त्रीलिंग

प्रथमा असौ अमू अमूः
द्वितीया अमूम् अमू अमूः
तृतीया अमुया अमूभ्यां अमूभिः
चतुर्थी अमुष्यै अमूभ्यां अमूभ्यः
पंचमी अमुष्याः अमूभ्यां अमूभ्यः
षष्ठी अमुष्याः अमुयोः अमूषाम्
सप्तमी अमुष्यां अमुयोः अमूषु

उभ (दोनों) (Both)

पुलिंग स्त्रीलिंग नपुंसक
प्रथमा उभौ उभे उभे
द्वितीया उभौ उभे उभे
तृतीया उभाभ्यां उभाभ्यां उभाभ्यां
चतुर्थी उभाभ्यां उभाभ्यां उभाभ्यां
पंचमी उभाभ्यां उभाभ्यां उभाभ्यां
षष्ठी उभयोः उभयोः उभयोः
सप्तमी उभयोः उभयोः उभयोः

द्वितीय तृतीय का उच्चारण पूर्व की तरह होगा।

अभ्यासः

महाराजा रघु ने अपनी सारी सम्पत्ति भिक्षुओं को दे दी।

सूर्य पूर्व दिशा में उदय होता है और पश्चिम में अस्त।

महाराज पाण्डु के दूसरे पुत्र का नाम भीम और तीसरे का अर्जुन था।

महानुभावों के लिये सारा संसार अपना कुटुम्ब होता है।

इस पुस्तक का कर्ता कौन है।

यह स्वर्ण मन्दिर किस ने बनवाया था।

यह सोने का कड़ा किस को दूं।

आप के पिता इन दिनों कहां रहते हैं।

यह वह ही बालक है जिसे मैंने सड़क पर देखा था।

इस को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं।

कौन जानता है कि कल क्या होगा।

यह मेरा प्रिय मित्र विदर्भ का राजा है।

इस शून्य वन में पहिले कौन रहता था।

जो सत्य नहीं बोलता लोग उसका विश्वास नहीं करते।

मरते समय महाराणा प्रताप ने क्या प्रतिज्ञा की थी ?

छत्रपति शिव का नाम कौन नहीं जानता।

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हलन्त शब्द—

(अन् अन्त) राजन् राजा a king

प्रथमा राजा राजानौ राजानः
द्वितीया राजानम् राजानौ राज्ञः
तृतीया राज्ञा राजभ्याम् राजभिः
चतुर्थी राज्ञे राजभ्याम् राजभ्यः
पंचमी राज्ञः राजभ्याम् राजभ्यः
षष्ठी राज्ञः राज्ञोः राज्ञाम्
सप्तमी राज्ञि (जनि) राज्ञोः राज्ञसु
संबोधन राजन् राजानौ राजानः

आत्मन्—अपना the self soul

प्रथमा आत्मा आत्मानौ आत्मानः
द्वितीया आत्मानम् आत्मानौ आत्मानः
तृतीया आत्मना आत्मभ्यां आत्मभिः
चतुर्थी आत्मने आत्मभ्यां आत्मभ्यः
पंचमी आत्मनः आत्मभ्यां आत्मभ्यः
षष्ठी आत्मनः आत्मनोः आत्मनाम्
सप्तमी आत्मनि आत्मनोः आत्मसु
संबोधन आत्मन् आत्मानौ आत्मानः

मघवन्—इन्द्र (Indra)

प्रथमा मघवा मघवानौ मघवानः
द्वितीया मघवानम् मघवानौ मघोनः
तृतीया मघोना मघवभ्यां मघवभिः
चतुर्थी मघोने मघवभ्यं मघवभ्यः
पंचमी मघोनः मघवभ्यं मघवभ्यः
षष्ठी मघोनः मघोनोः मघोनाम्
सप्तमी मघोनि मघोनोः मघवसु
सम्बोधन मघवन् मघवानौ मघवानः

श्वन्—(कुत्ता) the Dog

प्रथमा श्वा श्वानौ श्वानः
द्वितीया श्वानम् श्वानौ शुनः
तृतीया शुना श्वभ्यां श्वभिः
चतुर्थी शुने श्वभ्यां श्वभ्यः
पंचमी शुनः श्वभ्यां श्वभ्यः
षष्ठी शुनः शुनोः शुनाम्
सप्तमी शुनि शुनोः श्वसु
सम्बोधन श्वन् श्वानौ श्वानः

युवन्—जवान (Young Man)

प्रथमा युवा युवानौ युवानः
द्वितीया युवानम् युवानौ यूनः
तृतीया यूना युवभ्यां युवभिः
चतुर्थी यूने युवभ्यां युवभ्यः
पंचमी यूनः युवभ्यां युवभ्यः
षष्ठी यूनः यूनोः यूनाम्
सप्तमी यूनि यूनोः युवसु
सम्बोधन युवन् युवानौ युवानः

नामन्—नाम (name ) नपुंसक

प्रथमा नाम नामनी नामानि
द्वितीया नाम नामनी नामानि

शेष राजन्की तरह

कर्मण—कर्म (action)

प्रथमा कर्म कर्मणी कर्माणि
द्वितीया कर्म कर्मणी कर्माणि

शेष आत्मन् की तरह

अहन्—दिन (a day)

प्रथमा अहः अन्ही (हनी) अहानि
द्वितीया अहः अन्ही (हनी) अहानि
तृतीया अन्हा अहोभ्यां अहोभिः
चतुर्थी अन्हे अहोभ्यां अहोभ्यः
पंचमी अन्हः अन्होभ्यां अहोभ्यः
षष्ठी अन्हः अन्होः अन्हाम्
सप्तमी अन्हि (हनि) अन्होः अहस्सु
सम्बोधन अहः अन्ही (हनी) अहानि

इन् अन्त पथिन् रास्ता (A road)

प्रथमा पन्थाः पन्थानौ पन्थानः
द्वितीया पन्थानं पन्थानौ पथः
तृतीया पथा पथिभ्यां पथिभिः
चतुर्थी पथे पथिभ्यां पथिभ्यः
पंचमी पथः पथिभ्यां पथिभ्यः
षष्ठी पथः पथोः पथाम्
सप्तमी पथि पथोः पथिषु

शशिन चांद (Moon)

प्रथमा शशी शशिनौ शशिनः
द्वितीया शशिनम् शशिनौ शशिनः
तृतीया शशिना शशिभ्यां शशिभिः
चतुर्थी शशिने शशिभ्यां शशिभ्यः
पंचमी शशिनः शशिभ्यां शशिभ्यः
षष्ठी शशिनः शशिनोः शशिनाम्
सप्तमी शशिनि शशिनोः शशिषु
सं० शशिन् शशिनौ शशिनः

भाविन्

प्रथमा भावि भाविनी भावीनि
द्वितीया भावि भाविनी भावीनि

शेष शशिन्वत् शतृ अन्त

पठत्—पढ़ता हुआ (Reading)

प्रथमा पठन् पठन्तौ पठन्तः
द्वितीया पठन्तम् पठन्तौ पठतः
तृतीया पठता पठद्भ्यां पठद्भिः
चतुर्थी पठते पठद्भ्यां पठद्भ्यः
पंचमी पठतः पठद्भ्यां पठद्भ्यः
षष्ठी पठतः पठनोः पठताम्
सप्तमी पठति पठनोः पठत्सु
सम्बोधन पठन् पठन्तौ पठन्तः

इसी प्रकार गच्छत् आदि—

नपुंसक

प्रथमा पठत् (द्) पठन्ती पठन्ति
द्वितीया पठत् (द्) पठन्ती पठन्ति

शेष पुंल्लिंग की तरह—

(Giving) ददत् (देता हुआ)

प्रथमा ददत् ददतौ ददतः
द्वितीया ददतम् ददतौ ददतः
तृतीया ददता ददद्भ्यां ददद्भिः
चतुर्थी ददते ददद्भ्यां ददद्भ्यः
पंचमी ददतः ददद्भ्यां ददद्भ्यः
षष्ठी ददतः ददतोः ददताम्
सप्तमी ददति ददतोः ददत्सु
सम्बोधन ददत् ददतौ ददतः

ददती स्त्रीलिंग नदीवत्

नपुंसक

प्रथमा ददत् द् ददती ददति न्ति
द्वितीया ददत् द् ददती ददति न्ति
सम्बोधन ददत् द् ददती ददति न्ति

भवत् आप (You)

प्रथमा भवान् भवन्तौ भवन्तः

शेष पठत् की तरह

मतुप् (मत्) अन्त

बुद्धिमत् बुद्धिमान् a wise

प्रथमा बुद्धिमान् बुद्धिमन्तौ बुद्धिमन्तः
द्वितीया बुद्धिमन्तं बुद्धिमन्तौ बुद्धिमतः
तृतीया बुद्धिमता बुद्धिमद्भ्यां बुद्धिमद्भिः
चतुर्थी बुद्धिमते बुद्धिमद्भ्यां बुद्धिमद्भ्यः
पंचमी बुद्धिमतः बुद्धिमद्भ्यां बुद्धिमद्भ्यः
षष्ठी बुद्धिमतः बुद्धिमतोः बुद्धिमताम्
सप्तमी बुद्धिमति बुद्धिमतोः बुद्धिमत्सु
सम्बोधन बुद्धिमान् बुद्धिमन्तौ बुद्धिमन्तः

स्त्रीलिंग बुद्धिमती नदीवत्

नपुंसक

प्रथमा बुद्धिमत् द् बुद्धिमती बुद्धिमन्ति
द्वितीया सं० बुद्धिमत् द् बुद्धिमती बुद्धिमन्ति

इसी तरह धीमनू आदि

महन् बड़ा (Great)

प्रथमा महान् महान्तौ महान्तः
द्वितीया महान्तम् महान्तौ महतः
तृतीया महता

शेष धीमन् की तरह—

वस् अन्त विद्वस् विद्वान् (A learned man)

प्रथमा विद्वान् विद्वांसौ विद्वांसः
द्वितीया विद्वांसम् विद्वांसौ विदुषः
तृतीया विदुषा विद्वद्भ्यां विद्वद्भिः
चतुर्थी विदुषे विद्वद्भ्यां विद्वद्भ्यः
पंचमी विदुषः विद्वद्भ्यां विद्वद्भ्यः
षष्ठी विदुषः विदुषोः विदुषाम्
सप्तमी विदुषि विदुषोः विद्वत्सु
सम्बोधन विद्वन् विद्वांसौ विद्वांसः

स्त्रीलिंग विदुषी नदी की तरह

नपुंसक

प्रथमाद्वितीया संबोधन विद्वान् द् विदुषी विद्वांसि

पुमस् आदमी (a man)

प्रथमा पुमान् पुमांसौ पुमांसः
द्वितीया पुमांसम् पुमांसौ पुंसः
तृतीया पुंसः पुंभ्याम् पुंभिः
चतुर्थी पुंसे पुंभ्याम् पुंभ्यः
पंचमी पुंसः पुंभ्याम् पुंभ्यः
षष्ठी पुंसः पुंसोः पुंसाम्
सप्तमी पुंसि पुंसोः पुंसु
संबोधन पुमन् पुमांसौ पुमांसः

ईयस् अन्त

श्रेयस् अच्छा(Batter)

प्रथमा श्रेयान् श्रेयांसौ श्रेयांसः
द्वितीया श्रेयांसम् श्रेयांसौ श्रेयसः
तृतीया श्रेयसा श्रेयोभ्यां श्रेयोभिः
चतुर्थी श्रेयसे श्रेयोभ्यां श्रेयोभ्यः
पंचमी श्रेयसः श्रेयोभ्यां श्रेयोभ्यः
षष्टी श्रेयसः श्रेयसोः श्रेयसाम
सप्तमी श्रेयसि श्रेयसोः श्रेयःसु
संबोधन श्रेयन् श्रेयांसौ श्रेयांसः

स्त्रीलिंग श्रेयसी नदी वत्

नपुंसक

प्रथमा द्वितीया संबोधन श्रेयः श्रेयसी श्रेयांसि

**अप्जल **(Water)

अप् शब्द का केवल बहुवचन ही होता हैं।

प्रथमा संबोधन आपः
द्वितीया अपः
तृतीया अभिः
चतुर्थी अद्भ्यः
पंचमी अद्भ्यः
षष्ठी अपाम्
सप्तमी अप्सु

अभ्यास

प्रजा से कर लेकर भी जो राजा प्रजा का पालन नहीं करता प्रजा उसका शासन नहीं मानती।

जैसा राजा वैसी प्रजा।

मनुष्य अपने कर्मों से ऊंचा वा नीचा हो जाता है।

प्रत्येक युवक का कर्तव्य है कि वह देश और समाज का भक्त है—

बड़े लोग जिस से चलें वही रास्ता है।

एक साधु ने रास्ते में एक अन्धे को देखा।

आप की सभा में विद्वान् लोग प्रति दिन शास्त्र चर्चा करते हैं।

विद्वान् का मान सब जगह होता है राजा का केवल अपने देश में।

वह ही पुरुष अच्छा है जो अपने वंश क नाम उज्ज्वल करता है।

न चलता हुआ गरुड़ एक पद भी नहीं चल सकता।

मैंने पढ़ते हुए छात्रों को एक पुस्तक दी।

स्वामी अपने कुत्ते की स्वामी भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुआ।

चांदनी चांद के साथ जाती है।

बड़े लोग बड़ों को ही अपना विक्रम दिखाते हैं।

बुद्धिमान् लोग बुद्धि के बल से असाध्य कार्यों को भी सिद्ध करलेते हैं।

जो बलवान् निर्बलों की रक्षा नहीं करता उसके बल से क्या।

होने वाले (भाविन्) अनर्थों को कौन टाल सकता है ?

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हलन्त व्यञ्जनान्त

मधुलिह्भौरा (A bee)

प्रथमा मधुलिट् (ड्) मधुलिहौ मधुलिहः
द्वितीया मधुलिहम् मधुलिहौ मधुलिहः
तृतीया मधुलिहा मधुलिड्भ्यां मधुलिड्भिः
चतुर्थी मधुलिहे मधुलिड्भ्यां मधुलिड्भ्यः
पञ्चमी मधुलिहः मधुलिड्भ्यां मधुलिड्भ्यः
षष्ठी मधुलिहः मधुलिहोः मधुलिहाम्
सप्तमी मधुलिहि मधुलिहोः मधुलिट्सु
सम्बोधन मधुलिट् (ड्) मधुलिहौ मधुलिहः

**स्त्रीलिंग उपानह् जूता **(A shoe)

प्रथमा उपानत् (दू) उपानहौ उपानहः
द्वितीया उपानहम् उपानहौ उपानहः
तृतीया उपानहा उपानद्भ्यां उपानद्भिः
चतुर्थी उपानहे उपानद्भ्यां उपानद्भ्यः
पञ्चमी उपानहः उपानद्भ्यां उपानद्भ्यः
षष्ठी उपानहः उपानहोः उपानहां
सप्तमी उपानहि उपानहोः उपानत्सु
सम्बोधन उपानत् दू उपानहौ उपानहः

**चकारान्त जलमुच् बादल **(cloud)

प्रथमा जलमुक् (ग्) जलमुचौ जलमुचः
द्वितीया जलमुचं जलमुचौ जलमुचः
तृतीया जलमुचा जलभुग्म्यां जलमुग्भिः
चतुर्थी जलमुच जलभुग्म्यां जलमुग्भ्यः
पञ्चमी जलमुचः जलभुग्म्यां जलमुग्भ्यः
षष्ठी जलमुचः जलमुचोः जलमुचाम्
सप्तमी जलमुचि जलमुचोः जलमुक्षु
सम्बोधन जलमुक् (ग्) जलमुचौ जलमुचः

वाच् वाणी Speech

प्रथमा वाक् ग् वाचौ वाचः

शेष जल मुच् वत्—

ऋत्विज् (यज्ञ कराने वाला)

प्रथमा ऋृत्विक् ग् ऋृत्विजौ ऋृत्विजः
द्वितीया ऋृत्विजम् ऋृत्विजौ ऋृत्विजः
तृतीया ऋृत्विजा ऋृत्विग्भ्यां ऋृत्विग्भिः
चतुर्थी ऋृत्विजे ऋृत्विग्भ्यां ऋृत्विम्भ्यः
पञ्चमी ऋृत्विजः ऋृत्विग्भ्यां ऋृत्विम्भ्यः
पष्ठी ऋृत्विजः ऋृत्विजोः ऋृत्विजां
सप्तमी ऋृत्विजि ऋृत्विजोः ऋृत्विक्षु
सम्बोधन ऋृत्विक ग् ऋृत्विजौ ऋृत्विजः

**स्त्रीलिंग स्रज् माला **Garland

प्रथमा स्रक् ग् स्रजौ स्रजः
द्वितीया स्रजम् स्रजौ स्रजः

शेष ऋत्विज् की तरह—

(Creator of the world) विश्वसृज् ब्रह्मा

प्रथमा विश्वसृट् ड् विश्वसृजौ विश्वसृजः
द्वितीया विश्वसृजम् विश्वसृजौ विश्वसृजः
तृतीया विश्वसृजा विश्वसृड्भ्यां विश्वसृड्भि
चतुर्थी विश्वसृजे विश्वसृड्भ्यां विश्वसृड्भ्यः
पंचमी विश्वसृजः विश्वसृड्भ्यां विश्वसृड्भ्यः
षष्ठी विश्वसृजः विश्वसृजेः विश्वसृजाम्
सप्तमी विश्वसृजि विश्वसृजेः विश्वसृट्सु

(sage) परिव्राज्—सन्यासी

प्रथमा परिव्राट् ड् परिव्राजौ परिव्राजः

शेष विश्वसृज् की तरह

**भूभृत्—पर्वत **(Mountain)

प्रथमा भूभृत् द् भूभृतौ भूभृतः
द्वितीया भूभृतम् भूभृतौ भूभृत
तृतीया भूभृता भूभृद्भ्यां भूभृद्भिः
चतुर्थी भूभृते भूभृद्भ्यां भूभृद्भ्यः
पञ्चमी भूभृतः भूभृद्भ्यां भूभृद्भ्यः
षष्ठी भूभृतः भूभृतोः भूभृताम्
सप्तमी भूभृति भूभृतोः भूभृत्सु
सम्बोधन भूभृत् द् भूभृतौ भूभृतः

स्त्रीलिंग सरित् नदी

प्रथमा सरित् द् सरितौ सरितः
द्वितीया सरितम् सरितौ सरितः

शेष भूभृत् की तरह

नपुंसक जगत् संसार

प्रथमा जगत् द् जगती जगन्ति
द्वितीया जगत् द् जगती

शेष पुलिंग की तरह

संपद ऐश्वर्य (Wealth)

प्रथमा संपत् द् संपदौ संपदः
द्वितीया संपदम् संपदौ संपदः
तृतीया संपदा संपद्भ्यां संपद्भिः
चतुर्थी संपदे संपद्भ्यां संपद्भ्यः
पञ्चमी संपदः संपद्भ्यां संपद्भ्यः
षष्ठी संपदः संपदोः संपदाम्
सप्तमी संपदि संपदोः संपत्सु
सम्बोधन संपत् द् संपदौ संपदः

क्षुध्भूख (Hunger)

प्रथमा क्षुत् द् क्षुधौ क्षुधः
द्वितीया क्षुधम् क्षुधौ क्षुधः
तृतीया क्षुधा क्षुद्भ्यां क्षुद्भिः
चतुर्थी क्षुधे क्षुद्भ्यां क्षुद्भ्यः
पञ्चमी क्षुधः क्षुद्भ्यां क्षुद्भ्यः
षष्ठी क्षुधः क्षुधोः क्षुधाम्
सप्तमी क्षुधि क्षुधोः क्षुत्सु
सम्बोधन क्षुत् द् क्षुधौ क्षुधः

पुर् स्त्रीलिंग पुर (town)

प्रथमा पूः पुरौ पुरः
द्वितीया पुरम् पुरौ पुरः
तृतीया पुरः पूर्भ्याः पूर्भिः
चतुर्थी पुरे पूर्भ्याः पूर्भ्यः
पञ्चमी पुरः पूर्भ्याः पूर्भ्यः
षष्ठी पुरः पुरोः पुषम्
सप्तमी पुरि पुरोः पूर्षु
सम्बोधन पूः पुरौ पुरः

गिर्—वाणी (Speech)

प्रथमा गीः गिरौ गिरः

शेष पुर की तरह—

यादृश्—जैसा (Alike)

प्रथमा यादक् ग् यादृशौ यादृशः
द्वितीया यादृशम् यादृशौ यादृशः
तृतीया यादृशा यादृग्भ्याम् यादृग्भिः
चतुर्थी यादृशे यादृग्भ्याम् यादृग्भ्यः
पञ्चमी यादृशः यादृग्भ्याम् यादृग्भ्यः
षष्ठी यादृशः यादृशोः यादृशाम्
सप्तमी यादृशि यादृशोः यादृक्षु
सं० यादक् ग् यादृशौ यादृशः

इसी तरह तादृश् त्वादृश के रूप होंगे—

दृश् स्त्रीलिंग—आंख

प्रथमा दृक् ग् द्दशौ द्दशः

शेष पुल्लिंग यादृश् की तरह

नपुंसक यादृश्

प्रथमाद्वितीयासं० यादृक् ग् यादृशी यादृंशि

शेष पुल्लिंगवत्

**विश्—वैश्य **(Banya)

प्रथमा विट् ड् विशौ विशः
द्वितीया विशम् विशौ विशः
तृतीया विशा विड्भ्यम् विड्भिः

इत्यादि—

द्विष् शत्रु

प्रथमा द्विट् ड् द्विषौ द्विषः

इत्यादि—

धनुष्—धनुष नपुंसक (Bow)

प्रथमा धनुः धनुषी धनूषि
द्वितीया धनुः धनुषी धनूषि
तृतीया धनुषा धनुर्भ्यां धनुर्भिः
चतुर्थी धनुषे धनुर्भ्यां धनुर्भ्यः
पंचमी धनुषः धनुर्भ्यां धनुर्भ्यः
षष्ठी धनुषः धनुषोः धनुषाम्
सप्तमी धनुषि धनुषोः धनुष्षु

इसी तरह हविष् चक्षुष्आदि

आशिष् आशीर्वाद स्त्रीलिंग

प्रथमा आशीः आशिषौ आशिषः
द्वितीया आशिषम् आशिषौ आशिषः
तृतीया आशिषा आशीर्भ्याम् आशीर्भिः
चतुर्थी आशिषे आशीर्भ्याम् आशीर्भ्यः
पञ्चमी आशिषः आशीर्भ्याम् आशीर्भ्यः
षष्ठी आशिषः आशिषोः आशिषाम्
सप्तमी आशिषि आशिषोः आशिष्षु

चन्द्रमस् चांद (the moon)

प्रथमा चन्द्रमाः चन्द्रमसौ चन्द्रमसः
द्वितीया चन्द्रमसम् चन्द्रमसौ चन्द्रमसः
तृतीया चन्द्रमसा चन्द्रमोभ्यां चन्द्रमोभिः
चतुर्थी चन्द्रमसे चन्द्रमोभ्यां चन्द्रमोभ्यः
पञ्चमी चन्द्रमसः चन्द्रमोभ्यां चन्द्रमोभ्यः
षष्ठी चन्द्रमसः चन्द्रमसोः चन्द्रमसाम्
सप्तमी चन्द्रमभिः चन्द्रमसोः चन्द्रमस्सु

यशस् नपुंसक कीर्ति

प्रथमा यशः यशसी यशांसि
द्वितीयासं० यशः यशसी यशांसि

शेष चन्द्रमस् की तरह

**अभ्यास **(Exercise)

भौरे कमल के फूल का रस पीते हैं।

देव जूते से रास्ते के कांटों को चूर्णित करता है।

जिस के पात्रों में जूता है सारी पृथ्वी उस के लिये चमड़े से ढपी है।

बादल समुद्र का खारी पानी पीते हैं।

आज आकाश बादलों से घिरा है।

मनुष्य वाणी से सारे संसार को अपना मित्र बना लेता है।

ऋत्विक लोग यज्ञ वेदी पर मंत्रों का उच्चारण कर रहे हैं।

यह फूलों की माला (स्रक्) राजा के गले में शोभा देती है।

सृष्टिकर्ता (विश्वसृज्) की विचित्र सृष्टि किस को मोहित नहीं करती।

सन्यासी लोग परिव्राज्) निष्काम कर्म करते हैं।

(मनस्) मन बड़ा चञ्चल है।

राजा का यश (यशस्) पृथिवी पर फैलता है।

पर्वतों की (भूभृत्) चोटी पर बर्फ पड़ती है।

गंगा नदियों में (सरित्) परम पवित्र है।

संपत्ति में (संपद्) जिसे हर्ष नहीं विपत्ति में (विपद्) शोक वह ही मनुष्य धीर है।

वह बालक भूख से (क्षुध्) व्याकुल हो रहा है।

जैसा (यादृश्) गुरु वैसा (तादृश्) चेला।

वणियों का (विश्) धन विवाह के काम आता हैं।

राजा का नाम सुनकर ही उसके शत्रु (द्विप्) भाग गये।

अर्जुन के धनुष का (धनुष्) नाम गांडीव था।

गुरु के आशीर्वाद से (आशिष्) मेरे सारे कार्य सिद्ध हुए।

आकाश में चन्द्रमा के (चन्द्रमस्) विम्ब को देखकर चकोर प्रसन्न होता है।

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**भ्वादि गण **First Conjugation

भ्वादिगण में धातु से आगे सार्व धातुक विभक्तियों में गण विकरण शप् (अ) लगाया जाता है—

भ्वादि गण

पठ् पढ़ना (to read)

वर्तमान काल लट्(Present tense)

एक वचन द्विवचन बहु वचन
प्रथम पुरुष पठति पठतः पठन्ति
मध्यम पुरुष पठसि पठथः पठथ
उत्तम पुरुष पठमि पठावः पठामः

**लोट **(Imperative mood)

इसका प्रयोग आज्ञा, निमंत्रण, उपदेश, प्रार्थना, आशीर्वाद आदि अर्थों में किया जाता है I

एक वचन द्विवचन बहुवचन
प्र० पु० पठतु (तात्) पटताम् पठन्तु
म० पु० पठ(तात्) पठतम् पठत
उ० पु० पठानि पठाव पठाम

**भूतकाल (लङ् ) **(Past tensc)

अनद्यतन भूत अर्थ में लङ् की विभक्तियें धातु के आगे लगती हैं।

और प्रत्येक धातु से पूर्व अ लग जाता है—

एक वचन द्विवचन बहु वचन
प्र० पु० अपठत् अपठताम् अपठन्
म० पु० अपठः अपठतम् अपठत
उ० पु० अपठम् अपठाव अपठम

**विधि लिङ् **(potential mood)

इस की विभक्तियां धातु से आगे आज्ञा निमंत्रण आमंत्रण सविनय—निवेदन प्रार्थना और विचार इन अर्थो में लगाई जाती हैं—

प्र० पु० पठेत् पठताम् पठेयुः
म० पु० पठेः पठेतम् पठेत
उ० पु० पठेयम् पठेव पठेम

जैसे उसे पढ़ना चाहिये।

भविष्यत् काल ऌट् (Future)

प्र० पु० पठिष्यति पठिष्यतः पठिष्यन्ति
म० पु० पठिष्यसि पठिष्यथः पठिष्यथ
उ० पु० पठिष्यामि पठिष्यावः पठिष्यामः

लृट् की विभक्तियें धातु से आगे भविष्यत् अर्थ में लगाई जाती हैं। जैसे पढ़ेंगे।

नीचे लिखे धातु परस्मैपद में पठ् की तरह होंगे।

**भू (भव्) होना **to be।

भवति, भवतु, अभवत्, भवेत्, भविष्यति।

**वद् बोलना **to speak.

वदति, वदतु, अवदत्, वदेत्, वदिष्यति।

रक्ष्रक्षा करना to protect।

रक्षाति रक्षतु अरक्षत् रक्षत् रक्षिष्यति।

**नम् भुकना **to bend।

नमति नमतु अनमत् नमेत् नमिष्यति।

गम् (गच्छ) to go।

गच्छति गच्छतु अगच्छत् गच्छेत् गमिष्यति।

पच् पकाना to cook

पचति पंचतु अपचत् पचेत् पचिष्यति।

**जि (जय्) **to conquer।

जयनि जयतु यजयत् जयेत् जेष्यति।

**क्षि(क्षय्) नाश होना **to waste away

क्षयति क्षयतु अक्षयत् क्षयेत् क्षयिष्यति।

**धौ (धाव्) भागना **to run

धावति धावतु अधावत् धावेत् धाविष्यति।

**(सद् मीद्) क्षीण होना **to decay

सीदति सीदतु असीदत् सीदेत् सीदिष्यति।

दंश (दश) काटना to bite

दशति दशतु अदशत् दशेत् दशिष्यति।

पा (पिव) पीना to drink

पिबति पिबतु अपिबत् पिबेत् पास्यति।

स्था (तिष्ठ) ठहरना to stand

तिष्ठति तिष्ठतु अतिष्ठत् तिष्ठत् स्थास्यति।

दा (यच्छ) देना to give

यच्छति यच्छतु अयच्छत् यच्छत् दास्यति।

ध्मा (धम्) बनाना to blow

धमति धमतु अधमत् धमेत् धमास्यति।

घ्रा(जिघ्र) सूंघना (to smell)

जिघ्रति जिघ्रतु अजिघ्रत जिघ्रेत् घ्रस्यति।

शुच् (शोच्) शोक करना( to bewail)

शोचति शोचतु अशोचत् शोचेत् शोचिष्यति।

त्यज् त्यागना (to abandon)

त्यजति त्यजतु अत्यजत् त्यजेत् त्यक्ष्यति।

दृश् (पश्य) देखना (to see)

पश्यति पश्यतु अपश्यत् पश्येत् द्रक्ष्यति।

वस् रहना (to dwell)

वसति वसतु अवसत् वसेत् वत्स्यति।

स्मृ (स्मर्) याद करना (to remember)

स्मरति स्मरतु अस्मरत् स्मरेत् स्मरिष्यति

सृ (सर्) सरकना (to move)

सरति सरतु असरत् सरेत् सरिष्यति

चूष चूसना (tosuck)

चूषति चूषतु अचूषत् चूषेत् चूपिष्यति

आत्मने पदी प्रत्यय

लट्

प्र० पु० ते इने अन्ते
म० पु० से इथे ध्वे
उ० पु० वहे महे

लोद्

प्र० पु० ताम् इताम् अन्ताम्
म० पु० स्व इथाम् ध्वे
उ० पु० आवहै आमहे

लङ्

प्र० पु० इताम् अन्त
म० पु० थाः इथाम् ध्वम्
उ० पु० आवहै आमहै

विधिलिङ्

प्र० पु० इत् इयाताम् इरन्
म० पु० इथाः इयाथाम् इध्वम्
उ० पु० इय इवहि इमहि

लृट

प्र० पु० ष्यते ष्येते ष्यन्ते
म० पु० ष्यसे ष्येथे ष्यध्वे
उ० षु० ष्ये ष्यावहे ष्यमहे

सेव् सेवा करना लट् (to serve)

प्र० पु० सेवते सेवेते सेवन्ते
म० पु० सेवसे सेवेथे सेवध्वे
उ० पु० सेवे सेवामहे सेवामहे

लोट्

प्र० पु० सेवताम् सेवेताम् सेवन्ताम्
म० पु० सेवस्व सवेथाम् सेवध्वम्
उ० पु० सेवे सेवावहै सेवामहै

लङ्

प्र० पु० असेवत असेवेतम् असेवन्त
म० पु० असेवथाः असेवेथाम् असेवध्वम्
उ० पु० असेवे असेवावहि असेवामहि

विधिलिङ्

प्र० पु० सेवेत सेवेयाताम् सेवेरन्
म० पु० सेवेथाः सेवेयाथाम् सेवेध्वम्
उ० पु० सेवेय सेवेवहि सेवमहि

लृट्

प्र०पु० सेविष्यते सेविष्येते सेविष्यन्ते
म० पु० सेविष्यसे सेविष्येथे सेविष्यध्ये
उ० पु० सेविष्ये सेविष्यावहे सेविष्यामहे

भ्वादिगणी आत्मने पदी धातुओं के रूप भी इसीप्रकार होंगे—

भाष् बोलना (to speak)

भाषते भाषताम् अभाषत भाषेत भाषिष्यते

रभ्शुरू करना (to begin)

रभते रभताम् अरभत रमेत रष्स्यते

लभ् पाना (to obtain)

लभते लभताम् अलभत लभेत लम्स्यते

ईह चाहना (to desire)

ईहते ईहताम एहत ईदृेत ईहिष्य

स्वज् गले मिलना (to embrace)

स्वजते स्वजताम् अस्वजत स्वजेत स्वजिष्यते

वृधू—(वर्ध) बढ़ना (to increase)

वर्धते वर्धताम् अवर्धत वर्धेत वर्धिष्यते

वृतु (वर्त) होना (to be)

वर्तते वर्तनाम् अवर्तत वर्तेत् वर्तिष्यते

बद्(बद्) नमस्कार करना (to salute)

वंदते वंदताम् अवंदत वंदेत वंदिष्यते

कंप्कांपन। (to tremble)

कंपते कंपताम् अकंपत कंपेत कंपिष्यते

यत् यत्न करना (to try)

यतते यतताम् अयतत यतेत यतिष्यते

सह सहना (to doubt)

सहते सहताम् असहत सहेन सहिष्यते

शक् शंका करना (to be glad)

शंकते शकताम् अशंकत शंकेन शंकिष्यते

मुद्(मोद) प्रसन्न होना (to praise)

मोदते मोदताम् अमोदन मोदेत मोदिष्यते

श्लाघ्तारीफ़ करना (to praise)

श्लाघते श्लाघताम् अश्लाघत श्लाघेत श्लाघिष्यते

शुभ् (शोभ्) शोभा करना (like)

शोभते शोभताम् अशोभत शोभेत शोभिष्यते

रुच (रोच) पसन्द करना

रोचते रोचताम् अरोचत रोचेत रोचिष्यते

एध बढना (to increase)

एधते एधनाम् ऐधत एधेत एधिष्यते

ईक्षदेखना (to see)

ईक्षते ईक्षताम् ऐक्षत ईक्षेत ईक्षिष्यते

शिक्ष्सीखना (to learn)

शिक्षते शिक्षताम् अशिक्षत शिक्षेत शिक्षिष्यते—

ऊह् तर्क करना (to argue)

ऊहते ऊहनाम् ऊहेत औहत ऊहिष्यते—

उभयी पदी नी (नय्) ले जाना (to carry)

परस्मैपदी लट्

प्र० पु० नयति नयतः नयन्ति
म० पु‍ नयसि नयथः नयथ
उ० पु० नयामि नयावः नयामः

लोट्

प्र० पु० नयतु नयताम् नयन्तु
म० पु० नय नयतम् नयत
उ० पु० नयानि नयाव नयाम

लङ्

प्र० पु० अनयत् अनयताम् अनयन्
म पु० अनयः अनयतम् अनयत
उ० पु० अनयम् अनयाव अनयाम

विधि लिङ्ग

प्र० पु० नयेत् नयेताम् नयेयुः
म० पु० नयेः नयेतम् नयेत
उ० पु० नयेयम् नयेव नयेम

लट्

प्र० पु० नेष्यति नेष्यतः नेष्यन्ति
म० पु० नेष्यामि निष्यथः नेष्यथ
उ० पु० नेष्यमि नेष्यावः नेष्यामः

आत्मनेपदी लट्

प्र० पु० नयते नयेते नयन्ते
म० पु० नयसे नयेथे नयध्वे
उ० पु० नये नयावहे नयामहे

लोट्

प्र० पु० नयतां नयेतां नयन्ताम्
म० पु० नयस्व नयेथाम् नयध्वम्
उ० पु० नयै नयावहि ययामहै

लङ्

प्र० पु० अनयत अमयेताम् अनयन्त
म० पु० अनयथाः अनयेथाम् अनयध्वम्
उ० पु० अनये अनयावहि अनयामहि

विधि लिङ्

प्र० पु० नयेत नयेयाताम् नयेरन्
म० पु० नयेथा नयेयाथाम् नयेध्वम्
उ० पु० नयेय नयेवहि नयेमहि

ऌट्

प्र० पु० नेष्यते नेष्येते नेष्यन्ते
म० पु० नेष्यसे नेष्येथे नेष्यध्वे
उ० पु नेष्ये नेष्यावहे नेष्यामहे

नीचे लिखी उभयपदी धातुओं के रूप भी ऐसे ही होंगे—

हू (हर्) छीनना (to snatch)

हरति हरतु अहरत् हरेत् हरिष्यति
हरते हरताम् अहरत हरेत हरिष्यते

यज् (यज्ञ) करना (to perform sacrifice)

यजति यजतु अयजतू यंजत् यक्ष्यति
यजते यजताम् अयजत यजेन यक्ष्यते

याच् माँगना (to beg)

याचति याचतु अयाचत् याचेत याचिष्यति
याचते यावताम् अयाचत याचेत याचिष्यते

वह् उठाना (to raise)

वहति वहतु अवहत् वहेत् वहिष्यति
वहते वहताम् अवहत् वहेत वहिष्यते

अभ्यास (exercise)

शिष्य गुरू से अपना पाठ पढ़ते हैं।

पण्डित लोग मूर्खों की बातें सुन कर हंसते हैं।

भगवान की कृपा से आपके घर एक सुन्दर बालक होगा।

सभी छात्र प्रातः काल उठे और ईश्वर के गुणों का गान करें।

देवदत्त वाग़ में सायँकाल के समय सैर करने जाता हैं।

मल्लाह नदी में बड़ ज़ोर से तैरते थे।

इस वृक्ष की चोटी पर जितने पक्षी रहते थे।

सभी कल सायं उड़ गये हैं।

जो विद्यार्थी अपना पाठ स्मरण नहीं करेंगे।

गुरु जी उन्हें पारितोषिक नहीं देंगे।

विद्या से ज्ञान और ब्रह्मचर्य से बल बढ़ता हैं

कौन्स ने महाराज रघु से चौदह करोड़ रुपया गुरू दक्षिणा के लिये मांगा।

ब्राह्मण व्याघ्र के हाथ से सोने का कड़ा छीनता है।

आज दास गौऔं को बाहर नहीं ले जायेगा।

सेवक तन मन से अपने स्वामी की सेवा करते हैं।

दुर्योधन ने छल से पाडवों का राज्य जीता।

अभिमन्यु का विराट पुत्री उत्तरा से विवाह हुआ।

अग्नि ने अर्जुन और कृष्ण की सहायता से खाण्डव वन को जला दिया।

रावण ने राम की घर्मपत्नि जानकी को पंचवटी वन में छल से हर लिया।

रावण की मृत्यु के अनन्तर उसका भाई विभीषण लङ्का की राज्य गद्दी पर बैटा।

मेघनाद वल और शस्त्रविद्या में इतना निपुण था कि उसके समान कोई न था।

तुदादिगण (6th conjugation)

इस गण में धातु के आगे श (अ) विकरण लगाया जाता है—

भ्वादि में धातुओं में गुण हो जाता है तुदादि में नहीं यही इन दोन में भेद हैं—

तुद् दुख देना लट् परस्मैपद (to pinch )

प्र० पु० तुदति तुदतः तुदन्ति
म० पु० तुदसि तुदथः तुदथ
उ० पु० तुदामि तुदावः तुदामः

लोट्

प्र० पु० तुदतु तुदताम तुदन्तु
म० पु० तुद तुदतम् तुदत
उ० पु० तुदानि तुदाव तुदाम

लङ्

प्र० पुः अतुदत अतुदताम् अतुदन्
म० पु० अतुदः अतुदनम् अतुदत
उ० पु० अनुदम् अतुदाव अतुदाम

विधिलिङ्ग

प्र० पु० तुदेत् तुदेनाम् तुदेयुः
म० पु० तुदेः तुदेतम् तुदेत
उ० पु० तुदेयम् तुदेव तुदेम

ऌट्

प्र० पु० तोत्स्यति तोत्स्यतः तोत्स्यन्ति

तुदादि गणी परस्मैपदी अन्य धातु—

इष् (इच्छु) चाहना (to wish)

इच्छति इच्छतु एच्छत् इच्छेत् एषिष्यति

प्रच्छ (पृच्छ) पूछना (to ask)

पृच्छति पृच्छतु अपृच्छत् पृच्छेत् प्रक्ष्यति

क्षिप् फेैंकना (to throw)

क्षिपति क्षितु अक्षिपत् क्षिपेत् क्षेप्स्यति

सृज पैदा करना (to create)

सृजति सृजतु असृजत् सृजेत् स्रक्ष्यति

स्पृश् छूना(to touch)

स्पृशाते स्पृशतु स्पृशेत् अस्पृशत् स्प्रक्ष्यति

मस्ज् (मज्ज्) डुबकी लगाना (to plunge)

मज्जति मज्जतु अमज्जत् मज्जेत् मक्ष्यति

(भृय्) मरना आत्मनेपदी (to die)

प्र० पु० भ्रियते भ्रियते भ्रियन्ते
म० पु० भ्रियसे भ्रियेथे भ्रियध्वे
उ० पु० भ्रिये भ्रियावहे भ्रियामहे

लोट

प्र० पु० भ्रियताम् भ्रियेताम् भ्रियन्ताम्
म० पु० भ्रियस्व भ्रियेथाम् भ्रियध्वम्
उ० पु० भ्रियै भ्रियावहै भ्रियामहै

लङ्

प्र० पु० अभ्रियत अभ्रियेताम् अभ्रियन्त
म० पु० अभ्रियथाः अभ्रियेथाम् अभ्रियध्वम्
उ० पु० अभ्रिये अभ्रियावहि अभ्रियामहि

विधि लिङ्

प्र० पु० भ्रियत भ्रियेयाताम् भ्रियेरन्
म० पु० भ्रियेथाः भ्रियेयाथाम् भ्रियेध्वम्
उ० पु० भ्रियेय भ्रियेवहि भ्रियेमहि

लट्

प्र० पु० भरिष्यति भरिष्यतः भरिष्यन्ति
म० पु० भरिष्यसि भरिष्यथः भरिष्यध्ये
उ० पु० भरिष्यामि भरिष्यावहे भरिष्यामहे

उभयपदी सिच् सिंच् छिड़कना

परस्मैपद लट (To sprinkle)

प्र० पु० सिञ्चति सिञ्चतः सिञ्चन्ति
म० पु० सिञ्चसि सिञ्चथः सिञ्चथ
उ० पु० सिञ्चामि सिञ्चावः सिञ्चामः

लोट्

प्र० पु० सिंचतु सिंचताम् सिंचन्तु
म० पु० सिंच सिंचनम् सिंचत
उ० पु० सिंचानि सिंचाव सिंचाम

लङ्

प्र० पु असिंचत् असिंचताम् असिंचन्
म० पु० असिंचः असिंचतम् असिंचत
उ० पु० असिंचम् असिंचाव असिंचाम

विधि लिङ

प्र० पु० सिंचेत् सिंचेताम् सिंचेयुः
म० पु० सिंचेः सिंचेतम् सिंचेत
उ० पु० सिंचेयम् सिंचेव सिंचेम

लृट

प्र० पु० सेक्ष्यति सेक्ष्यतः सेक्ष्यीन्त

आत्मनेपदी लट्

प्र० पु० सिंचते सिंचेते सिंचन्ते
म० पु० सिंचसे सिंचेथे सिंचध्वे
उ० पु० सिंचे सिंचावहे सिंचामहे

लोट्

प्र० पु० सिंचनाम् सिंचेताम् सिंचन्ताम्
म० पु० सिंचस्व सिंचेथाम् सिंचध्वम्
उ० पु० सिंचे सिचावहै सिंचामहै

लङ्

प्र० पु० असिंचत असिंचेताम असिंचन्त
म० पु० असिंचथाः असिंचेथाम् असिंचध्वम्
उ० पु० असिंचे असिंचावहि असिंचामहि

विधि लिङ्

प्र० पु० सिंचेत सिंचेयाताम् सिंचरेन्
म० पु० सिंचेथाः सिंचेयाथाम् सिंचध्वेम्
उ० पु० सिंचेय सिंचेवहि सिंचेमहि

लृट्

सेक्ष्यते—

मुच् मुंच् छोड़ना (To leave)

विदू विन्द पाना (To get)

इत्यादि धातुओं के रूप भी इसी प्रकार होंगे—

अभ्यास (Exercise)

विषयों के भोग मनुष्यों को दुःख देते हैं।

होली के दिनों में बालक मनुष्यों पर धूल फेंकते हैं।

कौरवों ने पाण्डवों को अकारण दुःख दिया।

मोहन ने सोहन का गेंद कुएं में फेंक दिया।

माली अपने वाग़ के छोटे २ पौदों को जल से सींचता है।

शकुन्तला जल के घड़ों ने कराव के आश्रम में वृक्षों को सींचा करती थी।

ईश्वर जो चाहता है वही होता है।

यदि मैंने चाहा तो राम को बहुत सा धन दूंगा।

यदि वैद्य समय पर न पहुंचता तो वह अवश्य मर जाता।

ईश्वर की कृपा से राजा के सभी शत्रु मर गये।

हरि हाथ से अग्नि को छूता है।

मैं गुरु से धर्म के सम्बन्ध में प्रश्न पूछता हुँ

ब्रह्मा ने सारी सृष्टि पैदा की।

कृष्ण ने पात्रों से मृत सांप को छुआ।

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दिवादिगण 4th conjugation.

इस गण में धातु के आगे श्यन् (य) विकरण सार्वधातुक विभक्तियों के बीच में लगाया जाता है—

नृत् (नृत्य) नाचना (To dance)

परस्मैपद लट्

प्र० पु० नृत्यति नृत्यतः नृत्यन्ति
म० पु० नृत्यसि नृत्यथः नृत्यथ
उ० पु० नृत्यामि नृत्यावः नृत्यामः

लोट्

प्र० पु० नृत्यतु नृत्यताम् नृत्यन्तु
म० पु० नृत्य नृत्यतम् नृत्यत
उ० पु० नृत्यानि नृत्याव नृत्याम

लङ्

प्र० पु० अनृत्यत् अनृत्यताम् अनृत्यन्
म० पु० अनृत्यः अनृत्यतम् अनृत्यत
उ० पु० अनृत्यम् अनृत्याव अनृत्याम

विधि लिङ्

प्र० पु० नृत्येत् नृत्येताम् नृत्येयुः
म० पु० नृत्येः नृत्येतम् नृत्येन
म० पु० नृत्येयम् नृत्येव नृत्येम

लृट

प्र० पु० नर्तिष्यति नर्तिष्यतः नर्तिष्यन्ति
म० पु० नर्तिष्यसि नर्तिष्यथः नर्तिष्यथ
उ० पु० नर्तिष्यमि नर्तिष्यवः नर्तिष्यमः

इसी प्रकार परस्संपदा दिवादिगण के अन्य धातु भी होंगे

दिव (दीव्य) चमकना (To shine)

दीव्यति दीव्यतु अदीव्यत् दीव्यतु देविष्यति

श्रम् (श्राम्य) थकना (To get tired)

श्राम्यति श्राम्यतु अश्राम्यत् श्राभ्येत् श्रमिष्यति

क्रध्(क्रुोध करना) (To be angry)

क्रुध्यति क्रुध्यतु अक्रुध्यत् क्रुध्येत् क्रोत्स्यति

शुष् (सूखना) (To dry)

शुष्यति शुष्यतु अशुष्यत् शुष्येत् शोक्ष्यति

तुष् (प्रसन्न होना) (To be happy)

तुष्यति तुष्यतु अतुष्यत् तुष्येत् तोक्ष्यति

पुष् (पुष्य) पुष्ट होना (To grow fat)

पुष्यति पुष्यतु अपुष्यत् पुष्येत् पोपिष्यति

शम् (शान्त होना) (To be at peace)

शाम्यति शाम्यतु अशाम्यत् शाम्येत् शमिष्यति

अस फेंकना (To throw)

अस्यति अस्यतु आस्यत् अस्येत् असिष्यति

क्षम् क्षाम्य (क्षमा करना) (To excuse)

क्षाम्यति क्षाम्यतु अक्षाम्यत क्षाम्येत् क्षेस्यति

व्यध्(विध्य) वैधना (To perferate)

विध्यति विध्यतु अविध्यत् विध्येत् वित्स्यति

नश्(नष्ट होना) (To be ruined)

नश्यति नश्यतु अनश्यत् नश्येत् नेक्ष्यति

भ्रम् (घूमना) (To wonder)
भ्राम्यति भ्राम्यतु अभ्राम्यत् भ्राम्येत् भ्रमिष्यति

जन् जा पैदा होना (To be born)

आत्मनेपद लट्

प्र० पु० जायते जायेते जायन्ते
म० पु० जायसे जायेथे जायध्वे
उ० पु० जाये जायावहे जायामहे

लोट

प्र० पु० जायताम् जायेताम् जायन्ताम्
म० पु० जायस्व जायेथाम् जायध्वम्
उ० पु० जायै जायावहै जायामहै

लङ्

प्र० पु० अजायत अजायेताम् अजायन्त
म० पु० अजायथाः अजायेथाम् अजायध्वम्
उ० पु० अजाये अजायावहि अजायामहि

विधि लिङ्

प्र० पु० जायेत जायेथाताम् जायेरन्
म० पु० जायेथाः जायेयाथाम् जायेध्वम्
उ० पु० जायेय जावेमहि जायेमहि

लृट्

प्र० पु० जनिष्येते जनिष्येते जनिष्यन्ते
म० पु० जनिष्यसे जनिष्येथे जनिष्यध्वे
उ० पु० जनिष्ये जनिष्यावहे जनिष्यामहे

नीचे लिखे दिवादिगणी आत्मनेपदी धातु इसी प्रकार होंगे

युध्युध्य (युद्ध करना) (To fight)

युध्यते युध्यतां अयुध्यत् युध्येत योत्स्यते

विद्—विद्य होना (To be present)

विद्यते विद्यताम् अविद्यत् विद्येत वेत्स्यते

**अभ्यासः **Exercise.

सूर्य आकाश में चमकता है।

वर्षा काल में आकाश पर मेघों की घटा को देखकर मोर नाचते है।

अर्जुन की शिष्या उत्तरा बहुत सुन्दर नाचा करती थी।

रंभा अपनी माता का कहा नहीं मानती इसलिये वह उससे नाराज़ होती हैं।

जो विद्यार्थि पाठ याद नहीं करेंगे गुरू उन पर कुपित होंगे।

पथिकदिन भर कार्य करने से थक गया।

रथ का पहिया बड़ी तेज़ी से घूमता है।

ग्रीष्म में जल के अभाव से तालाब और छप्पड़ों का जल सूख जाता है।

सूर्य की धूप से वृक्षों के पत्र सूख जायेंगे।

बुढ़ापे में भी मनुष्यों की तृष्णा शान्त नहीं होती।

बालक मिठाई से तृप्त होते हैं।

क्षत्रियवीर मृत्यु का भय छोड़ कर युद्ध क्षेत्र में युद्ध करते हैं।

महाराज उत्तानपाद के घर ध्रव नाम का एक आस्तिक पुत्र पैदा हुआ।

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चुरादिगण चुर् चोर चुराना 10th conjugation

इस गण में धातु के आगे अयविकरण लगाया जाता है— धातु प्रायः उभयपदी हैं।
लट् (To steal)

प्र० पु० चोरयति चोरयतः चोरयन्ति
म० पु० चोरयसि चोरयथः चोरयथ
उ० पु० चोरयामि चोरयावः चोरयामः

लोट्

प्र०पु० चोरयतु चोरयताम् चोरयन्तु
म० पु० चोरय चोरयतम् चोरयत
उ० पु० चोरयानि चोरयाव चोरयाम

लङ्

प्र०पु० अचोरयत् अचोरयताम् अचोरयन्
म० पु० अचोरयः अचोरयेतम् अचोरयत
उ० पु० अचोरयम् अचोरयाव अचोरयाम

विधि लिङ्

प्र०पु० चोरयेत् चोरयेताम् चोरयेयुः
म० पु० चोरयेः चोरयेतम् चोरयेत
उ० पु० चोरयेयम् चोरयेव चोरयेम

लृट्

प्र०पु० चोरयिष्यति चोरयिष्यतः चोरयिष्यन्ति
म० पु० चोरयिष्यसि चोरयिष्यथः चोरयिष्यथ
उ० पु० चोरयिष्यामि चोरयिष्यावः चोरयिष्यामः

उभयपदी धातु

भक्ष्खाना (To eat)

भक्षयति भक्षयतु अभक्षयत् भक्षयेत् भक्षयिष्यति

भक्षयते भक्षयतां अभक्षयत भक्षयेत भक्षयिष्यते

तड्ताङ् पीटना (To beat)

ताड़यति ताड़यतु अताड़यत् नाड़येत् ताड़यिष्यति

ताड़यते ताड़यताम अताड़यत नाड़येत ताड़यिष्यति

भृष् सजाना (So decorate)

भूषयति भूषयतु अभूषयत् भूषयेत् भूषयिष्यति

भूषयते भूषयतां अभूषयत भूषयेत भूषयिष्यते

कथ् कहना (To say)

कथयति कथयतु अकथयत् कथयेत् कथयिष्यति

कथयतेकथयताम्अकथयत कथयेत कथयिष्यते

**गण् गिनना **(To count)

गणयति गणयतु अगणयत् गणयेत् गाणयिष्यति

गणयते गणयतां अगणयत गणयेत गाणयिष्यत

पाल् पालना (To rear)
पालयति पालयतु अपालयत् पालयेत् पालयिष्यति
पालयते पालयतां अपालयत पालयेत पालयिष्यते
रच् रचना (To create)
रचयति रचयतु अरचयत् रचयेत् रचयिष्यति
रचयते रचयतां अरचयत रचयेत रचयिष्यते
दंड् दंड देना (To punish)
दंडयति दंडयतु अदंडयत् दंडयेत् दंडयिष्यति
दंडयते दंडयतां अदंडयत दंडयेत दंडयिष्यते
प्री प्रीण् प्रसन्न होना (To be glad)
प्रीणयति प्रीणयतु अप्रीणयत् प्रीणयेत् प्रीणयिष्यति
प्रीणयते प्रीणयतां अप्रीणयत प्रीणयेत प्रीणयिष्यते
स्पृह्चाहना (To desire)
स्पृहयति स्पृहयतु अस्पृहयत् स्पृहयेत् स्पृहयिष्यति
स्पृहयते स्पृहयतां अस्पृहयत स्पृहयेत स्पृहयिष्यते
तुल् तोल तोलना (To weigh)
तोलयति तोलयतु अतोलयत् तोलयेत् तोलयिष्यति
तोलयते तोलयतां अतोलयत तोलयेत तोलयिष्यते
क्रीड्खेलना (To play)
क्रीडयति क्रीडयतु अक्रीडयत् क्रीडयेत् क्रीडयिष्यति
क्रीडयते क्रीडयताम् अक्रीडयत क्रीडयेत क्रीडयिष्यते
चिन्त् सोचना परस्मैपद (To think)
चिन्तयति चिन्तयतु अचिन्तयत् चिन्तयेत् चिन्तयिष्यति
आत्मनेपद
चिन्तयते चिन्तयताम् अचिन्तयत चिन्तयेत चिन्तयिष्यते

अभ्यास exercise.

जानकी अशोक वन में रामकी चिन्ता करती थी।

चोरों ने राजा के महल से बहुत सा धन चुराया।

जिन छात्रों ने अपना पाठ स्मरण नहीं किया गुरू उन्हें पीटता है।

बालक दंड से पशुओं को ताड़ता है।

हे प्रभो मेैं कभी किसी के धन की चोरी न करूं।

महाराज राम की राजसभा में लव और कुश ने बाल्मीकि रामायण की कथा कही।

यदि आप मुझे क्षमा करें तो मैं आप को सब सच सच कह दूँगा।

शकुन्तला कण्व ऋषि के आश्रम में चिर तर दुष्यन्त की चिन्ता करती रही।

राम सप्ताह में एक दिन कुछ नहीं खाता।

काश्मीर में लोग प्रायः शाक और भात खातेहै।

वणिया तराजू से चावल तोलता है।

श्याम अपना भवन दीपमाला के दिन तरह तरह के चित्रों से सजायेगा।

सखे तुम्हारा भाई कुशल है तुम्हें उसकी चिन्ता न करनी चाहिये।

मेरी पाठशाला के विद्यार्थी सायंकाल को अपने खेल के मैदान में फुटबाल खेलते हैं।

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स्वादिगण 5th Conjugation.

इस गणमें धातु से श्नु (नु) लगाया जाता है

श्रु सुनना परस्मैपद लट् (To hear)
प्र० पु० शृणोति शृणुतः शृण्वन्ति
म० पु० शृणोषि शृणुथः शृणुथ
उ० पु० शृणोमि शृणुवः, ण्वः शृणुमः, ण्मः
लोट्
प्र० पु० शृणोतु, तात् शृणुताम् शृण्वन्तु
म० पु० शृणु श्रृणुतम् शृणुत
उ० पु० शृणवानि शृणवाव शृणवाम
लङ्
प्र० पु० अशृणोत् अश्रृणुताम् अशृण्वन्
म० पु० अशृणोः अशृणुतम् अशृणुत
उ० पु० अशृणवम् अशृणुव, ण्व अशृणुमम्, ण्म
विधिलिङ्
प्र० पु शृणुयात् शृणुयाताम् शृणुयुः
म० पु० शृणुयाः शृणुयातम् शृणुयात
उ० पु० श्रृणुयाम् शृणुयाव शृणुयाम
लृट्
प्र० पु० श्रोष्यति श्रोष्यतः श्रोष्यन्ति
म० पु० श्रोष्यसि श्रोष्यथः श्रोष्यथ
उ० पु० श्रोष्यामि श्रोष्यावः श्रोष्यामः
आप् पाना लट् (To obtain)
प्र० पु० आप्नोति आप्नुतः आप्नुवन्ति
म० पु० आप्नोषि आप्नुथः आप्नुथ
उ० पु० आप्नोमि आप्नुवः आप्नुमः
लोट्
प्र० पु० आप्नोतु आप्नुतां आप्नुवन्तु
म० पु० आप्नुहि आप्नुताम् आप्नुत
उ० पु० आप्नवानि आप्नुवाव आप्नुवाम
लङ्
प्र० पु० आप्नोत् आप्नुतां आप्नुवन्
म० पु० आप्नोः आप्नुतम् आप्नुत
उ० पु० आप्नुवम् आप्नुव आप्नुम
विधिलिङ्
प्र० पु० आप्नुयात् आप्नुयातां आप्नुयुः
म० पु० आप्नुयाः आप्नुयातम् आप्नुयात
उ० पु० आप्नुयाम् आप्नुयाव आप्नुयाम
लृट्
प्र० पु० आप्स्यति आप्स्यतः आप्स्यन्ति
म० पु० आप्स्यसि आप्स्यथः आप्स्यथ
उ० पु० आप्स्यामि आप्स्यावः आप्स्यामः
शक् समर्थ होना लट् (To be able)
प्र० पु० शक्नोति शक्नुतः शक्नुवन्ति
म० पु० शक्नोषि शक्नुथः शक्नुथ
उ० पु० शक्नोमि शक्नुवः शक्नुमः
लोट्
प्र० पु० शक्नोतु शक्नुताम् शक्नुवन्तु
म० पु० शक्नुहि शक्नुतम् शक्नुत
उ० पु० शक्नवानि शक्नवाव शक्नवाम
लङ्
प्र० पु० अशक्नोत् अशक्नुताम् अशक्नुवन्
म० पु० अशक्नोः अशक्नुतम् अशक्नुत
उ० पु० अशक्नवम् अशक्नुव अशक्नुम
विधिलिङ्
प्र० पु० शक्नुयात् शक्नुयाताम् शक्नुयुः
म० पु० शक्नुयाः शक्नुयातम् शक्नुयात
उ० पु० शक्नुयाम् शक्नुयाव शक्नुयाम
लृट्
प्र० पु० शक्ष्यति शक्ष्यतः शक्ष्यन्ति
म० पु० शक्ष्यसि शक्ष्यथः शक्ष्यथ
उ० पु० शक्ष्यामि शक्ष्यावः शक्ष्यामः
हि भेजना लट् (To send)
प्र० पु० हिनोति हिनुतः हिन्वन्ति
म० पु० हिनोषि हिनुथः हिनुथ
उ० पु० हिनोमि हिनुवः, न्वः हिनुमः,न्मः
लोट्
प्र० पु० हिनोतु हिनुताम् हिन्वन्तु
म० पु० हिनु हिनुतम् हिनुत
उ० पु० हिनवानि हिनवाव हिनवाम
लङ्
प्र० पु० अहिनोत् अहिनुतां अहिन्वन्
म० पु० अहिनोः अहिनुतम् अहिनुत
उ० पु० अहिनवम् अहिनुव, न्व अहिनुम, न्म
विधिलिङ्
प्र० पु० हिनुयात् हिनुयाताम् हिनुयुः
म० पु० हिनुयाः हिनुयातम् हिनुयात
उ० पु० हिनुयाम् हिनुयाव हिनुयाम
लृट्
प्र० पु० हेष्यति हेष्यतः हेष्यन्ति
म० पु० हेष्यसि हेष्यथः हेष्यथ
उ० पु० हेष्यामि हेष्यावः हेष्यामः
सु परस्मैपद
सुनोति सुनोतु असुनोत् सुनुयात् सोष्यति
आत्मनेपद
सुनुते सुनुताम् असुनोत सुन्वीत सोष्यते

अभ्यास Exercise

भक्त लोग ऋषि से धर्म की कथा सुनते हैं।

आज रामनवमी का दिन है मैं किसी विद्वान से रामायण सुनूंगा।

वह गत सप्ताह से ज्वर से पीड़ित है चल फिर नहीं सकता।

कार्य अधिक होने से मैं आज आप के घर न आसकूँगा।

उसके शिर में दर्द है वह कोई कार्य नहीं कर सकता।

मदन ने अपनी बहिन कान्ता को १० रुपये रक्षा बन्धन के भेजे।

जब राम का दूत अंगद लंका में रावण की सभा में पहुँचा तो उसका बड़ा स्वागत किया।

आशा है मैं आज की गाड़ी लाहौर पहुँच जाऊँगा।

बहुत समय से वह अपने भाई के पास नहीं पहुँचा।

तनादिगण 8th Conjugation.

इस गण में धातु से आगे उविकरण लगाया जाता है—

कृ करना (To do)

परस्मैपद लट्
प्र० पु० करोति कुरुतः कुर्वन्ति
म० पु० करोषि कुरुथः कुरुथ
उ० पु० करोमि कुर्वः कुर्मः
लोट्
प्र० पु० करोतु कुरुताम् कुर्वन्तु
म० पु० कुरु कुरुतम् कुरुत
उ० पु० करवानि करवाव करवाम
लङ्
प्र० पु० अकरोत् अकुरुताम् अकुर्वन्
म० पु० अकरोः अकुरुतम् अकुरुत
उ० पु० अकरवम् अकुर्व अकुर्म
विधिलिङ्
प्र० पु० कुर्यात् कुर्याताम् कुर्युः
म० पु० कुर्याः कुर्यातम् कुर्यात
उ० पु० कुर्याम् कुर्याव कुर्याम
लृट्
प्र० पु० करिष्यति करिष्यतः करिष्यन्ति
म० पु० करिष्यसि करिष्यथः करिष्यथ
उ० पु० करिष्यामि करिष्यावः करिष्यामः
आत्मनेपद लट्
प्र० पु० कुरुते कुर्वाते कुर्वते
म० पु० कुरुषे कुर्वाथे कुरुध्वे
उ० पु० कुर्वे कुर्वहे कुर्महे
लोट्
प्र० पु० कुरुताम् कुर्वाताम् कुर्वताम्
म० पु० कुरुष्व कुर्वाथाम् कुरुध्वम्
उ० पु० करवै करवावहै करवामहै
लङ्
प्र० पु० अकुरुत अकुर्वाताम् अकुर्वत
म० पु० अकुरुथाः अकुर्वाथाम् अकुरुध्वम्
उ० पु० अकुर्वि अकुर्वहि अकुर्महि
विधिलिङ्
प्र० पु० कुर्वीत कुर्वीयाताम् कुर्वीरन्
म० पु० कुर्वीथाः कुर्वीयाथाम् कुर्वीध्वम्
उ० पु० कुर्वीय कुर्वीवहि कुर्वीमहि
लृट्
प्र० पु० करिष्यते करिष्येते करिष्यन्ते
म० पु० करिष्यसे करिष्येथे करिष्यध्वे
उ०पु० करिष्ये करिष्यावहे करिष्यामहे

तनु—तन् फैलाना (To spread)

परस्मैपद लट्
प्र० पु० तनोति तनुतः तन्वन्ति
म० पु० तनोषि तनुथः तनुथ
उ० पु० तनोमि तनुवः, न्वः तनुमः, न्मः
लोट्
प्र० पु० तनोतु तनुताम् तन्वन्तु
म० पु० तनु तनुतम् तनुत
उ० पु० तनवानि तनवाव तनवाम
लङ्
प्र० पु० अतनोत् अतनुताम् अतन्वन्
म० पु० अतनोः अतनुतम् अतनुत
उ० पु० अतनवम् अतनुव, न्व अतनुम, न्म
विधिलिङ्
प्र० पु० तनुयात् तनुयाताम् तनुयुः
म० पु० तनुयाः तनुयातम् तनुयात
उ० पु० तनुयाम् तनुयाव तनुयाम
लृट्
प्र० पु० तनिष्यति तनिष्यतः तनिष्यन्ति
म० पु० तनिष्यसि तनिष्यथः तनिष्यथ
उ० पु० तनिष्यामि तनिष्यावः तनिष्यामः
आत्मनेपद लट्
प्र० पु० तनुते तन्वाते तन्वते
म० पु० तनुषे तन्वाथे तनुध्वे
उ० पु० तन्वे तनुवहे, तन्वहे तनुमहे, तन्महे
लोट्
प्र० पु० तनुतां तन्वाताम् तन्वताम्
म० पु० तनुष्व तन्वाथाम् तनुध्वम्
उ० पु० तनवै तनवावहै तनवामहै
लङ्
प्र० पु० अतनुत अतन्वाताम् अतन्वत
म० पु० अतनुथाः अतन्वाथाम् अतनुध्वम्
उ० पु० अतन्वि अतनुवहि, अतन्वहि अतनुमहि, अतन्महि
विधिलिङ्
प्र० पु० तन्वीत तन्वीयाताम् तन्वीरन्
म० पु० तन्वीथाः तन्वीयाथाम् तन्वीध्वम्
उ० पु० तन्वीय तन्वीवहि तन्वीमहि
लृट्
प्र० पु० तनिष्यते तनिष्येते तनिष्यन्ते
म० पु० तनिष्यसे तनिष्येथे तनिष्यध्वे
उ० पु० तनिष्ये तनिष्यावहे तनिष्यामहे

अभ्यास Exercise.

सज्जन सारे जगत् का उपकार करते हैं।

जो किसी का हित नहीं करता प्रभु उस पर प्रसन्न नहीं होता।

जुलाह वस्त्र बुनने के लिये सूत्रों को फैलाता है।

मैने उसका स्वप्न में भी कभी बुरा नहीं किया न मालूम वह मुझ से कुपित क्यों हैं।

मनुष्य का धर्म है कि वह प्राणिमात्र का कल्याण करे।

मकड़ी अपने शरीर से ही तन्तु निकाल कर ताना तन देती है।

यदि वह जीवित रहा तो संसार में बड़े विचित्र कार्य करेगा।

प्रिय शिष्य शुभ कर्म करो माता पिता की सेवा करो प्रभु प्रसन्न होगा।

रुधादिगण 7th Conjugation.

इस गणमें धातु के अन्त में होने वाले स्वर से आगे न विकरण लगाया जाता है यदि परे कित्ङित्विभक्ति हो तो और न का अ उड़ जाता ह—

भिद् परस्मैपद लट् तोड़ना (To break)
प्र० पु० भिनत्ति भिन्तः भिन्दन्ति
म० पु० भिनत्सि भिन्थः भिन्थ
उ० पु० भिनद्मि भिंद्वः भिंद्मः
लोट्
प्र० पु० भिनत्तु भिन्ताम् भिन्दन्तु
म० पु० भिन्दि भिन्तम् भिन्त
उ० पु० भिनदानि भिनदाव भिनदाम
लङ्
प्र० पु० अभिनत् अभिन्ताम् अभिन्दन्
म० पु० अभिन्दः अभिन्तम् अभिन्त
उ० पु० अभिनदम् अभिंद्व अभिंद्म
विधिलिङ्
प्र० पु० भिंद्यात् भिंद्याताम् भिंद्युः
म० पु० भिंद्याः भिंद्यातम् भिंद्यात
उ० पु० भिंद्याम् भिंद्याव भिंद्याम
लृट्
प्र० पु० भेत्स्यति भेत्स्यतः भेत्स्यन्ति
म० पु० भेत्स्यसि भेत्स्यथः भेत्स्यथ
उ० पु० भेत्स्यामि भेत्स्यावः भेत्स्यामः
आत्मनेपद लट्
प्र० पु० भिन्ते भिन्दाते भिन्दते
म० पु० भिन्त्से भिंदाथे भिंदध्वे
उ० पु० भिन्दे भिन्द्वहे भिन्द्महे
लोट्
प्र० पु० भिन्ताम् भिन्दाताम् भिन्दताम्
म० पु० भिन्त्स्व भिन्दाथाम् भिन्दध्वम्
उ० पु० भिन्दै भिन्दावहै भिन्दामहै
लङ्
प्र० पु० अभिनत् अभिन्दाताम् अभिन्दत
म० पु० अभिन्दाः अभिन्दाथाम् अभिन्दध्वम्
उ० पु० अभिन्दे अभिंद्वहि अभिंद्महि
विधिलिङ्
प्र० पु० भिन्दीत् भिन्दीयाताम् भिन्दीरन्
म० पु० भिन्दीथाः भिन्दीयाथाम् भिन्दीध्वम्
उ० पु० भिन्दीय भिन्दीवहि भिन्दीमहि
लृट्
प्र० पु० भेत्स्यते भेत्स्येते भेत्स्यन्ते
म० पु० भेत्स्यसे भेत्स्येथे भेत्स्यध्वे
उ० पु० भेत्स्ये भेत्स्यावहे भेत्स्यामहे

रुध्रोकना (To obstruct)

लट् परस्मैपद
प्र० पु० रुणद्धि रुण्धः रुण्धन्ति
म० पु० रुणत्सि रुण्धः रुण्ध
उ० पु० रुणध्मि रुण्ध्वः रुण्ध्मः
लोट्
प्र० पु० रुणद्धु रुन्धाम् रुन्धन्तु
म० पु० रुन्धि रुन्द्धम् रुन्ध
उ० पु० रुणधानि रुणधाव रुणधाम
लङ्
प्र० पु० अरुणात्, द् अरुन्धाम् अरुन्धन्
म० पु० अरुणात्, द् अरुन्द्धम् अरुन्द्ध
उ० पु० अरुणधम् अरुन्ध्व अरुन्ध्म
विधिलिङ्
प्र० पु० रुन्ध्यात् रुन्ध्याताम् रुन्ध्युः
म० पु० रुन्ध्याः रुन्ध्यातम् रुन्ध्यात
उ० पु० रुन्ध्याम् रुन्ध्याव रुन्ध्याम
लृट्
प्र० पु० रोत्स्यति रोत्स्यतः रोत्स्यन्ति
म० पु० रोत्स्यसि रोत्स्यथः रोत्स्यथ
उ० पु० रोत्स्यामि रोत्स्यावः रोत्स्यामः
आत्मनेपद लट्
प्र० पु० रुन्धे रुन्धाते रुन्धते
म० पु० रुन्त्से रुन्धाथे रुन्धध्वे
उ० पु० रुन्धे रुन्ध्वहे रुन्ध्महे
लोट्
प्र० पु० रुन्द्धाम् रुन्द्धाताम् रुन्धताम्
म० पु० रुन्त्स्व रुन्द्धाथाम् रुन्दध्वम्
उ० पु० रुणधै रुणधावहै रुणधामहै
लङ्
प्र० पु‍० अरुन्द्ध अरुन्धाताम् अरुन्धत
म० पु० अरुन्द्धाः अरुन्धाथाम् अरुन्धध्वम्
उ० पु० अरुन्द्धि अरुन्ध्वहि अरुन्ध्महि
विधिलिङ्
प्र० पु० रुन्धीत रुन्धीयाताम् रुन्धीरन्
म० पु० रुन्धीथाः रुन्धीयाथाम् रुन्धीध्वम्
उ० पु० रुन्धीय रुन्धीवहि रुन्धीमहि
लृट्
प्र० पु० रोत्स्यते रोत्स्येते रोत्स्यन्ते
म० पु० रोत्स्यसे रोत्स्येथे रोत्स्यध्वे
उ० पु० रोत्स्ये रोत्स्यावहे रोत्स्यामहे
युज् जोड़ना लट्
प्र० पु० युनक्ति युङ्क्तः युञ्जन्ति
म० पु० युनक्षि युङ्क्थः युङ्क्थ
उ० पु० युनज्मि युञ्ज्वः युञ्ज्मः
लोट्
प्र० पु० युनक्तु युङ्क्ताम् युञ्जन्तु
म० पु० युङ्ग्धि युङ्क्तम् युङ्क्त
उ० पु० युनजानि युनजाव युनजाम
लङ्
प्र० पु० अयुनक् अयुङ्क्ताम् अयुञ्जन्
म० पु० अयुनक् अयुङ्क्तम् अयुङ्क्तः
उ० पु० अयुनजम् अयुञ्ज्व अयुञ्ज्म
विधिलिङ्
प्र० पु० युञ्ज्यात् युञ्ज्याताम् युञ्ज्युः
म० पु० युञ्ज्याः युञ्ज्यातम् युञ्ज्यात
उ० पु० युञ्ज्याम् युञ्ज्याव युञ्ज्याम
लृट्
प्र० पु० योक्ष्यति योक्ष्यतः योक्ष्यन्ति
म० पु० योक्ष्यसि योक्ष्यथः योक्ष्यथ
उ० पु० योक्ष्यामि योक्ष्यावः योक्ष्यामः
आत्मनेपद लट्
प्र० पु० युङ्क्ते युञ्जाते युञ्जते
म० पु० युङ्क्षे युञ्जाथे युङ्ग्ध्वे
**उ० पु० ** युञ्जे युञ्ज्वहे युञ्ज्महे
लोट्
प्र० पु० युङ्क्ताम् युञ्जाताम् युञ्जताम्
**म० पु० ** युङ्क्ष्व युञ्जाथाम् युङ्ग्ध्वम्
उ० पु० युनजै युनजावहै युनजामहै
लङ्
प्र० पु० अयुङ्क्त अयुञ्जाताम् अयुञ्जत
म० पु० अयुङ्क्थाः अयुञ्जाथाम् अयुङ्ग्ध्वम्
उ० पु० अयुञ्जि अयुञ्ज्वहि अयुञ्ज्महि
विधिलिङ्‍
प्र० पु० युञ्जीत युञ्जीयाताम् युञ्जीरन्
म० पु० युञ्जीथाः युञ्जीयाथाम् युञ्जीध्वम्
उ० पु० युञ्जीय युञ्जीवहि युञ्जीमहि
लृट्
प्र०पु० योक्ष्यते योक्ष्येते योक्ष्यन्ते
म० पु० योक्ष्यसे योक्ष्येथे योक्ष्यध्वे
उ० पु० योक्ष्ये योक्ष्यावहे योक्ष्यामहे

भुज् पालन करना

इसका उच्चारण परस्मैपद में युज् की तरह होगा।

भुनक्ति भुनक्तु अभुनक् भुञ्ज्यात् भोक्ष्यति

भुज् खाना (to eat)

आत्मनेपदी
भुङ्क्ते भुङ्क्ताम् अभुङ्क्त भुञ्जीत भोक्ष्यते

अदादिगण 2nd (congugation)

इस में धातुके आगे कोई विकरण नहीं लगाया जाता।

अद् खाना (to eat)

परस्मैपद लट्
प्र० पु० अत्ति अत्तः अदन्ति
म० पु० अत्सि अत्थः अत्थ
उ० पु० अद्मि अद्वः अद्मः
लोट्
प्र० पु० अत्तु अत्ताम् अदन्तु
म० पु० अद्धि अत्तम् अत्त
उ० पु० अदानि अदाव अदाम
लङ्
प्र० पु० आदत् आत्ताम् आदन्
म० पु० आदः आत्तम् आत्त
उ० पु० आदम् आद्व आद्म
विधिलिङ्
प्र० पु० अद्यात् अद्याताम् अद्युः
म० पु० अद्याः अद्यातम् अद्यात
उ० पु० अद्याम् अद्याव अद्याम
लृट्
प्र० पु० अत्स्यति अत्स्यतः अत्स्यन्ति
म० पु० अत्स्यसि अत्स्यथः अत्स्यथ
उ० पु० अत्स्यामि अत्स्यावः अत्स्यामः

हन् मारना (to kill)

लट् परस्मैपद
प्र० पु० हन्ति हतः घ्नन्ति
म० पु० हंसि हथः हथ
उ० पु० हन्मि हन्वः हन्मः
लोट्
प्र० पु० हन्तु हताम् घ्नन्तु
म० पु० जहि हतम् हत
उ० पु० हनानि हनाव हनाम
लङ्
प्र० पु० अहन् अहताम् अघ्नन्
म० पु० अहन् अहतम् अहत
उ० पु० अहनम् अहन्व अहन्म
विधिलिङ्‍
प्र० पु० हन्यात् हन्याताम् हन्युः
म० पु० हन्याः हन्यातम् हन्यात
उ० पु० हन्याम् हन्याव हन्याम
लृट्
प्र० पु० हनिष्यति हनिष्यतः हनिष्यन्ति
म० पु० हनिष्यसि हनिष्यथः हनिष्यथ
उ० पु० हनिष्यामि हनिष्यावः हनिष्यामः

अस् होना (to be)

लट् परस्मैपद
प्र० पु० अस्ति स्तः सन्ति
म० पु० असि स्थः स्थ
उ० पु० अस्मि स्वः स्मः
लोट्
प्र० पु० अस्तु स्ताम् सन्तु
म० पु० एधि स्तम् स्त
उ० पु० असानि असाव असाम
लङ्
प्र० पु० आसीत् आस्ताम् आसन्
म० पु० आसीः आस्तम् आस्त
उ० पु० आसम् आस्व आस्म
विधिलिङ्
प्र० पु० स्यात् स्याताम् स्युः
म० पु० स्याः स्यातम् स्यात
उ० पु० स्याम् स्याव स्याम
लृट्
प्र० पु० भविष्यति भविष्यतः भविष्यन्ति
म० पु० भविष्यसि भविष्यथः भविष्यथ
उ० पु० भविष्यामि भविष्यावः भविष्यामः

स्वप्सोना (to sleep)

लट्परस्मैपद
प्र० पु० स्वपिति स्वपितः स्वपन्ति
म० पु० स्वपिषि स्वपिथः स्वपिथ
उ० पु० स्वपिमि स्वपिवः स्वपिमः
लोट्
प्र० पु० स्वपितु स्वपिताम् स्वपन्तु
म० पु० स्वपिहि स्वपितम् स्वपित
उ० पु० स्वपानि स्वपाव स्वपाम
लङ्
प्र० पु० अस्वपत् अस्वपिताम् अस्वपन्
म० पु० अस्वपः, पीः अस्वपितम् अस्वपित
उ० पु० अस्वपम् अस्वपिव अस्वपिम
विधिलिङ्
प्र० पु० स्वप्यात् स्वप्याताम् स्वप्युः
म० पु० स्वप्याः स्वप्यातम् स्वप्यात
उ० पु० स्वप्याम् स्वप्याव स्वप्याम
लृट्
प्र० पु० स्वप्स्यति स्वप्स्यतः स्वप्स्यन्ति
म० पु० स्वप्स्यसि स्वप्स्यथः स्वप्स्यथ
उ० पु० स्वप्स्यामि स्वप्स्यावः स्वप्स्यामः

रुद् रोना (to weep)

इस के रूप स्वप की तरह होंगे।

शास् शासन करना (to govern)

लट् परस्मैपद
प्र० पु० शास्ति शिष्टः शासति
म० पु० शास्सि शिष्ठः शिष्ठ
उ० पु० शास्मि शिष्वः शिष्मः
लोट्
प्र०पु० शास्तु, शिष्ठात् शिष्टाम् शासतु
म० पु० शाधि„ शिष्टम् शिष्ट
उ० पु० शासानि शासाव शासाम
लङ्
प्र० पु० अशात्, द् अशिष्टाम् अशासुः
म० पु० अशाः, त्, द् अशिष्टम् अशिष्ट
उ० पु० अशासम् अशिष्व अशिष्म
विधिलिङ्
प्र० पु० शिष्यात् शिष्याताम् शिष्युः
म० पु० शिष्याः शिष्यातम् शिष्यात
उ० पु० शिष्याम् शिष्याव शिष्याम
लृट्
प्र० पु० शासिष्यति शासिष्यतः शासिष्यन्ति
म० पु० शासिष्यसि शासिष्यथः शासिष्यथ
उ० पु० शासिष्यामि शासिष्यावः शासिष्यामः

जागृ जागना (to wake)

परस्मैपद लट्
प्र० पु० जागर्ति जागृतः जाग्रति
म० पु० जागर्षि जागृथः जागृथ
उ० पु० जागर्मि जागृवः जागृमः
लोट्
प्र० पु० जागर्तु जागृताम् जाग्रतु
म० पु० जागृहि जागृतम् जागृत
उ० पु० जागराणि जागराव जागराम
लङ्
प्र० पु० अजागः अजागृताम् अजरुगाः
म० पु० अजागः अजागृतम् अजागृत
उ० पु० अजागरम् अजागृव अजागृम
विधिलिङ्
प्र० पु० जागृयात् जागृयाताम् जागृयुः
म० पु० जागृयाः जागृयातम् जागृयात
उ० पु० जागृयाम् जागृयाव जागृयाम
लृट्
प्र० पु० जागरिष्यति जागरिष्यतः जागरिष्यन्ति
म० पु० जागरिष्यसि जागरिष्यथः जागरिष्यथ
उ० पु० जागरिष्यामि जागरिष्यावः जागरिष्यामः

या जाना (to go)

परस्मैपद लट्
प्र० पु० याति यातः यान्ति
म० पु० यासि याथः याथ
उ० पु० यामि यावः यामः
लोट्
प्र० पु० यातु याताम् यान्तु
म० पु० याहि यातम् यात
उ० पु० यानि याव याम
लङ्
प्र० पु० अयात् अयाताम् अयान् अयुः
म० पु० अयाः अयातम् अयात
उ० पु० अयाम् अयाव अयाम
विधिलिङ्
प्र० पु० यायात् यायाताम् यायुः
म० पु० यायाः यायातम् यायात
उ० पु० यायाम् यायाव यायाम
लृट्
प्र० पु० यास्यति यास्यतः यास्यन्ति
म० पु० यास्यसि यास्यथः यास्यथ
उ० पु० यास्यामि यास्यावः यास्यामः

विद्जानना (to know)

परस्मैपद लट्
प्र० पु० वेत्ति वित्तः विदन्ति
म० पु० वेत्सि वित्थः वित्थ
उ० पु० वेद्मि विद्वः विद्मः
लट्
प्र० पु० वेद विदतुः विदुः
म० पु० वेत्थ विदथुः विद
उ० पु० वेद विद्व विद्म
लोट्
प्र० पु० वेत्तु, वितात् वित्ताम् विदन्तु
म० पु० विद्धि,वितात् वित्तम् वित्त
उ० पु० वेदानि वेदाव वेदाम
लोट्
प्र० पु० विदाङ्करोतु विदाङ्कुरुताम् विदाङ्कुर्वन्तु
म० पु० विदाङ्कुरु विदाङ्कुरुतम् विदाङ्कुरुत
उ० पु० विदाङ्करवाणि विदाङ्करवाव विदाङ्करवाम
लङ्
प्र० पु० अवेत्, द् अवित्ताम् अविदुः
म० पु० „ अवेः अवित्तम् अवित्त
उ० पु० अवदेम् अविद्व अविद्म
विधिलिङ्
प्र० पु० विद्यात् विद्याताम् विद्युः
म० पु० विद्याः विद्यातम् विद्यात
उ० पु० विद्याम् विद्याव विद्याम
लृट्
प्र० पु० वेत्स्यति वेत्स्यतः वेत्स्यन्ति
म० पु० वेत्स्यसि वेत्स्यथः वेत्स्यथ
उ० पु० वेत्स्यामि वेत्स्यावः वेत्स्यामः

आस्बैठना (to sit)

आत्मनेपद लट्
प्र० पु० आस्ते आसाते आसते
म० पु० आस्से आसाथे आध्वे
उ० पु० आसे आस्वहे आस्महे
लोट्
प्र० पु० आस्ताम् आसाताम् आसताम्
म० पु० आस्स्व आसाथाम् आध्वम्
उ० पु० आसै आसावहै आसामहै
लङ्
प्र० पु० आस्त आसाताम् आसताम्
म० पु० आस्थाः आसाथाम् आध्वम्
उ० पु० आसि आस्वहि आस्महि
विधिलिङ्
प्र० पु० आसीत आसीयाताम् आसीरन्
म० पु० आसीथाः आसीयाथाम् आसीध्वम्
उ० पु० आसीय आसीवहि आसीमहि
लृट्
प्र० पु० आसिष्यते आसिष्येते आसिष्यन्ते
म० पु० आसिष्यसे आसिष्येथे आसिष्यध्वे
उ० पु० आसिष्ये आसिष्यावहे आसिष्यामहे

शीसोना (to sleep)

आत्मनेपदी लट्
प्र० पु० शेते शयाते शेरते
म० पु० शेषे शयाथे शेध्वे
उ० पु० शये शेवहे शेमहे
लोट्
प्र० पु० शेताम् शयाताम् शेरताम्
म० पु० शेष्व शयाथाम् शेध्वम्
उ० पु० शयै शयावहै शयामहै
लङ्
प्र० पु० अशेत अशयाताम् अशेरत
म० पु० अशेथाः अशयाथाम् अशेध्वम्
उ० पु० अशयि अशेवहि अशेमहि
विधिलिङ्
प्र० पु० शयीत शयीयाताम् शयीरन्
म० पु० शयीथाः शयीयाथाम् शयीध्वम्
उ० पु० शयीय शयीवहि शयीमहि
लृट्
प्र० पु० शयिष्यते शयिष्येते शयिष्यन्ते
म० पु० शयिष्यसे शयिष्येथे शयिष्यध्वे
उ० पु० शयिष्ये शयिष्यावहे शयिष्यामहे

ब्रू बोलना (to speak)

उभयपदीलट्
प्र० पु० ब्रवीति ब्रूतः ब्रुवन्ति
म० पु० ब्रवीषि ब्रूथः ब्रूथ
उ० पु० ब्रवीमि ब्रूवः ब्रूमः
लट् विकल्प में
प्र० पु० आह आहतुः आहुः
म० पु० आत्थ आहथुः
लोट्
प्र० पु० ब्रवीतु, व्रूतात् ब्रूताम् ब्रुवन्तु
म० पु० ब्रूहि ,, ब्रूतम् ब्रूत
उ० पु० ब्रवाणि ब्रवाव ब्रवाम
लङ्
प्र० पु० अब्रवीत् अब्रूताम् अब्रुवन्
म० पु०‍ अब्रवीः अब्रूतम् अब्रूत
उ० पु० अब्रवम् अब्रूव अब्रूम
विधिलिङ्
प्र० पु० ब्रूयात् ब्रूयाताम् ब्रूयुः
म० पु० ब्रूयाः ब्रूयातम् ब्रूयात
उ० पु० ब्रूयाम् ब्रूयाव ब्रूयाम

स्तु— स्तुति करना शेष—

दुह्— दोहना

इ— जाना

अधि+इ— पढ़ना

लृट्
प्र० पु० वक्ष्यति वक्ष्यतः वक्ष्यन्ति
म० पु० वक्ष्यसि वक्ष्यथः वक्ष्यथ
उ० पु० वक्ष्यामि वक्ष्यावः वक्ष्यामः

ब्रूआत्मनेपदी (कहना)

वर्तमान काल लट्
प्र० पु० ब्रूते ब्रुवाते ब्रुवते
म० पु० ब्रूषे ब्रुवाथे ब्रूध्वे
उ० पु० ब्रुवे ब्रूवहे ब्रूमहे
लोट्
प्र० पु० ब्रूताम् ब्रुवाताम् ब्रुवताम्
म० पु० ब्रूष्व ब्रुवाथाम् ब्रूध्वम्
उ० पु० ब्रवै ब्रवावहै ब्रवामहै
लङ्
प्र० पु० अब्रूत अब्रुवाताम् अब्रुवत
म० पु‍० अब्रूथाः अब्रुवाथाम् अब्रूध्वम्
उ० पु० अब्रुवि अब्रूवहि अब्रूमहि
विधिलिङ्
प्र० पु० ब्रुवीत ब्रुवीयाताम् ब्रुवीरन्
म० पु० ब्रुवीथाः ब्रुवीयाथाम् ब्रुवीध्वम्
उ० पु० ब्रुवीय ब्रुवीवहि ब्रुवीमहि

अभ्यास

अर्जुन ने अपने तीक्ष्ण बाणों से जयद्रथ को मारा। शिकारी लोग आज जंगल में बहुत से पशु पक्षियों को मारेंगे।

भीष्म का पहला नाम देवव्रत था। तोते आम के मीठे फलों को खाते हैं। गोपाल गौ का दूध दुहता है। पृथिवीपति पृथ्वीराज दिल्ली की राजधानी पर शासन करता था। आज रात मैं खूब सोया। सूर्य उदय होने पर भी न जागा। यज्ञदत्त गुरू से साङ्गोपाङ्ग वेदों को पढ़ता है। यह कौन जानता है कि कल क्या होगा। योगी लोग जिस रात को जागते हैं सभी प्राणी सो जाते हैं। मैं आज वर्षा के कारण आधीरात तक जागता रहा। यदि वह आज तक आया तो मैं उसे अवश्य मार दूंगा—

एक वन में एक हरिण और एक कौवा दो मित्र रहते थे। यदि आप १० बजे तक न आये तो मैं सो जाऊँगा॥

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क्र्यादिगण। 9th Conjugation

इस गण में धातु से आगे श्ना(ना) विकरण लगाया जाता है।

क्री(खरीदना)

परस्मैपद लट्
क्रीणाति क्रीणीतः कीणन्ति
क्रीणासि क्रीणीथः क्रीणीथ
क्रीणामि क्रीणीवः क्रीणीमः
लोट्
क्रीणातु, क्रीणीतात् क्रीणीताम् क्रीणन्तु
क्रीणीहि„ क्रीणीतम् क्रीणीत
क्रीणानि क्रीणाव क्रीणाम
लङ्
अक्रीणात् अक्रीणीताम् अक्रीणन्
अक्रीणाः अक्रीणीतम् अक्रीणीत
अक्रीणाम् अक्रीणीव अक्रीणीम
विधिलिङ्
क्रीणीयात् क्रीणीयाताम् क्रीणीयुः
क्रीणीयाः क्रीणीयातम् क्रीणीयात
क्रीणीयाम् क्रीणीयाव क्रीणीयाम
लृट् परस्मैपद
क्रेष्यति क्रेष्यतः क्रेष्यन्ति
क्रेष्यसि क्रेष्यथः क्रेष्यथ
क्रेष्यामि क्रेष्यावः क्रेष्यामः
आत्मनेपदी लट्
क्रीणीते क्रीणाते क्रीणते
क्रीणीषे क्रीणाथे क्रीणीध्वे
क्रीणे क्रीणीवहे क्रीणीमहे
लोट्
क्रीणीताम् क्रीणाताम् क्रीणताम्
क्रीणीष्व क्रीणाथाम् क्रीणीध्वम्
क्रीणै क्रीणावहै क्रीणामहै
लङ्
अक्रीणीत अक्रीणाताम् अक्रीणत
अक्रीणीथाः अक्रीणाथाम् अक्रीणीध्वम्
अक्रीणे अक्रीणीवहि अक्रीणीमहि
विधिलिङ्
क्रीणीत क्रीणीयाताम् क्रीणीरन्
क्रीणीथाः क्रीणीयाथाम् क्रीणीध्वम्
क्रीणीय क्रीणीवहि क्रीणीमहि
लृट्
क्रेष्यते क्रेष्येते क्रेष्यन्ते
क्रेष्यसे क्रेष्येथे क्रेष्यध्वे
क्रेष्ये क्रेष्यावहे क्रेष्यामहे

ज्ञा (जा) (जानना)

लट् परस्मैपद
जानाति जानीतः जानन्ति
जानासि जानीथः जानीथ
जानामि जानीवः जानीमः
लोट्
जानातु जानीतात् जानीताम् जानन्तु
जानीहि„ जानीतम् जानीत
जानानि जानाव जानाम
लङ्
अजानात् अजानीताम् अजानन्
अजानाः अजानीतम् अजानीत
अजानाम् अजानीव अजानीम
विधिलिङ्
जानीयात् जानीयाताम् जानीयुः
जानीयाः जानीयातम् जानीयात
जानीयाम् जानीयाव जानीयाम
लृट्
ज्ञास्यति ज्ञास्यतः ज्ञास्यन्ति
ज्ञास्यसि ज्ञास्यथः ज्ञास्यथ
ज्ञास्यामि ज्ञास्यावः ज्ञास्यामः
आत्मनेपद लट्
जानीते जानाते जानते
जानीषे जानाथे जानीध्वे
जाने जानीवहे जानीमहे
लोट्
जानीताम् जानाताम् जानताम्
जानीष्व जानाथाम् जानीध्वम्
जानै जानावहै जानामहै
लङ्
अजानीत अजानाताम् अजानत
अजानीथाः अजानाथाम् अजानीध्वम्
अजानि अजानीवहि अजानीमहि
विधिलिङ्
जानीत जानीयाताम् जानीरन्
जानीथाः जानीयाथाम् जानीध्वम्
जानीय जानीवहि जानीमहि
लृट्
ज्ञास्यते ज्ञास्येते ज्ञास्यन्ते
ज्ञास्यसे ज्ञास्येथे ज्ञास्यध्वे
ज्ञास्ये ज्ञास्यावहे ज्ञास्यामहे

ग्रह्(गृह्) पकड़ना

लट् परस्मैपद
गृह्णाति गृह्णीतः गृह्णन्ति
गृह्णासि गृह्णीथः गृह्णीथ
गृह्णामि गृह्णीव गृह्णीमः
लोट्
गृह्णातु, गृह्णीतात् गृह्णीताम् गृह्णन्तु
गृहाण गृह्णीतम् गृह्णीत
गृह्णानि गृह्णाव गृह्णाम
लङ्
अगृह्णात् अगृह्णीताम् अगृह्णन्
अगृह्णाः अगृह्णीतम् अगृह्णीत
अगृह्णाम् अगृह्णीव अगृह्णीम
विधिलिङ्
गृह्णीयात् गृह्णीयाताम् गृह्णीयुः
गृह्णीयाः गृह्णीयातम् गृह्णीयात
गृह्णीयाम् गृह्णीयाव गृह्णीयाम
लृट्
ग्रहीष्यति ग्रहीष्यतः ग्रहीष्यन्ति
ग्रहीष्यसि ग्रहीष्यथः ग्रहीष्यथ
ग्रहीष्यामि ग्रहीष्यावः ग्रहीष्यामः
आत्मनेपद लट्
गृह्णीते गृह्णाते गृह्णते
गृह्णीषे गृह्णाथे गृह्णीध्वे
गृह्णे गृह्णीवहे गृह्णीमहे
लोट्
गृह्णीताम् गृह्णाताम् गृह्णताम्
गृह्णीष्व गृह्णाथाम् गृह्णीध्वम्
गृह्णै गृह्णावहै गृह्णामहै
लङ्
अगृह्णीत अगृह्णाताम् अगृह्णत
अगृह्णीथाः अगृह्णाथाम् अगृह्णीध्वम्
अगृह्णि अगृह्णीवहि अगृह्णीमहि
विधिलिङ्
गृह्णीत गृह्णीयाताम् गृह्णीरन्
गृह्णीयाः गृह्णीयाथाम् गृह्णीध्वम्
गृह्णीय गृह्णीवहि गृह्णीमहि
लृट्
ग्रहीष्यते ग्रहीष्येते ग्रहीष्यन्ते
ग्रहीष्यसे ग्रहीष्येथे ग्रहीष्यध्वे
ग्रहीष्ये ग्रहीष्यावहे ग्रहीष्यामहे
बन्ध् (बध्) बांधना
बध्नाति बध्नातु अबध्नात् बध्नीयात् भत्स्यति
अश् खाना
अश्नाति अश्नातु आश्नात् अश्नीयात् अशिष्यति
मुष् चुराना
मुष्णाति मुष्णातु अमुष्णात् मुष्णीयात् मुषिष्यति
पुष् पुष्ट करना
पुष्णाति पुष्णातु अपुष्णात् पुष्णीयात् पुषिष्यति

अभ्यास

चम्पा की सास आज बहुत सुन्दर वस्त्र खरीदेगी। मैं उसे अच्छी तरह जानता हूं क्योंकि वह मेरे घर के समीप ही रहती है। चूहा वनिकों की दुकान से अन्न के छोटे २ कणों को चुराता है। यह वही अंगूठी है जो कल सोहन ने चुरा ली थी। हे ऋषि! अपने बालक को लो, यह आप ही का तो है। राम ने स्वयंवर में धनुष तोड़ कर सीता के हाथ को पकड़ा जो ब्राह्मण वेदों के अर्थों को नहीं जानता उसका परिश्रम वृथाहै। यदि रमा बनारस गई तो वह अवश्य एक नई साड़ी खरीदेगी। तुमने अभी तक नई पुस्तक क्यों नहीं खरीदी। अर्जुन ने युद्ध में द्रुपद को जीत कर जीवित ही पकड़ लिया।

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जुहोत्यादि गण 3rd Conjugation

इस गणमें कोई विकरण नहीं लगता— धातुके आगे (श्लु) गण विकरण लगता है—

धातु द्वित्व हो जाता है॥

भी–डरना

परस्मैपद लट्
बिभेति बिभितः, बिभीतः बिभ्यति
बिभेषि बिभीथः, बिभिथः बिभ्यथ
बिभेमि बिभीवः, बिभिवः बिभीमः
लोट्
बिभेतु, बिभितात्, बिभीतात् बिभिताम् (बिभीताम्) बिभ्यतु
बिभीहि बिभीतम्, बिभितम् बिभीत, बिभित
बिभयानि बिभयाव बिभयाम
लङ्
अबिभेत् अबिभीताम्, अबिभिताम् अबिभयुः
अबिभेः अबिभीतम्, अबिभितम् अबिभीत, अबिभित
अबिभयम् अबिभीव, अबिभिव अबिभीम, अबिभिम
विधिलिङ्
बिभीयात् बिभीयाताम् बिभियुः
बिभियात् बिभियाताम् बिभियुः
बिभीयाः बिभीयातम् बिभियात
बिभियाः बिभियातम् बिभियात
बिभीयाम् बिभीयाव बिभीयाम
बिभियाम् बिभियाव बिभियाम
लृट्
भेष्यति भेष्यतः भेष्यन्ति
भेष्यसि भेष्यथः भेष्यथ
भेष्यामि भेष्यावः भेष्यामः

ह्वे–होम करना

लट्
जुहोति जुहुतः जुह्वति
जुहोषि जुहुथः जुहुथ
जुहोमि जुहुवः जुहुमः
लोट्
जुहोतु, जुहुतात् जुहुताम् जुह्वतु
जुहुधि, जुहुतात् जुहुतम् जुहुत
जुहवानि जुहवाव जुहवाम
लङ्
अजुहोत् अजुहुताम् अजुहवुः
अजुहोः अजुहुतम् अजुहुत
अजुहवम् अजुहुव अजुहुम
विधिलिङ्
जुहुयात् जुहुयाताम् जुहुयुः
जुहुयाः जुहुयातम् जुहुयात
जुहुयाम् जुहुयाव जुहुयाम
लृट्
होष्यति होष्यतः होष्यन्ति
होष्यसि होष्यथः होष्यथ
होष्यामि होष्यावः होष्यामः
धा–धारण करना
दधाति दधातु अदधात् दध्यात् धास्यति
धत्ते धत्ताम् अधत्त दधीत धास्यते
दा–देना
ददाति ददातु अददात् दद्यात् दास्यति
दत्ते दत्ताम् अदत्त ददति दास्यते
भृ–पालना लट् परस्मैपद
बिभर्ति बिभृतः बिभ्रति
बिभर्षि बिभृथः बिभ्रथ
बिभर्मि बिभृवः बिभृमः
लोट्
बिभर्तु (भृतात्) बिभृताम् बिभ्रतु
बिभृहि बिभृतम् बिभृत
बिभराणि बिभराव बिभराम
लङ्
अबिभः अबिभृताम् अबिभुः
अबिभः अबिभृतम् अबिभृत
अबिभरम् अबिभृव अबिभृम
विधिलिङ्
बिभृयात् बिभृयाताम् बिभृयुः
बिभृयाः बिभृयातम् बिभृयात
बिभृयाम् बिभृयाव बिभृयाम
लृट्
भरिष्यति भरिष्यतः भरिष्यन्ति
भरिष्यसि भरिष्यथः भरिष्यथ
भरिष्यामि भरिष्यावः भरिष्यामः

अभ्यास

युधिष्ठिर प्रतिदिन प्रातः और सायं हवन करता है। राजा के न होने पर प्रजा के लोग चोरों से डरते हैं।पृथिवीपति समस्त राज्य केभार को धारण करता है— महाराजा भोज ने कवियों को बहुत धन दिया। वन में शिकारी को देख सभी पक्षी डर गए। प्रभो मैं कभी सांसारिक पशुबल से न डरूं। महाभारत के युद्ध में कर्ण ने अर्जुन के वध का व्रत धारण किया\। ब्रह्मचारी आचार्य के समीप ब्रह्मचर्य पालन का व्रत धारण करेंगे। उदार पुरुष अतिथियों को सर्वस्व तक दे देता है। जो छात्र योग्य हैं गुरु उन्हें वार्षिकोत्सव पर पारितोषिक देगा—

मैं पूर्णिमा के दिन अपनी यज्ञशाला में हवन करूंगा। मेरे पिता मुझे दश रुपये प्रतिमास दिया करेंगे।

भृ–आत्मनेपद लट्
बिभृते बिभ्राते बिभ्रते
बिभृषे बिभ्राथे बिभृध्वे
बिभ्रे बिभृवहे बिभृमहे
लोट्
बिभृताम् बिभ्राताम् बिभ्रताम्
बिभृष्व बिभ्राथाम् बिभृध्वम्
बिभरै बिभरावहै बिभरामहै
लङ्
अबिभृत अबिभ्राताम् अबिभ्रत
अबिभृथाः अबिभ्राथाम् अबिभृध्वम्
अबिभरि अबिभृवहि अबिभृमहि
विधिलिङ्
बिभ्रीत बिभ्रीयाताम् बिभ्रीरन्
बिभ्रीथाः बिभ्रीयाथाम् बिभ्रीध्वम्
बिभ्रीय बिभ्रीवहि बिभ्रीमहि
लृट्
भरिष्यते भरिष्येते भरिष्यन्ते
भरिष्यसे भरिष्येथे भरिष्यध्वे
भरिष्ये भरिष्यावहे भरिष्यामहे

क्रिया के वाच्य भेद

प्रयोग

वाच्य भेद से क्रिया तीन तरह की होती है

यथा— कर्तृवाचक–कर्मवाचक–भाववाचक।

कर्तृवाच्य—

जहां गणों की क्रिया प्रयुक्त होती है वे सभी कर्तृवाच्य होते हैं ।

कर्तृवाच्य में कर्ता में प्रथमा और कर्म में द्वितीया प्रयुक्त होती है। कर्ता के पुरुष और वचन के अनुसार क्रिया होती है।

यथा—कृष्णः पुस्तकं पठति— यहां प्रथमैकवचनान्त कृष्ण कर्ता के अनुसार ही प्रथम पुरुष एकवचनान्त पठति क्रिया प्रयुक्त हुई—

मध्यम पुरुष— त्वं पुस्तकं अपठः।

उत्तम पुरुष— अहं ग्रामं गच्छामि।

कर्मवाच्य—

कर्मवाच्य प्रयोग में कर्ता में तृतीया, कर्म में प्रथमा, होती है और क्रिया का सम्बन्ध कर्म से होता है यथा— त्वया असौ ताड्यते। यहां कर्ता युष्मद् तृतीया एकवचनान्त कर्म अदस् पुंल्लिङ्ग प्रथमा एकवचनान्त है।

भाववाच्य—

इसमें क्रिया न कर्ता और नाही कर्म के अनुसार होती है। धातु के आगे केवल आत्मनेपदी प्रत्यय लगाये जाते हैं—

यथा— मया स्थीयते-त्वया सुप्यते-तेन जाग्रियते।

भाववाच्य सदा अकर्मक धातुओं से ही बनाया जाता है—

कर्मवाच्य और भाववाच्य में धातु के आगे य लगाकर आत्मनेपद के प्रत्यय लगा दिये जाते हैं और रूप दिवादिगणी आत्मनेपदी धातु की तरह होता है—

जैसे— पठ्–पढ़ना लट्
पठ्यते पठ्येते पठ्यन्ते
पठ्यसे पठ्येथे पठ्यध्वे
पठ्ये पठ्यावहे पठ्यामहे
लोट्
पठ्यताम् पठ्येताम् पठ्यन्ताम्
पठ्यस्व पठ्येथाम् पठ्यध्वम्
पठ्यै पठ्यावहै पठ्यामहै
लङ्
अपठ्यत् अपठ्येताम् अपठ्यन्ताम्
अपठ्यथाः अपठ्येथाम् अपठ्यध्वम्
अपठ्ये अपठ्यावहि अपठ्यामहि
विधिलिङ्
पठ्येत पठ्येयाताम् पठ्येरन्
पठ्येथाः पठ्येयाथाम् पठ्येध्वम्
पठ्येय पठ्येवहि पठ्येमहि
लृट्
पठिष्यते पठिष्येते पठिष्यन्ते
पठिष्यसे पठिष्येथे पठिष्यध्वे
पठिष्ये पठिष्यावहे पठिष्यामहे
अन्य धातुओं के रूप
गम्यते जायाजाता है
लिख्यते लिखा जाता है
भूयते हुआ जाता है
पीड्यते पीड़ा जाता है
भक्ष्यते खाया जाता है
दीव्यते चमका जाता है
इच्छ्यते चाहा जाता है
सेव्यते सेवा किया जाता है
लभ्यते पाया जाता है
नृत्यते नाचा जाता है
कथ्यते कहा जाता है
त्यज्यते छोड़ा जाता है
हन्यते मारा जाता है
चोर्यते चुराया जाता है
सिच्यन्ते सींचा जाता है
पूज्यते पूजा जाता है
तन्यते फैलाया जाता है

इत्यादि।

इकारान्त उकारान्त धातु के इ उ को दीर्घ हो जाता है। जैसे—

जि—जीयते। श्रु— श्रूयते।

धातु के अन्त में आ हो तो ई हो जाता है। जैसे—

भा— भीषते। पा— पीयते। स्था— स्थीयते।

धा—धीयते। गा— गीयते। दा— दीयते।

कई एक धातुओं के य को इ व को उ और र को ऋ हो जाता है। जैसे—

यज्—इज्यते। व्यध्—विध्यते।

वद्—उद्यते, वच्— उच्यते, वस्—उष्यते, स्वप्—सुप्यते, वप्—उप्यते, वह— उह्यते, ग्रह्— गृह्यते, प्रच्छ्— पृच्छ्यते।

शंस्, वन्द्य आदि धातुओं की उपधाका अनुनासिक बड़ जाता है।

यथाः— शस्यते, वध्यते।

यदि धातु ऋकारान्त हो तो ऋ को रि हो जाता है।

यथाः— कृ— क्रियते,हृ— ह्रियते।

यदि ऋ संयुक्तवर्णयुत हो तो तो अर हो जाता है।

जैसेः— स्मृ— स्मर्यते

यक् प्रत्यय सार्वधातुक विभक्तियों में हो लगाया जाता है आर्धधातुक में नहीं। लट का प्रयोग आत्मनेपदी कर्तृवाच्य की तरह ही होगा।

अभ्यास

वह नौकरों से सेवा किया गया। दवाई से रोग नष्ट किए जाते हैं। सेनापति से सेना सिखाई गई। दो वीरों से युद्ध किया जायगा। पशु ग्वालों से ले जाए जाते हैं। शिष्यों से गुरु को नमस्कार किया जाता है। कवि राजा से बुलाये जावेगे। दाता से धन दिया जावेगा। विद्वानों से धर्म प्रचार किया गया। अध्यापक से पाठ सुना गया। राजा से निर्धनों को अन्न दिया जायगा। हम से पर्वतों के ऊँचे शिखर देखे गये। मित्र विपत्ति में परखे जाते हैं। देवदत्त से अपना पाठ याद किया जायगा।

______

ण्यन्त पक्रिया

१ जहां पर कर्ता को प्रेरणा कर कोई क्रिया कराई जाय वहां प्रेरणार्थक क्रिया प्रयुक्त होती है।

२ प्रेरणार्थक क्रिया के प्रयोग में धातु से परे णिच् (अय्) लगाया जाता है। चुरादिगण के धातुओं की तरह प्रेरणार्थक क्रिया के भी रूप बनाये जाते हैं।

ण्यन्त धातु के अन्तिम स्वर को वृद्धि हो जाती है। जैसेः—

हृ हारयति कृ कारयति
तृ तारयति सृ सारयति
स्तु स्तावयति पू पाययति
नी नाययति भू भावयति

उदाहरणः—

देवः पशून् नयति। देवेन पशून् नाययति।

अश्वो घासं खादति— घोड़ा घास खाता है।

अश्वं घासं खादयति— घोड़े को घास खिलाता है।

प्रेरणार्थक क्रिया के रूप प्रायः उभयपदी होते हैं। यथाः—

भावयति भावयतु अभावयत् भावयेत् भावयिष्यति
भावयते भावयताम् अभावयत भावयेत भावयिष्यते
ण्यन्त धातुओं के वर्तमानकालिक रूप
पठ्— पढ़ना पाठयति रुच— पसंद करना रोचयति
चल्— चलना चालयति स्मृ— याद करना स्मारयति
त्यज्— छोड़ना त्याजयति हस्— हंसना हासयति
पच्— पकाना पाचयति स्था— ठहरना स्थापयति
रक्ष्— रक्षा करना रक्षयति ज्ञा— जानना ज्ञापयति
गम्— जाना गमयति जि— जीतना गापयति
बोध्—जानना बोधयति स्ना— नहाना स्नापयति
चुर्— चुराना चोरयति श्रु— सुनना श्रावयति
दृश्— देखना दर्शयति कृ— करना कारयति
हन्— मारना घातयति अधि— पढ़ना अध्यापयति
क्री— खरीदना क्राययति लिख्— लिखना लेखयति
ग्रह्— पकड़ना ग्राहयति क्षिप्— फैंकना क्षिपयति
मुच्— छोड़ना मोचयति मुच्— छोड़ना मोचयति
नृत्— नाचना नर्तयति विद्— जानना वेदयति
रभ्— शुरू करना रभयति दा— देना दापयति
लभ्— पाना लभयति पा— रक्षा करना पालयति
दिव्— खेलना देवयति पा— पीना पाययति
यत्— यत्न करना यातयति तोल्— तोलना तोलयति
तुद्— दुःख देना तोदयति वन्द्— नमस्कार करना वंदयति
मुद्— खुश होना मोदयति नश्— नष्ट होना नाशयति
युध्— युद्ध करना योधयति वप्—वोना वपयति
द्युत्— चमकना द्योतयति वस्— रहना वासयति
घट्— बनाना घटयति पत्— गिरना पातयति
वद्— बोलना वदयति कंप्— कांपना कंपयति
नम्— झुकना नमयति धाव्— भागना धावयति
कथ्— कहना कथयति चिन्त्— सोचना चिन्तयति

अभ्यास

सारथि घोड़े को घास खिला रहा है और खुजला रहा है। गुरू बड़े प्रेम से खिलाता है और पाठ पढ़ाता है। प्रियवर! यह मेरा कार्य करवा दो, आपकी बड़ी कृपा होगी। सेवक यज्ञवेदी पर ब्राह्मणों के लिये भासन बिछवाता है। नीच परधन को चुरवाते हैं माता बालक को मिठाई खिलाती है और उसका मुख चूम रही है। प्रल्हादके पिता ने उसे पर्वत की चोटी से गिरवा दिया। यदि आप मुझे मेरे घर तक पहुंचा दें तो बड़ा अनुग्रह हो। राजा आज न्यायालय में चोरों को दण्डों से पिटवायेगा। द्वारपाल भोजराज की सभा में कवि को प्रवेश कराता है। गुरु ने कहा जो आज अपना सारा पाठ सुनायेगा मैं उसे इनाम दूँगा।

_________

अथ कृदन्ताः

कृदन्त प्रकरण में धातु के आगे जो प्रत्यय लगाए जाते हैं उन्हें कृत्कहते हैं। कृत् जिन के अन्त में हो उन्हें कृदन्त कहते हैं, इनकी प्रातिपदिक संज्ञा होने पर सुबन्त शब्द हो जाते हैं।

क्तान्त Past passive participles कर्म अर्थ में भूतकाल में धातु से आगे क्त (त) प्रत्यय लगाया जाता है।जैसे—

गम्— जाना से = गतः = जो चला गया।

पठ्— पढ़ना से= पठितः = पढ़ लिया।

भू— होना से = भूतः = हो गया।

स्मृ— याद करना से = स्मृतः = याद कर लिया।

हृ— हरना से = हृतः= छीन लिया।

कृ— करना से = कृतः = कर लिया।

क्री— खरीदना से=क्रीतः = खरीद लिया।

ग्रह्— पकड़ना= गृहीतः = पकड़ लिया।

दा— देना = दत्तः= दिया गया।

पा— पीना = पीतः = पिया गया।

अन्य प्रसिद्ध रूप—

भीतः, आरूढः, मृतः, कथितः, उक्तः, श्रुतः, भृतः, धृतः, जितः, ज्ञातः, मतः, जीर्णः, तीर्णः, भिन्नः, छिन्नः, खिन्नः, मारितः, पाठितः, स्थितः, कारितः, चोरितः, नतः, हतः, सुप्तः

क्तवत्न्वन्त–Past active participles

२— कर्ता के अर्थ में भूतकाल में धातु के आगे क्तवतु प्रत्यय लगाया जाता है।

जिसने कर लिया कृतवान्
जिसने पढ़ लिया पठितवान्
जिसने खालिया खादितवान्
कुछ अन्य रूप
हृतवान् दत्तवान् पीतवान् कारितवान्
ज्ञातवान् दृष्टवान् क्रीतवान् गृहीतवान्
उक्तवान् पूर्णवान् ताडितवान् श्रुतवान्
नतवान् बोधितवान् भूतवान् सुप्तवान्

३— धातु के आगे तुमुन् (तुम्) प्रत्यय जोड़ा जाता है—

जब वह क्रिया किसी दूसरी क्रिया का प्रयोजन हो। जैसे—

पठ् पठितुम् पढ़ने को
कृ कर्तुम् करने को
भुज् भोक्तुम् खाने को
ग्रह् गृहीतुम् पकड़ने को
तृ तर्तुम् तैरने को
हन् हन्तुम् मारने को
स्था स्थातुम् ठहरने को
नम् नन्तुम् झुकने को
गम् गन्तुम् जाने को
अद् अत्तुम् खाने को
क्री क्रेतुम् खरीदने को
शी शयितुम् सोने को
भृ भर्तुम् भरने को
दिव् देवितुम् चमकने को

कुछ अन्य रूप

भवितुम्, सेवितुम्, भूषयितुम्, अध्येतुम्, कारयितुम्, साधयितुम्, होतुम्, छेत्तुम्, भेत्तुम्, तोलयितुम्, योद्धुम्, एधितुम्, योक्तुम्, ताडयितुम्, कथयितुम्॥

४— तव्य–अनीय

धातु के आगे भाव और कर्म अर्थ में तव्य और अनीय प्रत्यय लगाए जाते हैं। जैसे—

गम् गन्तव्यम्— जाना चाहिए गमनीयम्
कृ कर्तव्यम् करणीयम्
स्ना स्नातव्यम् स्नानीयम्
दा दातव्यम् दानीयम्
भक्ष् भक्षितव्यम् भक्षणीयम्
हृ हर्तव्यम् हरणीयम्
स्मृ स्मर्तव्यम् स्मरणीयम्
पच् पक्तव्यम् पचनीयम्
ग्रह् गृहीतव्यम् ग्रहणीयम्
रक्ष् रक्षितव्यम् रक्षणीयम्

यत्

स्वरान्त धातुओं के आगे यत् (य) प्रत्यय लगाया जाता है।जैसे—

चि चिनना से चेयम्
दा देना से देयम्
स्था ठहरना से स्थेयम्
हृ हरना से हार्यम्
कृ करना से कार्यम्
पा पीना से पेयम्
जि जीतना से जेयम्
नी लेजाना से नेयम् इत्यादि
 **शतृ–शानच्**

५— वर्तमान काल में धातु के आगे शतृ (अत्) और शानच् (आन वान) प्रत्यय लगाए जाते हैं। जैसे—

यदि धातु परस्मैपदी हो तो शतृ (अत्) आत्मनेपदी हो तो शानच् (आन वा मान) लगाए जाते हैं।

गम् (गच्छ) जाना से— गच्छत् जाता हुआ
भक्ष् खाना से— भक्षयत् खाता हुआ
पठ् पठत् हृ हरत्
भू भवत् कृ कुर्वत्
दिव् दीव्यत् यच्छ् यच्छत्
दा ददत् धाव् धावत्
पा (पिव्) पिवत् जिघ्र् जिघ्रत्
स्मृ स्मरत् दृश्य (पश्य) पश्यत्
पच् पचत् चारेय् चोरयत्
लिख् लिखत् भूष् भूषयत्
वस् वसत् तिष्ठ् तिष्ठत्
शानच्
वर्ध वर्धमान
शी शयान
सेव् सेवमान
गम् गम्यमान
हन् हन्यमान —इत्यादि
क्तान्त
पठ् पठित्वा— पढ़कर
कृ कृत्वा भृ भृत्वा
गम् गत्वा स्था स्थित्वा
नम् नत्वा पा पीत्वा
स्मृ स्मृत्वा दा दत्वा
कथ् कथयित्वा चल् चलित्वा
भक्ष भक्षयित्वा दृश् दृष्ट्वा
क्षिप् क्षिप्त्वा श्रु श्रुत्वा
तृ तीत्वा लिख् लिखित्वा

अथ स्त्री प्रत्ययाः—

अकारान्त और अजादि शब्दों के आगे टाप् (आ) प्रत्यय

लगाकर स्त्रीलिंग के रूप बन जाते हैं। जैसे—

चटका, अजा, बाला, चतुरा, दक्षा, मनोहरा, एड़का, शोभना, कान्ता, कोकिला, मक्षिका, देवता, अश्वा, शूद्रा, वैश्या, वलाका, श्रेष्ठा।

अकारान्त शब्द यदि जातिवाचक हों तो ई प्रत्यय लग जाता है। जैसे—

मानुषी, सिंही, सूकरी, राक्षसी, ब्राह्मणी, देवी, मृगी, नापिती।

ऋकारान्त न्अन्त जिनके हो

(भत् वत् क्तवत् वस् ईयस् जिनसे लगा हो) ई प्रत्यय लगाया जाता है। यथा—

दात्री, कर्त्री, हन्त्री, धात्री, दण्डिनी, मालिनी, कामिनी, रात्री, शुनी, मघोनी, मनोहारिणी, बुद्धिमती, श्रीमती, दयावती, विदुषी, प्रेयसी, ज्यायसी, कनीयसी, श्रेयसी, अपावती।

शत्रन्तों से भी ई लग जाता है—

पठन्ती, गच्छन्ती, पचन्ती, इच्छन्ती

पृच्छन्ती आदि, गौरसे— गौरी, कुमार— कुमारी, किशोर— किशोरी, नर्तकी, तरुणी, मत्सी, अनड्वाही, युवती।

वैकल्पिक अन्यरूप आणी और ई लगाकर—

क्षत्रिय क्षत्रियाणी
इन्द्र इन्द्राणी
भव भवानी
रुद्र रुद्राणी
हिम हिमानी
अरण्य अरण्याणी
आचार्य आचार्याणी
श्वशुर श्वश्रूः
गार्ग्य गार्ग्यायणी, गार्गी
पति पत्नी
गुरू गुर्वी, गुरुः
लघु लघ्वी, लघुः
बहु बह्वी, बहुः
भगिनी

कारक प्रकरण—

जिसका क्रिया के साथ साक्षात् सम्बन्ध हो उसे कारक कहते हैं।

संस्कृत में कारक छः होते हैं। सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति होती है उसका सम्बन्ध नाम से होने के कारण उसे कारक नहीं कहा जाता।

विभक्तियेंसात हैं, आठवां सम्बोधन। यथा—

[TABLE]

१ प्रथमा विभक्ति कर्तृकारक

संस्कृत में किसी वस्तुमात्र का नाम निर्देश भी करना हो तो प्रथमा विभक्ति होती है। यथा—

रामः, गृहम्, पुस्तकम्, लता, इत्यादि।

कर्तृवाच्य में कर्ता में प्रथमा होती है। जैसा—

अश्वो धावति। रामो भोजनं पचति।

सम्बोधन में भी प्रथमा विभक्ति होती है। जैसे—

हे कृष्ण, भो देवाः, हे बालौ।

२ द्वितीया विभक्ति कर्मकारक

क्रिया के व्यापार का फल जिस पर हो उसे कर्म कहते हैं। कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है। यथा—

पुस्तकं क्रीणाति। ग्रामं गच्छति। शिष्यं ताडयति। धनं हरति।

परन्तु यदि कर्मवाच्य हो तो कर्म में प्रथमा और कर्ता में तृतीया होती है। यथा— शिष्यः ताड्यते, ग्रामो गम्यते। द्विकर्मक धातुओं के गौण कर्म में भी द्वितीया होती है। यथा—

दुह्, याच्, पच्, दण्ड्, रुध्, प्रच्छ्, चिक्, शास्, सु, जि, मन्थ, मुष्, नी, हृ, कृष् वह् तथा इन्हीं के समानार्थक धातु द्विकर्मक होते हैं, एक मुख्य दूसरा गौण। जैसे—

गां दुग्धं दोग्धि— गौ से दूध दोहता है। दातारं अन्नं याचतेभिक्षुः। तण्डुलानोदनं पचति। अपराधिनं शतं दण्डयति इत्यादि।

विना अन्तरेण उभयतः
सर्वतः प्रति उपर्य्युपरि

अधोधः इत्यादि शब्दों के योग में भी द्वितीया होती है।

कविं विना सभा न शोभते। उभयतो नगरं प्राकारो वर्तते। कवि के बिना सभा शोभा नहीं देती। नगर के दोनों ओर फसील है। इत्यादि।

३ करण कारक

जिस साधन के द्वारा कर्ता अपना कर्म करता है उसे करण कहते हैं।

उस में तृतीया होती है—

श्रीकृष्णः चक्रेण शिशुपालं अहन्। रामो बाणेन रावणं हतवान्।

कर्मवाच्य के कर्ता निषेधार्थक अलं कृतं और विना के योग में तृतीया होती है। जैसे—

त्वया न शोभनं कृतम्। हरिणा वेदः पठ्यते। अलं महीपाल तव श्रमेण। कृतं बहु प्रलापेन। ईश्वरेण विना मम को बन्धुः।

४ चतुर्थी (सम्प्रदान)

जिसके लिये दान किया जाय उसे सम्प्रदान कहते हैं। उसमें चतुर्थी होती है— विप्राय गां ददाति। भिक्षुभ्यः अन्नं अयच्छत्।

नमः-स्वस्ति-स्वाहा-स्वधा-अलं-वषट्— इनके योग में भी चतुर्थी होती है—

गुरवे नमः। राज्ञे स्वस्ति। अग्नये स्वाहा। पितृभ्यः स्वधा अलं मल्लो मलाय। देवेभ्यः वषट्।

रुच्, क्रुध्, द्रुह् आदि अर्थों को रखने वाले अन्य धातुओं के योग में चतुर्थी होती है। जैसे—

बालाय रोचते मिष्टम्। शिष्याय क्रुध्यति गुरुः। राज्ञे द्रुह्यति प्रजा।

५ पंचमी (अपादान)

दो पदार्थो का विभाग जहां से हो उसे अपादान कहते हैं। उस में पंचमी होती है। जैसे— प्रासादात् पतति कपोतः। गंगा पर्वतेभ्यः निर्गच्छति। दूरादायाति। वृक्षात् पत्राणि अपतन्। व्याघ्रात् बिभेति।

ऋते, विना, नाना, पृथक् इनके योग में भी पंचमी होती है। यथा—

ऋते ज्ञानात् न मुक्तिः। काशी मरणात् मुक्तिः। विना भाग्यात् न सुखम्। नाना नारीं निष्फला लोकयात्रा।

६ षष्ठी (सम्बन्ध)

शेष अर्थात् सम्बन्ध में षष्ठी होती है— नद्याः नीरम्। राज्ञः सेवकः। गुरोः शिष्यः। मातुः वस्त्रम्। इत्यादि।

७ सप्तमी (अधिकरण)

आधार को अधिकरण कहते हैं। उसमें सप्तमी होती है।

गेहे शूरः। सभायां पण्डितः। कटे शेते। वाचि प्रवीणः। द्यूत निपुणः। कलासु कुशलः।

सम्बोधन

दूर से बुलाना हो तो सम्बोधन का प्रयोग होता है। उस में प्रथमा होती है।

हे कृष्ण आगच्छ। अत्र गौश्चरति। हे बालौ युवयोर्भिथः कः सम्बन्धः। हे देव्यः स सुखी भवेत्।

अथ समासः

१ कई पदों को मिलाकर एक पद बना देने को समास कहते हैं।

जैसे— गंगायाः तीरं = गंगातीरम्। राज्ञः पुरुषः = राजपुरुषः।

समास छः तरह का होता है।

अव्ययीभावः तत्पुरुष द्वन्द्व
बहुव्रीहि कर्मधारय द्विगु

कर्मधारय और द्विगु तत्पुरुष के अन्तर्गत माना जाता है।

अव्ययीभावः

पूर्वेऽव्ययेऽव्ययीभावः—

(३) अव्यय शब्द किसी सुबन्त से जोड़ा जाय तो अव्ययीभाव समास होता है। जैसे—

दिनं दिनं प्रति इति प्रतिदिनम्
शक्तिम् अनतिक्रम्य इति यथाशक्तिः
नगरस्य समीपम् इति उपनगरम्
गोः पश्चात् अनुगु
धनस्य अभावः निर्धनम्
मक्षिकाणां अभावः निर्मक्षिकम्

तत्पुरुष अमादौ तत्पुरुषः द्वितीयान्तं सुबन्त के साथ श्रित, अतीत, पतित, गत, अत्यस्त, प्राप्त, आपन्न शब्द मिलाने पर तत्पुरुष समास होता है।

**द्वितीया तत्पुरुष **
कृष्णंश्रितः इति कृष्णश्रितः
दृष्टिम् अतीत इति दृष्ट्यतीतः
कूपं पतितः इति कूपपतितः
ग्रामं गतः इति ग्रामगतः
दिशम् अत्यस्तः इति दिगत्यस्तः
ग्रामं प्राप्तः इति ग्रामप्राप्तः
विपदम् आपन्नः इति विपदापन्नः
तृतीया तत्पुरुष
प्रभुणा रक्षित इति प्रभुरक्षितः
नखैः छिन्नः इति नखछिन्नः
पित्रा सम इति पितृममः
मासेन पूर्व इति मासपूर्वः
गुरुणा दत्तः इति गुरुदत्तः
वाचा कलह इति वाक्कलहः
चतुर्थी तत्पुरुष
यूपाय दारू यूपदारू
भूतेभ्यः वलिः भूतवलिः
ब्राह्मणाय हितं ब्राह्मणहितम्
कुंडलाय हिरण्यं कुंडलहिरण्यम्
पञ्चमी तत्पुरुष
चोरात् भयं चोरभयम्
व्याघ्रात् भीतः व्याघ्रभीतः
वृक्षात् पतितः वृक्षपतितः
षष्ठी तत्पुरुष
धर्मस्य क्षेत्रम् धर्मक्षेत्रम्
यमुनायाः जलम् यमुनाजलम्
स्वर्णस्य कुंडलम् स्वर्णकुंडलम्
हितस्य उपदेशः हितोपदेशः
सप्तमी तत्पुरुष
द्यूते निपुणः द्यूतनिपुणः
अक्षेषु शौण्डः अक्षशौण्डः
वाचि पटुः वाक्पटुः
सभायां पण्डितः सभापण्डितः

अलुक् तत्पुरुष

जहां समास की दशा में भी विभक्ति लोप नहीं होता उनके मुख्य उदाहरण निम्न लिखित हैं—

(२) द्वितीया परन्तपः
(३) तृतीया आत्मना तृतीयाः
(४) चतुर्थी परस्मैपदम्
(५) पंचमी दूरादागतः, स्तोकान्मुक्तः
(६) षष्ठी चोरस्य कुलम्, वाचोर्युक्तिः
(७) सप्तमी गेहे शूरः, युधिष्ठरः

नञ्तत्पुरुषः

जो नञ्उत्तर पदों के साथ समस्त होता है उसे नञ् तत्पुरुष कहते हैं—

जैसे—
न ब्राह्मणः अब्राह्मणः
न सत् असत्
न भावः अभावः
न अश्वः अनश्वः
न ईश्वरः अनीश्वरः
कु पुरुषः कुपुरुषः
न उत्तमः अनुत्तमः
दुः प्रकृति दुष्प्रकृतिः

द्वन्द्वसमासः

च के अर्थ में जो समास होता है उसे द्वन्द्व कहते हैं—

रामश्च लक्ष्मणश्च रामलक्ष्मणौ
हरिश्च हरश्च हरिहरौ
युधिष्ठिरश्च भीमश्च अर्जुनश्च युधिष्ठिरभीमार्जुनाः
माता च पिता च पितरौ
पार्वती च परमेश्वरश्च पार्वतीपरमेश्वरौ
धर्मश्च अर्थश्च कामश्च मोक्षश्च धर्मार्थकाममोक्षाः
इन्द्रावरुणौ इन्द्राग्नी सूर्याचन्द्रमसौ
यूकाश्च लिक्षाश्च आसां समाहारः यूकालिक्षम्
पाणी च पादौ च अनयोः समाहारः पाणिपादम्
अहिश्च नकुलश्च तयोः समाहारः अहिनकुलम्
रथिकाश्च अश्वारोहाश्च तेषां समाहारः रथिकाश्वारोहम्

बहुव्रीहिः

यस्य येन बहुव्रीहिः।

१ जिस में अन्य पद का अर्थ पाया जाता है, और यस्य येन से विग्रह वाक्य बनता है उसे बहुव्रीहि कहते हैं। यथा—

लम्बौ कर्णौ यस्य सः लम्बकर्णः
पीतानि अम्बराणि यस्य सः पीताम्बरः
नीलो वर्णो यस्य सः नीलवर्णः
कण्ठे कालो यस्य सः कण्ठकालः
न पुत्रो यस्य सः अपुत्रः
प्राप्तम् उदकं येन स प्राप्तोदकः
प्र पतितानि पर्णानि यस्य सः प्रपर्णः
द्वौ पादौ यस्य सः द्विपाद्
शोभनं हृदयं यस्य सः सहृदयः
युक्तो योगो येन सः युक्तयोगः
भुक्ताः भोगाः येन स भुक्तभोगः
चक्रं पाणौ यस्य स चक्रपाणिः
चन्द्रस्य कान्तिः इव कान्तिः यस्य सः चन्द्रकान्तिः

कर्मधारय

उपमान बाची पदों का दूसरे पदों से मेल हो तो कर्मधारय समास होता है। यथा—

घन इव श्यामः घनश्यामः
रक्ता लता रक्तलता
पुरुषो व्याघ्र इव पुरुषव्याघ्रः
मुख कमलम् इव मुखकमलम्
नीलम् उत्पलम् नीलोत्पलम्
मुख्यः अमात्यः मुख्यामात्यः
कृष्णः सर्पः कृष्ण सर्पः

द्विगुः

जहां पूर्व पद संख्या वाचक हो वहां द्विगु समास होता है। यथा—

त्रयाणां फलानां समाहारः त्रिफला
त्रयाणां कुटानां समाहारः त्रिकुटा
त्रयाणां लोकानां समाहारः त्रिलोकी
द्वौ गावौ समाहृतौ द्विगवम्
पञ्चानां रात्राणां समाहारः पञ्चरात्रम्
त्रयाणां पथां समाहारः त्रिपथम्
चतुर्णांयुगानां समाहारः चतुर्युगम्
सप्तानां शतानां समाहारः सप्तशती
पंचाणां वटानां समाहारः पंचवटी

संख्यावाचक शब्द

इनके दो भेद हैं— संख्यावाचक और पूरण।

एक (एक) एक वचनान्त।

पुंल्लिङ्ग स्त्री० न०
एकः एका एकम्
एकम् एकाम् एकम्
एकेन एकया शेष पुल्लिंग की तरह
एकस्मै एकस्यै
एकस्मात् एकस्याः
एकस्य एकस्याः
एकस्मिन् एकस्याम्
द्विवचनान्त द्वि
पुं० स्त्री० न०
द्वौ द्वे द्वे
द्वौ द्वे द्वे
द्वाभ्याम् द्वाभ्याम् शेष पुं० वत्
द्वाभ्याम् "
द्वाभ्याम् "
द्वयोः "
द्वयोः "
बहुवचनान्त त्रि
त्रयः तिस्रः त्रीणि
त्रीन् तिस्रः त्रीणि
त्रिभिः तिसृभिः शेष पुं० वत्
त्रिभ्यः तिसृभ्यः
" "
त्रयाणां तिसृणां
त्रिषु तिसृषु
चतुर ४
चत्वारः चतस्रः चत्वारि
चतुरः चतस्रः चत्वारि
चतुर्भिः चतसृभिः शेष पुं० वत्
चतुर्भ्यः चतसृभ्यः
" "
चतुर्णाम् चतसृणाम्
चतुर्षु चतसृषु
पञ्च ५
१ पञ्च २ पञ्च ३ पञ्चभिः ४ पञ्चभ्यः
५ पञ्चभ्यः ६ पञ्चानाम् ७ पञ्चसु
षट् ६
१ षट् (ड्) २ षट् (ड्) ३ षड्भिः ४ षड्भ्यः
५ षड्भ्यः ६ षण्णाम् ७ षट्सु
सप्तन् ७
१ सप्त २ सप्त ३ सप्तभिः ४ सप्तभ्यः
५ सप्तभ्यः ६ सप्तानाम् ७ सप्तसु
अष्टन् ८
१ अष्टौ (अष्ट) २ अष्टौ (अष्ट) ३ अष्टाभिः(अष्टभिः) ४ अष्टाभ्यः (अष्टभ्यः)
५ अष्टाभ्यः (अष्टभ्यः) ६ अष्टानाम् ७ अष्टासु (अष्टसु)

नवदशन्तक शेष शब्दों के रूप सप्तन् की तरह होंगे।

१ एकः; २ द्वौ; ३ त्रयः; ४ चत्वारः; ५ पंच; ६ षट्; ७सप्त; ८ अष्ट; ९ नव; १० दश; ११ एकादश; १२ द्वादश; १३ त्रयोदश; १४ चतुर्दश; १५ पंचदश; १६ षोडश; १७ सप्तदश; १८ अष्टादश;

१९ एकोनविंशतिः; २० विंशति; २१ एकविंशतिः; २२ द्विविंशतिः; २३ त्रयोविंशतिः; २४ चतुर्विंशतिः; २५ पंचविंशतिः; २६ षड्विंशतिः; २७ सप्तविंशतिः; २८ अष्टाविंशतिः; २९एकोनत्रिंशत्; ३० त्रिंशत्; ३१एकत्रिंशत्; ३२ द्वित्रिंशत्; ३३ त्रयस्त्रिंशत्; ३४ चतुर्स्त्रिंशत्; ३५ पंचत्रिंशत्; ३६ षड्त्रिंशत्; ३७ सप्तत्रिंशत्; ३८ अष्टात्रिंशत्; ३९ एकोनचत्वारिंशत्; ४० चत्वारिंशत्; ४१ एकचत्वारिंशत्; ४२ द्विचत्वारिंशत्; ४३ त्रिचत्वारिंशत्; ४४ चतुश्चत्वारिंशत्; ४५ पंचचत्वारिंशत्; ४६ षट्चत्वारिंशत्; ४७ सप्तचत्वारिंशत्; ४८ अष्टचत्वारिंशत्; ४९ एकोनपंचाशत्; ५० पंचाशत्; ५१ एकपंचाशत्; ५२ द्विपंचाशत्; ५३ त्रिपंचाशत्; ५४ चतुःपंचाशत्; ५५ पंचपंचाशत्; ५६ षट्पंचाशत्; ५७ सप्तपंचाशत्; ५८ अष्टापंचाशत्; ५९ एकोनषष्टिः; ६० षष्टिः; ६१ एकषष्टिः; ६२ द्विषष्टिः; ६३ त्रिषष्टिः; ६४ चतुःषष्टिः; ६५ पंचषष्टिः; ६६ षट्षष्टिः; ६७ सप्तषष्टिः; ६८ अष्टषष्टिः; ६९ एकोनसप्ततिः; ७० सप्ततिः; ७१ एकसप्ततिः; ७२ द्विसप्ततिः; ७३ त्रिसप्ततिः; ७४ चतुःसप्ततिः; ७५ पंचसप्ततिः; ७६ षट्सप्ततिः; ७७ सप्तसप्ततिः; ७८ अष्टसप्ततिः; ७९ एकोनाशीतिः; ८० अशीतिः; ८१ एकाशीतिः; ८२ द्व्यशीतिः; ८३ त्र्यशीतिः; ८४ चतुरशीतिः; ८५ पंचाशीतिः; ८६ षडशीतिः; ८७ सप्ताशीतिः; ८८ अष्टाशीतिः; ८९ एकोननवतिः; ९० नवतिः; ९१ एकनवतिः; ९२ द्विनवतिः; ९३ त्रिनवतिः; ९४ चतुर्नवतिः; ९५ पंचनवतिः; ९६ षण्णवतिः; ९७ सप्तनवतिः; ९८ अष्टानवतिः; ९९ एकोनशतम्; १०० शतम्; १०१ एकाधिकशतम्; १००० सहस्रम्; १०००० दशसहस्रम्; १००००० लक्षम; १००००००० कोटीः;।

पूरणशब्दाः

प्रथमः, द्वितीयः, तृतीयः, चतुर्थः, पंचमः, षष्टः, सप्तमः, अष्टमः, नवमः, दशमः, एकादशः, द्वादशः, त्रयोदशः, चतुर्दशः, पंचदशः, षोडषः, सप्तदशः, अष्टादशः, एकोनविंशः, विंशः, एकविंशतितमः, त्रिंशत्तमः, चत्वारिंशत्तमः, पंचाशत्तमः, षष्ठितमः, सप्ततितमः, अशीतितमः, नवतितमः, शततमः।

अथ तद्धितप्रत्ययाः

तर–तम प्रत्ययाः

१— तुलना वाचक विशेषण में प्रातिपदिक से आगे तर प्रत्यय लगाया जाता है। जब दो व्यक्तियों वा पदार्थों में किसी के गुण की न्यूनतावाअधिकता दिखाना अभिप्रेत हो तो वहां तुलना वाचक विशेषण प्रयुक्त होता है।

२— दो से अधिक में दिखाना अभिप्रेत हो तो अतिशय वाचक विशेषण का प्रयोग होता है— वहां प्रातिपदिक के आगे तम लगाया जाता है।

यथा— श्रेष्ठतरः। तस्मात् बालात् अयं बालः श्रेष्ठतरः—उस बालक की अपेक्षा यह बालक श्रेष्ठ है।

तेषु पुरुषेषु अयं श्रेष्ठतमः— उन पुरुषों में यह आदमी सबसे श्रेष्ठ है।

लघुतरः लघुतमः दृढ़तरः दृढ़तमः
अल्पतरः अल्पतमः

३— उपसर्ग से तर–तम प्रत्ययों का प्रयोग

उत तरः उत्तरः उत्तमः।

४— क्रिया-अव्ययों के अन्त में तरां तमां प्रत्यय लग जाते हैं—

विजयतेतराम् विजयतेतमाम्।

उच्चैस्तराम्—

५—तुलना में ईयस और अतिशय में इष्ठप्रत्यय भी लगाये जाते हैं।

गुरु-ईयस्-गरीयस्। गुरु-इष्ठ-गरिष्ठ। लघीयस्-लघिष्ठ-बलीयस्-बलिष्ठ-नेदीयस्-नेदिष्ठ-दवीयान्-दविष्ठ।

बलीयस् बलिष्ठ
स्वादीयस् स्वादिष्ठ
कनीयस् कनिष्ठ
श्रेयस् श्रेष्ठ
ज्यायस् ज्येष्ठ
अल्पीयस् अल्पिष्ठ

अभ्यास

दशरथ की सबसे छोटी रानी का नाम केकैयीथा। सभी छात्रों में हरि का आचार श्रेष्ठ है। राम से कृष्ण का लेख सुन्दर है। सभी धर्म पुस्तकों में वेद बहुत अच्छे है। महाराज उत्तानपाद की दो रानियां थीं बड़ी का नाम सुनीति और छोटी का सुरुचि।

महाराज ययाति को अपनी रानी देवयानी की अपेक्षा शर्मिष्ठा अधिक री थी।

पांचों भाइयों में भीम सवसे बलवान था। दूसरे धर्म की अपेक्षा अपना धर्म निर्गुण भी अच्छा है।

धारीवाल वटालय से नजदीक है परन्तु अमृतसर से दूर।

सभी मन्दिरों में कृष्ण का मन्दिर बहुत मजबूत है।यह कमल का फल सभी फलों में अधिक कोमल है (भ्रदिष्ठ)।

PART II

KEY

ΤΟ

SANSKRIT TRANSLATION

अनुवाद—

किसी एक भाषा के शब्दार्थ को किसी दूसरी भाषा के शब्दों में बदलने का नाम अनुवाद है।

हिन्दी से संस्कृत बनाने के लिये आवश्यक और उपयोगी जानने योग्य बातें नीचे दी जाती हैं—

१ पाठः

काल (Tense.) तीन हैं।

१ वर्तमान काल (Present Tense.)

२ भूतकाल (Past Tense.)

३ भविष्यत् काल ( Future Tense.)

प्रकार (mood) दो हैं ।

१ लोट् (लकार) (Imperative Mood)

२ विधिलिङ् (Potential Mood.)

पुरुष (Person) तीन हैं।

१ प्रथम पुरुष (Third Person)

२ मध्यम पुरुष (Second Person)

३ उत्तम पुरुष (First Person)

वचन (number) तीन हैं।

१ एकवचन (Singular)

२ द्विवचन (Duel)

३ बहुवचन (Plural)

२ पाठः

वर्तमान काल में धातु के आगे विभक्तियों के रूप नीचे लिखे जाते हैं।

प्र० पु० ति (सः वह) तः (तौ वे दो) अन्ति (ते वे सव)
म० पु० सि (त्वं तुम) थः (युवां तुम दो ) थ (यूयं तुम सब)
उ० पु० आमि (अहं मैं) आवः (आवां हम दो) आमः (वयं हम सब)
भूत काल की विभक्तियें—
प्र० पु० त् ताम् अन्
म० पु० : तम्
उ० पु० अम् आव आम

भविष्यत् काल की विभक्तियों में प्रायः धातु के आगेइष्य लगाकर वर्तमान की विभक्तियें जोड़ दी जाती हैं।

यथा— इष्यति, इष्यतः, इष्यन्ति

पठ् (पढ़ना) से— पठ् इष्यति

प्र० पु० पठिष्यति पठिष्यतः पठिष्यन्ति
म० पु० पठिष्यसि पठिष्यथः पठिष्यथ
उ० पु० पठिष्यामि पठिष्यावः पठिष्यामः
लोट्
प्र० पु० तु ताम् अन्तु
म० पु० तम्
उ० पु० आनि आव आम
विधिलिङ्
प्र० पु० ईत् ईताम् ईयुः
म० पु० ईः ईतम् ईत
उ० पु० ईयम् ईव ईम

३ पाठः

कारक (Case.) ८ हैं।

१ कर्तृ कारक (प्रथमा विभक्ति (ने)

२ कर्म (द्वितीया विभक्ति (को)

३ करण (तृतीया (ने से साथ)

४ संप्रदान (चतुर्थी (लिये वास्ते)

५ अपादान (पंचमी (से)

६ सम्बन्ध (का के की)

७ अधिकरण (में पर विषय)

८ सम्बोधन (हे अय्)

विशेषण–(Adjective)

विशेषण का लिङ्ग, वचन तथा विभक्ति विशेष्य के समान होती है।

४ पाठः

(Voice) वाच्य— तीन हैं।

कर्तृवाच्य (Active Voice)

कर्तृवाच्य में कर्ता में प्रथमा (कर्म में द्वितीया, क्रिया गणों की होती है) क्रिया का सम्बन्ध कर्ता से होता है। जैसे—

रामः ग्रन्थं पठति।

कर्मवाच्य (Passive Voice)

कर्मवाच्य में कर्ता में तृतीया, कर्म में प्रथमा क्रिया दिवादि गणी आत्मनेपदी धातु के समान होती है ।

क्रिया का सम्बन्ध कर्म से होता है। जैसे—

रामेण ग्रन्थः पठ्यते।

भाववाच्य

भाववाच्य की क्रिया का कर्म नहीं होता। जैसे—

रामेण स्थीयते। मया शीयते।

राम से ठहरा जाना है। मुझसे सोया जाता है।

५ म् पाठः

वर्तमान काल की क्रिया के वाक्यों का अभ्यास।

क्लिष्टशब्द

छात्रालयः, क्रीड़ाक्षेत्रम्, पादकन्दुकम्, कुर्वन्ति, नश्यति, विविध, भूषयन्ति, स्मरसि, कदाचित्, स्नामि, शुध्यति।

हिन्दी वाक्य

१— सभी छात्र रात्रि को बोर्डिंग हौस में पढ़ते हैं।

२—पाठशाला के समय के अनन्तर लड़के खेल के मैदान में फुटवाल खलते हैं।

३— निर्दयो लोग दुःखियों पर दया नहीं करते।

४— लोभ से मनुष्यों की बुद्धि नष्ट हो जाती है।

५— दिवाली के दिन लोग अपने घरों को तरह २ के चित्रों से सजाते हैं।

६— राम! परीक्षा का समय समीप है अपना पाठ याद क्यों नहीं करते?

७— विद्या सब से उत्तम धन है।

८— जो गुरुओं का आदर नहीं करते वे कभी सफल नहीं होते।

९— मैं प्रतिदिन प्रातः काल शीत जल से स्नान करता हूं।

१०— शरीर जल से शुद्ध होता है और मन सत्य से।

६ पाठः

भूत काल के वाक्य

क्लिष्ट शब्द

अहन्। पुष्पातम्। दुकूलानि। वाराणस्याः। आनयत्। तटे। अधस्तात्। अवादयत्। अवसन्। अपठताम्। सत्यवादिनः। आसन्। नाम्नी। धार्मिकः। अभवत्।

१— यह वह ही वन है जहां राम ने राक्षसों को मारा था।

२— इन्दुमती महाराज अज की धर्मपत्नी थी, जिसकी मृत्यु फूल गिरने से हुई थी।

३— तूने वे रेशमी वस्त्र देखे थे जो मेरे पिता बनारस से लाये थे।

४— महाभारत का युद्ध क्षत्रिय जाति के विनाश का कारण हुआ।

५— श्रीकृष्ण यमुना के किनारे वृक्षों के नीचे वंशी बजाते थे।

६— जानकी वाल्मीकि मुनि के आश्रम में चिर तक रही।

७— जानकी के पुत्र लव और कुश वाल्मीकि मुनि के आश्रम में रामायण पढ़ा करते थे।

८— पहिले इस देश का नाम आर्यावर्त था।

९— भारत के ऋषि मुनि सच बोलने वाले और धर्म में स्थिर थे।

१०— इस देश के ब्राह्मण सभी विद्याओं में निष्णात थे।

११— अवध देश में सरयू नदी के किनारे प्राचीन काल में अयोध्या नाम की एक नगरी थी।

१२—इक्ष्वाकु वंश में दशरथ नामी बड़े प्रतापी और धर्मात्मा राजा हुए।

७ पाठः

भविष्यत् काल

१— संगठन से ही आर्य जाति का कल्याण होगा और दुःख कटेंगे।

२— भारत के नर नारी शिक्षित होंगे तो देश की निर्धनता और दासता दूर होगी।

३— सखे हिरण्यक! मैं आप से अवश्य मैत्री करूंगा, नहीं तो भूखा रह कर आप के द्वार पर प्राण त्याग दूंगा।

४— मोहन आओ पाठ याद करें, आज गुरु जी हमारा पाठ सुनेंगे।

५— इस वर्ष जो विद्यार्थी दशम श्रेणी की परीक्षा में प्रथम रहेगा, मैं उसे सोने का तमगा इनाम दूंगा।

६— भले लोगों के संग से सदा सुखी रहोगे।

७— आज मेरे सिर में पीड़ा है अतः मैं दरिया पर सैर करने नहीं जाऊंगा।

८— यह बालक बड़ा होनहार है, एक दिन अवश्य अपना नाम उज्ज्वल करेगा।

९— आलसी मनुष्य किसी काम में सफल नहीं होंगे।

१०— कवि लोग राजा से धन प्राप्त करेंगे।

क्लिष्ट शब्द

दुःखानि नश्यन्ति। दूरी भविष्यति। अनशनेन त्यक्ष्यामि। श्रोष्यति। स्वर्णपदकम्। पारितोषिकम्। शिरसि। विहाराय। कस्मिंश्चित्। प्राप्स्यन्ति।

८ मः पाठः

लोट्

क्लिष्ट शब्द

उत्तिष्ठ। संजातः। वद। पालय। न करवानि। अपराधिनः। दडयन्तु। सत्कुर्वन्तु। रक्ष। अनृतवादित्वम्। याचस्व। विन्दस्व। निरामयाः। भद्राणि। कश्चिदपि।

१— हे शिष्य! उठो प्रातःकाल हो गया।

२—बालको! सदा सत्य बोलो और ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करो।

३— प्रभो! मैं कभी किसी का स्वप्न में भी अनिष्ट न करूं। मेरा जीवन परोपकार के लिये हो।

४— राजा लोग अपराधियों को दण्ड दें और सज्जनों का सत्कार करें।

५— पुस्तक की तैल और जल से रक्षा कर।

६— दुर्जनों का संग मत कर और झूठ मत बोल।

७— अपने लिये किसी से कुछ मत मांग।

८— वत्स! आचार्य को नमस्कार करो और उसका अनुग्रह प्राप्त करो।

९— हे ईश्वर! संसार में सभी सुखी हों सभी नीरोगी हों।

१०— सभी जन कल्याण देखें कोई भी दुःखी न हो।

९ पाठः

विधिलिङ् का अभ्यास

कठिन शब्द

यावत्। जीवेत्। इह। गुरूणाम्। भवेत्। वर्धते। षण्णाम्। ऋतूनाम्। भवेयुः। सेवेमहि। न त्यजेत्। मृत्पिण्डवत्।

वाक्य

१— मनुष्य जब तक जीवे वह काम करे, जिससे इस लोक और परलोक में सुखी हो।

२— हमें चाहिये कि हम भी अपने गुरुओं का अनुकरण करें।

३— ऋषियों का कथन है कि प्रत्येक बालक ब्रह्मचारी बने।

४—ब्रह्मचर्य से हमारा बल और बुद्धि बढ़े।

५— प्रभो हमारे देश में छओं ऋतुओं का विकास समय पर होता रहे।

६— इस देश में आर्य बालक शूरवीर और धर्मात्मा बने।

७— हमें अपने माता पिता और गुरुओं की सेवा करनी चाहिये।

८— भले लोगों का संग कभी मत छोड़ो।

९— सदा धर्म के रास्ते पर चलो।

१०— पर स्त्री को माता के समान और पर धन को मिट्टी के ढेले के समान समझो।

प्रेरणार्थक क्रिया (Casual Verb)

कठिन शब्द

दर्शयति। श्रावयति। प्रेम्णा पाययति। अघातयत्। लेखयति। अकारयत्। मुख्याध्यापकः। वार्षिकोत्सवे। पारितोषिकम्। अदापयत्। रचयति। सूदः। अपाचयत्। उत्सङ्गे (गोदी में) आदाय (लेकर) खादयति।

अभ्यास

१— गुरु शिष्यों को भूगोल के चित्र में से भारत का चित्र दिखला रहा है।

२— कमला निर्मला को तुलसी रामायण की कथा सुना रही है।

३— माता पुत्र को बड़े प्रेम से दूध पिला रही है।

४—श्रीकृष्ण ने चक्रव्यूह में अर्जुन से जयद्रथ को मरवाया।

५— अध्यापक बालकों से सुलेख लिखवाता है।

६—स्वामी विरजानन्द ने स्वामी दयानन्द से वेदों का प्रचार करवाया।

७— हेड मास्टर साहब ने विद्यालय के सालाना जलसे पर विद्यार्थियों को इनाम दिलवाया।

८— सेठ अपनी पुत्री के लिये सोने के भूषण बनवाता है।

९— मोहन रसोईये से भात पकवाता है।

१०— पिता पुत्र को गोदी में लेकर उसे मिठाई खिलाता है।

______

११ पाठः

अथ कृदन्त

क्त्वान्त

श्रुत्वा (सुन कर); पठित्वा (पढ़ कर); दत्वा (दे कर); दृष्ट्वा (देख कर); हत्वा (मार कर); पीत्वा (पीकर)।

कठिन शब्द

प्रतीक्षस्व। कम्पते। अनुद्यत्। अविभेत्।

वाक्य

१— मित्र थोड़ी देर इन्तजार कर मैं पाठ पढ़ कर अभी अभी आता हूं।

२— सीता अशोकवन में राक्षसियों को देखकर डर गई।

३— उस नीच का नाम सुन कर हृदय भय से कांप उठता है।

४— महाभारत के युद्ध में अर्जुन अपने भाई कर्ण को मारकर मोहित होगया।

५— महाराजा रघु ने यज्ञ में सब कुछ देकर भी अतिथि कौत्सको निराश नहीं किया।

१२ पाठः

तुमुन्नन्त

दातुम् (देने को); गन्तुम् (जाने को); भक्षितुम् (खाने को); द्रष्टुम् (देखने को); श्रोतुम् (सुनने को); पातुम् (पीने को); स्मर्तुम् (याद करने को); दण्डयितुम् (दण्ड देने को)।

अभ्यास

१— व्याघ्र ने कहा, “यह सोने का कड़ा मैं जिस किसी को देना चाहता हूं”।

२— देव! सूर्य अस्त हो गया है, मे अबघर को जाना चाहता हूं।

३— पिङ्गलक नाम का शेर पानी पीने के लिए यमुना के किनारे गया।

४— मैं आज १० बजे आप की पाठशाला देखने आऊंगा।

५— हरि प्रतिदिन ज्ञान मन्दिर में वेदों की कथा सुनने आया करता था।

६— राजा ने चोरों को राजसभा में दंड देनेके लिए बुलवाया।

७— बन्दर आम का फल खाने के लिए वृक्ष की चोटी पर चढ़ गया।

८— मोहन वेद मंत्रों को याद करने केलिए देव के घर जाया करता है।

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१३ पाठः

क्त क्तवतु (Past Participal)
पठ् (पढ़ना) पठित (पठितवान्)
दा (देना) दत्त (दत्तवान्)
हन् (मारना) हत (हतवान्)
चुर् (चुराना) चोरित (चोरितवान्)
ग्रह् (पकड़ना) गृहीत (गृहीतवान्)
क्री (खरीदना) क्रीत (क्रीतवान्)
कृ (करना) कृत (कृतवान्)
दृश् (देखना) दृष्ट (दृष्टवान्)

तेन पठितम्— उसने पढ़ा

अभ्यास

१— शिष्य ने संस्कृत की पुस्तक पढ़ी।

२— सेठ ने ब्राह्मणों को धन दिया।

३— राम ने रावण को बाण मारा।

४— चोर ने राजा के रत्न चुराये।

५— पति ने पत्नी का हाथ अग्नि के सामने पकड़ा।

६— हरि ने देव का घर खरीदा।

७— उस विचारे ने कोई अपराध नही किया।

८— हमने उस नीच को सड़क पर भागते देखा।

१४ पाठः

(तव्यान्त) (चाहिए) के अर्थ में

रक्षितव्यम् (रक्ष्)

भूषितव्यम् (भूष्)

दातव्यम् (दा)

पातव्यम् (पा)

तोलितव्यम् (तोल्)

यष्टव्यम् (यज्)

पूजितव्यम् (पूज्)

गन्तव्यम् (गम्)

पठितव्यम् (पठ्)

श्रोतव्यम् (श्रु)

कर्तव्यम् (कृ)

१— राजा को प्रजा की पुत्र के समान रक्षा करनी चाहिए।

२— राजा का स्वागत करने के लिए हमें अपनी २ दुकानें सजानी चाहिये।

३— अकाल के दिनों में निर्धनों को अन्न देना चाहिये।

४— गर्मी के दिनों में तृषा शान्त करने के लिए शीत जल पीना चाहिए।

५— चावल वणिये से लेकर फिर भी तोलने चाहिए।

६— द्विजों को प्रत्येक पर्व के दिन यज्ञ करना चाहिए।

७— व्यास पूजा के दिन गुरु दक्षिणा दे कर हमें अपने गुरु की पूजा करनी चाहिए।

८— युक्ति युक्त कहा हुआ बालक का भी वचन हमें आदर से सुनना चाहिए।

१५ पाठः

वाच्य (Voice)

कर्मवाच्य (Passive Voice)
पठ्(पठ्यते) पढ़ा जाता है
कृ (क्रियते) किया जाता है
हृ (ह्रियते) छीना जाता है
त्यज् (त्यज्यते) छोड़ा जाता है
स्था (स्थीयते)
वंद् (वंद्यते)
युध् (युध्यते)
लभ्(लभ्यते)

अभ्यास

१— राम से पाठ पढ़ा जाता है।

२— सज्जनों से शुभ कर्म किये जाते हैं।

३— रावण से जानकी हरीजाती है।

४— हरि से दुष्कर्म छोड़े जाते हैं।

५— हम से इस अन्धेरेस्थान में नहीं ठहरा जाता।

६— शिष्य से गुरु को नमस्कार किया जाता है।

७— भीम से शत्रुओं से युद्ध किया जाता है।

८— कवियों से इनाम पाया जाता है।

९— जगदीश से श्रीकृष्ण का चरित सुना जाता है।

१६ पाठः

शतृ(अत्) (Present Participles)
लिख (लिखत्) लिखता हुआ
कृ (कुर्वन्) करता हुआ
नी (नयत्) ले जाता हुआ
हस् (हसत्) हसता हुआ
पठ्(पठत्) पढ़ता हुआ
वस् (वसत्) रहताहुआ
ज्ञा (जानन्) जानता हुआ
श्रु (शृण्वत्) सुनता हुआ
दा (यच्छत्) देताहुआ
भू (भवत्) होता हुआ
गच्छ (गच्छन्ती) जाती हुई
पठ् (पठन्ती) पढ़ती हुई

अभ्यास

१— पाठ पढ़ते हुए गोविन्द को सोहन ने बुलाया।

२— प्रश्न पूछते हुए गुरु को शिष्य ने नमस्कार किया।

३— वह पत्र लिखते हुए अकाश की ओर देख रहा है।

४— जलपीतेहुए कुत्ते को कृष्णा ने दण्डसे पीटा।

५—शिशुपाल ने कृष्ण को बड़ा जानते हुए भी गालियां दीं।

६— गुरु ने घर को जाते हुए एक अंधे मुसाफिर को देखा।

७— योगेश हंसता हुआ आप से क्या पूछ रहा था।

८— सुरेन्द्र पाठयाद करता हुआ इन्द्र को पीटता था।

९— योगीन्द्र रोता हुआ अपनी माता को दूध पीने के लिए कह रहा है।

१०— बादल जल देता हुआ भी सबको प्यारा लगता है।

११— राजा प्रजा की रक्षा करता हुआ उससे आय का छठा भाग लेता है।

१२— वह लड़की रात को सोती हुई डर जाती है।

______

१७ पाठः

कर्मकारक (द्वितीया विभक्ति)

१ कर्तृवाच्य में कर्म में द्वितीया विभक्ति होती है।

२ प्रति, विना, धिक्, अन्तरेण उपसर्ग पूवर्क दुह्और क्रुध् धातु के योग में द्वितीया विभक्ति होती है।

यथा स ग्रन्थं पठति— वह ग्रन्थ पढ़ता है।

कोमां मित्रं विना त्रातुं समर्थ— मुझे मित्र के बिना कौन बचा सकता है। गोपः ग्रामं प्रति गच्छति। ग्वाला गाओं को जाता है। ज्ञानम् अन्तरेण न मुक्तिः। ज्ञान के बिना मोक्ष नहीं। धिक् तं जाल्मम्।उस दुष्ट को लानत है। पुत्रं अभिक्रुध्यति पिता। पिता पुत्र पर नाराज होता है। नृपं अभिदुह्यति प्रजा। प्रजा राजा से द्रोह करती है।

करणकारक तृतीया

१ करण में सह, साकं, सार्धं, समं, के योग में किम्, कार्यं, अर्थः, प्रयोजनं, अलं, के योग में हेतु अर्थ में तृतीया विभक्ति होती है।

यथा— रामः बाणेन रावणं अहन्।

किं तया क्रियते धेन्वा यान सूते न दुग्धदा।

कोऽर्थः पुत्रेण जातेन यो न विद्वान्न धार्मिकः।

अलं महीपाल तव श्रमेण।

मम तेन न किमपि प्रयोजनम्।

रामेण सह लक्ष्मणः वनमगच्छत्।

स मित्रैः सार्धं कथां शृणोति।

संप्रदान (चतुर्थी)

१ नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलं, हित और सुख शब्दोंके योग मेंरुच्, कुप्, क्रुध्, स्पृह्, उपदिश्, धृधातुओं के योग मेंचतुर्थी होती है। दान के अर्थ में भी चतुर्थी होती है।

यथा— गुरवे नमः। पित्रे स्वस्ति। अग्नये स्वाहा। पितृभ्यः स्वधा।अलं श्रमाय। विप्रेभ्यः हितंकल्याणं भवेत्। बालाय रोचते मिष्टम्। पुत्राय कुप्यति पिता। कोमलेभ्यः कमलेभ्यः स्पृहदन्ति बालाः। शिष्येभ्यः धर्ममुपदिशति। विप्राय धनं ददाति।

अपादान (पंचमी)

१ विना, ऋते, पृथक्, बहिः, आरात्, जा भी प्रतियच्छ् के योग में पंचमी होती है।

यथा— तस्माद् ऋते मम को बन्धुः।

धनात् विना न सुखम्।

नगराद् बहिः— नगर से वाहिर। मदः पात्राणि जायन्ते। मिट्टी से वरतन बनते हैं। स चौराह विनेति। वह चोरे से डरता है। रूप्यकेभ्यः प्रतियच्छति वस्त्राणि। वनात् आरात् मम कुटीरकमस्ति।

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