०५ पञ्चमोऽध्यायः

भागसूचना
  1. रामायणके नवाह श्रवणकी विधि, महिमा तथा फलका वर्णन
मूलम् (वचनम्)

सूत उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणस्य माहात्म्यं श्रुत्वा प्रीतो मुनीश्वरः।
सनत्कुमारः पप्रच्छ नारदं मुनिसत्तमम्॥ १॥

मूलम्

रामायणस्य माहात्म्यं श्रुत्वा प्रीतो मुनीश्वरः।
सनत्कुमारः पप्रच्छ नारदं मुनिसत्तमम्॥ १॥

अनुवाद (हिन्दी)

सूतजी कहते हैं—रामायणका यह माहात्म्य सुनकर मुनीश्वर सनत्कुमार बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने मुनिश्रेष्ठ नारदजीसे पुनः जिज्ञासा की॥ १॥

मूलम् (वचनम्)

सनत्कुमार उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणस्य माहात्म्यं कथितं वै मुनीश्वर।
इदानीं श्रोतुमिच्छाम विधिं रामायणस्य च॥ २॥

मूलम्

रामायणस्य माहात्म्यं कथितं वै मुनीश्वर।
इदानीं श्रोतुमिच्छाम विधिं रामायणस्य च॥ २॥

अनुवाद (हिन्दी)

सनत्कुमार बोले—मुनीश्वर! आपने रामायणका माहात्म्य कहा। अब मैं उसकी विधि सुनना चाहता हूँ॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एतच्चापि महाभाग मुने तत्त्वार्थकोविद।
कृपया परयाविष्टो यथावद् वक्तुमर्हसि॥ ३॥

मूलम्

एतच्चापि महाभाग मुने तत्त्वार्थकोविद।
कृपया परयाविष्टो यथावद् वक्तुमर्हसि॥ ३॥

अनुवाद (हिन्दी)

महाभाग मुने! आप तत्त्वार्थ-ज्ञानमें कुशल हैं; अतः अत्यन्त कृपापूर्वक इस विषयको यथार्थरूपसे बतायें॥

मूलम् (वचनम्)

नारद उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणविधिं चैव शृणुध्वं सुसमाहिताः।
सर्वलोकेषु विख्यातं स्वर्गमोक्षविवर्धनम्॥ ४॥

मूलम्

रामायणविधिं चैव शृणुध्वं सुसमाहिताः।
सर्वलोकेषु विख्यातं स्वर्गमोक्षविवर्धनम्॥ ४॥

अनुवाद (हिन्दी)

नारदजीने कहा—महर्षियो! तुमलोग एकाग्रचित्त होकर रामायणकी वह विधि सुनो, जो सम्पूर्ण लोकोंमें विख्यात है। वह स्वर्ग तथा मोक्ष-सम्पत्तिकी वृद्धि करनेवाली है॥ ४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

विधानं तस्य वक्ष्यामि शृणुध्वं गदतो मम।
रामायणकथां कुर्वन् भक्तिभावेन भावितः॥ ५॥

मूलम्

विधानं तस्य वक्ष्यामि शृणुध्वं गदतो मम।
रामायणकथां कुर्वन् भक्तिभावेन भावितः॥ ५॥

अनुवाद (हिन्दी)

मैं रामायणकथा-श्रवणका विधान बता रहा हूँ; तुम सब लोग उसे सुनो। रामायणकथाका अनुष्ठान करनेवाले वक्ता एवं श्रोताको भक्तिभावसे भावित होकर उस विधानका पालन करना चाहिये॥ ५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

येन चीर्णेन पापानां कोटिकोटिः प्रणश्यति।
चैत्रे माघे कार्त्तिके च पञ्चम्यामथवाऽऽरभेत्॥ ६॥

मूलम्

येन चीर्णेन पापानां कोटिकोटिः प्रणश्यति।
चैत्रे माघे कार्त्तिके च पञ्चम्यामथवाऽऽरभेत्॥ ६॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस विधिका पालन करनेसे करोड़ों पाप नष्ट हो जाते हैं। चैत्र, माघ तथा कार्तिकमासके शुक्लपक्षकी पञ्चमी तिथिको कथा आरम्भ करनी चाहिये॥ ६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संकल्पं तु ततः कुर्यात् स्वस्तिवाचनपूर्वकम्।
अहोभिर्नवभिः श्राव्यं रामायणकथामृतम्॥ ७॥

मूलम्

संकल्पं तु ततः कुर्यात् स्वस्तिवाचनपूर्वकम्।
अहोभिर्नवभिः श्राव्यं रामायणकथामृतम्॥ ७॥

अनुवाद (हिन्दी)

पहले स्वस्तिवाचन करके फिर यह संकल्प करे कि ‘हम नौ दिनोंतक रामायणकी अमृतमयी कथा सुनेंगे’॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अद्य प्रभृत्यहं राम शृणोमि त्वत्कथामृतम्।
प्रत्यहं पूर्णतामेतु तव राम प्रसादतः॥ ८॥

मूलम्

अद्य प्रभृत्यहं राम शृणोमि त्वत्कथामृतम्।
प्रत्यहं पूर्णतामेतु तव राम प्रसादतः॥ ८॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर भगवान् से प्रार्थना करे—‘श्रीराम! आजसे प्रतिदिन मैं आपकी अमृतमयी कथा सुनूँगा। यह आपके कृपाप्रसादसे परिपूर्ण हो’॥ ८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रत्यहं दन्तशुद्धिं च अपामार्गस्य शाखया।
कृत्वा स्नायीत विधिवद् रामभक्तिपरायणः॥ ९॥

मूलम्

प्रत्यहं दन्तशुद्धिं च अपामार्गस्य शाखया।
कृत्वा स्नायीत विधिवद् रामभक्तिपरायणः॥ ९॥

अनुवाद (हिन्दी)

नित्यप्रति अपामार्गकी शाखासे दन्तशुद्धि करके रामभक्तिमें तत्पर हो विधिपूर्वक स्नान करे॥ ९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

स्वयं च बन्धुभिः सार्द्धं शृणुयात् प्रयतेन्द्रियः।
स्नानं कृत्वा यथाचारं दन्तधावनपूर्वकम्॥ १०॥
शुक्लाम्बरधरः शुद्धो गृहमागत्य वाग्यतः।
प्रक्षाल्य पादावाचम्य स्मरेन्नारायणं प्रभुम्॥ ११॥

मूलम्

स्वयं च बन्धुभिः सार्द्धं शृणुयात् प्रयतेन्द्रियः।
स्नानं कृत्वा यथाचारं दन्तधावनपूर्वकम्॥ १०॥
शुक्लाम्बरधरः शुद्धो गृहमागत्य वाग्यतः।
प्रक्षाल्य पादावाचम्य स्मरेन्नारायणं प्रभुम्॥ ११॥

अनुवाद (हिन्दी)

अपनी इन्द्रियोंको संयममें रखकर भाई-बन्धुओंके साथ स्वयं कथा सुने। पहले अपने कुलाचारके अनुसार दन्तधावनपूर्वक स्नान करके श्वेत वस्त्र धारण करे और शुद्ध हो घर आकर मौनभावसे दोनों पैर धोनेके पश्चात् आचमन करके भगवान् नारायणका स्मरण करे॥ १०-११॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नित्यं देवार्चनं कृत्वा पश्चात् संकल्पपूर्वकम्।
रामायणपुस्तकं च अर्चयेद् भक्तिभावतः॥ १२॥

मूलम्

नित्यं देवार्चनं कृत्वा पश्चात् संकल्पपूर्वकम्।
रामायणपुस्तकं च अर्चयेद् भक्तिभावतः॥ १२॥

अनुवाद (हिन्दी)

फिर प्रतिदिन देवपूजन करके संकल्पपूर्वक भक्तिभावसे रामायणग्रन्थकी पूजा करे॥ १२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आवाहनासनाद्यैश्च गन्धपुष्पादिभिर्व्रती।
ॐ नमो नारायणायेति पूजयेद् भक्तितत्परः॥ १३॥

मूलम्

आवाहनासनाद्यैश्च गन्धपुष्पादिभिर्व्रती।
ॐ नमो नारायणायेति पूजयेद् भक्तितत्परः॥ १३॥

अनुवाद (हिन्दी)

व्रती पुरुष आवाहन, आसन, गन्ध, पुष्प आदिके द्वारा ‘ॐ नमो नारायणाय’ इस मन्त्रसे भक्तिपरायण होकर पूजन करे॥ १३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एकवारं द्विवारं वा त्रिवारं वापि शक्तितः।
होमं कुर्यात् प्रयत्नेन सर्वपापनिवृत्तये॥ १४॥

मूलम्

एकवारं द्विवारं वा त्रिवारं वापि शक्तितः।
होमं कुर्यात् प्रयत्नेन सर्वपापनिवृत्तये॥ १४॥

अनुवाद (हिन्दी)

सम्पूर्ण पापोंकी निवृत्तिके लिये अपनी शक्तिके अनुसार एक, दो या तीन बार प्रयत्नपूर्वक होम करे॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं यः प्रयतः कुर्याद् रामायणविधिं तथा।
स याति विष्णुभवनं पुनरावृत्तिदुर्लभम्॥ १५॥

मूलम्

एवं यः प्रयतः कुर्याद् रामायणविधिं तथा।
स याति विष्णुभवनं पुनरावृत्तिदुर्लभम्॥ १५॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार जो मन और इन्द्रियोंको संयममें रखकर रामायणकी विधिका अनुष्ठान करता है, वह भगवान विष्णुके धाममें जाता है; जहाँसे लौटकर वह फिर इस संसारमें नहीं आता॥ १५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणव्रतधरो धर्मकारी च सत्तमः।
चाण्डालं पतितं वापि वस्त्रान्नेनापि नार्चयेत्॥ १६॥

मूलम्

रामायणव्रतधरो धर्मकारी च सत्तमः।
चाण्डालं पतितं वापि वस्त्रान्नेनापि नार्चयेत्॥ १६॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो रामायणसम्बन्धी व्रतको धारण करनेवाला तथा धर्मात्मा है, वह श्रेष्ठ पुरुष चाण्डाल अथवा पतित मनुष्यका वस्त्र और अन्नसे भी सत्कार न करे॥ १६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नास्तिकान् भिन्नमर्यादान् निन्दकान् पिशुनानपि।
रामायणव्रतपरो वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत्॥ १७॥

मूलम्

नास्तिकान् भिन्नमर्यादान् निन्दकान् पिशुनानपि।
रामायणव्रतपरो वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत्॥ १७॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो नास्तिक, धर्ममर्यादाको तोड़नेवाले, परनिन्दक और चुगलखोर हैं, उनका रामायणव्रतधारी पुरुष वाणीमात्रसे भी आदर न करे॥ १७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुण्डाशिनं गायकं च तथा देवलकाशनम्।
भिषजं काव्यकर्तारं देवद्विजविरोधिनम्॥ १८॥
परान्नलोलुपं चैव परस्त्रीनिरतं तथा।
रामायणव्रतपरो वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत्॥ १९॥

मूलम्

कुण्डाशिनं गायकं च तथा देवलकाशनम्।
भिषजं काव्यकर्तारं देवद्विजविरोधिनम्॥ १८॥
परान्नलोलुपं चैव परस्त्रीनिरतं तथा।
रामायणव्रतपरो वाङ्मात्रेणापि नार्चयेत्॥ १९॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो पतिके जीवित रहते ही परपुरुषके समागमसे माताद्वारा उत्पन्न किया जाता है, उस जारज पुत्रको ‘कुण्ड’ कहते हैं। ऐसे कुण्डके यहाँ जो भोजन करता है, जो गीत गाकर जीविका चलाता है, देवतापर चढ़ी हुई वस्तुका उपभोग करेवाले मनुष्यका अन्न खाता है, वैद्य है, लोगोंकी मिथ्या प्रशंसामें कविता लिखता है, देवताओं तथा ब्राह्मणोंका विरोध करता है, पराये अन्नका लोभी है और पर-स्त्रीमें आसक्त रहता है, ऐसे मनुष्यका भी रामायणव्रती पुरुष वाणीमात्रसे भी आदर न करे॥ १८-१९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्येवमादिभिः शुद्धो वशी सर्वहिते रतः।
रामायणपरो भूत्वा परां सिद्धिं गमिष्यति॥ २०॥

मूलम्

इत्येवमादिभिः शुद्धो वशी सर्वहिते रतः।
रामायणपरो भूत्वा परां सिद्धिं गमिष्यति॥ २०॥

अनुवाद (हिन्दी)

इस प्रकार दोषोंसे दूर एवं शुद्ध होकर जितेन्द्रिय एवं सबके हितमें तत्पर रहते हुए जो रामायणका आश्रय लेता है, वह परमसिद्धिको प्राप्त होता है॥ २०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नास्ति गंगासमं तीर्थं नास्ति मातृसमो गुरुः।
नास्ति विष्णुसमो देवो नास्ति रामायणात् परम्॥ २१॥

मूलम्

नास्ति गंगासमं तीर्थं नास्ति मातृसमो गुरुः।
नास्ति विष्णुसमो देवो नास्ति रामायणात् परम्॥ २१॥

अनुवाद (हिन्दी)

गंगाके समान तीर्थ, माताके तुल्य गुरु, भगवान् विष्णुके सदृश देवता तथा रामायणसे बढ़कर कोई उत्तम वस्तु नहीं है॥ २१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नास्ति वेदसमं शास्त्रं नास्ति शान्तिसमं सुखम्।
नास्ति शान्तिपरं ज्योतिर्नास्ति रामायणात् परम्॥ २२॥

मूलम्

नास्ति वेदसमं शास्त्रं नास्ति शान्तिसमं सुखम्।
नास्ति शान्तिपरं ज्योतिर्नास्ति रामायणात् परम्॥ २२॥

अनुवाद (हिन्दी)

वेदके समान शास्त्र, शान्तिके समान सुख, शान्तिसे बढ़कर ज्योति तथा रामायणसे उत्कृष्ट कोई काव्य नहीं है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नास्ति क्षमासमं सारं नास्ति कीर्तिसमं धनम्।
नास्ति ज्ञानसमो लाभो नास्ति रामायणात् परम्॥ २३॥

मूलम्

नास्ति क्षमासमं सारं नास्ति कीर्तिसमं धनम्।
नास्ति ज्ञानसमो लाभो नास्ति रामायणात् परम्॥ २३॥

अनुवाद (हिन्दी)

क्षमाके सदृश बल, कीर्तिके समान धन, ज्ञानके सदृश लाभ तथा रामायणसे बढ़कर कोई उत्तम ग्रन्थ नहीं है॥ २३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदन्ते वेदविदुषे गां दद्याच्च सदक्षिणाम्।
रामायणं पुस्तकं च वस्त्रालंकरणादिकम्॥ २४॥

मूलम्

तदन्ते वेदविदुषे गां दद्याच्च सदक्षिणाम्।
रामायणं पुस्तकं च वस्त्रालंकरणादिकम्॥ २४॥

अनुवाद (हिन्दी)

रामायणकथाके अन्तमें वेदज्ञ वाचकको दक्षिणासहित गौका दान करे। उन्हें रामायणकी पुस्तक तथा वस्त्र और आभूषण आदि दे॥ २४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणपुस्तकं यो वाचकाय प्रयच्छति।
स याति विष्णुभवनं यत्र गत्वा न शोचति॥ २५॥

मूलम्

रामायणपुस्तकं यो वाचकाय प्रयच्छति।
स याति विष्णुभवनं यत्र गत्वा न शोचति॥ २५॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो वाचकको रामायणकी पुस्तक देता है, वह भगवान् विष्णुके धाममें जाता है; जहाँ जाकर उसे कभी शोक नहीं करना पड़ता॥ २५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नवाहजफलं कर्तुः शृणु धर्मविदां वर।
पञ्चम्यां तु समारभ्य रामायणकथामृतम्॥ २६॥
कथाश्रवणमात्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते।

मूलम्

नवाहजफलं कर्तुः शृणु धर्मविदां वर।
पञ्चम्यां तु समारभ्य रामायणकथामृतम्॥ २६॥
कथाश्रवणमात्रेण सर्वपापैः प्रमुच्यते।

अनुवाद (हिन्दी)

धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ सनत्कुमार! रामायणकी नवाह कथा सुननेसे यजमानको जो फल प्राप्त होता है, उसे सुनो। पञ्चमी तिथिको रामायणकी अमृतमयी कथाको आरम्भ करके उसके श्रवणमात्रसे मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है॥ २६ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यदि द्वयं कृतं तस्य पुण्डरीकफलं लभेत्॥ २७॥
व्रतधारी तु श्रवणं यः कुर्यात् स जितेन्द्रियः।
अश्वमेधस्य यज्ञस्य द्विगुणं फलमश्नुते॥ २८॥
चतुःकृत्वः श्रुतं येन कथितं मुनिसत्तमाः।
स लभेत् परमं पुण्यमग्निष्टोमाष्टसम्भवम्॥ २९॥

मूलम्

यदि द्वयं कृतं तस्य पुण्डरीकफलं लभेत्॥ २७॥
व्रतधारी तु श्रवणं यः कुर्यात् स जितेन्द्रियः।
अश्वमेधस्य यज्ञस्य द्विगुणं फलमश्नुते॥ २८॥
चतुःकृत्वः श्रुतं येन कथितं मुनिसत्तमाः।
स लभेत् परमं पुण्यमग्निष्टोमाष्टसम्भवम्॥ २९॥

अनुवाद (हिन्दी)

यदि दो बार यह कथा श्रवण की गयी तो श्रोताको पुण्डरीकयज्ञका फल मिलता है। जो जितेन्द्रिय पुरुष व्रतधारणपूर्वक रामायण-कथाको श्रवण करता है, वह दो अश्वमेधयज्ञोंका फल पाता है। मुनिवरो! जिसने चार बार इस कथाका श्रवण किया है, वह आठ अग्निष्टोमके परम पुण्यफलका भागी होता है॥ २७—२९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पञ्चकृत्वो व्रतमिदं कृतं येन महात्मना।
अत्यग्निष्टोमजं पुण्यं द्विगुणं प्राप्नुयान्नरः॥ ३०॥

मूलम्

पञ्चकृत्वो व्रतमिदं कृतं येन महात्मना।
अत्यग्निष्टोमजं पुण्यं द्विगुणं प्राप्नुयान्नरः॥ ३०॥

अनुवाद (हिन्दी)

जिस महामनस्वी पुरुषने पाँच बार रामायणकथा-श्रवणका व्रत पूरा कर लिया है, वह अत्यग्निष्टोमयज्ञके द्विगुण पुण्य-फलका भागी होता है॥ ३०॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं व्रतं च षड्वारं कुर्याद् यस्तु समाहितः।
अग्निष्टोमस्य यज्ञस्य फलमष्टगुणं लभेत्॥ ३१॥

मूलम्

एवं व्रतं च षड्वारं कुर्याद् यस्तु समाहितः।
अग्निष्टोमस्य यज्ञस्य फलमष्टगुणं लभेत्॥ ३१॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो एकाग्रचित्त होकर इस प्रकार छः बार रामायण कथाके व्रतका अनुष्ठान पूरा कर लेता है, वह अग्निष्टोमयज्ञके आठगुने फलका भागी होता है॥ ३१॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नारी वा पुरुषः कुर्यादष्टकृत्वो मुनीश्वराः।
नरमेधस्य यज्ञस्य फलं पञ्चगुणं लभेत्॥ ३२॥

मूलम्

नारी वा पुरुषः कुर्यादष्टकृत्वो मुनीश्वराः।
नरमेधस्य यज्ञस्य फलं पञ्चगुणं लभेत्॥ ३२॥

अनुवाद (हिन्दी)

मुनीश्वरो! स्त्री हो या पुरुष, जो आठ बार रामायणकथाको सुन लेता है, वह नरमेधयज्ञका पाँचगुना फल पाता है॥ ३२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नरो वाप्यथ नारी वा नववारं समाचरेत्।
गोमेधसवजं पुण्यं स लभेत् त्रिगुणं नरः॥ ३३॥

मूलम्

नरो वाप्यथ नारी वा नववारं समाचरेत्।
गोमेधसवजं पुण्यं स लभेत् त्रिगुणं नरः॥ ३३॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो स्त्री या पुरुष नौ बार इस व्रतका आचरण करता है, उसे तीन गोमेध-यज्ञका पुण्यफल प्राप्त होता है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणं तु यः कुर्याच्छान्तात्मा प्रयतेन्द्रियः।
स याति परमानन्दं यत्र गत्वा न शोचति॥ ३४॥

मूलम्

रामायणं तु यः कुर्याच्छान्तात्मा प्रयतेन्द्रियः।
स याति परमानन्दं यत्र गत्वा न शोचति॥ ३४॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो पुरुष शान्तचित्त और जितेन्द्रिय होकर रामायणयज्ञका अनुष्ठान करता है, वह उस परमानन्दमय धाममें जाता है, जहाँ जाकर उसे कभी शोक नहीं करना पड़ता॥ ३४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणपरो नित्यं गंगास्नानपरायणः।
धर्ममार्गप्रवक्तारो मुक्ता एवं न संशयः॥ ३५॥

मूलम्

रामायणपरो नित्यं गंगास्नानपरायणः।
धर्ममार्गप्रवक्तारो मुक्ता एवं न संशयः॥ ३५॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो प्रतिदिन रामायणका पाठ अथवा श्रवण करता है, गंगा नहाता है और धर्ममार्गका उपदेश देता है; ऐसे लोग संसारसागरसे मुक्त ही हैं, इसमें संशय नहीं है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यतीनां ब्रह्मचारिणां प्रवीराणां च सत्तमाः।
नवाह्ना किल श्रोतव्या कथा रामायणस्य च॥ ३६॥

मूलम्

यतीनां ब्रह्मचारिणां प्रवीराणां च सत्तमाः।
नवाह्ना किल श्रोतव्या कथा रामायणस्य च॥ ३६॥

अनुवाद (हिन्दी)

महात्माओ! यतियों, ब्रह्मचारियों तथा प्रवीरोंको भी रामायणकी नवाह कथा सुननी चाहिये॥ ३६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रुत्वा नरो रामकथामतिदीप्तोऽतिभक्तितः।
ब्रह्मणः पदमासाद्य तत्रैव परिमोदते॥ ३७॥

मूलम्

श्रुत्वा नरो रामकथामतिदीप्तोऽतिभक्तितः।
ब्रह्मणः पदमासाद्य तत्रैव परिमोदते॥ ३७॥

अनुवाद (हिन्दी)

रामकथाको अत्यन्त भक्तिपूर्वक सुनकर मनुष्य महान् तेजसे उद्दीप्त हो उठता है और ब्रह्मलोकमें जाकर वहीं आनन्दका अनुभव करता है॥ ३७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्माच्छृणुध्वं विप्रेन्द्रा रामायणकथामृतम्।
श्रोतॄणां च परं श्राव्यं पवित्राणामनुत्तमम्॥ ३८॥

मूलम्

तस्माच्छृणुध्वं विप्रेन्द्रा रामायणकथामृतम्।
श्रोतॄणां च परं श्राव्यं पवित्राणामनुत्तमम्॥ ३८॥

अनुवाद (हिन्दी)

इसलिये विप्रेन्द्रगण! आपलोग रामायणकी अमृतमयी कथा सुनिये। श्रोताओंके लिये यह सर्वोत्तम श्रवणीय वस्तु है और पवित्रोंमें भी परम उत्तम है॥ ३८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुःस्वप्ननाशनं धन्यं श्रोतव्यं च प्रयत्नतः।
नरोऽत्र श्रद्धया युक्तः श्लोकं श्लोकार्द्धमेव च॥ ३९॥
पठते मुच्यते सद्यो ह्युपपातककोटिभिः।
सतामेव प्रयोक्तव्यं गुह्याद‍्गुह्यतमं तु यत्॥ ४०॥

मूलम्

दुःस्वप्ननाशनं धन्यं श्रोतव्यं च प्रयत्नतः।
नरोऽत्र श्रद्धया युक्तः श्लोकं श्लोकार्द्धमेव च॥ ३९॥
पठते मुच्यते सद्यो ह्युपपातककोटिभिः।
सतामेव प्रयोक्तव्यं गुह्याद‍्गुह्यतमं तु यत्॥ ४०॥

अनुवाद (हिन्दी)

दुःस्वप्नको नष्ट करनेवाली यह कथा धन्य है। इसे प्रयत्नपूर्वक सुनना चाहिये। जो मनुष्य श्रद्धायुक्त होकर इसका एक श्लोक या आधा श्लोक भी पढ़ता है, वह तत्काल ही करोड़ों उपपातकोंसे छुटकारा पा जाता है। यह गुह्यसे भी गुह्यतम वस्तु है, इसे सत्पुरुषोंको ही सुनाना चाहिये॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वाचयेद् रामभवने पुण्यक्षेत्रे च संसदि।
ब्रह्मद्वेषरतानां च दम्भाचाररतात्मनाम्॥ ४१॥
लोकवञ्चकवृत्तीनां न ब्रूयादिदमुत्तमम्।

मूलम्

वाचयेद् रामभवने पुण्यक्षेत्रे च संसदि।
ब्रह्मद्वेषरतानां च दम्भाचाररतात्मनाम्॥ ४१॥
लोकवञ्चकवृत्तीनां न ब्रूयादिदमुत्तमम्।

अनुवाद (हिन्दी)

भगवान् श्रीरामके मन्दिरमें अथवा किसी पुण्यक्षेत्रमें, सत्पुरुषोंकी सभामें रामायणकथाका प्रवचन करना चाहिये। जो ब्रह्मद्रोही, पाखण्डपूर्ण आचारमें तत्पर तथा लोगोंको ठगनेवाली वृत्तिसे युक्त हैं, उन्हें यह परम उत्तम कथा नहीं सुनानी चाहिये॥ ४१ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

त्यक्तकामादिदोषाणां रामभक्तिरतात्मनाम्॥ ४२॥
गुरुभक्तिरतानां च वक्तव्यं मोक्षसाधनम्।

मूलम्

त्यक्तकामादिदोषाणां रामभक्तिरतात्मनाम्॥ ४२॥
गुरुभक्तिरतानां च वक्तव्यं मोक्षसाधनम्।

अनुवाद (हिन्दी)

जो काम आदि दोषोंका त्याग कर चुके हैं, जिनका मन रामभक्तिमें अनुरक्त रहता है तथा जो गुरुजनोंकी सेवामें तत्पर हैं, उन्हींके समक्ष यह मोक्षकी साधनभूत कथा बाँचनी चाहिये॥ ४२ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सर्वदेवमयो रामः स्मृतश्चार्त्तिप्रणाशनः॥ ४३॥
सद्भक्तवत्सलो देवो भक्त्या तुष्यति नान्यथा।

मूलम्

सर्वदेवमयो रामः स्मृतश्चार्त्तिप्रणाशनः॥ ४३॥
सद्भक्तवत्सलो देवो भक्त्या तुष्यति नान्यथा।

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीराम सर्वदेवमय माने गये हैं। वे आर्त प्राणियोंकी पीड़ाका नाश करनेवाले हैं तथा श्रेष्ठ भक्तोंपर सदा ही स्नेह रखते हैं। वे भगवान् भक्तिसे ही संतुष्ट होते हैं, दूसरे किसी उपायसे नहीं॥ ४३ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

अवशेनापि यन्नाम्नि कीर्तिते वा स्मृतेऽपि वा॥ ४४॥
विमुक्तपातकः सोऽपि परमं पदमश्नुते।

मूलम्

अवशेनापि यन्नाम्नि कीर्तिते वा स्मृतेऽपि वा॥ ४४॥
विमुक्तपातकः सोऽपि परमं पदमश्नुते।

अनुवाद (हिन्दी)

मनुष्य विवश होकर भी उनके नामका कीर्तन अथवा स्मरण कर लेनेपर समस्त पातकोंसे मुक्त हो परमपदका भागी होता है॥ ४४ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

संसारघोरकान्तारदावाग्निर्मधुसूदनः॥ ४५॥
स्मर्तॄणां सर्वपापानि नाशयत्याशु सत्तमाः।

मूलम्

संसारघोरकान्तारदावाग्निर्मधुसूदनः॥ ४५॥
स्मर्तॄणां सर्वपापानि नाशयत्याशु सत्तमाः।

अनुवाद (हिन्दी)

महात्माओ! भगवान् मधुसूदन संसाररूपी भयंकर एवं दुर्गम वनको भस्म करनेके लिये दावानलके समान हैं। वे अपना स्मरण करनेवाले मनुष्योंके समस्त पापोंका शीघ्र ही नाश कर देते हैं॥ ४५ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदर्थकमिदं पुण्यं काव्यं श्राव्यमनुत्तमम्॥ ४६॥
श्रवणात् पठनाद् वापि सर्वपापविनाशकृत्।

मूलम्

तदर्थकमिदं पुण्यं काव्यं श्राव्यमनुत्तमम्॥ ४६॥
श्रवणात् पठनाद् वापि सर्वपापविनाशकृत्।

अनुवाद (हिन्दी)

इस पवित्र काव्यके प्रतिपाद्य विषय वे ही हैं, अतः यह परम उत्तम काव्य सदा ही श्रवण करनेयोग्य है। इसका श्रवण अथवा पाठ करनेसे यह समस्त पापोंका नाश करनेवाला है॥ ४६ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्य रामरसे प्रीतिर्वर्तते भक्तिसंयुता॥ ४७॥
स एव कृतकृत्यश्च सर्वशास्त्रार्थकोविदः।

मूलम्

यस्य रामरसे प्रीतिर्वर्तते भक्तिसंयुता॥ ४७॥
स एव कृतकृत्यश्च सर्वशास्त्रार्थकोविदः।

अनुवाद (हिन्दी)

जिसकी श्रीराम-रसमें प्रीति एवं भक्ति है, वही सम्पूर्ण शास्त्रोंके अर्थज्ञानमें निपुण और कृतकृत्य है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तदर्जितं तपः पुण्यं तत्सत्यं सफलं द्विजाः॥ ४८॥
यदर्थश्रवणे प्रीतिरन्यथा न हि वर्तते।

मूलम्

तदर्जितं तपः पुण्यं तत्सत्यं सफलं द्विजाः॥ ४८॥
यदर्थश्रवणे प्रीतिरन्यथा न हि वर्तते।

अनुवाद (हिन्दी)

ब्राह्मणो! उसकी उपार्जित की हुई तपस्या पवित्र, सत्य और सफल है; क्योंकि राम-रसमें प्रीति हुए बिना रामायणके अर्थ-श्रवणमें प्रेम नहीं होता है॥ ४८ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणपरा ये तु रामनामपरायणाः॥ ४९॥
त एव कृतकृत्याश्च घोरे कलियुगे द्विजाः।

मूलम्

रामायणपरा ये तु रामनामपरायणाः॥ ४९॥
त एव कृतकृत्याश्च घोरे कलियुगे द्विजाः।

अनुवाद (हिन्दी)

जो द्विज इस भयंकर कलिकालमें रामायण तथा श्रीरामनामका सहारा लेते हैं, वे ही कृतकृत्य हैं॥ ४९ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नवाह्ना किल श्रोतव्यं रामायणकथामृतम्॥ ५०॥
ते कृतज्ञा महात्मानस्तेभ्यो नित्यं नमो नमः।

मूलम्

नवाह्ना किल श्रोतव्यं रामायणकथामृतम्॥ ५०॥
ते कृतज्ञा महात्मानस्तेभ्यो नित्यं नमो नमः।

अनुवाद (हिन्दी)

रामायणकी इस अमृतमयी कथाका नवाह श्रवण करना चाहिये। जो महात्मा ऐसा करते हैं, वे कृतज्ञ हैं। उन्हें प्रतिदिन मेरा बारम्बार नमस्कार है॥ ५० १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामनामैव नामैव नामैव मम जीवनम्॥ ५१॥
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।

मूलम्

रामनामैव नामैव नामैव मम जीवनम्॥ ५१॥
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामका नाम—केवल श्रीराम-नाम ही मेरा जीवन है। कलियुगमें और किसी उपायसे जीवोंकी सद‍्गति नहीं होती, नहीं होती, नहीं होती॥ ५१ १/२॥

मूलम् (वचनम्)

सूत उवाच

विश्वास-प्रस्तुतिः

एवं सनत्कुमारस्तु नारदेन महात्मना॥ ५२॥
सम्यक् प्रबोधितः सद्यः परां निर्वृतिमाप ह।

मूलम्

एवं सनत्कुमारस्तु नारदेन महात्मना॥ ५२॥
सम्यक् प्रबोधितः सद्यः परां निर्वृतिमाप ह।

अनुवाद (हिन्दी)

सूतजी कहते हैं—महात्मा नारदजीके द्वारा इस प्रकार ज्ञानोपदेश पाकर सनत्कुमारजीको तत्काल ही परमानन्दकी प्राप्ति हो गयी॥ ५२ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्माच्छृणुध्वं विप्रेन्द्रा रामायणकथामृतम्॥ ५३॥
नवाह्ना किल श्रोतव्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।

मूलम्

तस्माच्छृणुध्वं विप्रेन्द्रा रामायणकथामृतम्॥ ५३॥
नवाह्ना किल श्रोतव्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।

अनुवाद (हिन्दी)

अतः विप्रवरो! तुम सब लोग रामायणकी अमृतमयी कथा सुनो। रामायणको नौ दिनोंमें ही सुनना चाहिये। ऐसा करनेवाला समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है॥ ५३ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

श्रुत्वा चैतन्महाकाव्यं वाचकं यस्तु पूजयेत्॥ ५४॥
तस्य विष्णुः प्रसन्नः स्यात् श्रिया सह द्विजोत्तमाः।

मूलम्

श्रुत्वा चैतन्महाकाव्यं वाचकं यस्तु पूजयेत्॥ ५४॥
तस्य विष्णुः प्रसन्नः स्यात् श्रिया सह द्विजोत्तमाः।

अनुवाद (हिन्दी)

द्विजोत्तमो! इस महान् काव्यको सुनकर जो वाचककी पूजा करता है, उसपर लक्ष्मीसहित भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं॥ ५४ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

वाचके प्रीतिमापन्ने ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः॥ ५५॥
प्रीता भवन्ति विप्रेन्द्रा नात्र कार्या विचारणा।

मूलम्

वाचके प्रीतिमापन्ने ब्रह्मविष्णुमहेश्वराः॥ ५५॥
प्रीता भवन्ति विप्रेन्द्रा नात्र कार्या विचारणा।

अनुवाद (हिन्दी)

विप्रेन्द्रगण! वाचकके प्रसन्न होनेपर ब्रह्मा, विष्णु और महादेवजी प्रसन्न हो जाते हैं। इस विषयमें कोई अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये॥ ५५ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणवाचकाय गावो वासांसि काञ्चनम्॥ ५६॥
रामायणपुस्तकं च दद्याद् वित्तानुसारतः।

मूलम्

रामायणवाचकाय गावो वासांसि काञ्चनम्॥ ५६॥
रामायणपुस्तकं च दद्याद् वित्तानुसारतः।

अनुवाद (हिन्दी)

रामायणके वाचकको अपने वैभवके अनुसार गौ, वस्त्र, सुवर्ण तथा रामायणकी पुस्तक आदि वस्तुएँ देनी चाहिये॥ ५६ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तस्य पुण्यफलं वक्ष्ये शृणुध्वं सुसमाहिताः॥ ५७॥
न बाधन्ते ग्रहास्तस्य भूतवेतालकादयः।
तस्यैव सर्वश्रेयांसि वर्द्धन्ते चरिते श्रुते॥ ५८॥

मूलम्

तस्य पुण्यफलं वक्ष्ये शृणुध्वं सुसमाहिताः॥ ५७॥
न बाधन्ते ग्रहास्तस्य भूतवेतालकादयः।
तस्यैव सर्वश्रेयांसि वर्द्धन्ते चरिते श्रुते॥ ५८॥

अनुवाद (हिन्दी)

उस दानका पुण्यफल बता रहा हूँ, आपलोग एकाग्रचित्त होकर सुनें। उस दाताको ग्रह तथा भूत-वेताल आदि कभी बाधा नहीं पहुँचाते। श्रीरामचरित्रका श्रवण करनेपर श्रोताके सम्पूर्ण श्रेयकी वृद्धि होती है॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

न चाग्निर्बाधते तस्य न चौरादिभयं तथा।
एतज्जन्मार्जितैः पापैः सद्य एव विमुच्यते॥ ५९॥
सप्तवंशसमेतस्तु देहान्ते मोक्षमाप्नुयात्।

मूलम्

न चाग्निर्बाधते तस्य न चौरादिभयं तथा।
एतज्जन्मार्जितैः पापैः सद्य एव विमुच्यते॥ ५९॥
सप्तवंशसमेतस्तु देहान्ते मोक्षमाप्नुयात्।

अनुवाद (हिन्दी)

उसे न तो अग्निकी बाधा प्राप्त होती है और न चोर आदिका भय ही। वह इस जन्ममें उपार्जित किये हुए समस्त पापोंसे तत्काल मुक्त हो जाता है। वह इस शरीरका अन्त होनेपर अपनी सात पीढ़ियोंके साथ मोक्षका भागी होता है॥ ५९ १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इत्येतद्वः समाख्यातं नारदेन प्रभाषितम्॥ ६०॥
सनत्कुमारमुनये पृच्छते भक्तितः पुरा।

मूलम्

इत्येतद्वः समाख्यातं नारदेन प्रभाषितम्॥ ६०॥
सनत्कुमारमुनये पृच्छते भक्तितः पुरा।

अनुवाद (हिन्दी)

पूर्वकालमें सनत्कुमार मुनिके भक्तिपूर्वक पूछनेपर नारदजीने उनसे जो कुछ कहा था, वह सब मैंने आपलोगोंको बता दिया॥ ६० १/२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामायणमादिकाव्यं सर्ववेदार्थसम्मतम्॥ ६१॥
सर्वपापहरं पुण्यं सर्वदुःखनिबर्हणम्।
समस्तपुण्यफलदं सर्वयज्ञफलप्रदम्॥ ६२॥

मूलम्

रामायणमादिकाव्यं सर्ववेदार्थसम्मतम्॥ ६१॥
सर्वपापहरं पुण्यं सर्वदुःखनिबर्हणम्।
समस्तपुण्यफलदं सर्वयज्ञफलप्रदम्॥ ६२॥

अनुवाद (हिन्दी)

रामायण आदिकाव्य है। यह सम्पूर्ण वेदार्थोंकी सम्मतिके अनुकूल है। इसके द्वारा समस्त पापोंका निवारण हो जाता है। यह पुण्यमय काव्य सम्पूर्ण दुःखोंका विनाशक तथा समस्त पुण्यों और यज्ञोंका फल देनेवाला है॥ ६१-६२॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

ये पठन्त्यत्र विबुधाः श्लोकं श्लोकार्द्धमेव च।
न तेषां पापबन्धस्तु कदाचिदपि जायते॥ ६३॥

मूलम्

ये पठन्त्यत्र विबुधाः श्लोकं श्लोकार्द्धमेव च।
न तेषां पापबन्धस्तु कदाचिदपि जायते॥ ६३॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो विद्वान् इसके एक या आधे श्लोकका भी पाठ करते हैं, उन्हें कभी पापोंका बन्धन नहीं प्राप्त होता॥ ६३॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामार्पितमिदं पुण्यं काव्यं तु सर्वकामदम्।
भक्त्या शृण्वन्ति विदन्ति तेषां पुण्यफलं शृणु॥ ६४॥

मूलम्

रामार्पितमिदं पुण्यं काव्यं तु सर्वकामदम्।
भक्त्या शृण्वन्ति विदन्ति तेषां पुण्यफलं शृणु॥ ६४॥

अनुवाद (हिन्दी)

श्रीरामको समर्पित किया हुआ यह पुण्यकाव्य सम्पूर्ण कामनाओंको देनेवाला है। जो लोग भक्तिपूर्वक इसे सुनते और समझते हैं, उनको प्राप्त होनेवाले पुण्यफलका वर्णन सुनो॥ ६४॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

शतजन्मार्जितैः पापैः सद्य एव विमोचिताः।
सहस्रकुलसंयुक्तैः प्रयान्ति परमं पदम्॥ ६५॥

मूलम्

शतजन्मार्जितैः पापैः सद्य एव विमोचिताः।
सहस्रकुलसंयुक्तैः प्रयान्ति परमं पदम्॥ ६५॥

अनुवाद (हिन्दी)

वे लोग सौ जन्मोंमें उपार्जित किये हुए पापोंसे तत्काल मुक्त हो अपनी हजारों पीढ़ियोंके साथ परमपदको प्राप्त होते हैं॥ ६५॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

किं तीर्थैर्गोप्रदानैर्वा किं तपोभिः किमध्वरैः।
अहन्यहनि रामस्य कीर्तनं परिशृण्वताम्॥ ६६॥

मूलम्

किं तीर्थैर्गोप्रदानैर्वा किं तपोभिः किमध्वरैः।
अहन्यहनि रामस्य कीर्तनं परिशृण्वताम्॥ ६६॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो प्रतिदिन श्रीरामका कीर्तन सुनते हैं, उनके लिये तीर्थ-सेवन, गोदान, तपस्या तथा यज्ञोंकी क्या आवश्यकता है॥ ६६॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

चैत्रे माघे कार्तिके च रामायणकथामृतम्।
नवैरहोभिः श्रोतव्यं रामायणकथामृतम्॥ ६७॥

मूलम्

चैत्रे माघे कार्तिके च रामायणकथामृतम्।
नवैरहोभिः श्रोतव्यं रामायणकथामृतम्॥ ६७॥

अनुवाद (हिन्दी)

चैत्र, माघ तथा कार्तिकमें रामायणकी अमृतमयी कथाका नवाह-पारायण सुनना चाहिये॥ ६७॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामप्रसादजनकं रामभक्तिविवर्धनम्।
सर्वपापक्षयकरं सर्वसम्पद्विवर्द्धनम्॥ ६८॥

मूलम्

रामप्रसादजनकं रामभक्तिविवर्धनम्।
सर्वपापक्षयकरं सर्वसम्पद्विवर्द्धनम्॥ ६८॥

अनुवाद (हिन्दी)

रामायण श्रीरामचन्द्रजीकी प्रसन्नता प्राप्त करानेवाला, श्रीरामभक्तिको बढ़ानेवाला, समस्त पापोंका विनाशक तथा सभी सम्पत्तियोंकी वृद्धि करनेवाला है॥ ६८॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

यस्त्वेतच्छृणुयाद् वापि पठेद् वा सुसमाहितः।
सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति॥ ६९॥

मूलम्

यस्त्वेतच्छृणुयाद् वापि पठेद् वा सुसमाहितः।
सर्वपापविनिर्मुक्तो विष्णुलोकं स गच्छति॥ ६९॥

अनुवाद (हिन्दी)

जो एकाग्रचित्त होकर रामायणको सुनता अथवा पढ़ता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो भगवान् विष्णुके लोकमें जाता है॥ ६९॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

इति श्रीस्कन्दपुराणे उत्तरखण्डे नारदसनत्कुमारसंवादे रामायणमाहात्म्ये फलानुकीर्तनं नाम पञ्चमोऽध्यायः॥ ५॥

मूलम्

इति श्रीस्कन्दपुराणे उत्तरखण्डे नारदसनत्कुमारसंवादे रामायणमाहात्म्ये फलानुकीर्तनं नाम पञ्चमोऽध्यायः॥ ५॥

अनुवाद (समाप्ति)

इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराणके उत्तरखण्डमें श्रीनारद-सनत्कुमार-संवादके अन्तर्गत रामायणमाहात्म्यके प्रसंगमें फलका वर्णन नामक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ ५॥