भागसूचना
- कलियुगकी स्थिति, कलिकालके मनुष्योंके उद्धारका उपाय, रामायणपाठ, उसकी महिमा, उसके श्रवणके लिये उत्तम काल आदिका वर्णन
विश्वास-प्रस्तुतिः
श्रीरामः शरणं समस्तजगतां
रामं विना का गती
रामेण प्रतिहन्यते कलिमलं
रामाय कार्यं नमः।
रामात् त्रस्यति कालभीमभुजगो
रामस्य सर्वं वशे
रामे भक्तिरखण्डिता भवतु मे
राम त्वमेवाश्रयः*॥ १॥
मूलम्
श्रीरामः शरणं समस्तजगतां
रामं विना का गती
रामेण प्रतिहन्यते कलिमलं
रामाय कार्यं नमः।
रामात् त्रस्यति कालभीमभुजगो
रामस्य सर्वं वशे
रामे भक्तिरखण्डिता भवतु मे
राम त्वमेवाश्रयः*॥ १॥
अनुवाद (हिन्दी)
श्रीरामचन्द्रजी समस्त संसारको शरण देनेवाले हैं। श्रीरामके बिना दूसरी कौन-सी गति है। श्रीराम कलियुगके समस्त दोषोंको नष्ट कर देते हैं; अतः श्रीरामचन्द्रजीको नमस्कार करना चाहिये। श्रीरामसे कालरूपी भयंकर सर्प भी डरता है। जगत् का सब कुछ भगवान् श्रीरामके वशमें है। श्रीराममें मेरी अखण्ड भक्ति बनी रहे। हे राम! आप ही मेरे आधार हैं॥ १॥
पादटिप्पनी
- इस श्लोकमें सम्बोधनसहित सभी विभक्तियोंमें ‘राम’ शब्दके रूप आ गये हैं।
विश्वास-प्रस्तुतिः
चित्रकूटालयं राममिन्दिरानन्दमन्दिरम्।
वन्दे च परमानन्दं भक्तानामभयप्रदम्॥ २॥
मूलम्
चित्रकूटालयं राममिन्दिरानन्दमन्दिरम्।
वन्दे च परमानन्दं भक्तानामभयप्रदम्॥ २॥
अनुवाद (हिन्दी)
चित्रकूटमें निवास करनेवाले, भगवती लक्ष्मी (सीता) के आनन्दनिकेतन और भक्तोंको अभय देनेवाले परमानन्दस्वरूप भगवान् श्रीरामचन्द्रजीको मैं नमस्कार करता हूँ॥ २॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्रह्मविष्णुमहेशाद्या यस्यांशा लोकसाधकाः।
नमामि देवं चिद्रूपं विशुद्धं परमं भजे॥ ३॥
मूलम्
ब्रह्मविष्णुमहेशाद्या यस्यांशा लोकसाधकाः।
नमामि देवं चिद्रूपं विशुद्धं परमं भजे॥ ३॥
अनुवाद (हिन्दी)
सम्पूर्ण जगत् के अभीष्ट मनोरथोंको सिद्ध करनेवाले (अथवा सृष्टि, पालन एवं संहारके द्वारा जगत् की व्यावहारिक सत्ताको सिद्ध करनेवाले), ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवता जिनके अभिन्न अंशमात्र हैं, उन परम विशुद्ध सच्चिदानन्दमय परमात्मदेव श्रीरामचन्द्रजीको मैं नमस्कार करता हूँ तथा उन्हींके भजन-चिन्तनमें मन लगाता हूँ॥
मूलम् (वचनम्)
ऋषय ऊचुः
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगवन् सर्वमाख्यातं यत् पृष्टं विदुषा त्वया।
संसारपाशबद्धानां दुःखानि सुबहूनि च॥ ४॥
मूलम्
भगवन् सर्वमाख्यातं यत् पृष्टं विदुषा त्वया।
संसारपाशबद्धानां दुःखानि सुबहूनि च॥ ४॥
अनुवाद (हिन्दी)
ऋषियोंने कहा—भगवन्! आप विद्वान् हैं, ज्ञानी हैं। हमने जो कुछ पूछा था, वह सब आपने हमें भलीभाँति बताया है। संसार-बन्धनमें बँधे हुए जीवोंके दुःख बहुत हैं॥ ४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
एतत्संसारपाशस्यच्छेदकः कतमः स्मृतः।
कलौ वेदोक्तमार्गाश्च नश्यन्तीति त्वयोदिताः॥ ५॥
मूलम्
एतत्संसारपाशस्यच्छेदकः कतमः स्मृतः।
कलौ वेदोक्तमार्गाश्च नश्यन्तीति त्वयोदिताः॥ ५॥
अनुवाद (हिन्दी)
इस संसारबन्धनका उच्छेद करनेवाला कौन है? आपने कहा है कि कलियुगमें वेदोक्त मार्ग नष्ट हो जायँगे॥ ५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अधर्मनिरतानां च यातनाश्च प्रकीर्तिताः।
घोरे कलियुगे प्राप्ते वेदमार्गबहिष्कृते॥ ६॥
पाखण्डत्वं प्रसिद्धं वै सर्वैश्च परिकीर्तितम्।
मूलम्
अधर्मनिरतानां च यातनाश्च प्रकीर्तिताः।
घोरे कलियुगे प्राप्ते वेदमार्गबहिष्कृते॥ ६॥
पाखण्डत्वं प्रसिद्धं वै सर्वैश्च परिकीर्तितम्।
अनुवाद (हिन्दी)
अधर्मपरायण पुरुषोंको प्राप्त होनेवाली यातनाओंका भी आपने वर्णन किया है। घोर कलियुग आनेपर जब वेदोक्त मार्ग लुप्त हो जायँगे, उस समय पाखण्ड फैल जायगा—यह बात प्रसिद्ध है। प्रायः सभी लोगोंने ऐसी बात कही है॥ ६ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कामार्त्ता ह्रस्वदेहाश्च लुब्धा अन्योन्यतत्पराः॥ ७॥
कलौ सर्वे भविष्यन्ति स्वल्पायुर्बहुपुत्रकाः।
मूलम्
कामार्त्ता ह्रस्वदेहाश्च लुब्धा अन्योन्यतत्पराः॥ ७॥
कलौ सर्वे भविष्यन्ति स्वल्पायुर्बहुपुत्रकाः।
अनुवाद (हिन्दी)
कलियुगके सभी लोग कामवेदनासे पीड़ित, नाटे शरीरके और लोभी होंगे तथा धर्म और ईश्वरका आश्रय छोड़कर आपसमें एक-दूसरेपर ही निर्भर रहनेवाले होंगे। प्रायः सब लोग थोड़ी आयु और अधिक संतानवाले होंगे*॥ ७ १/२॥
पादटिप्पनी
- किसी-किसी प्रतिमें ‘स्वल्पायुर्बहुपुत्रकाः’ के स्थानमें ‘स्वल्परायोर्बहुप्रजाः’ पाठ है। इसके अनुसार कलियुगमें प्रायः सब लोग थोड़े धन और अधिक संतानवाले होंगे; ऐसा अर्थ समझना चाहिये।
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्त्रियः स्वपोषणपरा वेश्याचरणतत्पराः॥ ८॥
पतिवाक्यमनादृत्य सदान्यगृहतत्पराः।
दुःशीलेषु करिष्यन्ति पुरुषेषु सदा स्पृहाम्॥ ९॥
मूलम्
स्त्रियः स्वपोषणपरा वेश्याचरणतत्पराः॥ ८॥
पतिवाक्यमनादृत्य सदान्यगृहतत्पराः।
दुःशीलेषु करिष्यन्ति पुरुषेषु सदा स्पृहाम्॥ ९॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस युगकी स्त्रियाँ अपने ही शरीरके पोषणमें तत्पर और वेश्याओंके समान आचरणमें प्रवृत्त होंगी। वे अपने पतिकी आज्ञाका अनादर करके सदा दूसरोंके घर जाया-आया करेंगी। दुराचारी पुरुषोंसे मिलनेकी सदैव अभिलाषा करेंगी॥ ८-९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
असद्वार्त्ता भविष्यन्ति पुरुषेषु कुलांगनाः।
परुषानृतभाषिण्यो देहसंस्कारवर्जिताः॥ १०॥
मूलम्
असद्वार्त्ता भविष्यन्ति पुरुषेषु कुलांगनाः।
परुषानृतभाषिण्यो देहसंस्कारवर्जिताः॥ १०॥
अनुवाद (हिन्दी)
उत्तम कुलकी स्त्रियाँ भी परपुरुषोंके निकट ओछी बातें करनेवाली होंगी, कठोर और असत्य बोलेंगी तथा शरीरको शुद्ध और सुसंस्कृत बनाये रखनेके सद्गुणोंसे वञ्चित होंगी॥ १०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वाचालाश्च भविष्यन्ति कलौ प्रायेण योषितः।
भिक्षवश्चापि मित्रादिस्नेहसम्बन्धयन्त्रिताः॥ ११॥
मूलम्
वाचालाश्च भविष्यन्ति कलौ प्रायेण योषितः।
भिक्षवश्चापि मित्रादिस्नेहसम्बन्धयन्त्रिताः॥ ११॥
अनुवाद (हिन्दी)
कलियुगमें अधिकांश स्त्रियाँ वाचाल (व्यर्थ बकवास करनेवाली) होंगी। भिक्षासे जीवन-निर्वाह करनेवाले संन्यासी भी मित्र आदिके स्नेह-सम्बन्धमें बँधे रहनेवाले होंगे॥ ११॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अन्नोपाधिनिमित्तेन शिष्यान् बध्नन्ति लोलुपाः।
उभाभ्यामपि पाणिभ्यां शिरःकण्डूयनं स्त्रियः॥ १२॥
कुर्वन्त्यो गृहभर्तॄणामाज्ञां भेत्स्यन्त्यतन्द्रिताः।
मूलम्
अन्नोपाधिनिमित्तेन शिष्यान् बध्नन्ति लोलुपाः।
उभाभ्यामपि पाणिभ्यां शिरःकण्डूयनं स्त्रियः॥ १२॥
कुर्वन्त्यो गृहभर्तॄणामाज्ञां भेत्स्यन्त्यतन्द्रिताः।
अनुवाद (हिन्दी)
वे भोजनके लिये चिन्तित होनेके कारण लोभवश शिष्योंका संग्रह करेंगे। स्त्रियाँ दोनों हाथोंसे सिर खुजलाती हुई गृहपतिकी आज्ञाका जान-बूझकर उल्लङ्घन करेंगी॥ १२ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पाखण्डालापनिरताः पाखण्डजनसंगिनः॥ १३॥
यदा द्विजा भविष्यन्ति तदा वृद्धिं गतः कलिः।
मूलम्
पाखण्डालापनिरताः पाखण्डजनसंगिनः॥ १३॥
यदा द्विजा भविष्यन्ति तदा वृद्धिं गतः कलिः।
अनुवाद (हिन्दी)
जब ब्राह्मण पाखण्डी लोगोंके साथ रहकर पाखण्डपूर्ण बातें करने लगें, तब जानना चाहिये कि कलियुग खूब बढ़ गया॥ १३ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
घोरे कलियुगे ब्रह्मन् जनानां पापकर्मिणाम्॥ १४॥
मनःशुद्धिविहीनानां निष्कृतिश्च कथं भवेत्।
मूलम्
घोरे कलियुगे ब्रह्मन् जनानां पापकर्मिणाम्॥ १४॥
मनःशुद्धिविहीनानां निष्कृतिश्च कथं भवेत्।
अनुवाद (हिन्दी)
ब्रह्मन्! इस प्रकार घोर कलियुग आनेपर सदा पाप-परायण रहनेके कारण जिनका अन्तःकरण शुद्ध नहीं हो सकेगा, उन लोगोंकी मुक्ति कैसे होगी?॥ १४ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यथा तुष्यति देवेशो देवदेवो जगद्गुरुः॥ १५॥
ततो वदस्व सर्वज्ञ सूत धर्मभृतां वर।
मूलम्
यथा तुष्यति देवेशो देवदेवो जगद्गुरुः॥ १५॥
ततो वदस्व सर्वज्ञ सूत धर्मभृतां वर।
अनुवाद (हिन्दी)
धर्मात्माओंमें श्रेष्ठ सर्वज्ञ सूतजी! देवाधिदेव देवेश्वर जगद्गुरु भगवान् श्रीरामचन्द्रजी जिस प्रकार संतुष्ट हों, वह उपाय हमें बताइये॥ १५ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वद सूत मुनिश्रेष्ठ सर्वमेतदशेषतः॥ १६॥
कस्य नो जायते तुष्टिः सूत त्वद्वचनामृतात्॥ १७॥
मूलम्
वद सूत मुनिश्रेष्ठ सर्वमेतदशेषतः॥ १६॥
कस्य नो जायते तुष्टिः सूत त्वद्वचनामृतात्॥ १७॥
अनुवाद (हिन्दी)
मुनिश्रेष्ठ सूतजी! इन सारी बातोंपर आप पूर्णरूपसे प्रकाश डालिये। आपके वचनामृतका पान करनेसे किसको संतोष नहीं होता है॥ १६-१७॥
मूलम् (वचनम्)
सूत उवाच
विश्वास-प्रस्तुतिः
शृणुध्वमृषयः सर्वे यदिष्टं वो वदाम्यहम्।
गीतं सनत्कुमाराय नारदेन महात्मना॥ १८॥
रामायणं महाकाव्यं सर्ववेदेषु सम्मतम्।
सर्वपापप्रशमनं दुष्टग्रहनिवारणम्॥ १९॥
मूलम्
शृणुध्वमृषयः सर्वे यदिष्टं वो वदाम्यहम्।
गीतं सनत्कुमाराय नारदेन महात्मना॥ १८॥
रामायणं महाकाव्यं सर्ववेदेषु सम्मतम्।
सर्वपापप्रशमनं दुष्टग्रहनिवारणम्॥ १९॥
अनुवाद (हिन्दी)
सूतजीने कहा—मुनिवरो! आप सब लोग सुनिये। आपको जो सुनना अभीष्ट है, वह मैं बताता हूँ। महात्मा नारदजीने सनत्कुमारको जिस रामायण नामक महाकाव्यका गान सुनाया था, वह समस्त पापोंका नाश और दुष्ट ग्रहोंकी बाधाका निवारण करनेवाला है। वह सम्पूर्ण वेदार्थोंकी सम्मतिके अनुकूल है॥ १८-१९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुःस्वप्ननाशनं धन्यं भुक्तिमुक्तिफलप्रदम्।
रामचन्द्रकथोपेतं सर्वकल्याणसिद्धिदम्॥ २०॥
मूलम्
दुःस्वप्ननाशनं धन्यं भुक्तिमुक्तिफलप्रदम्।
रामचन्द्रकथोपेतं सर्वकल्याणसिद्धिदम्॥ २०॥
अनुवाद (हिन्दी)
उससे समस्त दुःस्वप्नोंका नाश हो जाता है। वह धन्यवादके योग्य तथा भोग और मोक्षरूप फल प्रदान करनेवाला है। उसमें भगवान् श्रीरामचन्द्रजीकी लीला-कथाका वर्णन है। वह काव्य अपने पाठक और श्रोताओंके लिये समस्त कल्याणमयी सिद्धियोंको देनेवाला है॥ २०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धर्मार्थकाममोक्षाणां हेतुभूतं महाफलम्।
अपूर्वं पुण्यफलदं शृणुध्वं सुसमाहिताः॥ २१॥
मूलम्
धर्मार्थकाममोक्षाणां हेतुभूतं महाफलम्।
अपूर्वं पुण्यफलदं शृणुध्वं सुसमाहिताः॥ २१॥
अनुवाद (हिन्दी)
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष—इन चारों पुरुषार्थोंका साधक है, महान् फल देनेवाला है। यह अपूर्व काव्य पुण्यमय फल प्रदान करनेकी शक्ति रखता है। आपलोग एकाग्रचित्त होकर इसे श्रवण करें॥ २१॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
महापातकयुक्तो वा युक्तो वा सर्वपातकैः।
श्रुत्वैतदार्षं दिव्यं हि काव्यं शुद्धिमवाप्नुयात्॥ २२॥
रामायणेन वर्तन्ते सुतरां ये जगद्धिताः।
त एव कृतकृत्याश्च सर्वशास्त्रार्थकोविदाः॥ २३॥
मूलम्
महापातकयुक्तो वा युक्तो वा सर्वपातकैः।
श्रुत्वैतदार्षं दिव्यं हि काव्यं शुद्धिमवाप्नुयात्॥ २२॥
रामायणेन वर्तन्ते सुतरां ये जगद्धिताः।
त एव कृतकृत्याश्च सर्वशास्त्रार्थकोविदाः॥ २३॥
अनुवाद (हिन्दी)
महान् पातकों अथवा सम्पूर्ण उपपातकोंसे युक्त मनुष्य भी उस ऋषिप्रणीत दिव्य काव्यका श्रवण करनेसे शुद्धि (अथवा सिद्धि) प्राप्त कर लेता है। सम्पूर्ण जगत् के हित-साधनमें लगे रहनेवाले जो मनुष्य सदा रामायणके अनुसार बर्ताव करते हैं, वे ही सम्पूर्ण शास्त्रोंके मर्मको समझनेवाले और कृतार्थ हैं॥ २२-२३॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धर्मार्थकाममोक्षाणां साधनं च द्विजोत्तमाः।
श्रोतव्यं च सदा भक्त्या रामायणपरामृतम्॥ २४॥
मूलम्
धर्मार्थकाममोक्षाणां साधनं च द्विजोत्तमाः।
श्रोतव्यं च सदा भक्त्या रामायणपरामृतम्॥ २४॥
अनुवाद (हिन्दी)
विप्रवरो! रामायण धर्म, अर्थ, काम और मोक्षका साधन तथा परम अमृतरूप है; अतः सदा भक्तिभावसे उसका श्रवण करना चाहिये॥ २४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरार्जितानि पापानि नाशमायान्ति यस्य वै।
रामायणे महाप्रीतिस्तस्य वै भवति ध्रुवम्॥ २५॥
मूलम्
पुरार्जितानि पापानि नाशमायान्ति यस्य वै।
रामायणे महाप्रीतिस्तस्य वै भवति ध्रुवम्॥ २५॥
अनुवाद (हिन्दी)
जिस मनुष्यके पूर्वजन्मोपार्जित सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, उसीका रामायणके प्रति अधिक प्रेम होता है। यह निश्चित बात है॥ २५॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रामायणे वर्तमाने पापपाशेन यन्त्रितः।
अनादृत्य असद्गाथासक्तबुद्धिः प्रवर्तते॥ २६॥
मूलम्
रामायणे वर्तमाने पापपाशेन यन्त्रितः।
अनादृत्य असद्गाथासक्तबुद्धिः प्रवर्तते॥ २६॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पापके बन्धनमें जकड़ा हुआ है, वह रामायणकी कथा आरम्भ होनेपर उसकी अवहेलना करके दूसरी-दूसरी निम्नकोटिकी बातोंमें फँस जाता है। उन असद्गाथाओंमें अपनी बुद्धिके आसक्त होनेके कारण वह तदनुरूप ही बर्ताव करने लगता है॥ २६॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रामायणं नाम परं तु काव्यं
सुपुण्यदं वै शृणुत द्विजेन्द्राः।
यस्मिन् श्रुते जन्मजरादिनाशो
भवत्यदोषः स नरोऽच्युतः स्यात्॥ २७॥
मूलम्
रामायणं नाम परं तु काव्यं
सुपुण्यदं वै शृणुत द्विजेन्द्राः।
यस्मिन् श्रुते जन्मजरादिनाशो
भवत्यदोषः स नरोऽच्युतः स्यात्॥ २७॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसलिये द्विजेन्द्रगण! आपलोग रामायण नामक परम पुण्यदायक उत्तम काव्यका श्रवण करें; जिसके सुननेसे जन्म, जरा और मृत्युके भयका नाश हो जाता है तथा श्रवण करनेवाला मनुष्य पाप-दोषसे रहित हो अच्युतस्वरूप हो जाता है॥ २७॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
वरं वरेण्यं वरदं तु काव्यं
संतारयत्याशु च सर्वलोकम्।
संकल्पितार्थप्रदमादिकाव्यं
श्रुत्वा च रामस्य पदं प्रयाति॥ २८॥
मूलम्
वरं वरेण्यं वरदं तु काव्यं
संतारयत्याशु च सर्वलोकम्।
संकल्पितार्थप्रदमादिकाव्यं
श्रुत्वा च रामस्य पदं प्रयाति॥ २८॥
अनुवाद (हिन्दी)
रामायण काव्य अत्यन्त उत्तम, वरणीय और मनोवाञ्छित वर देनेवाला है। वह उसका पाठ और श्रवण करनेवाले समस्त जगत् को शीघ्र ही संसार-सागरसे पार कर देता है। उस आदिकाव्यको सुनकर मनुष्य श्रीरामचन्द्रजीके परमपदको प्राप्त कर लेता है॥ २८॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्रह्मेशविष्ण्वाख्यशरीरभेदै-
र्विश्वं सृजत्यत्ति च पाति यश्च।
तमादिदेवं परमं वरेण्य-
माधाय चेतस्युपयाति मुक्तिम्॥ २९॥
मूलम्
ब्रह्मेशविष्ण्वाख्यशरीरभेदै-
र्विश्वं सृजत्यत्ति च पाति यश्च।
तमादिदेवं परमं वरेण्य-
माधाय चेतस्युपयाति मुक्तिम्॥ २९॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो ब्रह्मा, रुद्र और विष्णु नामक भिन्न-भिन्न रूप धारण करके विश्वकी सृष्टि, संहार और पालन करते हैं, उन आदिदेव परमोत्कृष्ट परमात्मा श्रीरामचन्द्रजीको अपने हृदय-मन्दिरमें स्थापित करके मनुष्य मोक्षका भागी होता है॥ २९॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यो नामजात्यादिविकल्पहीनः
परावराणां परमः परः स्यात्।
वेदान्तवेद्यः स्वरुचा प्रकाशः
स वीक्ष्यते सर्वपुराणवेदैः॥ ३०॥
मूलम्
यो नामजात्यादिविकल्पहीनः
परावराणां परमः परः स्यात्।
वेदान्तवेद्यः स्वरुचा प्रकाशः
स वीक्ष्यते सर्वपुराणवेदैः॥ ३०॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो नाम तथा जाति आदि विकल्पोंसे रहित, कार्य-कारणसे परे, सर्वोत्कृष्ट, वेदान्त शास्त्रके द्वारा जाननेयोग्य एवं अपने ही प्रकाशसे प्रकाशित होनेवाला परमात्मा है, उसका समस्त वेदों और पुराणोंके द्वारा साक्षात्कार होता है (इस रामायणके अनुशीलनसे भी उसीकी प्राप्ति होती है।)॥ ३०॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ऊर्जे माघे सिते पक्षे चैत्रे च द्विजसत्तमाः।
नवाह्ना खलु श्रोतव्यं रामायणकथामृतम्॥ ३१॥
मूलम्
ऊर्जे माघे सिते पक्षे चैत्रे च द्विजसत्तमाः।
नवाह्ना खलु श्रोतव्यं रामायणकथामृतम्॥ ३१॥
अनुवाद (हिन्दी)
विप्रवरो! कार्तिक, माघ और चैत्रमासके शुक्लपक्षमें नौ दिनोंमें रामायणकी अमृतमयी कथाका श्रवण करना चाहिये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इत्येवं शृणुयाद् यस्तु श्रीरामचरितं शुभम्।
सर्वान् कामानवाप्नोति परत्रामुत्र चोत्तमान्॥ ३२॥
मूलम्
इत्येवं शृणुयाद् यस्तु श्रीरामचरितं शुभम्।
सर्वान् कामानवाप्नोति परत्रामुत्र चोत्तमान्॥ ३२॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो इस प्रकार श्रीरामचन्द्रजीके मंगलमय चरित्रका श्रवण करता है, वह इस लोक और परलोकमें भी अपनी समस्त उत्तम कामनाओंको प्राप्त कर लेता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
त्रिसप्तकुलसंयुक्तः सर्वपापविवर्जितः।
प्रयाति रामभवनं यत्र गत्वा न शोचते॥ ३३॥
मूलम्
त्रिसप्तकुलसंयुक्तः सर्वपापविवर्जितः।
प्रयाति रामभवनं यत्र गत्वा न शोचते॥ ३३॥
अनुवाद (हिन्दी)
वह सब पापोंसे मुक्त हो अपनी इक्कीस पीढ़ियोंके साथ श्रीरामचन्द्रजीके उस परमधाममें चला जाता है, जहाँ जाकर मनुष्यको कभी शोक नहीं करना पड़ता है॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चैत्रे माघे कार्तिके च सिते पक्षे च वाचयेत्।
नवाहस्सु महापुण्यं श्रोतव्यं च प्रयत्नतः॥ ३४॥
मूलम्
चैत्रे माघे कार्तिके च सिते पक्षे च वाचयेत्।
नवाहस्सु महापुण्यं श्रोतव्यं च प्रयत्नतः॥ ३४॥
अनुवाद (हिन्दी)
चैत्र, माघ और कार्तिकके शुक्लपक्षमें परम पुण्यमय रामायण-कथाका नवाह-पारायण करना चाहिये तथा नौ दिनोंतक इसे प्रयत्नपूर्वक सुनना चाहिये॥ ३४॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रामायणमादिकाव्यं स्वर्गमोक्षप्रदायकम्।
तस्माद् घोरे कलियुगे सर्वधर्मबहिष्कृते॥ ३५॥
नवभिर्दिनैः श्रोतव्यं रामायणकथामृतम्।
मूलम्
रामायणमादिकाव्यं स्वर्गमोक्षप्रदायकम्।
तस्माद् घोरे कलियुगे सर्वधर्मबहिष्कृते॥ ३५॥
नवभिर्दिनैः श्रोतव्यं रामायणकथामृतम्।
अनुवाद (हिन्दी)
रामायण आदिकाव्य है। यह स्वर्ग और मोक्ष देनेवाला है, अतः सम्पूर्ण धर्मोंसे रहित घोर कलियुग आनेपर नौ दिनोंमें रामायणकी अमृतमयी कथाको श्रवण करना चाहिये॥ ३५ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रामनामपरा ये तु घोरे कलियुगे द्विजाः॥ ३६॥
त एव कृतकृत्याश्च न कलिर्बाधते हि तान्।
मूलम्
रामनामपरा ये तु घोरे कलियुगे द्विजाः॥ ३६॥
त एव कृतकृत्याश्च न कलिर्बाधते हि तान्।
अनुवाद (हिन्दी)
ब्राह्मणो! जो लोग भयंकर कलिकालमें श्रीराम-नामका आश्रय लेते हैं, वे ही कृतार्थ होते हैं। कलियुग उन्हें बाधा नहीं पहुँचाता॥ ३६ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कथा रामायणस्यापि नित्यं भवति यद्गृहे॥ ३७॥
तद् गृहं तीर्थरूपं हि दुष्टानां पापनाशनम्।
मूलम्
कथा रामायणस्यापि नित्यं भवति यद्गृहे॥ ३७॥
तद् गृहं तीर्थरूपं हि दुष्टानां पापनाशनम्।
अनुवाद (हिन्दी)
जिस घरमें प्रतिदिन रामायणकी कथा होती है, वह तीर्थरूप हो जाता है। वहाँ जानेसे दुष्टोंके पापोंका नाश होता है॥ ३७ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तावत्पापानि देहेऽस्मिन् निवसन्ति तपोधनाः॥ ३८॥
यावन्न श्रूयते सम्यक् श्रीमद्रामायणं नरैः।
मूलम्
तावत्पापानि देहेऽस्मिन् निवसन्ति तपोधनाः॥ ३८॥
यावन्न श्रूयते सम्यक् श्रीमद्रामायणं नरैः।
अनुवाद (हिन्दी)
तपोधनो! इस शरीरमें तभीतक पाप रहते हैं,जबतक मनुष्य श्रीरामायणकथाका भलीभाँति श्रवण नहीं करता॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुर्लभैव कथा लोके श्रीमद्रामायणोद्भवा॥ ३९॥
कोटिजन्मसमुत्थेन पुण्येनैव तु लभ्यते।
मूलम्
दुर्लभैव कथा लोके श्रीमद्रामायणोद्भवा॥ ३९॥
कोटिजन्मसमुत्थेन पुण्येनैव तु लभ्यते।
अनुवाद (हिन्दी)
संसारमें श्रीरामायणकी कथा परम दुर्लभ ही है। जब करोड़ों जन्मोंके पुण्योंका उदय होता है, तभी उसकी प्राप्ति होती है॥ ३९ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ऊर्जे माघे सिते पक्षे चैत्रे च द्विजसत्तमाः॥ ४०॥
यस्य श्रवणमात्रेण सौदासोऽपि विमोचितः।
मूलम्
ऊर्जे माघे सिते पक्षे चैत्रे च द्विजसत्तमाः॥ ४०॥
यस्य श्रवणमात्रेण सौदासोऽपि विमोचितः।
अनुवाद (हिन्दी)
श्रेष्ठ ब्राह्मणो! कार्तिक, माघ और चैत्रके शुक्ल पक्षमें रामायणके श्रवणमात्रसे (राक्षसभावापन्न) सौदास भी शापमुक्त हो गये थे॥ ४० १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गौतमशापतः प्राप्तः सौदासो राक्षसीं तनुम्॥ ४१॥
रामायणप्रभावेण विमुक्तिं प्राप्तवान् पुनः।
मूलम्
गौतमशापतः प्राप्तः सौदासो राक्षसीं तनुम्॥ ४१॥
रामायणप्रभावेण विमुक्तिं प्राप्तवान् पुनः।
अनुवाद (हिन्दी)
सौदासने महर्षि गौतमके शापसे राक्षस-शरीर प्राप्त किया था। वे रामायणके प्रभावसे ही पुनः उस शापसे छुटकारा पा सके थे॥ ४१ १/२॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
यस्त्वेतच्छृणुयाद् भक्त्या रामभक्तिपरायणः॥ ४२॥
स मुच्यते महापापैः पुरुषः पातकादिभिः॥ ४३॥
मूलम्
यस्त्वेतच्छृणुयाद् भक्त्या रामभक्तिपरायणः॥ ४२॥
स मुच्यते महापापैः पुरुषः पातकादिभिः॥ ४३॥
अनुवाद (हिन्दी)
जो पुरुष श्रीरामचन्द्रजीकी भक्तिका आश्रय ले प्रेमपूर्वक इस कथाका श्रवण करता है, वह बड़े-बड़े पापों तथा पातक आदिसे मुक्त हो जाता है॥ ४२-४३॥
अनुवाद (समाप्ति)
इति श्रीस्कन्दपुराणे उत्तरखण्डे नारदसनत्कुमारसंवादे रामायणमाहात्म्ये कल्पानुकीर्तनं नाम प्रथमोऽध्यायः॥ १॥
इस प्रकार श्रीस्कन्दपुराणके उत्तरखण्डमें नारद-सनत्कुमार-संवादके अन्तर्गत रामायणमाहात्म्यविषयक कल्पका अनुकीर्तन नामक प्रथम अध्याय पूरा हुआ॥ १॥