वाचनम्
भागसूचना
- हनुमान् के द्वारा निकुम्भका वध
विश्वास-प्रस्तुतिः
निकुम्भो भ्रातरं दृष्ट्वा सुग्रीवेण निपातितम् ।
प्रदहन्निव कोपेन वानरेन्द्रमुदैक्षत ॥ १ ॥
मूलम्
निकुम्भो भ्रातरं दृष्ट्वा सुग्रीवेण निपातितम् ।
प्रदहन्निव कोपेन वानरेन्द्रमुदैक्षत ॥ १ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुग्रीवके द्वारा अपने भाई कुम्भको मारा गया देख निकुम्भने वानरराजकी ओर इस प्रकार देखा, मानो उन्हें अपने क्रोधसे दग्ध कर देगा ॥ १ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ततः स्रग्दामसन्नद्धं दत्तपञ्चाङ्गुलं शुभम् ।
आददे परिघं धीरो महेन्द्रशिखरोपमम् ॥ २ ॥
मूलम्
ततः स्रग्दामसन्नद्धं दत्तपञ्चाङ्गुलं शुभम् ।
आददे परिघं धीरो महेन्द्रशिखरोपमम् ॥ २ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस धीर-वीरने महेन्द्र पर्वतके शिखर-जैसा एक सुन्दर एवं विशाल परिघ हाथमें लिया, जो फूलोंकी लड़ियोंसे अलंकृत था और जिसमें पाँच-पाँच अंगुलके चौड़े लोहेके पत्र जड़े गये थे ॥ २ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हेमपट्टपरिक्षिप्तं वज्रविद्रुमभूषितम् ।
यमदण्डोपमं भीमं रक्षसां भयनाशनम् ॥ ३ ॥
मूलम्
हेमपट्टपरिक्षिप्तं वज्रविद्रुमभूषितम् ।
यमदण्डोपमं भीमं रक्षसां भयनाशनम् ॥ ३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस परिघमें सोनेके पत्र भी जड़े थे और उसे हीरे तथा मूँगोंसे भी विभूषित किया गया था । वह परिघ यमदण्डके समान भयंकर तथा राक्षसोंके भयका नाश करनेवाला था ॥ ३ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमाविध्य महातेजाः शक्रध्वजसमौजसम् ।
निननाद विवृत्तास्यो निकुम्भो भीमविक्रमः ॥ ४ ॥
मूलम्
तमाविध्य महातेजाः शक्रध्वजसमौजसम् ।
निननाद विवृत्तास्यो निकुम्भो भीमविक्रमः ॥ ४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस इन्द्रध्वजके समान तेजस्वी परिघको घुमाता हुआ वह महातेजस्वी भयानक पराक्रमी राक्षस निकुम्भ मुँह फैलाकर जोर-जोरसे गर्जना करने लगा ॥ ४ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
उरोगतेन निष्केण भुजस्थैरङ्गदैरपि ।
कुण्डलाभ्यां च चित्राभ्यां मालया च सचित्रया ॥ ५ ॥
निकुम्भो भूषणैर्भाति तेन स्म परिघेण च ।
यथेन्द्रधनुषा मेघः सविद्युत्स्तनयित्नुमान् ॥ ६ ॥
मूलम्
उरोगतेन निष्केण भुजस्थैरङ्गदैरपि ।
कुण्डलाभ्यां च चित्राभ्यां मालया च सचित्रया ॥ ५ ॥
निकुम्भो भूषणैर्भाति तेन स्म परिघेण च ।
यथेन्द्रधनुषा मेघः सविद्युत्स्तनयित्नुमान् ॥ ६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उसके वक्षःस्थलमें सोनेका पदक था । भुजाओंमें बाजूबंद शोभा देते थे । कानोंमें विचित्र कुण्डल झलमला रहे थे और गलेमें विचित्र माला जगमगा रही थी । इन सब आभूषणोंसे और उस परिघसे भी निकुम्भकी वैसी ही शोभा हो रही थी, जैसे विद्युत् और गर्जनासे युक्त मेघ इन्द्र-धनुषसे सुशोभित होता है ॥ ५-६ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
परिघाग्रेण पुस्फोट वातग्रन्थिर्महात्मनः ।
प्रजज्वाल सघोषश्च विधूम इव पावकः ॥ ७ ॥
मूलम्
परिघाग्रेण पुस्फोट वातग्रन्थिर्महात्मनः ।
प्रजज्वाल सघोषश्च विधूम इव पावकः ॥ ७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस महाकाय राक्षसके परिघके अग्रभागसे टकराकर प्रवह-आवह आदि सात महावायुओंकी संधि टूट-फूट गयी तथा वह भारी गड़गड़ाहटके साथ धूमरहित अग्निकी भाँति प्रज्वलित हो उठा ॥ ७ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नगर्या विटपावत्या गन्धर्वभवनोत्तमैः ।
सतारागणनक्षत्रं सचन्द्रसमहाग्रहम् ।
निकुम्भपरिघाघूर्णं भ्रमतीव नभस्थलम् ॥ ८ ॥
मूलम्
नगर्या विटपावत्या गन्धर्वभवनोत्तमैः ।
सतारागणनक्षत्रं सचन्द्रसमहाग्रहम् ।
निकुम्भपरिघाघूर्णं भ्रमतीव नभस्थलम् ॥ ८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
निकुम्भके परिघ घुमानेसे विटपावती नगरी (अलकापुरी), गन्धर्वोंके उत्तम भवन, तारे, नक्षत्र, चन्द्रमा तथा बड़े-बड़े ग्रहोंके साथ समस्त आकाशमण्डल घूमता-सा प्रतीत होता था ॥ ८ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दुरासदश्च सञ्जज्ञे परिघाभरणप्रभः ।
क्रोधेन्धनो निकुम्भाग्निर्युगान्ताग्निरिवोत्थितः ॥ ९ ॥
मूलम्
दुरासदश्च सञ्जज्ञे परिघाभरणप्रभः ।
क्रोधेन्धनो निकुम्भाग्निर्युगान्ताग्निरिवोत्थितः ॥ ९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
परिघ और आभूषण ही जिसकी प्रभा थे, क्रोध ही जिसके लिये ईंधनका काम कर रहा था, वह निकुम्भ नामक अग्नि प्रलयकालकी आगके समान उठी और अत्यन्त दुर्जय हो गयी ॥ ९ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राक्षसा वानराश्चापि न शेकुः स्पन्दितुं भयात् ।
हनुमांस्तु विवृत्योरस्तस्थौ प्रमुखतो बली ॥ १० ॥
मूलम्
राक्षसा वानराश्चापि न शेकुः स्पन्दितुं भयात् ।
हनुमांस्तु विवृत्योरस्तस्थौ प्रमुखतो बली ॥ १० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय राक्षस और वानर भयके मारे हिल-डुल भी न सके । केवल महाबली हनुमान् अपनी छाती खोलकर उस राक्षसके सामने खड़े हो गये ॥ १० ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
परिघोपमबाहुस्तु परिघं भास्करप्रभम् ।
बली बलवतस्तस्य पातयामास वक्षसि ॥ ११ ॥
मूलम्
परिघोपमबाहुस्तु परिघं भास्करप्रभम् ।
बली बलवतस्तस्य पातयामास वक्षसि ॥ ११ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
निकुम्भकी भुजाएँ परिघके समान थीं । उस महाबली राक्षसने उस सूर्यतुल्य तेजस्वी परिघको बलवान् वीर हनुमान् जी की छातीपर दे मारा ॥ ११ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्थिरे तस्योरसि व्यूढे परिघः शतधा कृतः ।
विकीर्यमाणः सहसा उल्काशतमिवाम्बरे ॥ १२ ॥
मूलम्
स्थिरे तस्योरसि व्यूढे परिघः शतधा कृतः ।
विकीर्यमाणः सहसा उल्काशतमिवाम्बरे ॥ १२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
हनुमान् जी की छाती बड़ी सुदृढ़ और विशाल थी । उससे टकराते ही उस परिघके सहसा सैकड़ों टुकड़े होकर बिखर गये, मानो आकाशमें सौ-सौ उल्काएँ एक साथ गिरी हों ॥ १२ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तु तेन प्रहारेण न चचाल महाकपिः ।
परिघेण समाधूतो यथा भूमिचलेऽचलः ॥ १३ ॥
मूलम्
स तु तेन प्रहारेण न चचाल महाकपिः ।
परिघेण समाधूतो यथा भूमिचलेऽचलः ॥ १३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
महाकपि हनुमान् जी परिघसे आहत होनेपर भी उस प्रहारसे विचलित नहीं हुए, जैसे भूकम्प होनेपर भी पर्वत नहीं गिरता है ॥ १३ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तथाभिहतस्तेन हनूमान् प्लवगोत्तमः ।
मुष्टिं संवर्तयामास बलेनातिमहाबलः ॥ १४ ॥
मूलम्
स तथाभिहतस्तेन हनूमान् प्लवगोत्तमः ।
मुष्टिं संवर्तयामास बलेनातिमहाबलः ॥ १४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
अत्यन्त महान् बलशाली वानरशिरोमणि हनुमान् जी ने इस प्रकार परिघकी मार खाकर बलपूर्वक अपनी मुट्ठी बाँधी ॥ १४ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तमुद्यम्य महातेजा निकुम्भोरसि वीर्यवान् ।
अभिचिक्षेप वेगेन वेगवान् वायुविक्रमः ॥ १५ ॥
मूलम्
तमुद्यम्य महातेजा निकुम्भोरसि वीर्यवान् ।
अभिचिक्षेप वेगेन वेगवान् वायुविक्रमः ॥ १५ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
वे महान् तेजस्वी, पराक्रमी, वेगवान् और वायुके समान बल-विक्रमसे सम्पन्न थे । उन्होंने मुक्का तानकर बड़े वेगसे निकुम्भकी छातीपर मारा ॥ १५ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तत्र पुस्फोट वर्मास्य प्रसुस्राव च शोणितम् ।
मुष्टिना तेन सञ्जज्ञे मेघे विद्युदिवोत्थिता ॥ १६ ॥
मूलम्
तत्र पुस्फोट वर्मास्य प्रसुस्राव च शोणितम् ।
मुष्टिना तेन सञ्जज्ञे मेघे विद्युदिवोत्थिता ॥ १६ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस मुक्केकी चोटसे वहाँ उसका कवच फट गया और छातीसे रक्त बहने लगा; मानो मेघमें बिजली चमक उठी हो ॥ १६ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तु तेन प्रहारेण निकुम्भो विचचाल च ।
स्वस्थश्चापि निजग्राह हनूमन्तं महाबलम् ॥ १७ ॥
मूलम्
स तु तेन प्रहारेण निकुम्भो विचचाल च ।
स्वस्थश्चापि निजग्राह हनूमन्तं महाबलम् ॥ १७ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस प्रहारसे निकुम्भ विचलित हो उठा; फिर थोड़ी ही देरमें सँभलकर उसने महाबली हनुमान् जी को पकड़ लिया ॥ १७ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चुक्रुशुश्च तदा सङ्ख्ये भीमं लङ्कानिवासिनः ।
निकुम्भेनोद्यतं दृष्ट्वा हनूमन्तं महाबलम् ॥ १८ ॥
मूलम्
चुक्रुशुश्च तदा सङ्ख्ये भीमं लङ्कानिवासिनः ।
निकुम्भेनोद्यतं दृष्ट्वा हनूमन्तं महाबलम् ॥ १८ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस समय युद्धस्थलमें निकुम्भके द्वारा महाबली हनुमान् जी का अपहरण होता देख लङ्कानिवासी राक्षस भयानक स्वरमें विजयसूचक गर्जना करने लगे ॥ १८ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स तथा ह्रियमाणोऽपि हनूमांस्तेन रक्षसा ।
आजघानानिलसुतो वज्रकल्पेन मुष्टिना ॥ १९ ॥
मूलम्
स तथा ह्रियमाणोऽपि हनूमांस्तेन रक्षसा ।
आजघानानिलसुतो वज्रकल्पेन मुष्टिना ॥ १९ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
उस राक्षसके द्वारा इस प्रकार अपहृत होनेपर भी पवनपुत्र हनुमान् जी ने अपने वज्रतुल्य मुक्केसे उसपर प्रहार किया ॥ १९ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
आत्मानं मोक्षयित्वाथ क्षितावभ्यवपद्यत ।
हनूमानुन्ममाथाशु निकुम्भं मारुतात्मजः ॥ २० ॥
मूलम्
आत्मानं मोक्षयित्वाथ क्षितावभ्यवपद्यत ।
हनूमानुन्ममाथाशु निकुम्भं मारुतात्मजः ॥ २० ॥
अनुवाद (हिन्दी)
फिर वे अपनेको उसके चंगुलसे छुड़ाकर पृथ्वीपर खड़े हो गये । तदनन्तर वायुपुत्र हनुमान् ने तत्काल ही निकुम्भको पृथ्वीपर दे मारा ॥ २० ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
निक्षिप्य परमायत्तो निकुम्भं निष्पिपेष च ।
उत्पत्य चास्य वेगेन पपातोरसि वेगवान् ॥ २१ ॥
परिगृह्य च बाहुभ्यां परिवृत्य शिरोधराम् ।
उत्पाटयामास शिरो भैरवं नदतो महत् ॥ २२ ॥
मूलम्
निक्षिप्य परमायत्तो निकुम्भं निष्पिपेष च ।
उत्पत्य चास्य वेगेन पपातोरसि वेगवान् ॥ २१ ॥
परिगृह्य च बाहुभ्यां परिवृत्य शिरोधराम् ।
उत्पाटयामास शिरो भैरवं नदतो महत् ॥ २२ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
इसके बाद उन वेगशाली वीरने बड़े प्रयाससे निकुम्भको पृथ्वीपर गिराया और खूब रगड़ा । फिर वेगसे उछलकर वे उसकी छातीपर चढ़ बैठे और दोनों हाथोंसे गला मरोड़कर उन्होंने उसके मस्तकको उखाड़ लिया । गला मरोड़ते समय वह राक्षस भयंकर आर्तनाद कर रहा था ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अथ निनदति सादिते निकुम्भे
पवनसुतेन रणे बभूव युद्धम् ।
दशरथसुतराक्षसेन्द्रसून्वो-
र्भृशतरमागतरोषयोः सुभीमम् ॥ २३ ॥
मूलम्
अथ निनदति सादिते निकुम्भे
पवनसुतेन रणे बभूव युद्धम् ।
दशरथसुतराक्षसेन्द्रसून्वो-
र्भृशतरमागतरोषयोः सुभीमम् ॥ २३ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
रणभूमिमें वायुपुत्र हनुमान् जी के द्वारा गर्जना करनेवाले निकुम्भके मारे जानेपर एक-दूसरेपर अत्यन्त कुपित हुए श्रीराम और मकराक्षमें बड़ा भयंकर युद्ध हुआ ॥ २३ ॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
व्यपेते तु जीवे निकुम्भस्य हृष्टा
विनेदुः प्लवङ्गा दिशः सस्वनुश्च ।
चचालेव चोर्वी पपातेव सा द्यौ-
र्बलं राक्षसानां भयं चाविवेश ॥ २४ ॥
मूलम्
व्यपेते तु जीवे निकुम्भस्य हृष्टा
विनेदुः प्लवङ्गा दिशः सस्वनुश्च ।
चचालेव चोर्वी पपातेव सा द्यौ-
र्बलं राक्षसानां भयं चाविवेश ॥ २४ ॥
अनुवाद (हिन्दी)
निकुम्भके प्राणत्याग करनेपर सभी वानर बड़े हर्षके साथ गर्जने लगे । सम्पूर्ण दिशाएँ कोलाहलसे भर गयीं । पृथ्वी चलती-सी जान पड़ी, आकाश मानो फट पड़ा हो, ऐसा प्रतीत होने लगा तथा राक्षसोंकी सेनामें भय समा गया ॥ २४ ॥
समाप्तिः
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे सप्तसप्ततितमः सर्गः ॥ ७७ ॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें सतहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ७७ ॥