अनुवाद (हिन्दी)
ॐ सीतायै अङ्गुष्ठाभ्यां नमः । ॐ विदेहराजसुतायै तर्जनीभ्यां नमः । ॐ रामसुन्दर्यै मध्यमाभ्यां नमः । ॐ हनुमता समाश्रितायै अनामिकाभ्यां नमः । ॐ भूमिसुतायै कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ शरणं भजे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।
फिर इन्हीं मन्त्रोंसे हृदयादिन्यास करके इस प्रकार ध्यान करे—
विश्वास-प्रस्तुतिः
सीतामुदारचरितां विधिसाम्बविष्णु-
वन्द्यां त्रिलोकजननीं शतकल्पवल्लीम् ।
हेमैरनेकमणिरञ्जितकोटिभागै-
र्भूषाचयैरनुदिनं सहितां नमामि ॥
मूलम्
सीतामुदारचरितां विधिसाम्बविष्णु-
वन्द्यां त्रिलोकजननीं शतकल्पवल्लीम् ।
हेमैरनेकमणिरञ्जितकोटिभागै-
र्भूषाचयैरनुदिनं सहितां नमामि ॥
अनुवाद (हिन्दी)
सुन्दरकाण्डके पाठकी विशेष विधि है कि प्रतिदिन एकोत्तरवृत्तिसे क्रमशः एक-एक सर्ग पाठ बढ़ाते हुए ग्यारहवें दिन पाठ समाप्त कर दे । १२ वें दिन अवशिष्ट दो सर्गके साथ आरम्भके १० सर्ग पढ़े जायँ, १३ वें दिन ११ से २३ तक इस तरह तीन आवृत्तिके पाठसे समस्त कार्यकी सिद्धि होती है । दूसरा क्रम है—प्रतिदिन ५ अध्याय पाठका । इसमें भी पूर्वकी भाँति १४ वें दिन अन्तके ३ तथा प्रारम्भके दो सर्गका पाठ करे । सम्पुट पाठका मन्त्र है—‘‘श्रीसीतायै नमः ।’*
पादटिप्पनी
- रामभद्र महेष्वास रघुवीर नृपोत्तम ।
भो दशास्यान्तकास्माकं रक्षां देहि श्रियं च ते ॥
इस मन्त्रके सम्पुटसे सुन्दरकाण्डका पाठ भी किया जा सकता है ।