121

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥1॥

मूल

समर बिजय रघुबीर के चरित जे सुनहिं सुजान।
बिजय बिबेक बिभूति नित तिन्हहि देहिं भगवान॥1॥

भावार्थ

जो सुजान लोग श्री रघुवीर की समर विजय सम्बन्धी लीला को सुनते हैं, उनको भगवान्‌ नित्य विजय, विवेक और विभूति (ऐश्वर्य) देते हैं॥।121 (क)॥

यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार।
श्री रघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार॥2॥

मूल

यह कलिकाल मलायतन मन करि देखु बिचार।
श्री रघुनाथ नाम तजि नाहिन आन अधार॥2॥

भावार्थ

अरे मन! विचार करके देख! यह कलिकाल पापों का घर है। इसमें श्री रघुनाथजी के नाम को छोडकर (पापों से बचने के लिए) दूसरा कोई आधार नहीं है॥2॥

मासपारायण, सत्ताईसवाँ विश्राम
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने षष्ठः सोपानः समाप्तः।
कलियुग के समस्त पापों का नाश करने वाले श्री रामचरित मानस का यह छठा सोपान समाप्त हुआ।
(लङ्काकाण्ड समाप्त)