01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
इहाँ सेतु बाँध्यों अरु थापेउँ सिव सुख धाम।
सीता सहित कृपानिधि सम्भुहि कीन्ह प्रनाम॥1॥
मूल
इहाँ सेतु बाँध्यों अरु थापेउँ सिव सुख धाम।
सीता सहित कृपानिधि सम्भुहि कीन्ह प्रनाम॥1॥
भावार्थ
मैन्ने यहाँ पुल बाँधा (बँधवाया) और सुखधाम श्री शिवजी की स्थापना की। तदनन्तर कृपानिधान श्री रामजी ने सीताजी सहित श्री रामेश्वर महादेव को प्रणाम किया॥1॥
जहँ जहँ कृपासिन्धु बन कीन्ह बास बिश्राम।
सकल देखाए जानकिहि कहे सबन्हि के नाम॥2॥
मूल
जहँ जहँ कृपासिन्धु बन कीन्ह बास बिश्राम।
सकल देखाए जानकिहि कहे सबन्हि के नाम॥2॥
भावार्थ
वन में जहाँ-तहाँ करुणा सागर श्री रामचन्द्रजी ने निवास और विश्राम किया था, वे सब स्थान प्रभु ने जानकीजी को दिखलाए और सबके नाम बतलाए॥2॥
02 चौपाई
तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दण्डक बन जहँ परम सुहावा॥
कुम्भजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना॥1॥
मूल
तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दण्डक बन जहँ परम सुहावा॥
कुम्भजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना॥1॥
भावार्थ
विमान शीघ्र ही वहाँ चला आया, जहाँ परम सुन्दर दण्डकवन था और अगस्त्य आदि बहुत से मुनिराज रहते थे। श्री रामजी इन सबके स्थानों में गए॥1॥
सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा॥
तहँ करि मुनिन्ह केर सन्तोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा॥2॥
मूल
सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा॥
तहँ करि मुनिन्ह केर सन्तोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा॥2॥
भावार्थ
सम्पूर्ण ऋषियों से आशीर्वाद पाकर जगदीश्वर श्री रामजी चित्रकूट आए। वहाँ मुनियों को सन्तुष्ट किया। (फिर) विमान वहाँ से आगे तेजी के साथ चला॥2॥
बहुरि राम जानकिहि देखाई। जमुना कलि मल हरनि सुहाई॥
पुनि देखी सुरसरी पुनीता। राम कहा प्रनाम करु सीता॥3॥
मूल
बहुरि राम जानकिहि देखाई। जमुना कलि मल हरनि सुहाई॥
पुनि देखी सुरसरी पुनीता। राम कहा प्रनाम करु सीता॥3॥
भावार्थ
फिर श्री रामजी ने जानकीजी को कलियुग के पापों का हरण करने वाली सुहावनी यमुनाजी के दर्शन कराए। फिर पवित्र गङ्गाजी के दर्शन किए। श्री रामजी ने कहा- हे सीते! इन्हें प्रणाम करो॥3॥
तीरथपति पुनि देखु प्रयागा। निरखत जन्म कोटि अघ भागा॥
देखु परम पावनि पुनि बेनी। हरनि सोक हरि लोक निसेनी॥4॥
पुनि देखु अवधपुरि अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि॥5॥
मूल
तीरथपति पुनि देखु प्रयागा। निरखत जन्म कोटि अघ भागा॥
देखु परम पावनि पुनि बेनी। हरनि सोक हरि लोक निसेनी॥4॥
पुनि देखु अवधपुरि अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि॥5॥
भावार्थ
फिर तीर्थराज प्रयाग को देखो, जिसके दर्शन से ही करोडों जन्मों के पाप भाग जाते हैं। फिर परम पवित्र त्रिवेणीजी के दर्शन करो, जो शोकों को हरने वाली और श्री हरि के परम धाम (पहुँचने) के लिए सीढी के समान है। फिर अत्यन्त पवित्र अयोध्यापुरी के दर्शन करो, जो तीनों प्रकार के तापों और भव (आवागमन रूपी) रोग का नाश करने वाली है॥4-5॥