096

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुर बानर देखे बिकल हँस्यो कोसलाधीस।
सजि सारङ्ग एक सर हते सकल दससीस॥96॥

मूल

सुर बानर देखे बिकल हँस्यो कोसलाधीस।
सजि सारङ्ग एक सर हते सकल दससीस॥96॥

भावार्थ

देवताओं और वानरों को विकल देखकर कोसलपति श्री रामजी हँसे और शार्गं धनुष पर एक बाण चढाकर (माया के बने हुए) सब रावणों को मार डाला॥96॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रभु छन महुँ माया सब काटी। जिमि रबि उएँ जाहिं तम फाटी॥
रावनु एकु देखि सुर हरषे। फिरे सुमन बहु प्रभु पर बरषे॥1॥

मूल

प्रभु छन महुँ माया सब काटी। जिमि रबि उएँ जाहिं तम फाटी॥
रावनु एकु देखि सुर हरषे। फिरे सुमन बहु प्रभु पर बरषे॥1॥

भावार्थ

प्रभु ने क्षणभर में सब माया काट डाली। जैसे सूर्य के उदय होते ही अन्धकार की राशि फट जाती है (नष्ट हो जाती है)। अब एक ही रावण को देखकर देवता हर्षित हुए और उन्होन्ने लौटकर प्रभु पर बहुत से पुष्प बरसाए॥1॥

भुज उठाइ रघुपति कपि फेरे। फिरे एक एकन्ह तब टेरे॥
प्रभु बलु पाइ भालु कपि धाए। तरल तमकि सञ्जुग महि आए॥2॥

मूल

भुज उठाइ रघुपति कपि फेरे। फिरे एक एकन्ह तब टेरे॥
प्रभु बलु पाइ भालु कपि धाए। तरल तमकि सञ्जुग महि आए॥2॥

भावार्थ

श्री रघुनाथजी ने भुजा उठाकर सब वानरों को लौटाया। तब वे एक-दूसरे को पुकार-पुकार कर लौट आए। प्रभु का बल पाकर रीछ-वानर दौड पडे। जल्दी से कूदकर वे रणभूमि में आ गए॥2॥

अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें॥
सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोपि गगन पर धायल॥3॥

मूल

अस्तुति करत देवतन्हि देखें। भयउँ एक मैं इन्ह के लेखें॥
सठहु सदा तुम्ह मोर मरायल। अस कहि कोपि गगन पर धायल॥3॥

भावार्थ

देवताओं को श्री रामजी की स्तुति करते देख कर रावण ने सोचा, मैं इनकी समझ में एक हो गया, (परन्तु इन्हें यह पता नहीं कि इनके लिए मैं एक ही बहुत हूँ) और कहा- अरे मूर्खों! तुम तो सदा के ही मेरे मरैल (मेरी मार खाने वाले) हो। ऐसा कहकर वह क्रोध करके आकाश पर (देवताओं की ओर) दौडा॥3॥

03 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

हाहाकार करत सुर भागे। खलहु जाहु कहँ मोरें आगे॥
देखि बिकल सुर अङ्गद धायो। कूदि चरन गहि भूमि गिरायो॥4॥

मूल

हाहाकार करत सुर भागे। खलहु जाहु कहँ मोरें आगे॥
देखि बिकल सुर अङ्गद धायो। कूदि चरन गहि भूमि गिरायो॥4॥

भावार्थ

देवता हाहाकार करते हुए भागे। (रावण ने कहा-) दुष्टों! मेरे आगे से कहाँ जा सकोगे? देवताओं को व्याकुल देखकर अङ्गद दौडे और उछलकर रावण का पैर पकडकर (उन्होन्ने) उसको पृथ्वी पर गिरा दिया॥4॥

04 छन्द

विश्वास-प्रस्तुतिः

गहि भूमि पार्‌यो लात मार्‌यो बालिसुत प्रभु पहिं गयो।
सम्भारि उठि दसकण्ठ घोर कठोर रव गर्जत भयो॥
करि दाप चाप चढाइ दस सन्धानि सर बहु बरषई।
किए सकल भट घायल भयाकुल देखि निज बल हरषई॥

मूल

गहि भूमि पार्‌यो लात मार्‌यो बालिसुत प्रभु पहिं गयो।
सम्भारि उठि दसकण्ठ घोर कठोर रव गर्जत भयो॥
करि दाप चाप चढाइ दस सन्धानि सर बहु बरषई।
किए सकल भट घायल भयाकुल देखि निज बल हरषई॥

भावार्थ

उसे पकडकर पृथ्वी पर गिराकर लात मारकर बालिपुत्र अङ्गद प्रभु के पास चले गए। रावण सम्भलकर उठा और बडे भंयकर कठोर शब्द से गरजने लगा। वह दर्प करके दसों धनुष चढाकर उन पर बहुत से बाण सन्धान करके बरसाने लगा। उसने सब योद्धाओं को घायल और भय से व्याकुल कर दिया और अपना बल देखकर वह हर्षित होने लगा।