076

01 दोहा

रामानुज कहँ रामु कहँ अस कहि छाँडेसि प्रान।
धन्य धन्य तव जननी कह अङ्गद हनुमान॥76॥

मूल

रामानुज कहँ रामु कहँ अस कहि छाँडेसि प्रान।
धन्य धन्य तव जननी कह अङ्गद हनुमान॥76॥

भावार्थ

राम के छोटे भाई लक्ष्मण कहाँ हैं? राम कहाँ हैं? ऐसा कहकर उसने प्राण छोड दिए। अङ्गद और हनुमान कहने लगे- तेरी माता धन्य है, धन्य है (जो तू लक्ष्मणजी के हाथों मरा और मरते समय श्री राम-लक्ष्मण को स्मरण करके तूने उनके नामों का उच्चारण किया।)॥76॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

बिनु प्रयास हनुमान उठायो। लङ्का द्वार राखि पुनि आयो॥
तासु मरन सुनि सुर गन्धर्बा। चढि बिमान आए नभ सर्बा॥1॥

मूल

बिनु प्रयास हनुमान उठायो। लङ्का द्वार राखि पुनि आयो॥
तासु मरन सुनि सुर गन्धर्बा। चढि बिमान आए नभ सर्बा॥1॥

भावार्थ

हनुमान्‌जी ने उसको बिना ही परिश्रम के उठा लिया और लङ्का के दरवाजे पर रखकर वे लौट आए। उसका मरना सुनकर देवता और गन्धर्व आदि सब विमानों पर चढकर आकाश में आए॥1॥

बरषि सुमन दुन्दुभीं बजावहिं। श्रीरघुनाथ बिमल जसु गावहिं॥
जय अनन्त जय जगदाधारा। तुम्ह प्रभु सब देवन्हि निस्तारा॥2॥

मूल

बरषि सुमन दुन्दुभीं बजावहिं। श्रीरघुनाथ बिमल जसु गावहिं॥
जय अनन्त जय जगदाधारा। तुम्ह प्रभु सब देवन्हि निस्तारा॥2॥

भावार्थ

वे फूल बरसाकर नगाडे बजाते हैं और श्री रघुनाथजी का निर्मल यश गाते हैं। हे अनन्त! आपकी जय हो, हे जगदाधार! आपकी जय हो। हे प्रभो! आपने सब देवताओं का (महान्‌ विपत्ति से) उद्धार किया॥2॥

अस्तुति करि सुर सिद्ध सिधाए। लछिमन कृपासिन्धु पहिं आए॥
सुत बध सुना दसानन जबहीं। मुरुछित भयउ परेउ महि तबहीं॥3॥

मूल

अस्तुति करि सुर सिद्ध सिधाए। लछिमन कृपासिन्धु पहिं आए॥
सुत बध सुना दसानन जबहीं। मुरुछित भयउ परेउ महि तबहीं॥3॥

भावार्थ

देवता और सिद्ध स्तुति करके चले गए, तब लक्ष्मणजी कृपा के समुद्र श्री रामजी के पास आए। रावण ने ज्यों ही पुत्रवध का समाचार सुना, त्यों ही वह मूर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पडा॥3॥

मन्दोदरी रुदन कर भारी। उर ताडन बहु भाँति पुकारी॥
रनगर लोग सब ब्याकुल सोचा। सकल कहहिं दसकन्धर पोचा॥4॥

मूल

मन्दोदरी रुदन कर भारी। उर ताडन बहु भाँति पुकारी॥
रनगर लोग सब ब्याकुल सोचा। सकल कहहिं दसकन्धर पोचा॥4॥

भावार्थ

मन्दोदरी छाती पीट-पीटकर और बहुत प्रकार से पुकार-पुकारकर बडा भारी विलाप करने लगी। नगर के सब लोग शोक से व्याकुल हो गए। सभी रावण को नीच कहने लगे॥4॥