01 सोरठा
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस॥61॥
मूल
प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस॥61॥
भावार्थ
प्रभु के (लीला के लिए किए गए) प्रलाप को कानों से सुनकर वानरों के समूह व्याकुल हो गए। (इतने में ही) हनुमान्जी आ गए, जैसे करुणरस (के प्रसङ्ग) में वीर रस (का प्रसङ्ग) आ गया हो॥61॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
हरषि राम भेण्टेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥
तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥1॥
मूल
हरषि राम भेण्टेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥
तुरत बैद तब कीन्ह उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥1॥
भावार्थ
श्री रामजी हर्षित होकर हनुमान्जी से गले मिले। प्रभु परम सुजान (चतुर) और अत्यन्त ही कृतज्ञ हैं। तब वैद्य (सुषेण) ने तुरन्त उपाय किया, (जिससे) लक्ष्मणजी हर्षित होकर उठ बैठे॥1॥
हृदयँ लाइ प्रभु भेण्टेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता॥
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा॥2॥
मूल
हृदयँ लाइ प्रभु भेण्टेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता॥
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा॥2॥
भावार्थ
प्रभु भाई को हृदय से लगाकर मिले। भालू और वानरों के समूह सब हर्षित हो गए। फिर हनुमान्जी ने वैद्य को उसी प्रकार वहाँ पहुँचा दिया, जिस प्रकार वे उस बार (पहले) उसे ले आए थे॥2॥
यह बृत्तान्त दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ॥
ब्याकुल कुम्भकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥3॥
मूल
यह बृत्तान्त दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ॥
ब्याकुल कुम्भकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा॥3॥
भावार्थ
यह समाचार जब रावण ने सुना, तब उसने अत्यन्त विषाद से बार-बार सिर पीटा। वह व्याकुल होकर कुम्भकर्ण के पास गया और बहुत से उपाय करके उसने उसको जगाया॥3॥
जागा निसिचर देखिअ कैसा। मानहुँ कालु देह धरि बैसा॥
कुम्भकरन बूझा कहु भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई॥4॥
मूल
जागा निसिचर देखिअ कैसा। मानहुँ कालु देह धरि बैसा॥
कुम्भकरन बूझा कहु भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई॥4॥
भावार्थ
कुम्भकर्ण जगा (उठ बैठा) वह कैसा दिखाई देता है मानो स्वयं काल ही शरीर धारण करके बैठा हो। कुम्भकर्ण ने पूछा- हे भाई! कहो तो, तुम्हारे मुख सूख क्यों रहे हैं?॥4॥
कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा सङ्घारे॥5॥
मूल
कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा सङ्घारे॥5॥
भावार्थ
उस अभिमानी (रावण) ने उससे जिस प्रकार से वह सीता को हर लाया था (तब से अब तक की) सारी कथा कही। (फिर कहा-) हे तात! वानरों ने सब राक्षस मार डाले। बडे-बडे योद्धाओं का भी संहार कर डाला॥5॥
दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकम्पन भारी॥
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा॥6॥
मूल
दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकम्पन भारी॥
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा॥6॥
भावार्थ
दुर्मुख, देवशत्रु (देवान्तक), मनुष्य भक्षक (नरान्तक), भारी योद्धा अतिकाय और अकम्पन तथा महोदर आदि दूसरे सभी रणधीर वीर रणभूमि में मारे गए॥6॥