01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
दस दस सर सब मारेसि परे भूमि कपि बीर।
सिंहनाद करि गर्जा मेघनाद बल धीर॥50॥
मूल
दस दस सर सब मारेसि परे भूमि कपि बीर।
सिंहनाद करि गर्जा मेघनाद बल धीर॥50॥
भावार्थ
फिर उसने सबको दस-दस बाण मारे, वानर वीर पृथ्वी पर गिर पडे। बलवान् और धीर मेघनाद सिंह के समान नाद करके गरजने लगा॥50॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
देखि पवनसुत कटक बिहाला। क्रोधवन्त जनु धायउ काला॥
महासैल एक तुरत उपारा। अति रिस मेघनाद पर डारा॥1॥
मूल
देखि पवनसुत कटक बिहाला। क्रोधवन्त जनु धायउ काला॥
महासैल एक तुरत उपारा। अति रिस मेघनाद पर डारा॥1॥
भावार्थ
सारी सेना को बेहाल (व्याकुल) देखकर पवनसुत हनुमान् क्रोध करके ऐसे दौडे मानो स्वयं काल दौड आता हो। उन्होन्ने तुरन्त एक बडा भारी पहाड उखाड लिया और बडे ही क्रोध के साथ उसे मेघनाद पर छोडा॥1॥
आवत देखि गयउ नभ सोई। रथ सारथी तुरग सब खोई॥
बार बार पचार हनुमाना। निकट न आव मरमु सो जाना॥2॥
मूल
आवत देखि गयउ नभ सोई। रथ सारथी तुरग सब खोई॥
बार बार पचार हनुमाना। निकट न आव मरमु सो जाना॥2॥
भावार्थ
पहाडों को आते देखकर वह आकाश में उड गया। (उसके) रथ, सारथी और घोडे सब नष्ट हो गए (चूर-चूर हो गए) हनुमान्जी उसे बार-बार ललकारते हैं। पर वह निकट नहीं आता, क्योङ्कि वह उनके बल का मर्म जानता था॥2॥
रघुपति निकट गयउ घननादा। नाना भाँति करेसि दुर्बादा॥
अस्त्र सस्त्र आयुध सब डारे। कौतुकहीं प्रभु काटि निवारे॥3॥
मूल
रघुपति निकट गयउ घननादा। नाना भाँति करेसि दुर्बादा॥
अस्त्र सस्त्र आयुध सब डारे। कौतुकहीं प्रभु काटि निवारे॥3॥
भावार्थ
(तब) मेघनाद श्री रघुनाथजी के पास गया और उसने (उनके प्रति) अनेकों प्रकार के दुर्वचनों का प्रयोग किया। (फिर) उसने उन पर अस्त्र-शस्त्र तथा और सब हथियार चलाए। प्रभु ने खेल में ही सबको काटकर अलग कर दिया॥3॥
देखि प्रताप मूढ खिसिआना। करै लाग माया बिधि नाना॥
जिमि कोउ करै गरुड सैं खेला। डरपावै गहि स्वल्प सपेला॥4॥
मूल
देखि प्रताप मूढ खिसिआना। करै लाग माया बिधि नाना॥
जिमि कोउ करै गरुड सैं खेला। डरपावै गहि स्वल्प सपेला॥4॥
भावार्थ
श्री रामजी का प्रताप (सामर्थ्य) देखकर वह मूर्ख लज्जित हो गया और अनेकों प्रकार की माया करने लगा। जैसे कोई व्यक्ति छोटा सा साँप का बच्चा हाथ में लेकर गरुड को डरावे और उससे खेल करे॥4॥