01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
मेघनाद सुनि श्रवन अस गढ पुनि छेङ्का आइ।
उतर्यो बीर दुर्ग तें सन्मुख चल्यो बजाइ॥49॥
मूल
मेघनाद सुनि श्रवन अस गढ पुनि छेङ्का आइ।
उतर्यो बीर दुर्ग तें सन्मुख चल्यो बजाइ॥49॥
भावार्थ
मेघनाद ने कानों से ऐसा सुना कि वानरों ने आकर फिर किले को घेर लिया है। तब वह वीर किले से उतरा और डङ्का बजाकर उनके सामने चला॥49॥
02 चौपाई
कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता। धन्वी सकल लोत बिख्याता॥
कहँ नल नील दुबिद सुग्रीवा। अङ्गद हनूमन्त बल सींवा॥1॥
मूल
कहँ कोसलाधीस द्वौ भ्राता। धन्वी सकल लोत बिख्याता॥
कहँ नल नील दुबिद सुग्रीवा। अङ्गद हनूमन्त बल सींवा॥1॥
भावार्थ
(मेघनाद ने पुकारकर कहा-) समस्त लोकों में प्रसिद्ध धनुर्धर कोसलाधीश दोनों भाई कहाँ हैं? नल, नील, द्विविद, सुग्रीव और बल की सीमा अङ्गद और हनुमान् कहाँ हैं?॥1॥
कहाँ बिभीषनु भ्राताद्रोही। आजु सबहि हठि मारउँ ओही॥
अस कहि कठिन बान सन्धाने। अतिसय क्रोध श्रवन लगि ताने॥2॥
मूल
कहाँ बिभीषनु भ्राताद्रोही। आजु सबहि हठि मारउँ ओही॥
अस कहि कठिन बान सन्धाने। अतिसय क्रोध श्रवन लगि ताने॥2॥
भावार्थ
भाई से द्रोह करने वाला विभीषण कहाँ है? आज मैं सबको और उस दुष्ट को तो हठपूर्वक (अवश्य ही) मारूँगा। ऐसा कहकर उसने धनुष पर कठिन बाणों का सन्धान किया और अत्यन्त क्रोध करके उसे कान तक खीञ्चा॥2॥
सर समूह सो छाडै लागा। जनु सपच्छ धावहिं बहु नागा॥
जहँ तहँ परत देखिअहिं बानर। सन्मुख होइ न सके तेहि अवसर॥3॥
मूल
सर समूह सो छाडै लागा। जनु सपच्छ धावहिं बहु नागा॥
जहँ तहँ परत देखिअहिं बानर। सन्मुख होइ न सके तेहि अवसर॥3॥
भावार्थ
वह बाणों के समूह छोडने लगा। मानो बहुत से पङ्खवाले साँप दौडे जा रहे हों। जहाँ-तहाँ वानर गिरते दिखाई पडने लगे। उस समय कोई भी उसके सामने न हो सके॥3॥
जहँ तहँ भागि चले कपि रीछा। बिसरी सबहि जुद्ध कै ईछा॥
सो कपि भालु न रन महँ देखा। कीन्हेसि जेहि न प्रान अवसेषा॥4॥
मूल
जहँ तहँ भागि चले कपि रीछा। बिसरी सबहि जुद्ध कै ईछा॥
सो कपि भालु न रन महँ देखा। कीन्हेसि जेहि न प्रान अवसेषा॥4॥
भावार्थ
रीछ-वानर जहाँ-तहाँ भाग चले। सबको युद्ध की इच्छा भूल गई। रणभूमि में ऐसा एक भी वानर या भालू नहीं दिखाई पडा, जिसको उसने प्राणमात्र अवशेष न कर दिया हो (अर्थात् जिसके केवल प्राणमात्र ही न बचे हों, बल, पुरुषार्थ सारा जाता न रहा हो)॥4॥