046

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

देखि निबिड तम दसहुँ दिसि कपिदल भयउ खभार।
एकहि एक न देखई जहँ तहँ करहिं पुकार॥46॥

मूल

देखि निबिड तम दसहुँ दिसि कपिदल भयउ खभार।
एकहि एक न देखई जहँ तहँ करहिं पुकार॥46॥

भावार्थ

दसों दिशाओं में अत्यन्त घना अन्धकार देखकर वानरों की सेना में खलबली पड गई। एक को एक (दूसरा) नहीं देख सकता और सब जहाँ-तहाँ पुकार रहे हैं॥46॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सकल मरमु रघुनायक जाना। लिए बोलि अङ्गद हनुमाना॥
समाचार सब कहि समुझाए। सुनत कोपि कपिकुञ्जर धाए॥1॥

मूल

सकल मरमु रघुनायक जाना। लिए बोलि अङ्गद हनुमाना॥
समाचार सब कहि समुझाए। सुनत कोपि कपिकुञ्जर धाए॥1॥

भावार्थ

श्री रघुनाथजी सब रहस्य जान गए। उन्होन्ने अङ्गद और हनुमान्‌ को बुला लिया और सब समाचार कहकर समझाया। सुनते ही वे दोनों कपिश्रेष्ठ क्रोध करके दौडे॥1॥

पुनि कृपाल हँसि चाप चढावा। पावक सायक सपदि चलावा॥
भयउ प्रकास कतहुँ तम नाहीं। ग्यान उदयँ जिमि संसय जाहीं॥2॥

मूल

पुनि कृपाल हँसि चाप चढावा। पावक सायक सपदि चलावा॥
भयउ प्रकास कतहुँ तम नाहीं। ग्यान उदयँ जिमि संसय जाहीं॥2॥

भावार्थ

फिर कृपालु श्री रामजी ने हँसकर धनुष चलाया और तुरन्त ही अग्निबाण चलाया, जिससे प्रकाश हो गया, कहीं अँधेरा नहीं रह गया। जैसे ज्ञान के उदय होने पर (सब प्रकार के) सन्देह दूर हो जाते हैं॥2॥

भालु बलीमुख पाई प्रकासा। धाए हरष बिगत श्रम त्रासा॥
हनूमान अङ्गद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे॥3॥

मूल

भालु बलीमुख पाई प्रकासा। धाए हरष बिगत श्रम त्रासा॥
हनूमान अङ्गद रन गाजे। हाँक सुनत रजनीचर भाजे॥3॥

भावार्थ

भालू और वानर प्रकाश पाकर श्रम और भय से रहित तथा प्रसन्न होकर दौडे। हनुमान्‌ और अङ्गद रण में गरज उठे। उनकी हाँक सुनते ही राक्षस भाग छूटे॥3॥

भागत भट पटकहिं धरि धरनी। करहिं भालु कपि अद्भुत करनी॥
गहि पद डारहिं सागर माहीं। मकर उरग झष धरि धरि खाहीं॥4॥

मूल

भागत भट पटकहिं धरि धरनी। करहिं भालु कपि अद्भुत करनी॥
गहि पद डारहिं सागर माहीं। मकर उरग झष धरि धरि खाहीं॥4॥

भावार्थ

भागते हुए राक्षस योद्धाओं को वानर और भालू पकडकर पृथ्वी पर दे मारते हैं और अद्भुत (आश्चर्यजनक) करनी करते हैं (युद्धकौशल दिखलाते हैं)। पैर पकडकर उन्हें समुद्र में डाल देते हैं। वहाँ मगर, साँप और मच्छ उन्हें पकड-पकडकर खा डालते हैं॥4॥