043

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

अङ्गद सुना पवनसुत गढ पर गयउ अकेल।
रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढेउ कपि खेल॥43॥

मूल

अङ्गद सुना पवनसुत गढ पर गयउ अकेल।
रन बाँकुरा बालिसुत तरकि चढेउ कपि खेल॥43॥

भावार्थ

इधर अङ्गद ने सुना कि पवनपुत्र हनुमान्‌ किले पर अकेले ही गए हैं, तो रण में बाँके बालि पुत्र वानर के खेल की तरह उछलकर किले पर चढ गए॥43॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बन्दर। राम प्रताप सुमिरि उर अन्तर॥
रावन भवन चढे द्वौ धाई। करहिं कोसलाधीस दोहाई॥1॥

मूल

जुद्ध बिरुद्ध क्रुद्ध द्वौ बन्दर। राम प्रताप सुमिरि उर अन्तर॥
रावन भवन चढे द्वौ धाई। करहिं कोसलाधीस दोहाई॥1॥

भावार्थ

युद्ध में शत्रुओं के विरुद्ध दोनों वानर क्रुद्ध हो गए। हृदय में श्री रामजी के प्रताप का स्मरण करके दोनों दौडकर रावण के महल पर जा चढे और कोसलराज श्री रामजी की दुहाई बोलने लगे॥1॥

कलस सहित गहि भवनु ढहावा। देखि निसाचरपति भय पावा॥
नारि बृन्द कर पीटहिं छाती। अब दुइ कपि आए उतपाती॥2॥

मूल

कलस सहित गहि भवनु ढहावा। देखि निसाचरपति भय पावा॥
नारि बृन्द कर पीटहिं छाती। अब दुइ कपि आए उतपाती॥2॥

भावार्थ

उन्होन्ने कलश सहित महल को पकडकर ढहा दिया। यह देखकर राक्षस राज रावण डर गया। सब स्त्रियाँ हाथों से छाती पीटने लगीं (और कहने लगीं-) अब की बार दो उत्पाती वानर (एक साथ) आ गए हैं॥2॥

कपिलीला करि तिन्हहि डेरावहिं। रामचन्द्र कर सुजसु सुनावहिं॥
पुनि कर गहि कञ्चन के खम्भा। कहेन्हि करिअ उतपात अरम्भा॥3॥

मूल

कपिलीला करि तिन्हहि डेरावहिं। रामचन्द्र कर सुजसु सुनावहिं॥
पुनि कर गहि कञ्चन के खम्भा। कहेन्हि करिअ उतपात अरम्भा॥3॥

भावार्थ

वानरलीला करके (घुडकी देकर) दोनों उनको डराते हैं और श्री रामचन्द्रजी का सुन्दर यश सुनाते हैं। फिर सोने के खम्भों को हाथों से पकडकर उन्होन्ने (परस्पर) कहा कि अब उत्पात आरम्भ किया जाए॥3॥

गर्जि परे रिपु कटक मझारी। लागे मर्दै भुज बल भारी॥
काहुहि लात चपेटन्हि केहू। भजहु न रामहि सो फल लेहू॥4॥

मूल

गर्जि परे रिपु कटक मझारी। लागे मर्दै भुज बल भारी॥
काहुहि लात चपेटन्हि केहू। भजहु न रामहि सो फल लेहू॥4॥

भावार्थ

वे गर्जकर शत्रु की सेना के बीच में कूद पडे और अपने भारी भुजबल से उसका मर्दन करने लगे। किसी की लात से और किसी की थप्पड से खबर लेते हैं (और कहते हैं कि) तुम श्री रामजी को नहीं भजते, उसका यह फल लो॥4॥