01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
बहु आयुध धर सुभट सब भिरहिं पचारि पचारि।
ब्याकुल किए भालु कपि परिघ त्रिसूलन्हि मारि॥42॥
मूल
बहु आयुध धर सुभट सब भिरहिं पचारि पचारि।
ब्याकुल किए भालु कपि परिघ त्रिसूलन्हि मारि॥42॥
भावार्थ
बहुत से अस्त्र-शस्त्र धारण किए, सब वीर ललकार-ललकारकर भिडने लगे। उन्होन्ने परिघों और त्रिशूलों से मार-मारकर सब रीछ-वानरों को व्याकुल कर दिया॥42॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
भय आतुर कपि भागत लागे। जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे॥
कोउ कह कहँ अङ्गद हनुमन्ता। कहँ नल नील दुबिद बलवन्ता॥1॥
मूल
भय आतुर कपि भागत लागे। जद्यपि उमा जीतिहहिं आगे॥
कोउ कह कहँ अङ्गद हनुमन्ता। कहँ नल नील दुबिद बलवन्ता॥1॥
भावार्थ
(शिवजी कहते हैं-) वानर भयातुर होकर (डर के मारे घबडाकर) भागने लगे, यद्यपि हे उमा! आगे चलकर (वे ही) जीतेङ्गे। कोई कहता है- अङ्गद-हनुमान् कहाँ हैं? बलवान् नल, नील और द्विविद कहाँ हैं?॥1॥
निज दल बिकल सुना हनुमाना। पच्छिम द्वार रहा बलवाना॥
मेघनाद तहँ करइ लराई। टूट न द्वार परम कठिनाई॥2॥
मूल
निज दल बिकल सुना हनुमाना। पच्छिम द्वार रहा बलवाना॥
मेघनाद तहँ करइ लराई। टूट न द्वार परम कठिनाई॥2॥
भावार्थ
हनुमान्जी ने जब अपने दल को विकल (भयभीत) हुआ सुना, उस समय वे बलवान् पश्चिम द्वार पर थे। वहाँ उनसे मेघनाद युद्ध कर रहा था। वह द्वार टूटता न था, बडी भारी कठिनाई हो रही थी॥2॥
पवनतनय मन भा अति क्रोधा। गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा॥
कूदि लङ्क गढ ऊपर आवा। गहि गिरि मेघनाद कहुँ धावा॥3॥
मूल
पवनतनय मन भा अति क्रोधा। गर्जेउ प्रबल काल सम जोधा॥
कूदि लङ्क गढ ऊपर आवा। गहि गिरि मेघनाद कहुँ धावा॥3॥
भावार्थ
तब पवनपुत्र हनुमान्जी के मन में बडा भारी क्रोध हुआ। वे काल के समान योद्धा बडे जोर से गरजे और कूदकर लङ्का के किले पर आ गए और पहाड लेकर मेघनाद की ओर दौडे॥3॥
भञ्जेउ रथ सारथी निपाता। ताहि हृदय महुँ मारेसि लाता॥
दुसरें सूत बिकल तेहि जाना। स्यन्दन घालि तुरत गृह आना॥4॥
मूल
भञ्जेउ रथ सारथी निपाता। ताहि हृदय महुँ मारेसि लाता॥
दुसरें सूत बिकल तेहि जाना। स्यन्दन घालि तुरत गृह आना॥4॥
भावार्थ
रथ तोड डाला, सारथी को मार गिराया और मेघनाद की छाती में लात मारी। दूसरा सारथी मेघनाद को व्याकुल जानकर, उसे रथ में डालकर, तुरन्त घर ले आया॥4॥