022

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

जनि जल्पसि जड जन्तु कपि सठ बिलोकु मम बाहु।
लोकपाल बल बिपुल ससि ग्रसन हेतु सब राहु॥1॥

मूल

जनि जल्पसि जड जन्तु कपि सठ बिलोकु मम बाहु।
लोकपाल बल बिपुल ससि ग्रसन हेतु सब राहु॥1॥

भावार्थ

(रावण ने कहा-) अरे जड जन्तु वानर! व्यर्थ बक-बक न कर, अरे मूर्ख! मेरी भुजाएँ तो देख। ये सब लोकपालों के विशाल बल रूपी चन्द्रमा को ग्रसने के लिए राहु हैं॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पुनि नभ सर मम कर निकर कमलन्हि पर करि बास।
सोभत भयउ मराल इव सम्भु सहित कैलास॥2॥

मूल

पुनि नभ सर मम कर निकर कमलन्हि पर करि बास।
सोभत भयउ मराल इव सम्भु सहित कैलास॥2॥

भावार्थ

फिर (तूने सुना ही होगा कि) आकाश रूपी तालाब में मेरी भुजाओं रूपी कमलों पर बसकर शिवजी सहित कैलास हंस के समान शोभा को प्राप्त हुआ था!॥2॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुम्हरे कटक माझ सुनु अङ्गद। मो सन भिरिहि कवन जोधा बद॥
तब प्रभु नारि बिरहँ बलहीना। अनुज तासु दुख दुखी मलीना॥1॥

मूल

तुम्हरे कटक माझ सुनु अङ्गद। मो सन भिरिहि कवन जोधा बद॥
तब प्रभु नारि बिरहँ बलहीना। अनुज तासु दुख दुखी मलीना॥1॥

भावार्थ

अरे अङ्गद! सुन, तेरी सेना में बता, ऐसा कौन योद्धा है, जो मुझसे भिड सकेगा। तेरा मालिक तो स्त्री के वियोग में बलहीन हो रहा है और उसका छोटा भाई उसी के दुःख से दुःखी और उदास है॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुम्ह सुग्रीव कूलद्रुम दोऊ। अनुज हमार भीरु अति सोऊ॥
जामवन्त मन्त्री अति बूढा। सो कि होइ अब समरारूढा॥2॥

मूल

तुम्ह सुग्रीव कूलद्रुम दोऊ। अनुज हमार भीरु अति सोऊ॥
जामवन्त मन्त्री अति बूढा। सो कि होइ अब समरारूढा॥2॥

भावार्थ

तुम और सुग्रीव, दोनों (नदी) तट के वृक्ष हो (रहा) मेरा छोटा भाई विभीषण, (सो) वह भी बडा डरपोक है। मन्त्री जाम्बवान्‌ बहुत बूढा है। वह अब लडाई में क्या चढ (उद्यत हो) सकता है?॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सिल्पि कर्म जानहिं नल नीला। है कपि एक महा बलसीला॥
आवा प्रथम नगरु जेहिं जारा। सुनत बचन कह बालिकुमारा॥3॥

मूल

सिल्पि कर्म जानहिं नल नीला। है कपि एक महा बलसीला॥
आवा प्रथम नगरु जेहिं जारा। सुनत बचन कह बालिकुमारा॥3॥

भावार्थ

नल-नील तो शिल्प-कर्म जानते हैं (वे लडना क्या जानें?)। हाँ, एक वानर जरूर महान्‌ बलवान्‌ है, जो पहले आया था और जिसने लङ्का जलाई थी। यह वचन सुनते ही बालि पुत्र अङ्गद ने कहा-॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सत्य बचन कहु निसिचर नाहा। साँचेहुँ कीस कीन्ह पुर दाहा॥
रावण नगर अल्प कपि दहई। सुनि अस बचन सत्य को कहई॥4॥

मूल

सत्य बचन कहु निसिचर नाहा। साँचेहुँ कीस कीन्ह पुर दाहा॥
रावण नगर अल्प कपि दहई। सुनि अस बचन सत्य को कहई॥4॥

भावार्थ

हे राक्षसराज! सच्ची बात कहो! क्या उस वानर ने सचमुच तुम्हारा नगर जला दिया? रावण (जैसे जगद्विजयी योद्धा) का नगर एक छोटे से वानर ने जला दिया। ऐसे वचन सुनकर उन्हें सत्य कौन कहेगा?॥4॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जो अति सुभट सराहेहु रावन। सो सुग्रीव केर लघु धावन॥
चलइ बहुत सो बीर न होई। पठवा खबरि लेन हम सोई॥5॥

मूल

जो अति सुभट सराहेहु रावन। सो सुग्रीव केर लघु धावन॥
चलइ बहुत सो बीर न होई। पठवा खबरि लेन हम सोई॥5॥

भावार्थ

हे रावण! जिसको तुमने बहुत बडा योद्धा कहकर सराहा है, वह तो सुग्रीव का एक छोटा सा दौडकर चलने वाला हरकारा है। वह बहुत चलता है, वीर नहीं है। उसको तो हमने (केवल) खबर लेने के लिए भेजा था॥5॥