018

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कञ्ज।
सिंह ठवनि इत उत चितव धीर बीर बल पुञ्ज॥18॥

मूल

गयउ सभा दरबार तब सुमिरि राम पद कञ्ज।
सिंह ठवनि इत उत चितव धीर बीर बल पुञ्ज॥18॥

भावार्थ

श्री रामजी के चरणकमलों का स्मरण करके अङ्गद रावण की सभा के द्वार पर गए और वे धीर, वीर और बल की राशि अङ्गद सिंह की सी ऐण्ड (शान) से इधर-उधर देखने लगे॥18॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

तुरत निसाचर एक पठावा। समाचार रावनहि जनावा॥
सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा॥1॥

मूल

तुरत निसाचर एक पठावा। समाचार रावनहि जनावा॥
सुनत बिहँसि बोला दससीसा। आनहु बोलि कहाँ कर कीसा॥1॥

भावार्थ

तुरन्त ही उन्होन्ने एक राक्षस को भेजा और रावण को अपने आने का समाचार सूचित किया। सुनते ही रावण हँसकर बोला- बुला लाओ, (देखें) कहाँ का बन्दर है॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आयसु पाइ दूत बहु धाए। कपिकुञ्जरहि बोलि लै आए॥
अङ्गद दीख दसानन बैसें। सहित प्रान कज्जलगिरि जैसें॥2॥

मूल

आयसु पाइ दूत बहु धाए। कपिकुञ्जरहि बोलि लै आए॥
अङ्गद दीख दसानन बैसें। सहित प्रान कज्जलगिरि जैसें॥2॥

भावार्थ

आज्ञा पाकर बहुत से दूत दौडे और वानरों में हाथी के समान अङ्गद को बुला लाए। अङ्गद ने रावण को ऐसे बैठे हुए देखा, जैसे कोई प्राणयुक्त (सजीव) काजल का पहाड हो!॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भुजा बिटप सिर सृङ्ग समाना। रोमावली लता जनु नाना॥
मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कन्दरा खोह अनुमाना॥3॥

मूल

भुजा बिटप सिर सृङ्ग समाना। रोमावली लता जनु नाना॥
मुख नासिका नयन अरु काना। गिरि कन्दरा खोह अनुमाना॥3॥

भावार्थ

भुजाएँ वृक्षों के और सिर पर्वतों के शिखरों के समान हैं। रोमावली मानो बहुत सी लताएँ हैं। मुँह, नाक, नेत्र और कान पर्वत की कन्दराओं और खोहों के बराबर हैं॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा। बालितनय अतिबल बाँकुरा॥
उठे सभासद कपि कहुँ देखी। रावन उर भा क्रोध बिसेषी॥4॥

मूल

गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा। बालितनय अतिबल बाँकुरा॥
उठे सभासद कपि कहुँ देखी। रावन उर भा क्रोध बिसेषी॥4॥

भावार्थ

अत्यन्त बलवान्‌ बाँके वीर बालिपुत्र अङ्गद सभा में गए, वे मन में जरा भी नहीं झिझके। अङ्गद को देखते ही सब सभासद् उठ खडे हुए। यह देखकर रावण के हृदय में बडा क्रोध हुआ॥4॥