01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।
लोक कल्पना बेद कर अङ्ग अङ्ग प्रति जासु॥14॥
मूल
बिस्वरूप रघुबंस मनि करहु बचन बिस्वासु।
लोक कल्पना बेद कर अङ्ग अङ्ग प्रति जासु॥14॥
भावार्थ
मेरे इन वचनों पर विश्वास कीजिए कि ये रघुकुल के शिरोमणि श्री रामचन्द्रजी विश्व रूप हैं- (यह सारा विश्व उन्हीं का रूप है)। वेद जिनके अङ्ग-अङ्ग में लोकों की कल्पना करते हैं॥14॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥
भृकुटि बिलास भयङ्कर काला। नयन दिवाकर कच घन माला॥1॥
मूल
पद पाताल सीस अज धामा। अपर लोक अँग अँग बिश्रामा॥
भृकुटि बिलास भयङ्कर काला। नयन दिवाकर कच घन माला॥1॥
भावार्थ
पाताल (जिन विश्व रूप भगवान् का) चरण है, ब्रह्म लोक सिर है, अन्य (बीच के सब) लोकों का विश्राम (स्थिति) जिनके अन्य भिन्न-भिन्न अङ्गों पर है। भयङ्कर काल जिनका भृकुटि सञ्चालन (भौंहों का चलना) है। सूर्य नेत्र हैं, बादलों का समूह बाल है॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जासु घ्रान अस्विनीकुमारा। निसि अरु दिवस निमेष अपारा॥
श्रवन दिसा दस बेद बखानी। मारुत स्वास निगम निज बानी॥2॥
मूल
जासु घ्रान अस्विनीकुमारा। निसि अरु दिवस निमेष अपारा॥
श्रवन दिसा दस बेद बखानी। मारुत स्वास निगम निज बानी॥2॥
भावार्थ
अश्विनी कुमार जिनकी नासिका हैं, रात और दिन जिनके अपार निमेष (पलक मारना और खोलना) हैं। दसों दिशाएँ कान हैं, वेद ऐसा कहते हैं। वायु श्वास है और वेद जिनकी अपनी वाणी है॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अधर लोभ जम दसन कराला। माया हास बाहु दिगपाला॥
आनन अनल अम्बुपति जीहा। उतपति पालन प्रलय समीहा॥3॥
मूल
अधर लोभ जम दसन कराला। माया हास बाहु दिगपाला॥
आनन अनल अम्बुपति जीहा। उतपति पालन प्रलय समीहा॥3॥
भावार्थ
लोभ जिनका अधर (होठ) है, यमराज भयानक दाँत हैं। माया हँसी है, दिक्पाल भुजाएँ हैं। अग्नि मुख है, वरुण जीभ है। उत्पत्ति, पालन और प्रलय जिनकी चेष्टा (क्रिया) है॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा॥
उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना॥4॥
मूल
रोम राजि अष्टादस भारा। अस्थि सैल सरिता नस जारा॥
उदर उदधि अधगो जातना। जगमय प्रभु का बहु कलपना॥4॥
भावार्थ
अठारह प्रकार की असङ्ख्य वनस्पतियाँ जिनकी रोमावली हैं, पर्वत अस्थियाँ हैं, नदियाँ नसों का जाल है, समुद्र पेट है और नरक जिनकी नीचे की इन्द्रियाँ हैं। इस प्रकार प्रभु विश्वमय हैं, अधिक कल्पना (ऊहापोह) क्या की जाए?॥4॥