01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
नारि पाइ फिरि जाहिं जौं तौ न बढाइअ रारि।
नाहिं त सन्मुख समर महि तात करिअ हठि मारि॥9॥
मूल
नारि पाइ फिरि जाहिं जौं तौ न बढाइअ रारि।
नाहिं त सन्मुख समर महि तात करिअ हठि मारि॥9॥
भावार्थ
यदि वे स्त्री पाकर लौट जाएँ, तब तो (व्यर्थ) झगडा न बढाइये। नहीं तो (यदि न फिरें तो) हे तात! सम्मुख युद्धभूमि में उनसे हठपूर्वक (डटकर) मार-काट कीजिए॥9॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा। उभय प्रकार सुजसु जग तोरा॥
सुत सन कह दसकण्ठ रिसाई। असि मति सठ केहिं तोहि सिखाई॥1॥
मूल
यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा। उभय प्रकार सुजसु जग तोरा॥
सुत सन कह दसकण्ठ रिसाई। असि मति सठ केहिं तोहि सिखाई॥1॥
भावार्थ
हे प्रभो! यदि आप मेरी यह सम्मति मानेङ्गे, तो जगत् में दोनों ही प्रकार से आपका सुयश होगा। रावण ने गुस्से में भरकर पुत्र से कहा- अरे मूर्ख! तुझे ऐसी बुद्धि किसने सिखायी?॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अबहीं ते उर संसय होई। बेनुमूल सुत भयहु घमोई॥
सुनि पितु गिरा परुष अति घोरा। चला भवन कहि बचन कठोरा॥2॥
मूल
अबहीं ते उर संसय होई। बेनुमूल सुत भयहु घमोई॥
सुनि पितु गिरा परुष अति घोरा। चला भवन कहि बचन कठोरा॥2॥
भावार्थ
अभी से हृदय में सन्देह (भय) हो रहा है? हे पुत्र! तू तो बाँस की जड में घमोई हुआ (तू मेरे वंश के अनुकूल या अनुरूप नहीं हुआ)। पिता की अत्यन्त घोर और कठोर वाणी सुनकर प्रहस्त ये कडे वचन कहता हुआ घर को चला गया॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
हित मत तोहि न लागत कैसें। काल बिबस कहुँ भेषज जैसें॥
सन्ध्या समय जानि दससीसा। भवन चलेउ निरखत भुज बीसा॥3॥
मूल
हित मत तोहि न लागत कैसें। काल बिबस कहुँ भेषज जैसें॥
सन्ध्या समय जानि दससीसा। भवन चलेउ निरखत भुज बीसा॥3॥
भावार्थ
हित की सलाह आपको कैसे नहीं लगती (आप पर कैसे असर नहीं करती), जैसे मृत्यु के वश हुए (रोगी) को दवा नहीं लगती। सन्ध्या का समय जानकर रावण अपनी बीसों भुजाओं को देखता हुआ महल को चला॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लङ्का सिखर उपर आगारा। अति बिचित्र तहँ होइ अखारा॥
बैठ जाइ तेहिं मन्दिर रावन। लागे किन्नर गुन गन गावन॥4॥
मूल
लङ्का सिखर उपर आगारा। अति बिचित्र तहँ होइ अखारा॥
बैठ जाइ तेहिं मन्दिर रावन। लागे किन्नर गुन गन गावन॥4॥
भावार्थ
लङ्का की चोटी पर एक अत्यन्त विचित्र महल था। वहाँ नाच-गान का अखाडा जमता था। रावण उस महल में जाकर बैठ गया। किन्नर उसके गुण समूहों को गाने लगे॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाजहिं ताल पखाउज बीना। नृत्य करहिं अपछरा प्रबीना॥5॥
मूल
बाजहिं ताल पखाउज बीना। नृत्य करहिं अपछरा प्रबीना॥5॥
भावार्थ
ताल (करताल), पखावज (मृदङ्ग) और बीणा बज रहे हैं। नृत्य में प्रवीण अप्सराएँ नाच रही हैं॥5॥