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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सकल सुमङ्गल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिन्धु बिना जलजान॥60॥

मूल

सकल सुमङ्गल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिन्धु बिना जलजान॥60॥

भावार्थ

श्री रघुनाथजी का गुणगान सम्पूर्ण सुन्दर मङ्गलों का देने वाला है। जो इसे आदर सहित सुनेङ्गे, वे बिना किसी जहाज (अन्य साधन) के ही भवसागर को तर जाएँगे॥60॥

इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने पञ्चम सोपानः समाप्तः।
कलियुग के सम्पूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्री रामचरितमानस का यह पाञ्चवा सोपान समाप्त हुआ।
(सुन्दरकाण्ड समाप्त)