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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह।
प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह॥51॥

मूल

सकल चरित तिन्ह देखे धरें कपट कपि देह।
प्रभु गुन हृदयँ सराहहिं सरनागत पर नेह॥51॥

भावार्थ

कपट से वानर का शरीर धारण कर उन्होन्ने सब लीलाएँ देखीं। वे अपने हृदय में प्रभु के गुणों की और शरणागत पर उनके स्नेह की सराहना करने लगे॥51॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ। अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ॥
रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने। सकल बाँधि कपीस पहिं आने॥1॥

मूल

प्रगट बखानहिं राम सुभाऊ। अति सप्रेम गा बिसरि दुराऊ॥
रिपु के दूत कपिन्ह तब जाने। सकल बाँधि कपीस पहिं आने॥1॥

भावार्थ

फिर वे प्रकट रूप में भी अत्यन्त प्रेम के साथ श्री रामजी के स्वभाव की बडाई करने लगे उन्हें दुराव (कपट वेश) भूल गया। सब वानरों ने जाना कि ये शत्रु के दूत हैं और वे उन सबको बाँधकर सुग्रीव के पास ले आए॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कह सुग्रीव सुनहु सब बानर। अङ्ग भङ्ग करि पठवहु निसिचर॥
सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए॥2॥

मूल

कह सुग्रीव सुनहु सब बानर। अङ्ग भङ्ग करि पठवहु निसिचर॥
सुनि सुग्रीव बचन कपि धाए। बाँधि कटक चहु पास फिराए॥2॥

भावार्थ

सुग्रीव ने कहा- सब वानरों! सुनो, राक्षसों के अङ्ग-भङ्ग करके भेज दो। सुग्रीव के वचन सुनकर वानर दौडे। दूतों को बाँधकर उन्होन्ने सेना के चारों ओर घुमाया॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बहु प्रकार मारन कपि लागे। दीन पुकारत तदपि न त्यागे॥
जो हमार हर नासा काना। तेहि कोसलाधीस कै आना॥3॥

मूल

बहु प्रकार मारन कपि लागे। दीन पुकारत तदपि न त्यागे॥
जो हमार हर नासा काना। तेहि कोसलाधीस कै आना॥3॥

भावार्थ

वानर उन्हें बहुत तरह से मारने लगे। वे दीन होकर पुकारते थे, फिर भी वानरों ने उन्हें नहीं छोडा। (तब दूतों ने पुकारकर कहा-) जो हमारे नाक-कान काटेगा, उसे कोसलाधीश श्री रामजी की सौगन्ध है॥ 3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनि लछिमन सब निकट बोलाए। दया लागि हँसि तुरत छोडाए॥
रावन कर दीजहु यह पाती। लछिमन बचन बाचु कुलघाती॥4॥

मूल

सुनि लछिमन सब निकट बोलाए। दया लागि हँसि तुरत छोडाए॥
रावन कर दीजहु यह पाती। लछिमन बचन बाचु कुलघाती॥4॥

भावार्थ

यह सुनकर लक्ष्मणजी ने सबको निकट बुलाया। उन्हें बडी दया लगी, इससे हँसकर उन्होन्ने राक्षसों को तुरन्त ही छुडा दिया। (और उनसे कहा-) रावण के हाथ में यह चिट्ठी देना (और कहना-) हे कुलघातक! लक्ष्मण के शब्दों (सन्देसे) को बाँचो॥4॥