01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिँ कीन्ह॥27॥
मूल
जनकसुतहि समुझाइ करि बहु बिधि धीरजु दीन्ह।
चरन कमल सिरु नाइ कपि गवनु राम पहिँ कीन्ह॥27॥
भावार्थ
हनुमान्जी ने जानकीजी को समझाकर बहुत प्रकार से धीरज दिया और उनके चरणकमलों में सिर नवाकर श्री रामजी के पास गमन किया॥27॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिँ सुनि निसिचर नारी॥
नाँघि सिन्धु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥1॥
मूल
चलत महाधुनि गर्जेसि भारी। गर्भ स्रवहिँ सुनि निसिचर नारी॥
नाँघि सिन्धु एहि पारहि आवा। सबद किलिकिला कपिन्ह सुनावा॥1॥
भावार्थ
ः- चलते समय महाध्वनि से भारी गर्जना की, उसे सुनकर राक्षसियों के गर्भ गिर गए। समुद्र लाङ्घ कर इस पार आए और वानरों को किलकारी का शब्द (हर्ष सूचक ध्वनि) सुनाये।
विश्वास-प्रस्तुतिः
हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जनम कपिन्ह तब जाना॥
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा॥ 2॥
मूल
हरषे सब बिलोकि हनुमाना। नूतन जनम कपिन्ह तब जाना॥
मुख प्रसन्न तन तेज बिराजा। कीन्हेसि रामचन्द्र कर काजा॥ 2॥
भावार्थ
ः- हनूमानजी को देखकर सब प्रसन्न हुए; तब वानरों ने अपना नया जन्म समझा। देखा कि पवनकुमार का मुख प्रसन्न है और शरीर में तेज विराजमान है, इस से जान लिया कि रामचन्द्रजी का कार्य इन्होंने किया॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥
चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥3॥
मूल
मिले सकल अति भए सुखारी। तलफत मीन पाव जिमि बारी॥
चले हरषि रघुनायक पासा। पूँछत कहत नवल इतिहासा॥3॥
भावार्थ
ः- सब वानर परम प्रेमके साथ हनुमानजी से मिले और अत्यन्त प्रसन्न हुए जैसे कि मानो तड़पती हुई मछलीको पानी मिल गया॥ फिर वे सब सुन्दर इतिहास पूछते हुए और कहते हुए आनन्द के साथ रामचन्द्रजीके पास चले॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तब मधुबन भीतर सब आए। अङ्गद सम्मत मधु फल खाए॥
रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥4॥
मूल
तब मधुबन भीतर सब आए। अङ्गद सम्मत मधु फल खाए॥
रखवारे जब बरजन लागे। मुष्टि प्रहार हनत सब भागे॥4॥
भावार्थ
ः- फिर उन सबोंने मधुवनके अन्दर आकर युवराज अंगदके साथ वहां मीठे फल खाये॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जब वहांके पहरेदार बरजने लगे तब उनको मुक्कों से ऐसा मारा कि वे सब वहाँ से भाग गये॥4॥
मूल
जब वहांके पहरेदार बरजने लगे तब उनको मुक्कों से ऐसा मारा कि वे सब वहाँ से भाग गये॥4॥