01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रनतपाल रघुनायक करुना सिन्धु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि॥22॥
मूल
प्रनतपाल रघुनायक करुना सिन्धु खरारि।
गएँ सरन प्रभु राखिहैं तव अपराध बिसारि॥22॥
भावार्थ
खर के शत्रु श्री रघुनाथजी शरणागतों के रक्षक और दया के समुद्र हैं। शरण जाने पर प्रभु तुम्हारा अपराध भुलाकर तुम्हें अपनी शरण में रख लेङ्गे॥22॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम चरन पङ्कज उर धरहू। लङ्का अचल राजु तुम्ह करहू॥
रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयङ्का। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलङ्का॥1॥
मूल
राम चरन पङ्कज उर धरहू। लङ्का अचल राजु तुम्ह करहू॥
रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयङ्का। तेहि ससि महुँ जनि होहु कलङ्का॥1॥
भावार्थ
तुम श्री रामजी के चरण कमलों को हृदय में धारण करो और लङ्का का अचल राज्य करो। ऋषि पुलस्त्यजी का यश निर्मल चन्द्रमा के समान है। उस चन्द्रमा में तुम कलङ्क न बनो॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥
बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषन भूषित बर नारी॥2॥
मूल
राम नाम बिनु गिरा न सोहा। देखु बिचारि त्यागि मद मोहा॥
बसन हीन नहिं सोह सुरारी। सब भूषन भूषित बर नारी॥2॥
भावार्थ
राम नाम के बिना वाणी शोभा नहीं पाती, मद-मोह को छोड, विचारकर देखो। हे देवताओं के शत्रु! सब गहनों से सजी हुई सुन्दरी स्त्री भी कपडों के बिना (नङ्गी) शोभा नहीं पाती॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम बिमुख सम्पति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई॥
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥3॥
मूल
राम बिमुख सम्पति प्रभुताई। जाइ रही पाई बिनु पाई॥
सजल मूल जिन्ह सरितन्ह नाहीं। बरषि गएँ पुनि तबहिं सुखाहीं॥3॥
भावार्थ
रामविमुख पुरुष की सम्पत्ति और प्रभुता रही हुई भी चली जाती है और उसका पाना न पाने के समान है। जिन नदियों के मूल में कोई जलस्रोत नहीं है। (अर्थात् जिन्हें केवल बरसात ही आसरा है) वे वर्षा बीत जाने पर फिर तुरन्त ही सूख जाती हैं॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनु दसकण्ठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥
सङ्कर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥4॥
मूल
सुनु दसकण्ठ कहउँ पन रोपी। बिमुख राम त्राता नहिं कोपी॥
सङ्कर सहस बिष्नु अज तोही। सकहिं न राखि राम कर द्रोही॥4॥
भावार्थ
हे रावण! सुनो, मैं प्रतिज्ञा करके कहता हूँ कि रामविमुख की रक्षा करने वाला कोई भी नहीं है। हजारों शङ्कर, विष्णु और ब्रह्मा भी श्री रामजी के साथ द्रोह करने वाले तुमको नहीं बचा सकते॥4॥