01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद॥20॥
मूल
कपिहि बिलोकि दसानन बिहसा कहि दुर्बाद।
सुत बध सुरति कीन्हि पुनि उपजा हृदयँ बिसाद॥20॥
भावार्थ
हनुमान्जी को देखकर रावण दुर्वचन कहता हुआ खूब हँसा। फिर पुत्र वध का स्मरण किया तो उसके हृदय में विषाद उत्पन्न हो गया॥20॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
कह लङ्केस कवन तैं कीसा। केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असङ्क सठ तोही॥1॥
मूल
कह लङ्केस कवन तैं कीसा। केहि कें बल घालेहि बन खीसा॥
की धौं श्रवन सुनेहि नहिं मोही। देखउँ अति असङ्क सठ तोही॥1॥
भावार्थ
लङ्कापति रावण ने कहा- रे वानर! तू कौन है? किसके बल पर तूने वन को उजाडकर नष्ट कर डाला? क्या तूने कभी मुझे (मेरा नाम और यश) कानों से नहीं सुना? रे शठ! मैं तुझे अत्यन्त निःशङ्ख देख रहा हूँ॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥
सुनु रावन ब्रह्माण्ड निकाया। पाइ जासु बल बिरचति माया॥2॥
मूल
मारे निसिचर केहिं अपराधा। कहु सठ तोहि न प्रान कइ बाधा॥
सुनु रावन ब्रह्माण्ड निकाया। पाइ जासु बल बिरचति माया॥2॥
भावार्थ
तूने किस अपराध से राक्षसों को मारा? रे मूर्ख! बता, क्या तुझे प्राण जाने का भय नहीं है? (हनुमान्जी ने कहा-) हे रावण! सुन, जिनका बल पाकर माया सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के समूहों की रचना करती है,॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जाकें बल बिरञ्चि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन। अण्डकोस समेत गिरि कानन॥3॥
मूल
जाकें बल बिरञ्चि हरि ईसा। पालत सृजत हरत दससीसा॥
जा बल सीस धरत सहसानन। अण्डकोस समेत गिरि कानन॥3॥
भावार्थ
जिनके बल से हे दशशीश! ब्रह्मा, विष्णु, महेश (क्रमशः) सृष्टि का सृजन, पालन और संहार करते हैं, जिनके बल से सहस्रमुख (फणों) वाले शेषजी पर्वत और वनसहित समस्त ब्रह्माण्ड को सिर पर धारण करते हैं,॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
हर कोदण्ड कठिन जेहिं भञ्जा। तेहि समेत नृप दल मद गञ्जा॥4॥
मूल
धरइ जो बिबिध देह सुरत्राता। तुम्ह से सठन्ह सिखावनु दाता॥
हर कोदण्ड कठिन जेहिं भञ्जा। तेहि समेत नृप दल मद गञ्जा॥4॥
भावार्थ
जो देवताओं की रक्षा के लिए नाना प्रकार की देह धारण करते हैं और जो तुम्हारे जैसे मूर्खों को शिक्षा देने वाले हैं, जिन्होन्ने शिवजी के कठोर धनुष को तोड डाला और उसी के साथ राजाओं के समूह का गर्व चूर्ण कर दिया॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली॥5॥
मूल
खर दूषन त्रिसिरा अरु बाली। बधे सकल अतुलित बलसाली॥5॥
भावार्थ
जिन्होन्ने खर, दूषण, त्रिशिरा और बालि को मार डाला, जो सब के सब अतुलनीय बलवान् थे,॥5॥