01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥17॥
मूल
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥17॥
भावार्थ
हनुमान्जी को बुद्धि और बल में निपुण देखकर जानकीजी ने कहा- जाओ। हे तात! श्री रघुनाथजी के चरणों को हृदय में धारण करके मीठे फल खाओ॥17॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥
रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥1॥
मूल
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा। फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥
रहे तहाँ बहु भट रखवारे। कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥1॥
भावार्थ
वे सीताजी को सिर नवाकर चले और बाग में घुस गए। फल खाए और वृक्षों को तोडने लगे। वहाँ बहुत से योद्धा रखवाले थे। उनमें से कुछ को मार डाला और कुछ ने जाकर रावण से पुकार की-॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥2॥
मूल
नाथ एक आवा कपि भारी। तेहिं असोक बाटिका उजारी॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे। रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥2॥
भावार्थ
(और कहा-) हे नाथ! एक बडा भारी बन्दर आया है। उसने अशोक वाटिका उजाड डाली। फल खाए, वृक्षों को उखाड डाला और रखवालों को मसल-मसलकर जमीन पर डाल दिया॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥
सब रजनीचर कपि सङ्घारे। गए पुकारत कछु अधमारे॥3॥
मूल
सुनि रावन पठए भट नाना। तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥
सब रजनीचर कपि सङ्घारे। गए पुकारत कछु अधमारे॥3॥
भावार्थ
यह सुनकर रावण ने बहुत से योद्धा भेजे। उन्हें देखकर हनुमान्जी ने गर्जना की। हनुमान्जी ने सब राक्षसों को मार डाला, कुछ जो अधमरे थे, चिल्लाते हुए गए॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला सङ्ग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥4॥
मूल
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा। चला सङ्ग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा। ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥4॥
भावार्थ
फिर रावण ने अक्षयकुमार को भेजा। वह असङ्ख्य श्रेष्ठ योद्धाओं को साथ लेकर चला। उसे आते देखकर हनुमान्जी ने एक वृक्ष (हाथ में) लेकर ललकारा और उसे मारकर महाध्वनि (बडे जोर) से गर्जना की॥4॥