01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढि असि बोला अति खिसिआन॥9॥
मूल
आपुहि सुनि खद्योत सम रामहि भानु समान।
परुष बचन सुनि काढि असि बोला अति खिसिआन॥9॥
भावार्थ
अपने को जुगनू के समान और रामचन्द्रजी को सूर्य के समान सुनकर और सीताजी के कठोर वचनों को सुनकर रावण तलवार निकालकर बडे गुस्से में आकर बोला-॥9॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥
नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥1॥
मूल
सीता तैं मम कृत अपमाना। कटिहउँ तव सिर कठिन कृपाना॥
नाहिं त सपदि मानु मम बानी। सुमुखि होति न त जीवन हानी॥1॥
भावार्थ
सीता! तूने मेरा अपनाम किया है। मैं तेरा सिर इस कठोर कृपाण से काट डालूँगा। नहीं तो (अब भी) जल्दी मेरी बात मान ले। हे सुमुखि! नहीं तो जीवन से हाथ धोना पडेगा॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
स्याम सरोज दाम सम सुन्दर। प्रभु भुज करि कर सम दसकन्धर॥
सो भुज कण्ठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥2॥
मूल
स्याम सरोज दाम सम सुन्दर। प्रभु भुज करि कर सम दसकन्धर॥
सो भुज कण्ठ कि तव असि घोरा। सुनु सठ अस प्रवान पन मोरा॥2॥
भावार्थ
(सीताजी ने कहा-) हे दशग्रीव! प्रभु की भुजा जो श्याम कमल की माला के समान सुन्दर और हाथी की सूँड के समान (पुष्ट तथा विशाल) है, या तो वह भुजा ही मेरे कण्ठ में पडेगी या तेरी भयानक तलवार ही। रे शठ! सुन, यही मेरा सच्चा प्रण है॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चन्द्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल सञ्जातं॥
सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥3॥
मूल
चन्द्रहास हरु मम परितापं। रघुपति बिरह अनल सञ्जातं॥
सीतल निसित बहसि बर धारा। कह सीता हरु मम दुख भारा॥3॥
भावार्थ
सीताजी कहती हैं- हे चन्द्रहास (तलवार)! श्री रघुनाथजी के विरह की अग्नि से उत्पन्न मेरी बडी भारी जलन को तू हर ले, हे तलवार! तू शीतल, तीव्र और श्रेष्ठ धारा बहाती है (अर्थात् तेरी धारा ठण्डी और तेज है), तू मेरे दुःख के बोझ को हर ले॥3॥
03 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥4॥
मूल
सुनत बचन पुनि मारन धावा। मयतनयाँ कहि नीति बुझावा॥
कहेसि सकल निसिचरिन्ह बोलाई। सीतहि बहु बिधि त्रासहु जाई॥4॥
भावार्थ
सीताजी के ये वचन सुनते ही वह मारने दौडा। तब मय दानव की पुत्री मन्दोदरी ने नीति कहकर उसे समझाया। तब रावण ने सब दासियों को बुलाकर कहा कि जाकर सीता को बहुत प्रकार से भय दिखलाओ॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढि कृपाना॥5॥
मूल
मास दिवस महुँ कहा न माना। तौ मैं मारबि काढि कृपाना॥5॥
भावार्थ
यदि महीने भर में यह कहा न माने तो मैं इसे तलवार निकालकर मार डालूँगा॥5॥