04

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अङ्ग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसङ्ग॥4॥

मूल

तात स्वर्ग अपबर्ग सुख धरिअ तुला एक अङ्ग।
तूल न ताहि सकल मिलि जो सुख लव सतसङ्ग॥4॥

भावार्थ

हे तात! स्वर्ग और मोक्ष के सब सुखों को तराजू के एक पलडे में रखा जाए, तो भी वे सब मिलकर (दूसरे पलडे पर रखे हुए) उस सुख के बराबर नहीं हो सकते, जो लव (क्षण) मात्र के सत्सङ्ग से होता है॥4॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिन्धु अनल सितलाई॥1॥

मूल

प्रबिसि नगर कीजे सब काजा। हृदयँ राखि कोसलपुर राजा॥
गरल सुधा रिपु करहिं मिताई। गोपद सिन्धु अनल सितलाई॥1॥

भावार्थ

अयोध्यापुरी के राजा श्री रघुनाथजी को हृदय में रखे हुए नगर में प्रवेश करके सब काम कीजिए। उसके लिए विष अमृत हो जाता है, शत्रु मित्रता करने लगते हैं, समुद्र गाय के खुर के बराबर हो जाता है, अग्नि में शीतलता आ जाती है॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

गरुड सुमेरु रेनु सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही॥
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥2॥

मूल

गरुड सुमेरु रेनु सम ताही। राम कृपा करि चितवा जाही॥
अति लघु रूप धरेउ हनुमाना। पैठा नगर सुमिरि भगवाना॥2॥

भावार्थ

और हे गरुडजी! सुमेरु पर्वत उसके लिए रज के समान हो जाता है, जिसे श्री रामचन्द्रजी ने एक बार कृपा करके देख लिया। तब हनुमान्‌जी ने बहुत ही छोटा रूप धारण किया और भगवान्‌ का स्मरण करके नगर में प्रवेश किया॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मन्दिर मन्दिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥
गयउ दसानन मन्दिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥3॥

मूल

मन्दिर मन्दिर प्रति करि सोधा। देखे जहँ तहँ अगनित जोधा॥
गयउ दसानन मन्दिर माहीं। अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं॥3॥

भावार्थ

उन्होन्ने एक-एक (प्रत्येक) महल की खोज की। जहाँ-तहाँ असङ्ख्य योद्धा देखे। फिर वे रावण के महल में गए। वह अत्यन्त विचित्र था, जिसका वर्णन नहीं हो सकता॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सयन किएँ देखा कपि तेही। मन्दिर महुँ न दीखि बैदेही॥
भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मन्दिर तहँ भिन्न बनावा॥4॥

मूल

सयन किएँ देखा कपि तेही। मन्दिर महुँ न दीखि बैदेही॥
भवन एक पुनि दीख सुहावा। हरि मन्दिर तहँ भिन्न बनावा॥4॥

भावार्थ

हनुमान्‌जी ने उस (रावण) को शयन किए देखा, परन्तु महल में जानकीजी नहीं दिखाई दीं। फिर एक सुन्दर महल दिखाई दिया। वहाँ (उसमें) भगवान्‌ का एक अलग मन्दिर बना हुआ था॥4॥