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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि॥1॥

मूल

भव भेषज रघुनाथ जसु सुनहिं जे नर अरु नारि।
तिन्ह कर सकल मनोरथ सिद्ध करहिं त्रिसिरारि॥1॥

भावार्थ

श्री रघुवीर का यश भव (जन्म-मरण) रूपी रोग की (अचूक) दवा है। जो पुरुष और स्त्री इसे सुनेङ्गे, त्रिशिरा के शत्रु श्री रामजी उनके सब मनोरथों को सिद्ध करेङ्गे॥1॥

02 सोरठा

विश्वास-प्रस्तुतिः

नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक।
सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक॥2॥

मूल

नीलोत्पल तन स्याम काम कोटि सोभा अधिक।
सुनिअ तासु गुन ग्राम जासु नाम अघ खग बधिक॥2॥

भावार्थ

जिनका नीले कमल के समान श्याम शरीर है, जिनकी शोभा करोडों कामदेवों से भी अधिक है और जिनका नाम पापरूपी पक्षियों को मारने के लिए बधिक (व्याधा) के समान है, उन श्री राम के गुणों के समूह (लीला) को अवश्य सुनना चाहिए॥2॥

मासपरायण, तेईसवाँ विश्राम

इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने चतुर्थः सोपानः समाप्तः।

कलियुग के समस्त पापों के नाश करने वाले श्री रामचरित्‌ मानस का यह चौथा सोपान समाप्त हुआ।

(किष्किन्धाकाण्ड समाप्त)