26

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

निज इच्छाँ प्रभु अवतरइ सुर मह गो द्विज लागि।
सगुन उपासक सङ्ग तहँ रहहिं मोच्छ सब त्यागि॥26॥

मूल

निज इच्छाँ प्रभु अवतरइ सुर मह गो द्विज लागि।
सगुन उपासक सङ्ग तहँ रहहिं मोच्छ सब त्यागि॥26॥

भावार्थ

देवता, पृथ्वी, गो और ब्राह्मणों के लिए प्रभु अपनी इच्छा से (किसी कर्मबन्धन से नहीं) अवतार लेते हैं। वहाँ सगुणोपासक (भक्तगण सालोक्य, सामीप्य, सारुप्य, सार्ष्टि और सायुज्य) सब प्रकार के मोक्षों को त्यागकर उनकी सेवा में साथ रहते हैं॥26॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

एहि बिधि कथा कहहिं बहु भाँती। गिरि कन्दराँ सुनी सम्पाती॥
बाहेर होइ देखि बहु कीसा। मोहि अहार दीन्ह जगदीसा॥1॥

मूल

एहि बिधि कथा कहहिं बहु भाँती। गिरि कन्दराँ सुनी सम्पाती॥
बाहेर होइ देखि बहु कीसा। मोहि अहार दीन्ह जगदीसा॥1॥

भावार्थ

इस प्रकार जाम्बवान्‌ बहुत प्रकार से कथाएँ कह रहे हैं। इनकी बातें पर्वत की कन्दरा में सम्पाती ने सुनीं। बाहर निकलकर उसने बहुत से वानर देखे। (तब वह बोला-) जगदीश्वर ने मुझको घर बैठे बहुत सा आहार भेज दिया!॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

आजु सबहि कहँ भच्छन करऊँ। दिन हबु चले अहार बिनु मरऊँ॥
कबहुँ न मिल भरि उदर अहारा। आजु दीन्ह बिधि एकहिं बारा॥2॥

मूल

आजु सबहि कहँ भच्छन करऊँ। दिन हबु चले अहार बिनु मरऊँ॥
कबहुँ न मिल भरि उदर अहारा। आजु दीन्ह बिधि एकहिं बारा॥2॥

भावार्थ

आज इन सबको खा जाऊँगा। बहुत दिन बीत गए, भोजन के बिना मर रहा था। पेटभर भोजन कभी नहीं मिलता। आज विधाता ने एक ही बार में बहुत सा भोजन दे दिया॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

डरपे गीध बचन सुनि काना। अब भा मरन सत्य हम जाना॥
कपि सब उठे गीध कहँ देखी। जामवन्त मन सोच बिसेषी॥3॥

मूल

डरपे गीध बचन सुनि काना। अब भा मरन सत्य हम जाना॥
कपि सब उठे गीध कहँ देखी। जामवन्त मन सोच बिसेषी॥3॥

भावार्थ

गीध के वचन कानों से सुनते ही सब डर गए कि अब सचमुच ही मरना हो गया। यह हमने जान लिया। फिर उस गीध (सम्पाती) को देखकर सब वानर उठ खडे हुए। जाम्बवान्‌ के मन में विशेष सोच हुआ॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कह अङ्गद बिचारि मन माहीं। धन्य जटायू सम कोउ नाहीं॥
राम काज कारन तनु त्यागी। हरि पुर गयउ परम बडभागी॥4॥

मूल

कह अङ्गद बिचारि मन माहीं। धन्य जटायू सम कोउ नाहीं॥
राम काज कारन तनु त्यागी। हरि पुर गयउ परम बडभागी॥4॥

भावार्थ

अङ्गद ने मन में विचार कर कहा- अहा! जटायु के समान धन्य कोई नहीं है। श्री रामजी के कार्य के लिए शरीर छोडकर वह परम बडभागी भगवान्‌ के परमधाम को चला गया॥4॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनि खग हरष सोक जुत बानी। आवा निकट कपिन्ह भय मानी॥
तिन्हहि अभय करि पूछेसि जाई। कथा सकल तिन्ह ताहि सुनाई॥5॥

मूल

सुनि खग हरष सोक जुत बानी। आवा निकट कपिन्ह भय मानी॥
तिन्हहि अभय करि पूछेसि जाई। कथा सकल तिन्ह ताहि सुनाई॥5॥

भावार्थ

हर्ष और शोक से युक्त वाणी (समाचार) सुनकर वह पक्षी (सम्पाती) वानरों के पास आया। वानर डर गए। उनको अभय करके (अभय वचन देकर) उसने पास जाकर जटायु का वृत्तान्त पूछा, तब उन्होन्ने सारी कथा उसे कह सुनाई॥5॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनि सम्पाति बन्धु कै करनी। रघुपति महिमा बहुबिधि बरनी॥6॥

मूल

सुनि सम्पाति बन्धु कै करनी। रघुपति महिमा बहुबिधि बरनी॥6॥

भावार्थ

भाई जटायु की करनी सुनकर सम्पाती ने बहुत प्रकार से श्री रघुनाथजी की महिमा वर्णन की॥6॥