01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह।
राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह॥23॥
मूल
चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह।
राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह॥23॥
भावार्थ
सब वानर वन, नदी, तालाब, पर्वत और पर्वतों की कन्दराओं में खोजते हुए चले जा रहे हैं। मन श्री रामजी के कार्य में लवलीन है। शरीर तक का प्रेम (ममत्व) भूल गया है॥23॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
कतहुँ होइ निसिचर सैं भेटा। प्रान लेहिं एक एक चपेटा॥
बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं। कोउ मुनि मिलइ ताहि सब घेरहिं॥1॥
मूल
कतहुँ होइ निसिचर सैं भेटा। प्रान लेहिं एक एक चपेटा॥
बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं। कोउ मुनि मिलइ ताहि सब घेरहिं॥1॥
भावार्थ
कहीं किसी राक्षस से भेण्ट हो जाती है, तो एक-एक चपत में ही उसके प्राण ले लेते हैं। पर्वतों और वनों को बहुत प्रकार से खोज रहे हैं। कोई मुनि मिल जाता है तो पता पूछने के लिए उसे सब घेर लेते हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
लागि तृषा अतिसय अकुलाने। मिलइ न जल घन गहन भुलाने॥
मन हनुमान् कीन्ह अनुमाना। मरन चहत सब बिनु जल पाना॥2॥
मूल
लागि तृषा अतिसय अकुलाने। मिलइ न जल घन गहन भुलाने॥
मन हनुमान् कीन्ह अनुमाना। मरन चहत सब बिनु जल पाना॥2॥
भावार्थ
इतने में ही सबको अत्यन्त प्यास लगी, जिससे सब अत्यन्त ही व्याकुल हो गए, किन्तु जल कहीं नहीं मिला। घने जङ्गल में सब भुला गए। हनुमान्जी ने मन में अनुमान किया कि जल पिए बिना सब लोग मरना ही चाहते हैं॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चढि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा। भूमि बिबर एक कौतुक पेखा॥
चक्रबाक बक हंस उडाहीं। बहुतक खग प्रबिसहिं तेहि माहीं॥3॥
मूल
चढि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा। भूमि बिबर एक कौतुक पेखा॥
चक्रबाक बक हंस उडाहीं। बहुतक खग प्रबिसहिं तेहि माहीं॥3॥
भावार्थ
उन्होन्ने पहाड की चोटी पर चढकर चारों ओर देखा तो पृथ्वी के अन्दर एक गुफा में उन्हें एक कौतुक (आश्चर्य) दिखाई दिया। उसके ऊपर चकवे, बगुले और हंस उड रहे हैं और बहुत से पक्षी उसमें प्रवेश कर रहे हैं॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
गिरि ते उतरि पवनसुत आवा। सब कहुँ लै सोइ बिबर देखावा॥
आगें कै हनुमन्तहि लीन्हा। पैठे बिबर बिलम्बु न कीन्हा॥4॥
मूल
गिरि ते उतरि पवनसुत आवा। सब कहुँ लै सोइ बिबर देखावा॥
आगें कै हनुमन्तहि लीन्हा। पैठे बिबर बिलम्बु न कीन्हा॥4॥
भावार्थ
पवन कुमार हनुमान्जी पर्वत से उतर आए और सबको ले जाकर उन्होन्ने वह गुफा दिखलाई। सबने हनुमान्जी को आगे कर लिया और वे गुफा में घुस गए, देर नहीं की॥4॥