01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
एहि बिधि होत बतकही आए बानर जूथ।
नाना बरन सकल दिसि देखिअ कीस बरूथ॥21॥
मूल
एहि बिधि होत बतकही आए बानर जूथ।
नाना बरन सकल दिसि देखिअ कीस बरूथ॥21॥
भावार्थ
इस प्रकार बातचीत हो रही थी कि वानरों के यूथ (झुण्ड) आ गए। अनेक रङ्गों के वानरों के दल सब दिशाओं में दिखाई देने लगे॥21॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
बानर कटक उमा मैं देखा। सो मूरुख जो करन चह लेखा॥
आइ राम पद नावहिं माथा। निरखि बदनु सब होहिं सनाथा॥1॥
मूल
बानर कटक उमा मैं देखा। सो मूरुख जो करन चह लेखा॥
आइ राम पद नावहिं माथा। निरखि बदनु सब होहिं सनाथा॥1॥
भावार्थ
(शिवजी कहते हैं-) हे उमा! वानरों की वह सेना मैन्ने देखी थी। उसकी जो गिनती करना चाहे वह महान् मूर्ख है। सब वानर आ-आकर श्री रामजी के चरणों में मस्तक नवाते हैं और (सौन्दर्य-माधुर्यनिधि) श्रीमुख के दर्शन करके कृतार्थ होते हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अस कपि एक न सेना माहीं। राम कुसल जेहि पूछी नाहीं॥
यह कछु नहिं प्रभु कइ अधिकाई। बिस्वरूप ब्यापक रघुराई॥2॥
मूल
अस कपि एक न सेना माहीं। राम कुसल जेहि पूछी नाहीं॥
यह कछु नहिं प्रभु कइ अधिकाई। बिस्वरूप ब्यापक रघुराई॥2॥
भावार्थ
सेना में एक भी वानर ऐसा नहीं था जिससे श्री रामजी ने कुशल न पूछी हो, प्रभु के लिए यह कोई बडी बात नहीं है, क्योङ्कि श्री रघुनाथजी विश्वरूप तथा सर्वव्यापक हैं (सारे रूपों और सब स्थानों में हैं)॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ठाढे जहँ तहँ आयसु पाई। कह सुग्रीव सबहि समुझाई॥
राम काजु अरु मोर निहोरा। बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा॥3॥
मूल
ठाढे जहँ तहँ आयसु पाई। कह सुग्रीव सबहि समुझाई॥
राम काजु अरु मोर निहोरा। बानर जूथ जाहु चहुँ ओरा॥3॥
भावार्थ
आज्ञा पाकर सब जहाँ-तहाँ खडे हो गए। तब सुग्रीव ने सबको समझाकर कहा कि हे वानरों के समूहों! यह श्री रामचन्द्रजी का कार्य है और मेरा निहोरा (अनुरोध) है, तुम चारों ओर जाओ॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जनकसुता कहुँ खोजहु जाई। मास दिवस महँ आएहु भाई॥
अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ। आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ॥4॥
मूल
जनकसुता कहुँ खोजहु जाई। मास दिवस महँ आएहु भाई॥
अवधि मेटि जो बिनु सुधि पाएँ। आवइ बनिहि सो मोहि मराएँ॥4॥
भावार्थ
और जाकर जानकीजी को खोजो। हे भाई! महीने भर में वापस आ जाना। जो (महीने भर की) अवधि बिताकर बिना पता लगाए ही लौट आएगा उसे मेरे द्वारा मरवाते ही बनेगा (अर्थात् मुझे उसका वध करवाना ही पडेगा)॥4॥