19

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

धनुष चढाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार।
ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार॥19॥

मूल

धनुष चढाइ कहा तब जारि करउँ पुर छार।
ब्याकुल नगर देखि तब आयउ बालिकुमार॥19॥

भावार्थ

तदनन्तर लक्ष्मणजी ने धनुष चढाकर कहा कि नगर को जलाकर अभी राख कर दूँगा। तब नगरभर को व्याकुल देखकर बालिपुत्र अङ्गदजी उनके पास आए॥19॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

चर नाइ सिरु बिनती कीन्ही। लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही॥
क्रोधवन्त लछिमन सुनि काना। कह कपीस अति भयँ अकुलाना॥1॥

मूल

चर नाइ सिरु बिनती कीन्ही। लछिमन अभय बाँह तेहि दीन्ही॥
क्रोधवन्त लछिमन सुनि काना। कह कपीस अति भयँ अकुलाना॥1॥

भावार्थ

अङ्गद ने उनके चरणों में सिर नवाकर विनती की (क्षमा-याचना की) तब लक्ष्मणजी ने उनको अभय बाँह दी (भुजा उठाकर कहा कि डरो मत)। सुग्रीव ने अपने कानों से लक्ष्मणजी को क्रोधयुक्त सुनकर भय से अत्यन्त व्याकुल होकर कहा-॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनु हनुमन्त सङ्ग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा॥
तारा सहित जाइ हनुमाना। चरन बन्दि प्रभु सुजस बखाना॥2॥

मूल

सुनु हनुमन्त सङ्ग लै तारा। करि बिनती समुझाउ कुमारा॥
तारा सहित जाइ हनुमाना। चरन बन्दि प्रभु सुजस बखाना॥2॥

भावार्थ

हे हनुमान्‌ सुनो, तुम तारा को साथ ले जाकर विनती करके राजकुमार को समझाओ (समझा-बुझाकर शान्त करो)। हनुमान्‌जी ने तारा सहित जाकर लक्ष्मणजी के चरणों की वन्दना की और प्रभु के सुन्दर यश का बखान किया॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

करि बिनती मन्दिर लै आए। चरन पखारि पलँग बैठाए॥
तब कपीस चरनन्हि सिरु नावा। गहि भुज लछिमन कण्ठ लगावा॥3॥

मूल

करि बिनती मन्दिर लै आए। चरन पखारि पलँग बैठाए॥
तब कपीस चरनन्हि सिरु नावा। गहि भुज लछिमन कण्ठ लगावा॥3॥

भावार्थ

वे विनती करके उन्हें महल में ले आए तथा चरणों को धोकर उन्हें पलँग पर बैठाया। तब वानरराज सुग्रीव ने उनके चरणों में सिर नवाया और लक्ष्मणजी ने हाथ पकडकर उनको गले से लगा लिया॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नाथ विषय सम मद कछु नाहीं। मुनि मन मोह करइ छन माहीं।
सुनत बिनीत बचन सुख पावा। लछिमन तेहि बहु बिधि समुझावा॥4॥

मूल

नाथ विषय सम मद कछु नाहीं। मुनि मन मोह करइ छन माहीं।
सुनत बिनीत बचन सुख पावा। लछिमन तेहि बहु बिधि समुझावा॥4॥

भावार्थ

(सुग्रीव ने कहा-) हे नाथ! विषय के समान और कोई मद नहीं है। यह मुनियों के मन में भी क्षणमात्र में मोह उत्पन्न कर देता है (फिर मैं तो विषयी जीव ही ठहरा)। सुग्रीव के विनययुक्त वचन सुनकर लक्ष्मणजी ने सुख पाया और उनको बहुत प्रकार से समझाया॥4॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पवन तनय सब कथा सुनाई। जेहि बिधि गए दूत समुदाई॥5॥

मूल

पवन तनय सब कथा सुनाई। जेहि बिधि गए दूत समुदाई॥5॥

भावार्थ

तब पवनसुत हनुमान्‌जी ने जिस प्रकार सब दिशाओं में दूतों के समूह गए थे वह सब हाल सुनाया॥5॥