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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ।
राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिङ्गे आइ॥12॥

मूल

प्रथमहिं देवन्ह गिरि गुहा राखेउ रुचिर बनाइ।
राम कृपानिधि कछु दिन बास करहिङ्गे आइ॥12॥

भावार्थ

देवताओं ने पहले से ही उस पर्वत की एक गुफा को सुन्दर बना (सजा) रखा था। उन्होन्ने सोच रखा था कि कृपा की खान श्री रामजी कुछ दिन यहाँ आकर निवास करेङ्गे॥12॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुन्दर बन कुसुमित अति सोभा। गुञ्जत मधुप निकर मधु लोभा॥
कन्द मूल फल पत्र सुहाए। भए बहुत जब ते प्रभु आए॥1॥

मूल

सुन्दर बन कुसुमित अति सोभा। गुञ्जत मधुप निकर मधु लोभा॥
कन्द मूल फल पत्र सुहाए। भए बहुत जब ते प्रभु आए॥1॥

भावार्थ

सुन्दर वन फूला हुआ अत्यन्त सुशोभित है। मधु के लोभ से भौंरों के समूह गुञ्जार कर रहे हैं। जब से प्रभु आए, तब से वन में सुन्दर कन्द, मूल, फल और पत्तों की बहुतायत हो गई॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

देखि मनोहर सैल अनूपा। रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा॥
मधुकर खग मृग तनु धरि देवा। करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा॥2॥

मूल

देखि मनोहर सैल अनूपा। रहे तहँ अनुज सहित सुरभूपा॥
मधुकर खग मृग तनु धरि देवा। करहिं सिद्ध मुनि प्रभु कै सेवा॥2॥

भावार्थ

मनोहर और अनुपम पर्वत को देखकर देवताओं के सम्राट् श्री रामजी छोटे भाई सहित वहाँ रह गए। देवता, सिद्ध और मुनि भौंरों, पक्षियों और पशुओं के शरीर धारण करके प्रभु की सेवा करने लगे॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मङ्गलरूप भयउ बन तब ते। कीन्ह निवास रमापति जब ते॥
फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई। सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई॥3॥

मूल

मङ्गलरूप भयउ बन तब ते। कीन्ह निवास रमापति जब ते॥
फटिक सिला अति सुभ्र सुहाई। सुख आसीन तहाँ द्वौ भाई॥3॥

भावार्थ

जब से रमापति श्री रामजी ने वहाँ निवास किया तब से वन मङ्गलस्वरूप हो गया। सुन्दर स्फटिक मणि की एक अत्यन्त उज्ज्वल शिला है, उस पर दोनों भाई सुखपूर्वक विराजमान हैं॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कहत अनुज सन कथा अनेका। भगति बिरत नृपनीति बिबेका॥
बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए॥4॥

मूल

कहत अनुज सन कथा अनेका। भगति बिरत नृपनीति बिबेका॥
बरषा काल मेघ नभ छाए। गरजत लागत परम सुहाए॥4॥

भावार्थ

श्री राम छोटे भाई लक्ष्मणजी से भक्ति, वैराग्य, राजनीति और ज्ञान की अनेकों कथाएँ कहते हैं। वर्षाकाल में आकाश में छाए हुए बादल गरजते हुए बहुत ही सुहावने लगते हैं॥4॥