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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

राम चरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग।
सुमन माल जिमि कण्ठ ते गिरत न जानइ नाग॥10॥

मूल

राम चरन दृढ प्रीति करि बालि कीन्ह तनु त्याग।
सुमन माल जिमि कण्ठ ते गिरत न जानइ नाग॥10॥

भावार्थ

श्री रामजी के चरणों में दृढ प्रीति करके बालि ने शरीर को वैसे ही (आसानी से) त्याग दिया जैसे हाथी अपने गले से फूलों की माला का गिरना न जाने॥10॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब व्याकुल धावा॥
नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा॥1॥

मूल

राम बालि निज धाम पठावा। नगर लोग सब व्याकुल धावा॥
नाना बिधि बिलाप कर तारा। छूटे केस न देह सँभारा॥1॥

भावार्थ

श्री रामचन्द्रजी ने बालि को अपने परम धाम भेज दिया। नगर के सब लोग व्याकुल होकर दौडे। बालि की स्त्री तारा अनेकों प्रकार से विलाप करने लगी। उसके बाल बिखरे हुए हैं और देह की सँभाल नहीं है॥1॥तारा बिकल देखि रघुराया। दीन्ह ग्यान हरि लीन्ही माया॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

छिति जल पावक गगन समीरा। पञ्च रचित अति अधम सरीरा॥2॥

मूल

छिति जल पावक गगन समीरा। पञ्च रचित अति अधम सरीरा॥2॥

भावार्थ

तारा को व्याकुल देखकर श्री रघुनाथजी ने उसे ज्ञान दिया और उसकी माया (अज्ञान) हर ली। (उन्होन्ने कहा-) पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु- इन पाँच तत्वों से यह अत्यन्त अधम शरीर रचा गया है॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रगट सो तनु तव आगे सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा॥
उपजा ग्यान चरन तब लागी। लीन्हेसि परम भगति बर मागी॥3॥

मूल

प्रगट सो तनु तव आगे सोवा। जीव नित्य केहि लगि तुम्ह रोवा॥
उपजा ग्यान चरन तब लागी। लीन्हेसि परम भगति बर मागी॥3॥

भावार्थ

वह शरीर तो प्रत्यक्ष तुम्हारे सामने सोया हुआ है, और जीव नित्य है। फिर तुम किसके लिए रो रही हो? जब ज्ञान उत्पन्न हो गया, तब वह भगवान्‌ के चरणों लगी और उसने परम भक्ति का वर माँग लिया॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥
तब सुग्रीवहि आयसु दीन्हा। मृतक कर्म बिधिवत सब कीन्हा॥4॥

मूल

उमा दारु जोषित की नाईं। सबहि नचावत रामु गोसाईं॥
तब सुग्रीवहि आयसु दीन्हा। मृतक कर्म बिधिवत सब कीन्हा॥4॥

भावार्थ

(शिवजी कहते हैं-) हे उमा! स्वामी श्री रामजी सबको कठपुतली की तरह नचाते हैं। तदनन्तर श्री रामजी ने सुग्रीव को आज्ञा दी और सुग्रीव ने विधिपूर्वक बालि का सब मृतक कर्म किया॥4॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

राम कहा अनुजहि समुझाई। राज देहु सुग्रीवहि जाई॥
रघुपति चरन नाइ करि माथा। चले सकल प्रेरित रघुनाथा॥5॥

मूल

राम कहा अनुजहि समुझाई। राज देहु सुग्रीवहि जाई॥
रघुपति चरन नाइ करि माथा। चले सकल प्रेरित रघुनाथा॥5॥

भावार्थ

तब श्री रामचन्द्रजी ने छोटे भाई लक्ष्मण को समझाकर कहा कि तुम जाकर सुग्रीव को राज्य दे दो। श्री रघुनाथजी की प्रेरणा (आज्ञा) से सब लोग श्री रघुनाथजी के चरणों में मस्तक नवाकर चले॥5॥