01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
जग कारन तारन भव भञ्जन धरनी भार।
की तुम्ह अखिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार॥1॥
मूल
जग कारन तारन भव भञ्जन धरनी भार।
की तुम्ह अखिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार॥1॥
भावार्थ
अथवा आप जगत् के मूल कारण और सम्पूर्ण लोकों के स्वामी स्वयं भगवान् हैं, जिन्होन्ने लोगों को भवसागर से पार उतारने तथा पृथ्वी का भार नष्ट करने के लिए मनुष्य रूप में अवतार लिया है?॥1॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
कोसलेस दसरथ के जाए। हम पितु बचन मानि बन आए॥
नाम राम लछिमन दोउ भाई। सङ्ग नारि सुकुमारि सुहाई॥1॥
मूल
कोसलेस दसरथ के जाए। हम पितु बचन मानि बन आए॥
नाम राम लछिमन दोउ भाई। सङ्ग नारि सुकुमारि सुहाई॥1॥
भावार्थ
(श्री रामचन्द्रजी ने कहा-) हम कोसलराज दशरथजी के पुत्र हैं और पिता का वचन मानकर वन आए हैं। हमारे राम-लक्ष्मण नाम हैं, हम दोनों भाई हैं। हमारे साथ सुन्दर सुकुमारी स्त्री थी॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
इहाँ हरी निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही॥
आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई॥2॥
मूल
इहाँ हरी निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही॥
आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई॥2॥
भावार्थ
यहाँ (वन में) राक्षस ने (मेरी पत्नी) जानकी को हर लिया। हे ब्राह्मण! हम उसे ही खोजते फिरते हैं। हमने तो अपना चरित्र कह सुनाया। अब हे ब्राह्मण! अपनी कथा समझाकर कहिए ॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥
पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना॥3॥
मूल
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना॥
पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना॥3॥
भावार्थ
प्रभु को पहचानकर हनुमान्जी उनके चरण पकडकर पृथ्वी पर गिर पडे (उन्होन्ने साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम किया)। (शिवजी कहते हैं-) हे पार्वती! वह सुख वर्णन नहीं किया जा सकता। शरीर पुलकित है, मुख से वचन नहीं निकलता। वे प्रभु के सुन्दर वेष की रचना देख रहे हैं!॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही॥
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥4॥
मूल
पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही। हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही॥
मोर न्याउ मैं पूछा साईं। तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं॥4॥
भावार्थ
फिर धीरज धर कर स्तुति की। अपने नाथ को पहचान लेने से हृदय में हर्ष हो रहा है। (फिर हनुमान्जी ने कहा-) हे स्वामी! मैन्ने जो पूछा वह मेरा पूछना तो न्याय था, (वर्षों के बाद आपको देखा, वह भी तपस्वी के वेष में और मेरी वानरी बुद्धि इससे मैं तो आपको पहचान न सका और अपनी परिस्थिति के अनुसार मैन्ने आपसे पूछा), परन्तु आप मनुष्य की तरह कैसे पूछ रहे हैं?॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तव माया बस फिरउँ भुलाना। ताते मैं नहिं प्रभु पहिचाना॥5॥
मूल
तव माया बस फिरउँ भुलाना। ताते मैं नहिं प्रभु पहिचाना॥5॥
भावार्थ
मैं तो आपकी माया के वश भूला फिरता हूँ इसी से मैन्ने अपने स्वामी (आप) को नहीं पहचाना ॥5॥