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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।
राम भगति दृढ पावहिं बिनु बिराग जप जोग॥1॥

मूल

रावनारि जसु पावन गावहिं सुनहिं जे लोग।
राम भगति दृढ पावहिं बिनु बिराग जप जोग॥1॥

भावार्थ

जो लोग रावण के शत्रु श्री रामजी का पवित्र यश गावेङ्गे और सुनेङ्गे, वे वैराग्य, जप और योग के बिना ही श्री रामजी की दृढ भक्ति पावेङ्गे॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतङ्ग।
भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसङ्ग॥2॥

मूल

दीप सिखा सम जुबति तन मन जनि होसि पतङ्ग।
भजहि राम तजि काम मद करहि सदा सतसङ्ग॥2॥

भावार्थ

युवती स्त्रियों का शरीर दीपक की लौ के समान है, हे मन! तू उसका पतिङ्गा न बन। काम और मद को छोडकर श्री रामचन्द्रजी का भजन कर और सदा सत्सङ्ग कर॥2॥

मासपारायण, बाईसवाँ विश्राम
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने तृतीयः सोपानः समाप्तः।
कलियुग के सम्पूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्री रामचरितमानस का यह तीसरा सोपान समाप्त हुआ।
(अरण्यकाण्ड समाप्त)