01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दुख खानि।
ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि॥44॥
मूल
अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दुख खानि।
ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि॥44॥
भावार्थ
युवती स्त्री अवगुणों की मूल, पीडा देने वाली और सब दुःखों की खान है, इसलिए हे मुनि! मैन्ने जी में ऐसा जानकर तुमको विवाह करने से रोका था॥44॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनि रघुपति के बचन सुहाए। मुनि तन पुलक नयन भरि आए॥
कहहु कवन प्रभु कै असि रीती। सेवक पर ममता अरु प्रीती॥1॥
मूल
सुनि रघुपति के बचन सुहाए। मुनि तन पुलक नयन भरि आए॥
कहहु कवन प्रभु कै असि रीती। सेवक पर ममता अरु प्रीती॥1॥
भावार्थ
श्री रघुनाथजी के सुन्दर वचन सुनकर मुनि का शरीर पुलकित हो गया और नेत्र (प्रेमाश्रुओं के जल से) भर आए। (वे मन ही मन कहने लगे-) कहो तो किस प्रभु की ऐसी रीती है, जिसका सेवक पर इतना ममत्व और प्रेम हो॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जे न भजहिं अस प्रभु भ्रम त्यागी। ग्यान रङ्क नर मन्द अभागी॥
पुनि सादर बोले मुनि नारद। सुनहु राम बिग्यान बिसारद॥2॥
मूल
जे न भजहिं अस प्रभु भ्रम त्यागी। ग्यान रङ्क नर मन्द अभागी॥
पुनि सादर बोले मुनि नारद। सुनहु राम बिग्यान बिसारद॥2॥
भावार्थ
जो मनुष्य भ्रम को त्यागकर ऐसे प्रभु को नहीं भजते, वे ज्ञान के कङ्गाल, दुर्बुद्धि और अभागे हैं। फिर नारद मुनि आदर सहित बोले- हे विज्ञान-विशारद श्री रामजी! सुनिए-॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सन्तन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भञ्जन भीरा॥
सुनु मुनि सन्तन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ॥3॥
मूल
सन्तन्ह के लच्छन रघुबीरा। कहहु नाथ भव भञ्जन भीरा॥
सुनु मुनि सन्तन्ह के गुन कहऊँ। जिन्ह ते मैं उन्ह कें बस रहऊँ॥3॥
भावार्थ
हे रघुवीर! हे भव-भय (जन्म-मरण के भय) का नाश करने वाले मेरे नाथ! अब कृपा कर सन्तों के लक्षण कहिए! (श्री रामजी ने कहा-) हे मुनि! सुनो, मैं सन्तों के गुणों को कहता हूँ, जिनके कारण मैं उनके वश में रहता हूँ॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिञ्चन सुचि सुखधामा॥
अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी॥4॥
मूल
षट बिकार जित अनघ अकामा। अचल अकिञ्चन सुचि सुखधामा॥
अमित बोध अनीह मितभोगी। सत्यसार कबि कोबिद जोगी॥4॥
भावार्थ
वे सन्त (काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर- इन) छह विकारों (दोषों) को जीते हुए, पापरहित, कामनारहित, निश्चल (स्थिरबुद्धि), अकिञ्चन (सर्वत्यागी), बाहर-भीतर से पवित्र, सुख के धाम, असीम ज्ञानवान्, इच्छारहित, मिताहारी, सत्यनिष्ठ, कवि, विद्वान, योगी,॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना॥5॥
मूल
सावधान मानद मदहीना। धीर धर्म गति परम प्रबीना॥5॥
भावार्थ
सावधान, दूसरों को मान देने वाले, अभिमानरहित, धैर्यवान, धर्म के ज्ञान और आचरण में अत्यन्त निपुण,॥5॥