43

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि।
तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारूपी नारि॥43॥

मूल

काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि।
तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारूपी नारि॥43॥

भावार्थ

काम, क्रोध, लोभ और मद आदि मोह (अज्ञान) की प्रबल सेना है। इनमें मायारूपिणी (माया की साक्षात्‌ मूर्ति) स्त्री तो अत्यन्त दारुण दुःख देने वाली है॥43॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनु मुनि कह पुरान श्रुति सन्ता। मोह बिपिन कहुँ नारि बसन्ता॥
जप तप नेम जलाश्रय झारी। होइ ग्रीषम सोषइ सब नारी॥1

मूल

सुनु मुनि कह पुरान श्रुति सन्ता। मोह बिपिन कहुँ नारि बसन्ता॥
जप तप नेम जलाश्रय झारी। होइ ग्रीषम सोषइ सब नारी॥1

भावार्थ

हे मुनि! सुनो, पुराण, वेद और सन्त कहते हैं कि मोह रूपी वन (को विकसित करने) के लिए स्त्री वसन्त ऋतु के समान है। जप, तप, नियम रूपी सम्पूर्ण जल के स्थानों को स्त्री ग्रीष्म रूप होकर सर्वथा सोख लेती है॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

काम क्रोध मद मत्सर भेका। इन्हहि हरषप्रद बरषा एका॥
दुर्बासना कुमुद समुदाई। तिन्ह कहँ सरद सदा सुखदाई॥2॥

मूल

काम क्रोध मद मत्सर भेका। इन्हहि हरषप्रद बरषा एका॥
दुर्बासना कुमुद समुदाई। तिन्ह कहँ सरद सदा सुखदाई॥2॥

भावार्थ

काम, क्रोध, मद और मत्सर (डाह) आदि मेण्ढक हैं। इनको वर्षा ऋतु होकर हर्ष प्रदान करने वाली एकमात्र यही (स्त्री) है। बुरी वासनाएँ कुमुदों के समूह हैं। उनको सदैव सुख देने वाली यह शरद् ऋतु है॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

धर्म सकल सरसीरुह बृन्दा। होइ हिम तिन्हहि दहइ सुख मन्दा॥
पुनि ममता जवास बहुताई। पलुहइ नारि सिसिर रितु पाई॥3॥

मूल

धर्म सकल सरसीरुह बृन्दा। होइ हिम तिन्हहि दहइ सुख मन्दा॥
पुनि ममता जवास बहुताई। पलुहइ नारि सिसिर रितु पाई॥3॥

भावार्थ

समस्त धर्म कमलों के झुण्ड हैं। यह नीच (विषयजन्य) सुख देने वाली स्त्री हिमऋतु होकर उन्हें जला डालती है। फिर ममतारूपी जवास का समूह (वन) स्त्री रूपी शिशिर ऋतु को पाकर हरा-भरा हो जाता है॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

पाप उलूक निकर सुखकारी। नारि निबिड रजनी अँधियारी॥
बुधि बल सील सत्य सब मीना। बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना॥4॥

मूल

पाप उलूक निकर सुखकारी। नारि निबिड रजनी अँधियारी॥
बुधि बल सील सत्य सब मीना। बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना॥4॥

भावार्थ

पाप रूपी उल्लुओं के समूह के लिए यह स्त्री सुख देने वाली घोर अन्धकारमयी रात्रि है। बुद्धि, बल, शील और सत्य- ये सब मछलियाँ हैं और उन (को फँसाकर नष्ट करने) के लिए स्त्री बंसी के समान है, चतुर पुरुष ऐसा कहते हैं॥4॥