01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुरइनि सघन ओट जल बेगि न पाइअ मर्म।
मायाछन्न न देखिऐ जैसें निर्गुन ब्रह्म॥1॥
मूल
पुरइनि सघन ओट जल बेगि न पाइअ मर्म।
मायाछन्न न देखिऐ जैसें निर्गुन ब्रह्म॥1॥
भावार्थ
घनी पुरइनों (कमल के पत्तों) की आड में जल का जल्दी पता नहीं मिलता। जैसे माया से ढँके रहने के कारण निर्गुण ब्रह्म नहीं दिखता॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुखी मीन सब एकरस अति अगाध जल माहिं।
जथा धर्मसीलन्ह के दिन सुख सञ्जुत जाहिं॥2॥
मूल
सुखी मीन सब एकरस अति अगाध जल माहिं।
जथा धर्मसीलन्ह के दिन सुख सञ्जुत जाहिं॥2॥
भावार्थ
उस सरोवर के अत्यन्त अथाह जल में सब मछलियाँ सदा एकरस (एक समान) सुखी रहती हैं। जैसे धर्मशील पुरुषों के सब दिन सुखपूर्वक बीतते हैं॥2॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
बिकसे सरसिज नाना रङ्गा। मधुर मुखर गुञ्जत बहु भृङ्गा॥
बोलत जलकुक्कुट कलहंसा। प्रभु बिलोकि जनु करत प्रसंसा॥1॥
मूल
बिकसे सरसिज नाना रङ्गा। मधुर मुखर गुञ्जत बहु भृङ्गा॥
बोलत जलकुक्कुट कलहंसा। प्रभु बिलोकि जनु करत प्रसंसा॥1॥
भावार्थ
उसमें रङ्ग-बिरङ्गे कमल खिले हुए हैं। बहुत से भौंरे मधुर स्वर से गुञ्जार कर रहे हैं। जल के मुर्गे और राजहंस बोल रहे हैं, मानो प्रभु को देखकर उनकी प्रशंसा कर रहे हों॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चक्रबाक बक खग समुदाई। देखत बनइ बरनि नहिं जाई॥
सुन्दर खग गन गिरा सुहाई। जात पथिक जनु लेत बोलाई॥2॥
मूल
चक्रबाक बक खग समुदाई। देखत बनइ बरनि नहिं जाई॥
सुन्दर खग गन गिरा सुहाई। जात पथिक जनु लेत बोलाई॥2॥
भावार्थ
चक्रवाक, बगुले आदि पक्षियों का समुदाय देखते ही बनता है, उनका वर्णन नहीं किया जा सकता। सुन्दर पक्षियों की बोली बडी सुहावनी लगती है, मानो (रास्ते में) जाते हुए पथिक को बुलाए लेती हो॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
ताल समीप मुनिन्ह गृह छाए। चहु दिसि कानन बिटप सुहाए॥
चम्पक बकुल कदम्ब तमाला। पाटल पनस परास रसाला॥3॥
मूल
ताल समीप मुनिन्ह गृह छाए। चहु दिसि कानन बिटप सुहाए॥
चम्पक बकुल कदम्ब तमाला। पाटल पनस परास रसाला॥3॥
भावार्थ
उस झील (पम्पा सरोवर) के समीप मुनियों ने आश्रम बना रखे हैं। उसके चारों ओर वन के सुन्दर वृक्ष हैं। चम्पा, मौलसिरी, कदम्ब, तमाल, पाटल, कटहल, ढाक और आम आदि-॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
नव पल्लव कुसुमित तरु नाना। चञ्चरीक पटली कर गाना॥
सीतल मन्द सुगन्ध सुभाऊ। सन्तत बहइ मनोहर बाऊ॥4॥
मूल
नव पल्लव कुसुमित तरु नाना। चञ्चरीक पटली कर गाना॥
सीतल मन्द सुगन्ध सुभाऊ। सन्तत बहइ मनोहर बाऊ॥4॥
भावार्थ
बहुत प्रकार के वृक्ष नए-नए पत्तों और (सुगन्धित) पुष्पों से युक्त हैं, (जिन पर) भौंरों के समूह गुञ्जार कर रहे हैं। स्वभाव से ही शीतल, मन्द, सुगन्धित एवं मन को हरने वाली हवा सदा बहती रहती है॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कुहू कुहू कोकिल धुनि करहीं। सुनि रव सरस ध्यान मुनि टरहीं॥5॥
मूल
कुहू कुहू कोकिल धुनि करहीं। सुनि रव सरस ध्यान मुनि टरहीं॥5॥
भावार्थ
कोयलें ‘कुहू’ ‘कुहू’ का शब्द कर रही हैं। उनकी रसीली बोली सुनकर मुनियों का भी ध्यान टूट जाता है॥5॥