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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

बिरह बिकल बलहीन मोहि जानेसि निपट अकेल।
सहित बिपिन मधुकर खग मदन कीन्ह बगमेल॥1॥

मूल

बिरह बिकल बलहीन मोहि जानेसि निपट अकेल।
सहित बिपिन मधुकर खग मदन कीन्ह बगमेल॥1॥

भावार्थ

मुझे विरह से व्याकुल, बलहीन और बिलकुल अकेला जानकर कामदेव ने वन, भौंरों और पक्षियों को साथ लेकर मुझ पर धावा बोल दिया॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

देखि गयउ भ्राता सहित तासु दूत सुनि बात।
डेरा कीन्हेउ मनहुँ तब कटकु हटकि मनजात॥2॥

मूल

देखि गयउ भ्राता सहित तासु दूत सुनि बात।
डेरा कीन्हेउ मनहुँ तब कटकु हटकि मनजात॥2॥

भावार्थ

परन्तु जब उसका दूत यह देख गया कि मैं भाई के साथ हूँ (अकेला नहीं हूँ), तब उसकी बात सुनकर कामदेव ने मानो सेना को रोककर डेरा डाल दिया है॥2॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

बिटप बिसाल लता अरुझानी। बिबिध बितान दिए जनु तानी॥
कदलि ताल बर धुजा पताका। देखि न मोह धीर मन जाका॥1॥

मूल

बिटप बिसाल लता अरुझानी। बिबिध बितान दिए जनु तानी॥
कदलि ताल बर धुजा पताका। देखि न मोह धीर मन जाका॥1॥

भावार्थ

विशाल वृक्षों में लताएँ उलझी हुई ऐसी मालूम होती हैं मानो नाना प्रकार के तम्बू तान दिए गए हैं। केला और ताड सुन्दर ध्वजा पताका के समान हैं। इन्हें देखकर वही नहीं मोहित होता, जिसका मन धीर है॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

बिबिध भाँति फूले तरु नाना। जनु बानैत बने बहु बाना॥
कहुँ कहुँ सुन्दर बिटप सुहाए। जनु भट बिलग बिलग होइ छाए॥2॥

मूल

बिबिध भाँति फूले तरु नाना। जनु बानैत बने बहु बाना॥
कहुँ कहुँ सुन्दर बिटप सुहाए। जनु भट बिलग बिलग होइ छाए॥2॥

भावार्थ

अनेकों वृक्ष नाना प्रकार से फूले हुए हैं। मानो अलग-अलग बाना (वर्दी) धारण किए हुए बहुत से तीरन्दाज हों। कहीं-कहीं सुन्दर वृक्ष शोभा दे रहे हैं। मानो योद्धा लोग अलग-अलग होकर छावनी डाले हों॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कूजत पिक मानहुँ गज माते। ढेक महोख ऊँट बिसराते॥
मोर चकोर कीर बर बाजी। पारावत मराल सब ताजी॥3॥

मूल

कूजत पिक मानहुँ गज माते। ढेक महोख ऊँट बिसराते॥
मोर चकोर कीर बर बाजी। पारावत मराल सब ताजी॥3॥

भावार्थ

कोयलें कूज रही हैं, वही मानो मतवाले हाथी (चिग्घाड रहे) हैं। ढेक और महोख पक्षी मानो ऊँट और खच्चर हैं। मोर, चकोर, तोते, कबूतर और हंस मानो सब सुन्दर ताजी (अरबी) घोडे हैं॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

तीतिर लावक पदचर जूथा। बरनि न जाइ मनोज बरूथा॥
रथ गिरि सिला दुन्दुभीं झरना। चातक बन्दी गुन गन बरना॥4॥

मूल

तीतिर लावक पदचर जूथा। बरनि न जाइ मनोज बरूथा॥
रथ गिरि सिला दुन्दुभीं झरना। चातक बन्दी गुन गन बरना॥4॥

भावार्थ

तीतर और बटेर पैदल सिपाहियों के झुण्ड हैं। कामदेव की सेना का वर्णन नहीं हो सकता। पर्वतों की शिलाएँ रथ और जल के झरने नगाडे हैं। पपीहे भाट हैं, जो गुणसमूह (विरुदावली) का वर्णन करते हैं॥4॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

मधुकर मुखर भेरि सहनाई। त्रिबिध बयारि बसीठीं आई॥
चतुरङ्गिनी सेन सँग लीन्हें। बिचरत सबहि चुनौती दीन्हें॥5॥

मूल

मधुकर मुखर भेरि सहनाई। त्रिबिध बयारि बसीठीं आई॥
चतुरङ्गिनी सेन सँग लीन्हें। बिचरत सबहि चुनौती दीन्हें॥5॥

भावार्थ

भौंरों की गुञ्जार भेरी और शहनाई है। शीतल, मन्द और सुगन्धित हवा मानो दूत का काम लेकर आई है। इस प्रकार चतुरङ्गिणी सेना साथ लिए कामदेव मानो सबको चुनौती देता हुआ विचर रहा है॥5॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

लछिमन देखत काम अनीका। रहहिं धीर तिन्ह कै जग लीका॥
ऐहि कें एक परम बल नारी। तेहि तें उबर सुभट सोइ भारी॥6॥

मूल

लछिमन देखत काम अनीका। रहहिं धीर तिन्ह कै जग लीका॥
ऐहि कें एक परम बल नारी। तेहि तें उबर सुभट सोइ भारी॥6॥

भावार्थ

हे लक्ष्मण! कामदेव की इस सेना को देखकर जो धीर बने रहते हैं, जगत्‌ में उन्हीं की (वीरों में) प्रतिष्ठा होती है। इस कामदेव के एक स्त्री का बडा भारी बल है। उससे जो बच जाए, वही श्रेष्ठ योद्धा है॥6॥