01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
सूपनखहि समुझाइ करि बल बोलेसि बहु भाँति।
गयउ भवन अति सोचबस नीद परइ नहिं राति॥22॥
मूल
सूपनखहि समुझाइ करि बल बोलेसि बहु भाँति।
गयउ भवन अति सोचबस नीद परइ नहिं राति॥22॥
भावार्थ
उसने शूर्पणखा को समझाकर बहुत प्रकार से अपने बल का बखान किया, किन्तु (मन में) वह अत्यन्त चिन्तावश होकर अपने महल में गया, उसे रात भर नीन्द नहीं पडी॥22॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुर नर असुर नाग खग माहीं। मोरे अनुचर कहँ कोउ नाहीं॥
खर दूषन मोहि सम बलवन्ता। तिन्हहि को मारइ बिनु भगवन्ता॥1॥
मूल
सुर नर असुर नाग खग माहीं। मोरे अनुचर कहँ कोउ नाहीं॥
खर दूषन मोहि सम बलवन्ता। तिन्हहि को मारइ बिनु भगवन्ता॥1॥
भावार्थ
(वह मन ही मन विचार करने लगा-) देवता, मनुष्य, असुर, नाग और पक्षियों में कोई ऐसा नहीं, जो मेरे सेवक को भी पा सके। खर-दूषण तो मेरे ही समान बलवान थे। उन्हें भगवान के सिवा और कौन मार सकता है?॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुर रञ्जन भञ्जन महि भारा। जौं भगवन्त लीन्ह अवतारा॥
तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥2॥
मूल
सुर रञ्जन भञ्जन महि भारा। जौं भगवन्त लीन्ह अवतारा॥
तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ। प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥2॥
भावार्थ
देवताओं को आनन्द देने वाले और पृथ्वी का भार हरण करने वाले भगवान ने ही यदि अवतार लिया है, तो मैं जाकर उनसे हठपूर्वक वैर करूँगा और प्रभु के बाण (के आघात) से प्राण छोडकर भवसागर से तर जाऊँगा॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मन्त्र दृढ एहा॥
जौं नररूप भूपसुत कोऊ। हरिहउँ नारि जीति रन दोऊ॥3॥
मूल
होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मन्त्र दृढ एहा॥
जौं नररूप भूपसुत कोऊ। हरिहउँ नारि जीति रन दोऊ॥3॥
भावार्थ
इस तामस शरीर से भजन तो होगा नहीं, अतएव मन, वचन और कर्म से यही दृढ निश्चय है। और यदि वे मनुष्य रूप कोई राजकुमार होङ्गे तो उन दोनों को रण में जीतकर उनकी स्त्री को हर लूँगा॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
चला अकेल जान चढि तहवाँ। बस मारीच सिन्धु तट जहवाँ॥
इहाँ राम जसि जुगुति बनाई। सुनहु उमा सो कथा सुहाई॥4॥
मूल
चला अकेल जान चढि तहवाँ। बस मारीच सिन्धु तट जहवाँ॥
इहाँ राम जसि जुगुति बनाई। सुनहु उमा सो कथा सुहाई॥4॥
भावार्थ
राक्षसों की भयानक सेना आ गई है। जानकीजी को लेकर तुम पर्वत की कन्दरा में चले जाओ। सावधान रहना। प्रभु श्री रामचन्द्रजी के वचन सुनकर लक्ष्मणजी हाथ में धनुष-बाण लिए श्री सीताजी सहित चले॥6॥