01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम।
मम हियँ बसहु निरन्तर सगुनरूप श्री राम॥8॥
मूल
सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम।
मम हियँ बसहु निरन्तर सगुनरूप श्री राम॥8॥
भावार्थ
हे नीले मेघ के समान श्याम शरीर वाले सगुण रूप श्री रामजी! सीताजी और छोटे भाई लक्ष्मणजी सहित प्रभु (आप) निरन्तर मेरे हृदय में निवास कीजिए॥8॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। राम कृपाँ बैकुण्ठ सिधारा॥
ताते मुनि हरि लीन न भयऊ। प्रथमहिं भेद भगति बर लयऊ॥1॥
मूल
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा। राम कृपाँ बैकुण्ठ सिधारा॥
ताते मुनि हरि लीन न भयऊ। प्रथमहिं भेद भगति बर लयऊ॥1॥
भावार्थ
ऐसा कहकर शरभङ्गजी ने योगाग्नि से अपने शरीर को जला डाला और श्री रामजी की कृपा से वे वैकुण्ठ को चले गए। मुनि भगवान में लीन इसलिए नहीं हुए कि उन्होन्ने पहले ही भेद-भक्ति का वर ले लिया था॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
रिषि निकाय मुनिबर गति देखी। सुखी भए निज हृदयँ बिसेषी॥
अस्तुति करहिं सकल मुनि बृन्दा। जयति प्रनत हित करुना कन्दा॥2॥
मूल
रिषि निकाय मुनिबर गति देखी। सुखी भए निज हृदयँ बिसेषी॥
अस्तुति करहिं सकल मुनि बृन्दा। जयति प्रनत हित करुना कन्दा॥2॥
भावार्थ
ऋषि समूह मुनि श्रेष्ठ शरभङ्गजी की यह (दुर्लभ) गति देखकर अपने हृदय में विशेष रूप से सुखी हुए। समस्त मुनिवृन्द श्री रामजी की स्तुति कर रहे हैं (और कह रहे हैं) शरणागत हितकारी करुणा कन्द (करुणा के मूल) प्रभु की जय हो!॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुनि रघुनाथ चले बन आगे। मुनिबर बृन्द बिपुल सँग लागे॥
अस्थि समूह देखि रघुराया। पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया॥3॥
मूल
पुनि रघुनाथ चले बन आगे। मुनिबर बृन्द बिपुल सँग लागे॥
अस्थि समूह देखि रघुराया। पूछी मुनिन्ह लागि अति दाया॥3॥
भावार्थ
फिर श्री रघुनाथजी आगे वन में चले। श्रेष्ठ मुनियों के बहुत से समूह उनके साथ हो लिए। हड्डियों का ढेर देखकर श्री रघुनाथजी को बडी दया आई, उन्होन्ने मुनियों से पूछा॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जानतहूँ पूछिअ कस स्वामी। सबदरसी तुम्ह अन्तरजामी॥
निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए॥4॥
मूल
जानतहूँ पूछिअ कस स्वामी। सबदरसी तुम्ह अन्तरजामी॥
निसिचर निकर सकल मुनि खाए। सुनि रघुबीर नयन जल छाए॥4॥
भावार्थ
(मुनियों ने कहा) हे स्वामी! आप सर्वदर्शी (सर्वज्ञ) और अन्तर्यामी (सबके हृदय की जानने वाले) हैं। जानते हुए भी (अनजान की तरह) हमसे कैसे पूछ रहे हैं? राक्षसों के दलों ने सब मुनियों को खा डाला है। (ये सब उन्हीं की हड्डियों के ढेर हैं)। यह सुनते ही श्री रघुवीर के नेत्रों में जल छा गया (उनकी आँखों में करुणा के आँसू भर आए)॥4॥