326

01 सोरठा

विश्वास-प्रस्तुतिः

भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुनहिं।
सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस बिरति॥326॥

मूल

भरत चरित करि नेमु तुलसी जो सादर सुनहिं।
सीय राम पद पेमु अवसि होइ भव रस बिरति॥326॥

भावार्थ

तुलसीदासजी कहते हैं- जो कोई भरतजी के चरित्र को नियम से आदरपूर्वक सुनेङ्गे, उनको अवश्य ही श्रीसीतारामजी के चरणों में प्रेम होगा और सांसारिक विषय रस से वैराग्य होगा॥326॥

मासपारायण, इक्कीसवाँ विश्राम
इति श्रीमद्रामचरितमानसे सकलकलिकलुषविध्वंसने द्वितीयः सोपानः समाप्तः। कलियुग के सम्पूर्ण पापों को विध्वंस करने वाले श्री रामचरित मानस का यह दूसरा सोपान समाप्त हुआ॥

(अयोध्याकाण्ड समाप्त)