319

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

भरत मातु पद बन्दि प्रभु सुचि सनेहँ मिलि भेण्टि।
बिदा कीन्ह सजि पालकी सकुच सोच सब मेटि॥319॥

मूल

भरत मातु पद बन्दि प्रभु सुचि सनेहँ मिलि भेण्टि।
बिदा कीन्ह सजि पालकी सकुच सोच सब मेटि॥319॥

भावार्थ

भरत की माता कैकेयी के चरणों की वन्दना करके प्रभु श्री रामचन्द्रजी ने पवित्र (निश्छल) प्रेम के साथ उनसे मिल-भेण्ट कर तथा उनके सारे सङ्कोच और सोच को मिटाकर पालकी सजाकर उनको विदा किया॥319॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

परिजन मातु पितहि मिलि सीता। फिरी प्रानप्रिय प्रेम पुनीता॥
करि प्रनामु भेण्टीं सब सासू। प्रीति कहत कबि हियँ न हुलासू॥1॥

मूल

परिजन मातु पितहि मिलि सीता। फिरी प्रानप्रिय प्रेम पुनीता॥
करि प्रनामु भेण्टीं सब सासू। प्रीति कहत कबि हियँ न हुलासू॥1॥

भावार्थ

प्राणप्रिय पति श्री रामचन्द्रजी के साथ पवित्र प्रेम करने वाली सीताजी नैहर के कुटुम्बियों से तथा माता-पिता से मिलकर लौट आईं। फिर प्रणाम करके सब सासुओं से गले लगकर मिलीं। उनके प्रेम का वर्णन करने के लिए कवि के हृदय में हुलास (उत्साह) नहीं होता॥1॥

सुनि सिख अभिमत आसिष पाई। रही सीय दुहु प्रीति समाई॥
रघुपति पटु पालकीं मगाईं। करि प्रबोध सब मातु चढाईं॥2॥

मूल

सुनि सिख अभिमत आसिष पाई। रही सीय दुहु प्रीति समाई॥
रघुपति पटु पालकीं मगाईं। करि प्रबोध सब मातु चढाईं॥2॥

भावार्थ

उनकी शिक्षा सुनकर और मनचाहा आशीर्वाद पाकर सीताजी सासुओं तथा माता-पिता दोनों ओर की प्रीति में समाई (बहुत देर तक निमग्न) रहीं! (तब) श्री रघुनाथजी ने सुन्दर पालकियाँ मँगवाईं और सब माताओं को आश्वासन देकर उन पर चढाया॥2॥

बार बार हिलि मिलि दुहु भाईं। सम सनेहँ जननीं पहुँचाईं॥
साजि बाजि गज बाहन नाना। भरत भूप दल कीन्ह पयाना॥3॥

मूल

बार बार हिलि मिलि दुहु भाईं। सम सनेहँ जननीं पहुँचाईं॥
साजि बाजि गज बाहन नाना। भरत भूप दल कीन्ह पयाना॥3॥

भावार्थ

दोनों भाइयों ने माताओं से समान प्रेम से बार-बार मिल-जुलकर उनको पहुँचाया। भरतजी और राजा जनकजी के दलों ने घोडे, हाथी और अनेकों तरह की सवारियाँ सजाकर प्रस्थान किया॥3॥

हृदयँ रामु सिय लखन समेता। चले जाहिं सब लोग अचेता॥
बसह बाजि गज पसु हियँ हारें। चले जाहिं परबस मन मारें॥4॥

मूल

हृदयँ रामु सिय लखन समेता। चले जाहिं सब लोग अचेता॥
बसह बाजि गज पसु हियँ हारें। चले जाहिं परबस मन मारें॥4॥

भावार्थ

सीताजी एवं लक्ष्मणजी सहित श्री रामचन्द्रजी को हृदय में रखकर सब लोग बेसुध हुए चले जा रहे हैं। बैल-घोडे, हाथी आदि पशु हृदय में हारे (शिथिल) हुए परवश मन मारे चले जा रहे हैं॥4॥